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  • इस्राएल के इतिहास के खास पर्व
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
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इस्राएल के इतिहास के खास पर्व

“वर्ष में तीन बार, . . . तुम्हारे सब पुरुष अपने परमेश्‍वर यहोवा के साम्हने उस स्थान में जो वह चुन लेगा जाएं। और देखो, छूछे हाथ यहोवा के साम्हने कोई न जाए।”—व्यवस्थाविवरण १६:१६.

१. बाइबल समय के पर्वों के अवसरों के बारे में क्या कहा जा सकता है?

जब आप एक पर्व के बारे में सोचते हैं तो आपके ज़हन में क्या आता है? प्राचीन समयों में कुछ पर्वों की खासियत ही आत्म-तृप्ति और अनैतिकता थी। यही बात आज के पर्वों में भी पाई जाती है। लेकिन इस्राएल को दी गई परमेश्‍वर की व्यवस्था में जिन पर्वों की रूप-रेखा दी गई थी वे भिन्‍न थे। आनंद के अवसर होने के साथ ही इन्हें “पवित्र सभा” भी कहा जा सकता है।—लैव्यव्यवस्था २३:२.

२. (क) साल में तीन बार इस्राएली पुरुषों से क्या करने की माँग की गई थी? (ख) जैसा कि व्यवस्थाविवरण १६:१६ में शब्द इस्तेमाल किया गया है, “पर्ब्ब” क्या है?

२ वफादार इस्राएली पुरुषों ने—जिनके साथ अकसर उनके परिवार भी होते थे—यरूशलेम का सफर करने में, यानी ‘वह स्थान जो यहोवा ने चुना,’ स्फूर्तीदायक आनंद पाया और उन तीन बड़े पर्वों के लिए दिल खोलकर दान भी दिया। (व्यवस्थाविवरण १६:१६) किताब ओल्ड टेस्टामेन्ट वर्ड स्टडीज़ व्यवस्थाविवरण १६:१६ में “पर्ब्ब” अनुवादित इब्रानी शब्द की परिभाषा यह देती है, ऐसे एक “बड़े आनंद का अवसर . . . जिसमें बलिदान और जेवनारों के साथ परमेश्‍वर के अनुग्रह के खास क्षणों को मनाया जाता था।”a

बड़े पर्वों की अहमियत

३. तीन वार्षिक पर्व किन आशिषों को मन में लाते हैं?

३ क्योंकि इस्राएलियों का खेती-बाड़ी का समाज था, वे वर्षा के लिए परमेश्‍वर की आशिष पर निर्भर करते थे। मूसा की व्यवस्था में दिए गए तीन बड़े पर्व बहार की शुरूआत में जौ की कटाई, बहार के अंत में गेहूँ की और गर्मियों के अंत में बाकी फसलों की कटाई के समय में पड़ते थे। ये आनंद मनाने और वर्षा चक्र को चलानेवाले और उपजाऊ भूमि के बनानेवाले को धन्यवाद देने के बड़े अवसर हुआ करते थे। लेकिन पर्वों में इससे ज़्यादा शामिल था।—व्यवस्थाविवरण ११:११-१४.

४. पहले पर्व के द्वारा कौन-सी ऐतिहासिक घटना मनायी गई थी?

४ पहला पर्व, प्राचीन बाइबल कलेंडर के पहले महीने, निसान १५ से २१ में पड़ता था, यह महीना मार्च के आखिर या अप्रैल के शुरू का समय है। इसे अखमीरी रोटी का पर्व कहा जाता था और क्योंकि यह निसान १४ के फसह के तुरंत बाद पड़ता था, इसे ‘फसह का पर्ब्ब’ भी कहा जाता था। (लूका २:४१; लैव्यव्यवस्था २३:५, ६) यह पर्व इस्राएल को मिस्र में उनके दुःख से छुटकारे की याद दिलाता था, इस अखमीरी रोटी को “दुःख की रोटी” कहा जाता था। (व्यवस्थाविवरण १६:३) इस पर्व ने उन्हें याद दिलाया कि मिस्र से उनका निकलना इतनी उतावली में हुआ कि उन्हें अपने गुंधे आटे में खमीर मिलाने और उसके खमीरी होने तक रुकने का समय भी नहीं मिला। (निर्गमन १२:३४) इस पर्व के दौरान किसी भी इस्राएली घर में खमीरी रोटी नहीं पायी जानी थी। इसे मनानेवाला कोई भी व्यक्‍ति, चाहे परदेशी ही क्यों न हो अगर खमीरी रोटी खाता तो उसे मौत की सज़ा दी जाती।—निर्गमन १२:१९.

५. दूसरे पर्व के द्वारा शायद किस विशेषाधिकार की याद दिलायी गई हो और इस खुशी में किन्हें शामिल किया जाना था?

५ दूसरा पर्व निसान १६ से सात हफ्ते (४९ दिन) बाद, सिवान नामक तीसरे महीने के छठवें दिन पड़ता था जो हमारे मई महीने के आखिरी हिस्से के आस-पास होता है। (लैव्यव्यवस्था २३:१५, १६) इसे अठवारों का पर्व कहा जाता था (यीशु के दिनों में, इसे पिन्तेकुस्त भी कहा जाता था, जिसका यूनानी में अर्थ है “पचासवाँ”), और यह साल के लगभग उसी समय में पड़ता था जिस समय सीनै पहाड़ पर इस्राएल ने यहोवा के साथ एक व्यवस्था वाचा बाँधी थी। (निर्गमन १९:१, २) इस पर्व के दौरान वफादार इस्राएलियों ने परमेश्‍वर के लिए अलग की गई एक पवित्र जाति के तौर पर अपने विशेषाधिकार पर मनन किया होगा। परमेश्‍वर के खास लोग होना उनसे परमेश्‍वर की व्यवस्था का पालन करने की माँग करता था, जैसे दुःखी और असहाय लोगों की सुधि लेना ताकि वे भी इस पर्व का आनंद उठा सकें।—लैव्यव्यवस्था २३:२२; व्यवस्थाविवरण १६:१०-१२.

६. तीसरे पर्व ने परमेश्‍वर के लोगों को किस अनुभव की याद दिलायी?

६ इन तीन बड़े पर्वों में से आखिरी बटोरन का पर्व, या झोपड़ियों का पर्व कहलाता था। यह सातवें महीने, तीशरी, या एतानीम, के १५वें दिन से २१वें दिन के बीच पड़ता था, जो अक्‍तूबर के शुरू के आस-पास का समय है। (लैव्यव्यवस्था २३:३४) इस समय के दौरान, परमेश्‍वर के लोग अपने घरों से बाहर या अपनी-अपनी छतों पर पेड़ों की डालियों और पत्तियों से बनाए गए अस्थायी छप्परों (झोंपड़ियों) में रहते थे। इसने उन्हें मिस्र से प्रतिज्ञात देश तक ४० साल के सफर की याद दिलायी, जिसमें इस जाति को अपनी रोज़मर्रा की ज़रूरतों के लिए परमेश्‍वर पर निर्भर रहना सीखना था।—लैव्यव्यवस्था २३:४२, ४३; व्यवस्थाविवरण ८:१५, १६.

७. प्राचीन इस्राएल में पर्वों के मनाए जाने पर दोबारा गौर करने से हमें कैसे फायदा मिलता है?

७ आइए अब हम कुछ पर्वों पर दोबारा गौर करें जो परमेश्‍वर के प्राचीन लोगों के इतिहास में खास पर्व साबित हुए। इससे हमें आज प्रोत्साहन मिलना चाहिए क्योंकि हमें भी नियमित रूप से हर हफ्ते और साल में तीन बार बड़े सम्मेलनों और अधिवेशनों में एकसाथ इकट्ठे होने का निमंत्रण दिया जाता है।—इब्रानियों १०:२४, २५.

दाऊद के वंश के राजाओं के समय में

८. (क) राजा सुलैमान के दिनों में कौन-सा ऐतिहासिक समारोह मनाया गया था? (ख) प्रतिप्ररूपी झोपड़ियों के पर्व की भविष्य में किस महान चरमसीमा की ओर हम ताक सकते हैं?

८ झोपड़ियों के पर्व के समय का एक ऐतिहासिक महत्त्व रखनेवाला समारोह दाऊद के बेटे राजा सुलैमान के समृद्धिपूर्ण शासन के दौरान मनाया गया। झोपड़ियों का पर्व मनाने और मंदिर के समर्पण के लिए प्रतिज्ञात देश के कोने-कोने से “एक बहुत बड़ी सभा” इकट्ठी हुई। (२ इतिहास ७:८) जब यह समाप्त हुआ, राजा सुलैमान ने आनेवाले लोगों को विदा किया, जो “राजा को धन्य, धन्य, कहकर उस सब भलाई के कारण जो यहोवा ने अपने दास दाऊद और अपनी प्रजा इस्राएल से की थी, आनन्दित और मगन होकर अपने अपने डेरे को चले गए।” (१ राजा ८:६६) यह वाकई खास पर्व था। आज, परमेश्‍वर के सेवक भविष्य में बड़े सुलैमान, यीशु मसीह के हज़ार वर्ष के राज्य के अंत में प्रतिप्ररूपी झोपड़ियों के पर्व की महान चरमसीमा की ओर ताकते हैं। (प्रकाशितवाक्य २०:३, ७-१०, १४, १५) उस समय, पृथ्वी की चारों दिशाओं में रह रहे लोग, जिनमें पुनरुत्थित जन और अरमगिदोन से बचनेवाले लोग भी शामिल होंगे, यहोवा परमेश्‍वर की आनंददायक उपासना में एकमत हो जाएँगे।—जकर्याह १४:१६.

९-११. (क) राजा हिजकिय्याह के दिनों में कौन-सी घटनाएँ खास पर्व की ओर ले गईं? (ख) उत्तरी दस-गोत्र राज्य के अनेक लोगों द्वारा क्या उदाहरण पेश किया गया और यह हमें आज किस बात की याद दिलाता है?

९ उसके बाद एक खास पर्व का अभिलेख, बाइबल में दुष्ट राजा आहाज के राज्य के समय के बाद पाया जाता है, जिसने मंदिर को बंद करवा दिया था और जो यहूदा राज्य को धर्मत्याग के मार्ग पर ले गया था। आहाज का उत्तराधिकारी हिजकिय्याह भला राजा था। पच्चीस की उम्र में, अपने राज्य के पहले साल, हिजकिय्याह ने पुनःस्थापना और सुधार का बड़ा कार्यक्रम शुरू किया। उसने तुरंत मंदिर खुलवाया और उसकी मरम्मत का इंतज़ाम किया। उसके बाद राजा ने उत्तर में इस्राएल के विरोधी दस-गोत्र राज्य में रहनेवाले इस्राएलियों को खत भेजा जिसमें उसने उन्हें फसह में आने और अखमीरी रोटी का पर्व मनाने का निमंत्रण दिया। संगी मनुष्यों द्वारा ठट्ठा उड़ाए जाने के बावजूद अनेक लोग आए।—२ इतिहास ३०:१, १०, ११, १८.

१० क्या पर्व कामयाब रहा? बाइबल बताती है: “जो इस्राएली यरूशलेम में उपस्थित थे, वे सात दिन तक अखमीरी रोटी का पर्व्व बड़े आनन्द से मनाते रहे; और प्रतिदिन लेवीय और याजक ऊंचे शब्द के बाजे यहोवा के लिये बजाकर यहोवा की स्तुति करते रहे।” (२ इतिहास ३०:२१) इन इस्राएलियों ने परमेश्‍वर के उन लोगों के लिए आज क्या ही बेहतरीन उदाहरण पेश किया है, जो अधिवेशनों में आने के लिए विरोध सहते और लंबे-लंबे सफर तय करते हैं!

११ उदाहरण के लिए, १९८९ में पोलैंड में हुए तीन “ईश्‍वरीय भक्‍ति” ज़िला अधिवेशनों पर गौर कीजिए। हाज़िर १,६६,५१८ लोगों की गिनती में भूतपूर्व सोवियत संघ से एक बड़ा दल था और बाकी पूर्वीय यूरोपीय देशों से थे जहाँ उस समय यहोवा के साक्षियों के काम पर पाबंदी थी। “इन अधिवेशनों में हाज़िर कुछ लोगों के लिए” किताब यहोवा के साक्षी—परमेश्‍वर के राज्य के उद्‌घोषकb (अंग्रेज़ी) कहती है, “यह पहला मौका था जब वे १५ या २० से ज़्यादा यहोवा के लोगों के साथ बड़े जलसों में हाज़िर हुए हों। स्टेडियम में सैकड़ों-हज़ारों की तादाद में लोगों को देखते, उनके साथ प्रार्थना करते और उनके साथ सुर में सुर मिलाते यहोवा की स्तुति करते वक्‍त उनके दिल शुक्रगुज़ारी से उमड़ उट्ठे।”—पृष्ठ २७९.

१२. राजा योशिय्याह के शासन में कौन-सी घटनाएँ खास पर्व की ओर ले गईं?

१२ हिजकिय्याह की मौत के बाद, राजा मनश्‍शे और आमोन के अधीन यहूदा के लोग दोबारा झूठी उपासना में पड़ गए। उसके बाद एक और भले राजा, युवा योशिय्याह का राज्य आया, जिसने सच्ची उपासना को सुधारने के लिए बेधड़क कार्यवाही की। पच्चीस साल की उम्र में योशिय्याह ने मंदिर की मरम्मत की आज्ञा दी। (२ इतिहास ३४:८) जिस वक्‍त मरम्मत की जा रही थी उसी दौरान मंदिर में मूसा द्वारा लिखी गई व्यवस्था की किताब पायी गई। राजा योशिय्याह ने परमेश्‍वर की व्यवस्था में से जो पढ़ा उसकी वजह से वह बहुत प्रभावित हुआ और उसने इसे सभी लोगों के सामने पढ़े जाने का इंतज़ाम किया। (२ इतिहास ३४:१४, ३०) उसके बाद, जो लिखा था उसके मुताबिक उसने फसह मनाने का इंतज़ाम किया। खुद राजा ने उस मौके पर दिल खोलकर दान देने के द्वारा एक अच्छा उदाहरण पेश किया। नतीजा यह हुआ, जैसा कि बाइबल बताती है: “इस फसह के बराबर शमूएल नबी के दिनों से इस्राएल में कोई फसह मनाया न गया था।”—२ इतिहास ३५:७, १७, १८.

१३. हिजकिय्याह और योशिय्याह द्वारा पर्वों को मनाना हमें आज क्या याद दिलाता है?

१३ हिजकिय्याह और योशिय्याह के दिनों में सच्ची उपासना के सुधार, १९१४ में यीशु मसीह के सिंहासन पर बैठने के समय से सच्चे मसीहियों के बीच हुई पुनःस्थापना के समान है। जैसे योशिय्याह के सुधार में खासकर सच था, यह आधुनिक-दिन सुधार परमेश्‍वर के वचन में लिखित बातों पर आधारित रहा है। और हिजकिय्याह और योशिय्याह के दिनों की समानता करते हुए, आधुनिक-दिन पुनःस्थापना, की खासियत हैं सम्मेलन और अधिवेशन जिनमें बाइबल भविष्यवाणियों के रोमांचकारी अर्थ पर और बाइबल सिद्धांतों को सामयिक रूप से व्यवहार में लाने पर रोशनी डाली जाती है। इन शिक्षा के अवसरों पर खुशी को बड़ी संख्या में बपतिस्मा लेनेवाले लोगों ने दुगना किया है। हिजकिय्याह और योशिय्याह के दिनों में पश्‍चातापी इस्राएलियों की तरह, नए बपतिस्मा लेनेवाले लोगों ने मसीहीजगत के और शैतान की बाकी दुनिया के दुष्ट कामों को छोड़ दिया है। सन्‌ १९९७ में, ३,७५,००० से ज़्यादा लोगों ने पवित्र परमेश्‍वर, यहोवा के प्रति अपने समर्पण के प्रतीक के रूप में बपतिस्मा लिया है—औसतन प्रतिदिन १,००० से ज़्यादा।

निर्वासन के बाद

१४. सा.यु.पू. ५३७ में कौन-सी घटनाएँ खास पर्व की ओर ले गईं?

१४ योशिय्याह की मौत के बाद, यह जाति दोबारा पतित झूठी उपासना में पड़ गई। आखिरकार सा.यु.पू. ६०७ में, बाबुलीय सेनाओं को यरूशलेम के विरुद्ध लाकर यहोवा ने अपने लोगों को सज़ा दी। यह नगर और इसका मंदिर नष्ट हो गए और यह देश निर्जन हो गया था। इसके बाद बाबुल में यहूदी गुलामी के ७० साल शुरू हुए। तब परमेश्‍वर ने पश्‍चातापी यहूदियों के शेषवर्ग को दोबारा समर्थ किया, जो प्रतिज्ञात देश में सच्ची उपासना को पुनःस्थापित करने वापस लौटा। वे लोग वर्ष सा.यु.पू. ५३७ के सातवें महीने में यरूशलेम के उजाड़ नगर में लौटे। सबसे पहले उन्होंने एक वेदी बनायी ताकि उस पर व्यवस्था वाचा के मुताबिक नित्य बलिदान चढ़ाएँ। यही एक और ऐतिहासिक समारोह का वक्‍त था। “उन्हों ने झोपड़ियों के पर्व को माना, जैसे कि लिखा है।”—एज्रा ३:१-४.

१५. पुनःस्थापित शेषवर्ग के सामने सा.यु.पू. ५३७ में कौन-सा काम रखा था और १९१९ में कैसे ऐसी ही समान स्थिति पायी गई?

१५ लौटनेवाले इन निर्वासितों के आगे एक बड़ा भारी काम—परमेश्‍वर के मंदिर और यरूशलेम को शहरपनाह के साथ दोबारा बनाने का था। जलन रखनेवाले पड़ोसियों से कड़ा विरोध था। जब मंदिर बनाया जा रहा था, तो वह एक “छोटी बातों का दिन” था। (जकर्याह ४:१०) यह स्थिति १९१९ में वफादार अभिषिक्‍त मसीहियों की स्थिति के समान थी। उस यादगार वर्ष में, वे महा बाबुल, झूठे धर्म के विश्‍व सम्राज्य की आध्यात्मिक गुलामी से आज़ाद हुए थे। उनकी गिनती मात्र कुछ हज़ार थी और उन्होंने विरोधी दुनिया का सामना किया था। क्या परमेश्‍वर के शत्रु सच्ची उपासना की उन्‍नति को रोकने में कामयाब होते? इस सवाल का जवाब हमें उन दो आखिरी पर्वों के समारोह की याद दिलाता है जो इब्रानी शास्त्र में दर्ज़ हैं।

१६. सा.यु.पू. ५१५ के पर्व की क्या खासियत थी?

१६ सामान्य युग पूर्व ५१५ के अदार महीने में दोबारा मंदिर बनाने का काम आखिरकार पूरा हुआ, ठीक निसान बसंत पर्व से पहले। बाइबल बताती है: “[वे] अखमीरी रोटी का पर्व सात दिन तक आनन्द के साथ मनाते रहे; क्योंकि यहोवा ने उन्हें आनन्दित किया था, और अश्‍शूर के राजा का मन उनकी ओर ऐसा फेर दिया कि वह परमेश्‍वर अर्थात्‌ इस्राएल के परमेश्‍वर के भवन के काम में उनकी सहायता करे।”—एज्रा ६:२२.

१७, १८. (क) सा.यु.पू. ४५५ में कौन-सा खास पर्व आया? (ख) आज हम कैसे उसी परिस्थिति में हैं?

१७ साठ साल बाद, सा.यु.पू. ४५५ में एक और खास पर्व आया। उस साल झोपड़ियों के पर्व में यरूशलेम की शहरपनाह के पुनःनिर्माण के पूरे होने को मनाया गया। बाइबल बताती है: “सब मण्डली के लोग जितने बन्धुआई से छूटकर लौट आए थे, झोंपड़ियां बना कर उन में टिके। नून के पुत्र यहोशू के दिनों से लेकर उस दिन तक इस्राएलियों ने ऐसा नहीं किया था। और उस समय बहुत बड़ा आनन्द हुआ।”—नहेमायाह ८:१७.

१८ क्रूर विरोध के बावजूद परमेश्‍वर की सच्ची उपासना की क्या ही यादगार पुनःस्थापना! आज ऐसी ही परिस्थिति पाई जाती है। सताहट और विरोध की लहरों के बावजूद, परमेश्‍वर के राज्य के सुसमाचार प्रचार का बड़ा काम दुनिया के कोने-कोने तक फैल चुका है और परमेश्‍वर के न्यायदंड की घोषणा दूर-दूर तक की गई है। (मत्ती २४:१४) १,४४,००० के बचे हुए लोगों पर अंतिम मोहर लगाया जाना नज़दीक आता जा रहा है। उनकी पचास लाख से ज़्यादा “अन्य भेड़” सहकर्मी सभी जातियों से अभिषिक्‍त शेषवर्ग के साथ “एक ही झुण्ड” में जमा की गई हैं। (यूहन्‍ना १०:१६; प्रकाशितवाक्य ७:३, ९, १०) झोपड़ियों के पर्व की क्या ही भविष्यसूचक शानदार पूर्ति! और इकट्ठे करने का यह बड़ा काम नए संसार में भी चलता रहेगा जब अरबों पुनरुत्थित जनों को प्रतिप्ररूपी झोपड़ियों का पर्व मनाने के लिए आमंत्रित किया जाएगा।—जकर्याह १४:१६-१९.

सामान्य युग पहली सदी में

१९. सा.यु. ३२ में झोपड़ियों के पर्व को किस बात ने खास बनाया?

१९ बाइबल में जिन पर्वों के मनाने का ज़िक्र किया गया है उनमें से वे बेशक खास हैं जिनमें परमेश्‍वर का पुत्र, यीशु मसीह हाज़िर था। उदाहरण के लिए, सा.यु. ३२ में झोपड़ियों (या, मण्डपों) के पर्व पर यीशु की मौजूदगी पर ध्यान दीजिए। उसने महत्त्वपूर्ण सच्चाइयाँ सीखाने में उस मौके को इस्तेमाल किया और इब्रानी शास्त्र से हवाले देकर अपनी शिक्षाओं का समर्थन किया। (यूहन्‍ना ७:२, १४, ३७-३९) इस पर्व की नियमित विशेषता थी मंदिर के भीतरी आँगन में रखी चार बड़ी-बड़ी दीवटों को जलाने का रिवाज़। यह पर्व की उन गतिविधियों के आनंद में चार-चाँद लगा देता था जो रात भर चलती थीं। ज़ाहिर है कि यीशु इन बड़ी-बड़ी ज्योतियों की ओर संकेत कर रहा था जब उसने कहा: “जगत की ज्योति मैं हूं; जो मेरे पीछे हो लेगा, वह अन्धकार में न चलेगा, परन्तु जीवन की ज्योति पाएगा।”—यूहन्‍ना ८:१२.

२०. सा.यु. ३३ का फसह खास क्यों था?

२० उसके बाद सा.यु. ३३ के महत्त्वपूर्ण वर्ष में फसह और अखमीरी रोटी का पर्व आया। फसह के इस दिन, यीशु के शत्रुओं ने उसे मार डाला और वह प्रतिप्ररूपी फसह का मेम्ना बन गया, जिसने “जगत का पाप” उठा ले जाने के लिए अपनी जान दी। (यूहन्‍ना १:२९; १ कुरिन्थियों ५:७) तीन दिन बाद निसान १६ को, परमेश्‍वर ने यीशु को अविनाशी आत्मिक देह के साथ पुनरुत्थित किया। यह व्यवस्था में बताए गए जौ की कटाई के पहले फल चढ़ाने के समय पर हुआ। इस तरह “जो सो गए हैं उन में,” पुनरुत्थित प्रभु यीशु मसीह “पहिला फल हुआ।”—१ कुरिन्थियों १५:२०.

२१. सा.यु. ३३ के पिन्तेकुस्त में क्या हुआ था?

२१ सामान्य युग ३३ के पिन्तेकुस्त का पर्व सचमुच खास था। इस दिन अनेक यहूदी और धर्मांतरित यरूशलेम में जमा हुए, जिनमें यीशु के लगभग १२० शिष्य भी शामिल थे। जबकि पर्व चल रहा था, पुनरुत्थित प्रभु यीशु मसीह ने १२० जनों पर परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा उँडेली। (प्रेरितों १:१५; २:१-४, ३३) इस तरह वे अभिषिक्‍त किए गए और परमेश्‍वर की उस नई वाचा में चुनी हुई जाति बने जिसकी मध्यस्थता यीशु मसीह ने की। इस पर्व के दौरान यहूदी महायाजक गेहूँ की पहली उपज से बनी दो खमीरी रोटियाँ परमेश्‍वर को चढ़ाता था। (लैव्यव्यवस्था २३:१५-१७) ये खमीरी रोटियाँ १,४४,००० अपरिपूर्ण मनुष्यों को चित्रित करती हैं जिन्हें यीशु ने “परमेश्‍वर के लिये . . . मोल लिया है” ताकि “एक राज्य और याजक बनकर” सेवा करें ‘और पृथ्वी पर राज्य करें।’ (प्रकाशितवाक्य ५:९, १०; १४:१, ३) यह बात कि ये स्वर्गीय शासक पापपूर्ण मानवजाति की दो शाखाओं, यहूदियों और अन्यजातियों में से आते हैं, शायद दो खमीरी रोटियों द्वारा भी दर्शाई गई हो।

२२. (क) मसीही, व्यवस्था वाचा के पर्वों को क्यों नहीं मनाते? (ख) अगले लेख में हम किस बात पर गौर करेंगे?

२२ जब सा.यु. ३३ पिन्तेकुस्त में नई वाचा कार्य करने लगी, तो इसका मतलब यह था कि पुरानी व्यवस्था वाचा का परमेश्‍वर की नज़र में कोई मूल्य नहीं रह गया था। (२ कुरिन्थियों ३:१४; इब्रानियों ९:१५; १०:१६) इसका मतलब यह नहीं कि अभिषिक्‍त मसीहियों पर कोई नियम लागू ही नहीं होता। वे यीशु मसीह द्वारा सिखाए गए उस ईश्‍वरीय नियम के अधीन हैं जो उनके हृदयों में लिखा है। (गलतियों ६:२) इसलिए, तीन वार्षिक पर्वों को जो पुरानी व्यवस्था वाचा का भाग हैं, मसीही नहीं मनाते। (कुलुस्सियों २:१६, १७) फिर भी, अपने पर्वों और उपासना के लिए अन्य सभाओं के प्रति परमेश्‍वर के मसीही-पूर्व सेवकों की मनोवृत्ति से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। हमारे अगले लेख में हम उन उदाहरणों पर गौर करेंगे जो बेशक हम सभी को मसीही सभाओं में नियमित रूप से हाज़िर होने की ज़रूरत को समझने के लिए प्रोत्साहित करेंगे।

[फुटनोट]

a वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित शास्त्रवचनों पर अंतर्दृष्टि (अंग्रेज़ी), खंड १, पृष्ठ ८२०, “पर्व” के अंतर्गत स्तंभ १, अनुच्छेद १ और ३ भी देखिए।

b वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित।

दोबारा विचार करने के सवाल

◻ इस्राएल के तीन बड़े पर्व क्या उद्देश्‍य पूरा करते थे?

◻ हिजकिय्याह और योशिय्याह के दिन के पर्वों की क्या खासियत थी?

◻ कौन-सा खास पर्व सा.यु.पू. ४५५ में मनाया गया था और यह हमारे लिए क्यों प्रोत्साहक है?

◻ सा.यु. ३३ की फसह और पिन्तेकुस्त की खासियत क्या थी?

[पेज 12 पर बक्स]

आज हमारे लिए पर्व से एक सबक

उन सभी लोगों का, जो यीशु के पाप-प्रायश्‍चित्तिक बलिदान से स्थायी फायदा उठाते हैं अखमीरी रोटी के पर्व द्वारा चित्रित बातों के मुताबिक जीवन जीना ज़रूरी है। यह प्रतिप्ररूपी पर्व दुष्ट संसार से अभिषिक्‍त मसीहियों की आज़ादी और पाप के शाप से यीशु की छुड़ौती द्वारा उनके छुटकारे का आनंदपूर्ण समारोह है। (गलतियों १:४; कुलुस्सियों १:१३, १४) शाब्दिक पर्व सात दिन चला—यह संख्या बाइबल में आत्मिक पूर्णता को सूचित करती है। प्रतिप्ररूपी पर्व पृथ्वी पर अभिषिक्‍त मसीही कलीसिया की पूरी समयावधि तक चलता है और इसका “सीधाई और सच्चाई” से मनाया जाना ज़रूरी है। जिसका मतलब है लाक्षणिक खमीर से लगातार चौकस रहना। बाइबल में खमीर का इस्तेमाल भ्रष्ट शिक्षाओं, कपट और बुराई को चित्रित करने के लिए किया गया है। यहोवा के सच्चे उपासकों का ऐसे खमीर से घृणा करना ज़रूरी है, इसके द्वारा उन्हें अपनी ज़िंदगी को भ्रष्ट और साथ ही मसीही कलीसिया की शुद्धता को नष्ट होने नहीं देना चाहिए।—१ कुरिन्थियों ५:६-८; मत्ती १६:६, १२.

[पेज 9 पर तसवीर]

निसान १६ के दिन, जिस दिन यीशु का पुनरुत्थान हुआ था, हर साल जौ की नई फसल का पूला चढ़ाया जाता था

[पेज 10 पर तसवीर]

यीशु ने शायद पर्व की ज्योतियों की ओर संकेत किया हो जब उसने खुद को “जगत की ज्योति” कहा

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