परमेश्वर के वचन में अपने विश्वास को मज़बूत करना
किसी और किताब से ज़्यादा लोगों ने बाइबल को पढ़ा है। लेकिन कितने लोगों ने उसके संदेश पर विश्वास ज़ाहिर किया है? बाइबल खुद ही कहती है कि “हर एक में विश्वास नहीं।” (२ थिस्सलुनीकियों ३:२) साफ़ है कि जन्म से ही हममें विश्वास नहीं होता। इसे पैदा करना ज़रूरी होता है। जिन लोगों के पास कुछ हद तक विश्वास है, उन्हें भी इसके महत्त्व को कम नहीं समझना चाहिए। विश्वास धीरे-धीरे ख़त्म होकर मर सकता है। इसलिए, ‘विश्वास में पक्के’ रहने के लिए मेहनत की ज़रूरत है।—तीतुस २:२, NHT.
तो फिर, यहोवा के साक्षियों के शासी निकाय के पास १९९७/९८ के उनके ज़िला अधिवेशनों की श्रृंखला के लिए इस विषय को चुनने का अच्छा कारण था, “परमेश्वर के वचन में विश्वास।” इस तरह लाखों साक्षियों और अन्य लोगों को परमेश्वर के वचन में अपने विश्वास को मज़बूत करने के लिए इकट्ठे होने का सुअवसर मिला है।
परमेश्वर का वचन सत्य है —हमारे विश्वास का आधार
यह अधिवेशन के पहले दिन का विषय था। इसकी शुरूआत सभी उपस्थित लोगों के लिए सराहना के शब्दों से हुई। अधिवेशन में उपस्थित होना बाइबल के लिए आदर का सबूत है। फिर भी, हमारे विश्वास की मज़बूती के बारे में कुछ सोचने लायक़ सवाल उठाए गए: ‘अधिकार के रूप में परमेश्वर का वचन प्रयोग करते हुए, क्या हम अपने विश्वासों का बचाव करने के क़ाबिल हैं? बाइबल, कलीसिया सभाओं और बाइबल-आधारित प्रकाशनों का महत्त्व कभी कम न समझते हुए, क्या हम आध्यात्मिक भोजन के लिए मूल्यांकन दिखाते हैं? क्या हम प्रेम, यथार्थ ज्ञान, और विवेक-क्षमता में बढ़ रहे हैं?’ वक्ता ने सभी को ध्यान से सुनने के लिए प्रोत्साहित किया, और कहा कि “यह ‘परमेश्वर के वचन में विश्वास’ ज़िला अधिवेशन हमें खुद की और अपने विश्वास की मात्रा और स्तर की व्यक्तिगत तौर पर जाँच करने में हमारी मदद करने के लिए तैयार किया गया है।”
मूल विचार भाषण का शीर्षक था “रूप को देखकर नहीं, पर विश्वास से चलना।” (२ कुरिन्थियों ५:७) “यहोवा के साक्षी बननेवालों का विश्वास, आशुविश्वास नहीं है,” वक्ता ने कहा। यह बात कितनी सच है! सच्चा विश्वास अंधा नहीं होता। यह सच्चाइयों पर आधारित होता है। इब्रानियों ११:१ कहता है: “विश्वास आशा की हुई वस्तुओं का निश्चय, और अनदेखी वस्तुओं का प्रमाण है।” वक्ता ने कहा: “यदि हमें वास्तव में विश्वास से चलना है तो हमें ऐसा विश्वास चाहिए जिसका ठोस आधार हो।” क्योंकि हम विश्वास से चलते हैं, रूप देखकर नहीं, तो हमें इस बात की विस्तृत जानकारी की ज़रूरत नहीं कि कैसे और कब यहोवा अपने उद्देश्य के हर पहलू को पूरा करेगा। हम उसके बारे में जो कुछ पहले ही जानते हैं, उससे हम उसकी शक्ति में पूरा विश्वास रख सकते हैं कि वह अपने वादों को प्रेम और धार्मिकता से पूरा करेगा।
“मसीही युवा—कलीसिया का अत्यावश्यक भाग,” इस भाषण ने युवाओं को याद दिलाया कि वे यहोवा के लिए कितने मूल्यवान हैं। उन्हें पूरी बाइबल पढ़ने और समर्पण और बपतिस्मा के लिए माँगों को पूरा करने के लक्ष्य रखने के द्वारा आध्यात्मिक रूप से बढ़ने का प्रोत्साहन दिया गया। अतिरिक्त शिक्षा पाना एक निजी मामला है जिसके बारे में माता-पिता के साथ मिलकर फ़ैसला करना है, लेकिन अगर यह शिक्षा ली जाती है तो इसका मक़सद हमेशा यह होना चाहिए: परमेश्वर की सेवा ज़्यादा अच्छी तरह करने के लिए लैस होना। लौकिक शिक्षा से एक लाभदायक उद्देश्य पूरा हो सकता है, जब हम अपने विश्वास से संबंधित “उत्तम से उत्तम बातों को प्रिय” जानते हैं।—फिलिप्पियों १:९, १०.
उसके बाद “आप किस के स्तरों का पालन करते हैं?” विषय पर तीन भाषणों की एक परिचर्चा हुई। परमेश्वर के वचन में विश्वास हमें बाइबल के स्तरों का पालन करने के लिए प्रेरित करता है। मसीही यहोवा के नियमों और सिद्धांतों को मानते हैं। उदाहरण के लिए, शास्त्र हमें सलाह देता है कि अश्लील और निंदात्मक बोली न बोलें। (इफिसियों ४:३१, ३२) वक्ता ने सवाल किया: “जब क्रोधित या चिड़चिड़े होते हैं, तो क्या आप अपने साथी से या अपने बच्चों से चिल्लाकर गाली-गलौज करते हैं?” बेशक, ऐसा करना मसीहीपन नहीं होगा। परमेश्वर ने हमारे व्यक्तिगत बनाव-श्रृंगार के बारे में भी स्तर रखे हैं। मसीहियों को ‘शालीनता के साथ उचित वस्त्र’ पहनने चाहिए। (१ तीमुथियुस २:९, १०, NHT) “शालीनता” शब्द आत्म-सम्मान, आदरभाव, गंभीरता और संतुलन का विचार देता है। दूसरों के लिए प्रेम से हमें प्रेरणा मिलती है और बाइबल सिद्धांत साथ ही उचित बातों की समझ हमारे मार्गदर्शक होते हैं।
इसके बाद के दो भाषणों में इब्रानियों ३:७-१५ और ४:१-१६ की हर आयत की चर्चा थी। बाइबल के ये भाग हमें ‘पाप के छल में आकर कठोर हो जाने’ के ख़तरे के विरुद्ध चेतावनी देते हैं। (इब्रानियों ३:१३) पाप के विरुद्ध हमारी लड़ाई में हम कैसे सफल हो सकते हैं? यहोवा हमें अपने वचन के ज़रिए मदद देता है। सच, “परमेश्वर का वचन जीवित, और प्रबल . . . है; और मन की भावनाओं और विचारों को जांचता है।”—इब्रानियों ४:१२.
अधिवेशन के पहले दिन का आख़िरी भाषण था “सब लोगों के लिए एक किताब।” इसने बाइबल की विश्वसनीयता, यथार्थता और व्यावहारिक महत्त्व पर ज़ोर दिया। वक्ता से एक नए ३२-पृष्ठ के ब्रोशर के विमोचन की घोषणा सुनना कितना रोमांचक था जिसका शीर्षक था, सब लोगों के लिए एक किताब! इस नए प्रकाशन को ख़ास उन लोगों के लिए तैयार किया गया है जो पढ़े-लिखे तो हैं, फिर भी बाइबल के बारे में बहुत कम जानते हैं। इस भाषण की समाप्ति इन शब्दों से हुई: “लोगों को परमेश्वर के वचन की खुद जाँच करने की ज़रूरत है। हमें विश्वास है कि अगर वे खुद इसकी जाँच करें, तो वे यह महसूस करेंगे कि यह अनोखी किताब, बाइबल, सचमुच सब लोगों के लिए एक किताब है!”
“विश्वास के सिद्ध करनेवाले” का अनुकरण कीजिए
अधिवेशन के दूसरे दिन के इस विषय ने हमारे “विश्वास के सिद्ध करनेवाले,” यीशु मसीह की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया। (इब्रानियों १२:२; १ पतरस २:२१) मसीहीजगत में अनेक लोगों से कहा जाता है: ‘प्रभु यीशु पर विश्वास करो, और तुम्हारा उद्धार होगा!’ लेकिन क्या विश्वास में बस यही शामिल है? बाइबल साफ़-साफ़ कहती है कि “विश्वास . . . कर्म बिना मरा हुआ है।” (याकूब २:२६) इसलिए, यीशु पर विश्वास करने के अलावा हमें उसके जैसे काम करने चाहिए, ख़ासकर परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार का प्रचार करने के द्वारा।
सुबह के कार्यक्रम ने प्रचार के काम पर ध्यान दिलाया। पौलुस की तरह, हमें उद्धार के सुसमाचार की घोषणा करने के लिए उत्सुक होना चाहिए। (रोमियों १:१४-१६) यीशु ने सब जगह लोगों को प्रचार किया। हालाँकि हमारी नियमित घर-घर की सेवकाई फल ला रही है, फिर भी हर बार जब हम भेंट करते हैं तब बहुत-से लोग घर पर नहीं होते। (प्रेरितों २०:२०) अनेक लोग स्कूल में या नौकरी पर होते हैं, ख़रीदारी या यात्रा कर रहे होते हैं। इसलिए, हमें भी सार्वजनिक जगहों पर और जहाँ कहीं लोग मिल सकते हैं वहाँ प्रचार करने की ज़रूरत है।
“सच्चाई में जड़ पकड़ो और दृढ़ हो जाओ” इस भाषण में हमें बपतिस्मा लेनेवाले नए चेलों की बड़ी संख्या की याद दिलायी गयी—हर दिन औसतन १,००० से ज़्यादा लोग! यह बहुत ही ज़रूरी है कि ये नए लोग विश्वास में गहराई तक जड़ पकड़ें और दृढ़ हो जाएँ। (कुलुस्सियों २:६, ७) वक्ता ने बताया कि जहाँ वास्तविक जड़ें पानी और पोषकों को सोख लेती हैं, वहीं पौधे को स्थिरता या सहारा भी देती हैं। उसी तरह, अध्ययन की अच्छी आदतों और हितकर संगति के ज़रिए, नए चेले सत्य में दृढ़ हो सकते हैं।
यह सलाह ख़ासकर बपतिस्मा के उम्मीदवारों के लिए उपयुक्त थी। जी हाँ, अधिवेशन के दूसरे दिन, यीशु के उदाहरण पर चलते हुए नए चेलों के बड़े-बड़े समूहों का बपतिस्मा हुआ। “परमेश्वर के वचन में विश्वास बपतिस्मे की ओर ले जाता है” भाषण ने उम्मीदवारों को याद दिलाया कि पानी में पूरी तरह डुबोया जाना, उनके पहले के स्वार्थी जीवन के प्रति उनकी मौत का एक उपयुक्त चिन्ह है। पानी से उनका बाहर आना, परमेश्वर की इच्छा पूरी करने के लिए उनके जी उठने को सूचित करता है।
“विश्वास के लिए कड़ी लड़ाई लड़िए” भाषण यहूदा की बाइबल किताब पर आधारित था। हमें प्रोत्साहित किया गया कि अनैतिकता, विद्रोह की भावना, और धर्मत्याग जैसे हानिकारक प्रभावों का विरोध करके अपने विश्वास की रक्षा करें। बाद में, “अपने परिवार के लिए प्रबंध कीजिए” इस भाषण में माता-पिता—ख़ासकर पिताओं—पर ख़ास ध्यान दिया गया। परिवार की आध्यात्मिक, शारीरिक और भावात्मक ज़रूरतों को पूरा करना एक शास्त्रीय ज़िम्मेदारी है। (१ तीमुथियुस ५:८) यह समय, बातचीत और घनिष्ठता की माँग करता है। अपने बच्चों को सच्चाई में पालने-पोसने के लिए मसीही माता-पिताओं की सारी कड़ी मेहनत से यहोवा परमेश्वर निश्चय ही प्रसन्न होता है।
इसके बाद, “आओ, हम यहोवा के भवन को चलें,” इस परिचर्चा ने मसीही सभाओं के लिए क़दरदानी बढ़ायी। इनके ज़रिए इस संसार की चिंताओं से आराम मिलता है। सभाओं में हमें प्रोत्साहन का आदान-प्रदान करने का अवसर मिलता है, और हम अपने संगी विश्वासियों के लिए अपना प्रेम दिखा सकते हैं। (इब्रानियों १०:२४, २५) सभाएँ हमें शिक्षकों के रूप में अपनी कुशलता को बढ़ाने में भी मदद करती हैं और वे हमें परमेश्वर के उद्देश्य की और गहरी समझ देती हैं। (नीतिवचन २७:१७) हम कभी खुद को कलीसिया से अलग न करें, और हमेशा यीशु के शब्द याद रखें: “जहां दो या तीन मेरे नाम पर इकट्ठे होते हैं, वहां मैं उन के बीच में होता हूं।”—मत्ती १८:२०.
उस दिन का आख़िरी भाषण था “आपके विश्वास का गुण—अभी परखा जाता है।” विश्वास जिसे परखा नहीं गया उसकी उत्कृष्टता साबित नहीं होती, और उसके गुण के बारे में कोई नहीं जानता। यह एक ऐसे चॆक की तरह है जिसे भुनाया नहीं गया। क्या इसका मूल्य सचमुच उतना है जितना उस पर लिखा है? उसी तरह, हमारे विश्वास को यह साबित करने के लिए परखा जाना ज़रूरी है कि उसमें दम है और सचमुच गुण है। (१ पतरस १:६, ७) वक्ता ने कहा: “कभी-कभी समाचार-माध्यम और अधिकारी भी पादरियों और धर्मत्यागियों के बहकावे में आकर हम पर झूठे दोष लगाते हैं, हमारे मसीही विश्वासों और जीवन शैली का झूठा रूप प्रस्तुत करते हैं। . . . जिनको शैतान ने अंधा कर रखा है क्या हम उनके धमकाये में आ जाएँगे और निराश हो जाएँगे और सुसमाचार को लज्जा की बात समझेंगे? क्या हम सत्य के बारे में झूठ के कारण अपनी नियमित सभा उपस्थिति और अपनी प्रचार गतिविधि को प्रभावित होने देंगे? या क्या हम यहोवा और उसके राज्य के बारे में सत्य की घोषणा करते रहने के लिए स्थिर और साहसी और पहले से भी अधिक दृढ़ होंगे?”
विश्वास से जीवित रहिए
अधिवेशन के तीसरे दिन का विषय पौलुस के शब्दों पर आधारित था: “कि व्यवस्था के द्वारा परमेश्वर के यहां कोई धर्मी नहीं ठहरता क्योंकि धर्मी जन विश्वास से जीवित रहेगा।” (गलतियों ३:११) “हमारे दिनों के लिए योएल के भविष्यसूचक वचन” परिचर्चा, सुबह की एक विशेषता थी। योएल की किताब हमारे समय की ओर इशारा करती है और अत्यावश्यकता के भाव से कहती है: “उस दिन के कारण हाय! क्योंकि यहोवा का दिन निकट है। वह सर्वशक्तिमान की ओर से सत्यानाश का दिन होकर आएगा।” (योएल १:१५) अथक टिड्डियों के जैसे, अभिषिक्त मसीहियों ने अंत के इस समय में राज्य की घोषणा में किसी भी बात को रुकावट बनने नहीं दी है।
योएल की किताब यह कहकर आशा भी देती है: “जो कोई यहोवा से प्रार्थना करेगा, वह छुटकारा पाएगा।” (योएल २:३२) यह यहोवा का नाम केवल इस्तेमाल करने तक सीमित नहीं है। सच्चा पश्चाताप करने की ज़रूरत है, और इसमें ग़लत कामों को ठुकराना शामिल है। (योएल २:१२, १३) देर करने का समय नहीं है क्योंकि यहोवा जल्द ही जातियों का न्याय करेगा, ठीक जैसे उसने यहूदा के राजा यहोशापात के दिनों में मोआब, अम्मोन और सेईर के पहाड़ी देश का न्याय किया था।—२ इतिहास २०:१-३०; योएल ३:२, १२.
“यहोवा की बाट जोहने के द्वारा विश्वास दिखाइए,” इस भाषण से सभी को प्रोत्साहन मिला। अब अन्तसमय की समाप्ति के बहुत ही क़रीब, हम यहोवा की अनेक प्रतिज्ञाओं की पूर्ति को याद कर सकते हैं और हम आगे होनेवाली बातों में बहुत ज़्यादा दिलचस्पी रखते हैं। यह ज़रूरी है कि यहोवा के लोग धीरज धरते रहें, और याद रखें कि परमेश्वर ने जो भी प्रतिज्ञा की है वह पूरी होगी।—तीतुस २:१३; २ पतरस ३:९, १०.
सुबह का कार्यक्रम “अपनी आँख निर्मल रखिए” इस नाटक से समाप्त हुआ। नाटक के रूप में प्रस्तुत की गयी इस सच्चाई ने हमें भौतिक लक्ष्यों के बारे में अपनी मनोवृत्ति को जाँचने के लिए प्रोत्साहित किया। चाहे हम जहाँ कहीं रहते हों, अगर हम चाहते हैं कि हमारा जीवन चिंता से मुक्त हो तो हमें अपनी आँख निर्मल रखने की यीशु की सलाह को मानना चाहिए, जो सिर्फ़ परमेश्वर के राज्य पर केंद्रित होती है।—मत्ती ६:२२.
जन भाषण का यह दिलचस्पी जगानेवाला शीर्षक था “विश्वास और आपका भविष्य।” इसने संसार की समस्याओं को सुलझाने में मानव अगुओं की अयोग्यता का सबूत पेश किया। (यिर्मयाह १०:२३) मनुष्य का इतिहास बार-बार दोहराया जाता है—ज़्यादा बड़े और ज़्यादा हानिकारक पैमाने पर। यहोवा के साक्षी भविष्य के बारे में कैसा महसूस करते हैं? हम मानते हैं कि परमेश्वर के राज्य के अधीन वफ़ादार मानवजाति का भविष्य उज्ज्वल है। (मत्ती ५:५) परमेश्वर अपनी प्रतिज्ञाओं को उन सभी लोगों के फ़ायदे के लिए पूरा करेगा जो उसके वचन में विश्वास रखते हैं, जो आग्रह करता है: “जब तक यहोवा मिल सकता है तब तक उसकी खोज में रहो, जब तक वह निकट है तब तक उसे पुकारो।”—यशायाह ५५:६.
यीशु ने हमारे दिन को मद्देनज़र रखते हुए एक निहायत ज़रूरी सवाल उठाया था। उसने पूछा: “मनुष्य का पुत्र जब आएगा, तो क्या वह पृथ्वी पर विश्वास पाएगा?” (लूका १८:८) आख़िरी भाषण में अधिवेशन कार्यक्रम पर पुनर्विचार किया गया और दिखाया गया कि इस कार्यक्रम ने कैसे इस बात का एक ज़ोरदार सबूत पेश किया कि परमेश्वर के वचन में विश्वास मौजूद है, हालाँकि हम अविश्वासी और अस्थायी संसार में जी रहे हैं।
फिर भी, हम व्यक्तिगत रूप से खुद से पूछ सकते हैं, ‘क्या मैं उन लोगों में हूँ जिनका परमेश्वर और उसके वचन पर अटल विश्वास है?’ “परमेश्वर के वचन में विश्वास” ज़िला अधिवेशन से हमें इस सवाल का जवाब हाँ में देने में मदद मिलनी चाहिए। और हम यहोवा के कितने आभारी हैं कि उसमें और उसके प्रेरित वचन, बाइबल में हमारे विश्वास को उसने मज़बूत किया है!
[पेज 24 पर तसवीरें]
हज़ारों प्रतिनिधियों को जगह देने के लिए अनेक स्वयंसेवकों ने ख़ुशी-ख़ुशी काम किया
[पेज 25 पर तसवीरें]
शासी निकाय के एल. ए. स्विंग्ल नए ब्रोशर का विमोचन करते हुए
[पेज 25 पर तसवीरें]
संसार भर में इस तरह के बड़े-बड़े स्टेडियम इस्तेमाल किए गए
[पेज 26 पर तसवीर]
यहोवा के प्रति अपने समर्पण के प्रतीक में अनेक लोगों का बपतिस्मा हुआ
[पेज 27 पर तसवीरें]
अधिवेशन में आनेवालों ने ख़ुशी से राज्य गीत गाए। अंतःचित्र: नाटक “अपनी आँख निर्मल रखो”