विरासत में मज़बूत मसीहियत पाने के लिए एहसानमंद
ग्वॆन गूच द्वारा बताया गया
स्कूल में मैंने एक भजन गाया था जिसके बोल थे, ‘महान यहोवा महिमा के सिंहासन पर विराजमान।’ अकसर मैं सोच में पड़ जाती, ‘यह यहोवा कौन है?’
मेरे दादा-दादी ईश्वर से डरनेवाले इंसान थे। इस शताब्दी की शुरूआत में वे बाइबल विद्यार्थियों के साथ संगति करते थे, जिन्हें अब यहोवा के साक्षियों के तौर पर जाना जाता है। मेरे पिताजी कारोबार में तो माहिर थे, परंतु उन्होंने अपने तीन बच्चों को पहले-पहल विरासत में वह मसीहियत नहीं दी जो उन्हें मिली थी।
जब मेरे पिताजी ने मेरे भाई डगलस, मेरी बहन ऐन और मुझे ये पुस्तिकाएँ दीं, जिनके शीर्षक थे उसके काम और परमेश्वर कौन है? (अंग्रेज़ी) तब मुझे पता चला कि यहोवा एक सच्चे परमेश्वर का नाम है। (भजन ८३:१८) मैं झूम उठी! लेकिन, किस बात ने पिताजी की दिलचस्पी फिर से जगायी?
सन् १९३८ में, जब पिताजी ने देखा कि राष्ट्र युद्ध की तैयारी में जुट गए हैं तब उन्हें एहसास हुआ कि संसार की समस्याओं का निदान केवल मनुष्यों के बस की बात नहीं है। दादी-माँ ने उन्हें यहोवा के साक्षियों द्वारा प्रकाशित किताब शत्रु (अंग्रेज़ी) दी। पढ़ने के बाद उन्होंने जाना कि मानवजाति का असल शत्रु शैतान अर्थात इब्लीस है और मात्र परमेश्वर का राज्य ही संसार में शांति ला सकता है।a—दानिय्येल २:४४; २ कुरिन्थियों ४:४.
जैसे युद्ध करीब आया, हमारा परिवार वुड ग्रीन, उत्तरीय लंदन में यहोवा के साक्षियों के राज्यगृह में सभाओं के लिए जाने लगा। जून १९३९ में हम तब के वॉच टावर सोसाइटी के अध्यक्ष, जोसॆफ़ एफ. रदरफ़र्ड द्वारा दिया गया जन भाषण, “सरकार और शांति” सुनने के लिए पास के एलग्ज़ैंड्रा पेलेस पहुँचे। न्यू यॉर्क शहर के मैडिसन स्क्वैर गार्डन में दिया गया रदरफ़र्ड का भाषण रेडियो द्वारा लंदन और अन्य प्रमुख शहरों में प्रसारित किया गया था। हम भाषण को इतने स्पष्ट रीति से सुन सके थे कि जब न्यू यॉर्क शहर में हुल्लड़बाज़ भीड़ ने खलल डाली, तो मैंने घुमकर देखा कि कहीं ये हमारे ही भवन में तो नहीं हो रही थी!
बाइबल सच्चाई के लिए पिताजी का जोश
पिताजी ज़ोर देते थे कि हर शनिवार शाम हमारा पूरा परिवार बाइबल अध्ययन में हिस्सा ले। हमारा अध्ययन प्रहरीदुर्ग के उस बाइबल विषय पर केंद्रित होता, जिसकी चर्चा अगले दिन होनेवाली होती थी। इन अध्ययनों का जो प्रभाव पड़ता था, इसका एक उदाहरण यहोशू और ऐ शहर के घेराबंदी का वृत्तांत है जिसकी चर्चा १९३९ में मई १ की प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी) में की गई थी और आज के दिन तक यह मेरे दिल पर नक्श है। उस वृत्तांत ने मुझमें इतनी जिज्ञासा पैदा की कि मैंने उसके सभी संदर्भों की जाँच अपनी बाइबल से की। मैंने यह शोध बहुत ही आकर्षक पाया—और आज भी पाती हूँ।
हम जो सीख रहे थे उसे दूसरों के साथ बाँटने के कारण बाइबल की शिक्षाएँ गहराई से मेरे दिल में समा रही थीं। एक दिन पिताजी ने मुझे एक ग्रामोफोन दिया जिसमें बाइबल-उपदेश रेकॉर्ड किया गया था, एक पुस्तिका दी जो हम बाइबल अध्ययन के लिए उपयोग करते थे और एक वृद्ध महिला का पता दिया। फिर उन्होंने मुझे उस महिला से भेंट करने के लिए कहा।
मैंने पूछा, “मैं उनसे जाकर क्या कहूँगी और मुझे क्या करना है?”
पिताजी ने कहा, “अरे, उसमें सब दिया है, बस रिकॉर्ड बजाओ, सवाल पढ़ो, घरवाले से जवाब पढ़ने को कहो और फिर शास्त्रवचनों को पढ़ो।”
जैसा उन्होंने कहा था मैंने वैसा ही किया और इस तरह मैंने बाइबल अध्ययन चलाना सीख लिया। यूँ अपनी सेवकाई में शास्त्रवचनों को उपयोग करने के कारण मैं शास्त्रवचन बेहतर समझने लगी।
युद्ध के सालों की चुनौतियाँ
दूसरा विश्व युद्ध १९३९ में छिड़ गया और उसके अगले साल मैंने यहोवा की सेवा करने के लिए अपने समर्पण के प्रतीक में बपतिस्मा लिया। मैं मात्र १३ बरस की थी। मैंने तब पायनियर बनने का फैसला किया, जैसा कि पूर्ण-समय के सेवकों को कहा जाता है। मैंने अपना स्कूल १९४१ में छोड़ दिया और लेस्टर अधिवेशन में पूर्ण-समय के प्रचार कार्य में डगलस के साथ हो ली।
अगले साल, पिताजी गिरफ्तार कर लिए गए क्योंकि युद्ध में हिस्सा लेना उनके अंतःकरण के खिलाफ था। युद्ध के उस कठिन समय के दौरान हम बच्चे घर की देखरेख में मदद के लिए माँ के साथ रहे। अभी पिताजी को जेल से छुटे ज़्यादा समय नहीं हुआ था कि डगलस को सैन्य सेवा के लिए बुलाया गया। स्थानीय अखबार की सुर्खियों में छापा गया, “बाप की तरह बेटे ने जेलखाना क्यों पसंद किया?” इसका नतीजा एक अच्छी गवाही हुई क्योंकि इससे यह समझाने का मौका मिल गया कि क्यों सच्चे मसीही अपने साथी मनुष्यों की हत्या करने में हिस्सा नहीं लेते।—यूहन्ना १३:३५; १ यूहन्ना ३:१०-१२.
युद्ध के उन सालों के दौरान, पूर्ण-समय की सेवकाई में रहे कई साक्षी हमारे घर अकसर आया करते थे और दृढ़ करनेवाली उनकी बाइबल आधारित चर्चाओं ने हम पर अमिट छाप छोड़ी। इन वफादार मसीही भाइयों में से जॉन बार और आलबर्ट श्रोडर थे, जो अब यहोवा के साक्षियों के शासी निकाय के सदस्य हैं। मेरे माता-पिता वाकई अच्छी पहुनाई करते थे और उन्होंने हमें भी वैसा ही करना सिखाया।—इब्रानियों १३:२.
जवाब देने के लिए तैयार
पायनियर कार्य शुरू किए अभी ज़्यादा दिन नहीं हुए थे कि मैं घर-घर की सेवकाई में हिल्डा से मिली। उसने आग-बबूला होते हुए कहा: “तुम जैसे लोगों की खातिर ही मेरे पति युद्ध में लड़ रहे हैं! युद्ध के लिए तुम लोग क्यों नहीं कुछ करते?”
मैंने पूछा, “मैं जो कर रही हूँ क्या आपको उसके बारे में पूरी जानकारी है? क्या आप जानती हैं, मैं आपके पास क्यों आयी हूँ?”
उसने कहा, “अच्छा, ठीक है, अंदर आ जाओ और बताओ।”
मैं उसे समझा सकी कि हम ऐसे लोगों को सच्ची आशा दे रहे हैं जो भयानक कार्यों के कारण—जिन्हें अकसर परमेश्वर के नाम पर किया जाता है —तकलीफ उठा रहे हैं। हिल्डा ने बड़े ध्यान से सुना और वही मेरी पहली नियमित बाइबल विद्यार्थी बनी। अब ५५ साल से भी ज़्यादा समय बीत चुका है और वह एक सक्रिय साक्षी रही है।
युद्ध के आखिर में, इंग्लैंड के दक्षिणपश्चिमी नगर, डॉर्चेस्टर में मुझे नयी पायनियर कार्य-नियुक्ति मिली। यह पहली बार था जब मैं अपने घर से दूर रही थी। हमारी छोटी-सी कलीसिया एक रेस्तराँ में मिलती थी, १६वीं शताब्दी की एक पुरानी इमारत जिसे “पुराना टी-हाऊस” कहते थे। हमें अपनी हर सभा के लिए टेबल और कुर्सियों को व्यवस्थित लगाना पड़ता था। जिस राज्यगृह की मैं आदी थी यह उससे बहुत ही अलग था। फिर भी, आध्यात्मिक भोजन और मसीही भाई-बहनों का प्रेममय साथ तो वैसा ही था।
उस बीच मेरे पिताजी लंदन के दक्षिण में, टर्नब्रिज वैल्स चले गए। मैं घर वापस आ गयी ताकि मैं पिताजी और ऐन साथ मिलकर पायनियर-कार्य कर सकें। जल्द ही हमारी कलीसिया में साक्षियों की संख्या १२ से बढ़कर ७० हो गई, इसलिए हमारे परिवार को दक्षिणी तट की ओर ब्रीजटन जाने के लिए कहा गया जहाँ राज्य उद्घोषकों की ज़रूरत ज़्यादा थी। हमारे पायनियर परिवार के साथ कई लोग उत्साहपूर्वक प्रचार में हो लिए और हमने देखा कि यहोवा ने हमारे काम पर खूब आशीष दी। जल्द ही एक कलीसिया बढ़कर तीन हो गई!
अनपेक्षित निमंत्रण
१९५० की गर्मियों में, न्यू यॉर्क शहर के यैंकी स्टेडियम में जो ईश्वरशासन की बढ़ोतरी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ था, उसमें ब्रिटॆन से आनेवाले ८५० प्रतिनिधियों में हमारा परिवार भी शामिल था। कई पायनियर जो उस सम्मेलन में दूसरे देशों से आते, उन्हें गिलियड नामक वॉचटावर बाइबल स्कूल में जाने के लिए फॉर्म दिया गया था, जो न्यू यॉर्क में साउथ लैंसींग के करीब स्थित था। मैं, डगलस और ऐन उनमें से थे! मुझे याद है, अपना फॉर्म भरने के बाद जब मैं उसे डाक में डालते वक्त सोच रही थी, ‘हाँ, अब मैंने वास्तव में कुछ कर दिया! किस दिशा की ओर मेरा जीवन मुझे ले जाएगा?’ फिर भी, मेरा संकल्प यही था: “मैं यहां हूं! मुझे भेज।” (यशायाह ६:८) मेरी खुशी का ठिकाना न रहा, जब डगलस और ऐन के साथ मुझे भी गिलियड की १६वीं क्लास में उपस्थित होने के लिए अधिवेशन के बाद रुकने का निमंत्रण मिला। हम सभी इस बात से अच्छी तरह अवगत थे कि हमें एक मिशनरी की हैसियत से दुनिया के किसी भी भाग में भेजा जा सकता है।
परिवार के साथ अधिवेशन का आनंद उठाने के बाद अब समय आ गया था कि हमारे माता-पिता इंग्लैंड वापस लौटें—अकेले। हम तीनों बच्चों ने उन्हें अलविदा कहा जब वे मॉरीटेनीया जलयान पर सवार हो घर के लिए रवाना हुए। उस विदाई से दिल कितना भर आया था!
मिशनरी कार्य-नियुक्तियाँ
गिलियड की १६वीं क्लास में १२० विद्यार्थी दुनिया के हर भाग से आये थे, इनमें वे भी थे जिन्होंने नात्सी नज़रबंदी शिविरों में दुःख उठाया था। चूँकि हमारी क्लास में स्पैनिश सिखायी गयी थी, हमने दक्षिण अमरीका के किसी स्पैनिश-बोली बोले जानेवाले देश में नियुक्त किए जाने का अनुमान लगाया। स्नातक दिन पर हमारे आश्चर्य की कल्पना कीजिए जब हमने जाना कि डगलस की नियुक्ति जापान के लिए हुई और मेरी तथा ऐन की सीरिया के लिए। इसलिए हम लड़कियों को अरबी सीखनी पड़ी और जब हमारी नियुक्ति लॆबनान में हुई तब भी वह काम आई। जब हम अपने वीज़ा के लिए ठहरी थीं उस दौरान हमें जॉर्ज शखशीरी, जो अरबी प्रहरीदुर्ग के लिए वॉच टावर सोसाइटी के टाइपसैटर थे, हफ्ते में दो बार अरबी सीखाते थे।
उस बाइबल देश में जाना कितना उत्तेजक था, जिसके बारे में हमने अपनी क्लास में सीखा था! कीथ और जोइस चू, ऐड्ना स्टकहाउस, ऑलिव टर्नर, डॉरीन वॉर्बर्टन और डॉरिस वुड वहाँ हमारे साथ आए। कितने खुशहाल मिशनरी परिवार बने हम! भाषा में थोड़ी और मदद देने के लिए एक स्थानीय साक्षी हमारे मिशनरी घर पर आता था। अपने रोज़ाना के शिक्षण के दौरान हम संक्षिप्त प्रस्तुति का अभ्यास करते और फिर हम बाहर अपने प्रचार-कार्य में उसका उपयोग करते।
हमने शुरूआत के कुछ साल ट्रिपली में बिताए जहाँ पर एक स्थापित कलीसिया थी। सभा में हिस्सा लेने और सार्वजनिक सेवकाई करने में जोइस, ऐड्ना, ऑलीव, डॉरीन, डॉरीस, ऐन और मैं स्थानीय भाइयों की पत्नियों और बेटियों की मदद करते थे। तब तक, स्थानीय रिवाज़ानुसार हमारे मसीही भाई-बहन सभा में साथ-साथ नहीं बैठते थे और घर-घर की सेवकाई में ये मसीही बहनें विरले ही हिस्सा लेतीं। अपने सार्वजनिक प्रचार-कार्य में भाषा के लिए हमें उनकी मदद की ज़रूरत थी और हमने उन्हें खुद इस काम में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित किया।
फिर ऐन को और मुझे एक पुराने शहर, सीदोन में साक्षियों के एक छोटे-से समूह की मदद करने के लिए नियुक्त किया गया। और बहुत जल्दी ही हमें राजधानी, बीरट में वापस जाने के लिए कहा गया। बाइबल सच्चाई के बीज वहाँ के अरमेनियन-बोली बोलनेवाले समाज में बोए गए थे, सो हमने उनकी मदद करने के लिए वह भाषा सीखी।
कार्य-नियुक्तियों में परिवर्तन
इंग्लैंड से रवाना होने के पहले मैं विलफ्रेड गूच से मिली थी। वह जोशीला और परवाह करनेवाला भाई था, जिसने लंदन के बेथेल में काम किया था। विल्फ गिलियड की १५वीं क्लास का सदस्य था, जिसने १९५० में यांकी स्टेडियम अधिवेशन के दौरान स्नातकता प्राप्त की थी। उसकी मिशनरी कार्य-नियुक्ति नाइजीरिया में वॉच टावर सोसाइटी के शाखा दफ्तर में की गई थी और कुछ समय के लिए हमने पत्र-व्यवहार किया। सन् १९५५ में लंदन के “विजयी राज्य” अधिवेशन में हम दोनों आये थे और उसके कुछ ही समय बाद हमने सगाई कर ली। उसके अगले साल घाना में हमारा विवाह हो गया और मैं विल्फ की मिशनरी कार्य-नियुक्ति लागोस, नाइजीरिया में उसके साथ हो ली।
लॆबनान में मेरा ऐन को छोड़ने के बाद, ऐन ने एक अच्छे मसीही भाई के साथ शादी कर ली, जिसने यरूशलेम में बाइबल सच्चाई सीखी थी। हमारे माता-पिता हमारे विवाह में शरीक न हो सके क्योंकि डगलस, ऐन और मैंने दुनिया के अलग-अलग भागों में शादी की थी। फिर भी, वे यह जानकर संतुष्ट थे कि हम सभी खुशी-खुशी अपने परमेश्वर, यहोवा की सेवा कर रहे हैं।
नाइजीरिया में काम
लागोस के शाखा दफ्तर में, मुझे अपने शाखा परिवार के आठ सदस्यों के कमरों की साफ-सफाई करने साथ ही उनका खाना बनाने और उनके कपड़े धोने का काम सौंपा गया था। मुझे ऐसा लगा मानो मैंने न केवल अपना पति पाया बल्कि करीबी परिवार भी पा लिया है!
विल्फ और मैंने योरुबा भाषा में बाइबल की संक्षिप्त प्रस्तावनाएँ सीखीं और हमें अपनी कोशिशों के लिए प्रतिफल भी मिला। एक युवा विद्यार्थी जिससे हम उस समय मिले थे, अब उसका एक बेटा और एक बेटी नाइजीरिया के करीब ४०० सदस्योंवाले बड़े बेथेल परिवार में सेवा कर रहे हैं।
सन् १९६३ में विल्फ को दस-महीने का खास प्रशिक्षण देने के लिए न्यू यॉर्क, ब्रुकलीन में आने का निमंत्रण मिला। इसे पूरा करने के बाद, अचानक ही उसे फिर से इंग्लैंड जाने की नियुक्ति मिली। मैं नाइजीरिया में ही ठहरी थी और लंदन में विल्फ से मिलने के लिए मुझे केवल १४ दिन का नोटिस दिया गया। मैं असमंजस की भावना से रवाना हुई क्योंकि नाइजीरिया की कार्य-नियुक्ति बड़ी आनंददायक थी। १४ साल विदेश में सेवा करने के बाद, इंग्लैंड की ज़िंदगी में दोबारा ढलने में समय लगा। बहरहाल हम अपने बुज़ुर्ग माता-पिता के पास एक बार फिर रहने और देखरेख में उनकी मदद करने के लिए खुश थे।
अपनी आशा द्वारा टिके रहे
सन् १९८० से जब विल्फ ने ज़ोन ओवरसियर की हैसियत से कई देशों में यात्रा की तब मुझे उसका साथ देने का विशेषाधिकार मिला। मैं खासकर दोबारा नाइजीरिया जाने की आस लगाए रहती थी। बाद में हम स्कैन्डिनेविया, वेस्ट इंडिज़ और मध्य पूर्व गए—जिसमें लॆबनान भी शामिल था। पुरानी यादों का फिर से ताज़ा होना और जिन्हें किशोरों के रूप में देखा था, उन्हें मसीही प्राचीनों के रूप में सेवा करते देखना एक खास रोमांच था।
अफसोस है कि मेरे प्यारे पति १९९२ की वसंत-ऋतु में चल बसे। वे केवल ६९ बरस के थे। इससे मुझे एक बहुत बड़ा धक्का लगा क्योंकि ये सब अचानक हो गया था। शादी के ३५ साल साथ-साथ गुज़ारने के बाद अब इस तरह जीने में समय लगा है। लेकिन मुझे अपने विश्वव्यापी मसीही परिवार से काफी मदद और प्यार मिला है। मेरे पास ऐसे कितने सारे अच्छे अनुभव हैं जिनके बारे में मैं सोच सकती हूँ।
मेरे माता-पिता दोनों ने ही मसीही खराई की एक बेहतरीन मिसाल रखी है। माँ का देहांत १९८१ में हुआ और पिताजी का १९८६ में। डगलस और ऐन वफादारी से यहोवा की सेवा कर रहे हैं। डगलस और उसकी पत्नी केम लंदन फिर से आ गए हैं और पिताजी की देखरेख करने के बाद वहीं रह गए। ऐन और उसका परिवार अमरीका में है। हम सभी अपनी परमेश्वर-प्रदत्त आशा और विरासत के लिए बहुत ही कदरदानी दिखाते हैं। हम ‘बाट जोहने’ की मनोवृत्ति रखते हुए उस समय की आस लगाए हैं जब जीवित अपने पुनरुत्थित प्रिय जनों के साथ-साथ यहोवा के पार्थिव परिवार के सदस्यों के रूप में सदा के लिए मिलकर सेवा करेंगे।—विलापगीत ३:२५.
[फुटनोट]
a मेरे पिता, अर्नस्ट बीवर की जीवनी मार्च १५, १९८० की प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी) में छापी गयी थी।
[पेज 23 पर तसवीरें]
बाएँ से दाएँ:
१३ साल की उम्र में ग्वॆन ऐनफिल्ड राज्यगृह में अध्ययन का नमूना प्रस्तुत करते हुए
सन् १९५१ ट्रिपली, लॆबनान में मिशनरी परिवार
ग्वॆन मौत में बिछड़े अपने पति विल्फ के साथ