विश्वास और आपका आनेवाला कल
“विश्वास आशा की हुई वस्तुओं का निश्चय, और अनदेखी वस्तुओं का प्रमाण है।”—इब्रानियों ११:१.
१. ज़्यादातर लोगों को कैसा भविष्य चाहिए?
क्या आप भविष्य में दिलचस्पी रखते हैं? ज़्यादातर लोग रखते हैं। वे शांति के भविष्य, दहशत से छुटकारे, अच्छे रहन-सहन, फलदायक और मज़ेदार काम, अच्छी सेहत, और लंबी उम्र की आस लगाते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि इतिहास में हर पीढ़ी ने ऐसी बातें चाही हैं। और आज, इस दुनिया को, जो मुसीबतों से भरी पड़ी है, ऐसे हालात की चाहत पहले से कहीं ज़्यादा है।
२. एक राजनेता ने भविष्य के बारे में कौन-सी राय ज़ाहिर की?
२ जैसे-जैसे इंसान २१वीं सदी की ओर बढ़ रहा है, क्या यह तय करने का कोई तरीका है कि वो आनेवाला कल कैसा होगा? २०० से भी ज़्यादा साल पहले अमरीकी राजनेता पैट्रिक हॆन्री ने एक तरीका बताया था। उन्होंने कहा: “मैं अतीत की मदद के सिवाय भविष्य को जानने का और कोई तरीका नहीं जानता।” इस राय के मुताबिक, इंसान ने अपने अतीत में जो कुछ किया है उसके द्वारा मानवी परिवार के आनेवाले कल को काफी हद तक जाना जा सकता है। काफी लोग इस विचार से सहमत हैं।
बीता हुआ कल कैसा था?
३. भविष्य की उम्मीदों के बारे में इतिहास के पन्ने क्या बताते हैं?
३ अगर भविष्य में भी बीते हुए कल का दोहराव होगा, तो क्या इससे आपको दिलासा मिलेगा? क्या युगों-युगों से अगली पीढ़ियों के लिए भविष्य बेहतर हुआ है? बिलकुल नहीं। लोगों ने हज़ारों सालों से जो उम्मीदें लगाई हैं, और कुछ जगहों में जो भौतिक प्रगति हुई है, उन सब के बावजूद, इतिहास के पन्ने ज़ुल्मो-सितम, जुर्म, युद्ध, और गरीबी से भरे हुए हैं। इस दुनिया ने एक-के-बाद-एक विपत्तियों को देखा है, खासकर जो इंसानों की असंतोषजनक सरकारों द्वारा लायी गयी थीं। बाइबल इस बात को सही-सही बताती है: “एक मनुष्य दूसरे मनुष्य पर अधिकारी होकर अपने ऊपर हानि लाता है।”—सभोपदेशक ८:९.
४, ५. (क) इस २०वीं सदी की शुरुआत में लोगों की उम्मीद क्यों कायम थी? (ख) उनके भविष्य की उम्मीदों का क्या हुआ?
४ यह एक हकीकत है कि इंसान का काला इतिहास अपने-आप को दोहराता रहता है, लेकिन और भी बड़े और ज़्यादा नुकसानदेह पैमाने पर। यह २०वीं सदी ही इस बात का सबूत है। क्या इंसान ने अपने बीते हुए कल की गलतियों से सबक सीखा, और उन्हें टाला है? अगर देखा जाए तो इस सदी की शुरुआत में, कई लोगों ने एक बेहतर भविष्य पर विश्वास किया, क्योंकि काफी समय के लिए शांति बनी हुई थी, और उद्योग, विज्ञान और शिक्षा के क्षेत्रों में अच्छी प्रगति हुई थी। २०वीं सदी की शुरुआत में, विश्वविद्यालय के एक प्रॉफॆसर ने कहा कि यह माना जाता था कि युद्ध की अब कोई गुंजाइश नहीं है क्योंकि “लोग बहुत ही सभ्य हो गए हैं।” ब्रिटॆन के एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री ने उस समय के लोगों के नज़रिए के बारे में कहा: “आहिस्ते-आहिस्ते सभी कुछ सुधरता जाएगा। मेरा जन्म एक ऐसी ही दुनिया में हुआ था।” मगर बाद में उन्होंने कहा: “१९१४ की एक सुबह को एकाएक सब कुछ खत्म हो गया।”
५ उस समय बेहतर भविष्य पर विश्वास के बावजूद, इस नयी सदी की बस शुरुआत ही हुई थी कि इस दुनिया पर अब तक की सबसे बुरी महाविपत्ति आन पड़ी जिसकी वज़ह खुद इंसान था—पहला विश्व युद्ध। यह युद्ध कितना खौफनाक था इसका अंदाज़ा लगाने के लिए गौर कीजिए कि १९१६ की एक लड़ाई में क्या हुआ, जब अँग्रेज़ सेना ने फ्रांस की सॆम नदी के पास जर्मन मोरचे पर हमला किया। बस चंद घंटों में ही अँग्रेज़ों के २०,००० लोग मौत के घाट उतारे गए, और जर्मनी के भी काफी लोग मारे गए। चार साल के उस कत्लेआम में करीब एक करोड़ सैनिकों और काफी नागरिकों की जान गयी। कुछ समय के लिए तो फ्रांस की आबादी कम हो गयी क्योंकि कई पुरुष मारे जा चुके थे। अर्थव्यवस्थाएँ बर्बाद हो गयीं, जिसकी वज़ह से १९३० के दशक में महा-मंदी हुई। इसमें कोई ताज्जुब नहीं कि कुछ लोगों ने कहा है कि जिस दिन पहले विश्व-युद्ध की शुरुआत हुई, उसी दिन से दुनिया पागल हो गयी थी!
६. क्या पहले विश्व युद्ध के बाद ज़िंदगी सुधर गयी?
६ क्या यही वह भविष्य था जिसकी वह पीढ़ी उम्मीद लगाए बैठी थी? हरगिज़ नहीं। उनकी उम्मीदें चकनाचूर हो गयी थीं; और इन सब से हालात में सुधार भी नहीं आया। पहले विश्व युद्ध के सिर्फ २१ साल बाद, या १९३९ में, और भी बदतर महाविपत्ति की शुरुआत हुई, जिसकी वज़ह भी खुद इंसान ही था—दूसरा विश्व-युद्ध। इसने कुछ ५ करोड़ आदमियों, औरतों और बच्चों की जान ली। बड़े पैमाने पर हुई बमवर्षाओं ने शहरों को सत्यानाश कर दिया। पहले विश्व-युद्ध की एक लड़ाई में चंद घंटों में हज़ारों सैनिक मारे गए थे, जबकि दूसरे विश्व-युद्ध में, सिर्फ दो परमाणु बमों ने बस चंद सेकंडों में १,००,००० से भी ज़्यादा लोगों को मौत की नींद सुला दिया। काफी लोगों की राय में इन सब से भी बदतर थी नात्ज़ी यातना शिविरों में लाखों लोगों की योजनाबद्ध हत्या।
७. इस पूरी सदी की सच्चाई क्या बयान करती है?
७ अनेक स्रोत कहते हैं कि अगर हम राष्ट्रों के बीच के युद्धों, नागरिक संघर्षों, और उन मौतों को शामिल करें जो नागरिकों को अपनी ही सरकारों के हाथों से मिली हैं, तो इस सदी में मारे गए लोगों की गिनती २० करोड़ के करीब होगी। एक स्रोत तो यहाँ तक कहता है कि वह ३६ करोड़ होगी। इन तमाम बातों के खौफ की ज़रा कल्पना कीजिए, उस दर्द की, उन आँसुओं की, उस वेदना की, और उन तबाह ज़िंदगियों की! इसके अलावा, हर दिन औसतन ४०,००० लोग, ज़्यादातर बच्चे गरीबी की वज़ह से मरते हैं। हर दिन गर्भपात से मरनेवालों की संख्या इससे तीन गुना ज़्यादा है। साथ ही, करीब एक अरब लोग इतने गरीब हैं कि वे एक सामान्य दिन के काम के लिए ज़रूरी दो वक्त की रोटी भी नहीं जुटा पाते। ये सभी हालात जो बाइबल भविष्यवाणी में पहले से बताए गए थे इस बात के सबूत हैं कि हम इस दुष्ट रीति-व्यवस्था के “अन्तिम दिनों” में जी रहे हैं।—२ तीमुथियुस ३:१-५, १३; मत्ती २४:३-१२; लूका २१:१०, ११; प्रकाशितवाक्य ६:३-८.
कोई मानवी हल नहीं
८. मानवी नेता दुनिया की मुसीबतों को क्यों सुलझा नहीं सकते?
८ जैसे-जैसे यह २०वीं सदी खत्म हो रही है, हम बीती हुई सदियों के अनुभवों में इसके अनुभव जोड़ सकते हैं। और यह इतिहास हमसे क्या कहता है? यही कि मानवी नेताओं ने दुनिया की बड़ी-बड़ी मुसीबतों को कभी नहीं सुलझाया है, वे आज उन्हें नहीं सुलझा रहे हैं, और वे भविष्य में भी उन्हें नहीं सुलझा पाएँगे। हमें जिस तरह का भविष्य चाहिए, उसे देना उनके बस की बात नहीं है, चाहे वे कितने ही नेक-नीयत क्यों न हों। और अधिकार के पद पर बैठे कुछ लोग उतने नेक-नीयत नहीं हैं; वे दूसरों की भलाई के लिए नहीं बल्कि अपने ही अहंकारी और भौतिक लक्ष्यों की खातिर कुर्सी हड़पना चाहते हैं।
९. विज्ञान के पास इंसान की मुसीबतों का जवाब है, उस बात को शक की निगाह से देखने का क्या कारण है?
९ क्या विज्ञान के पास हल हैं? अगर हम अतीत पर गौर करें तो नहीं। सरकारी वैज्ञानिकों ने बहुत ही विनाशकारी रासायनिक, जैविक, और अन्य तरह के अस्त्र-शस्त्रों को बनाने में ढेर सारा पैसा, समय और मेहनत लगायी है। वे देश, जिनमें सबसे गरीब देश भी शामिल हैं, हर साल शस्त्रों पर ७०० अरब डॉलर से भी ज़्यादा खर्च करते हैं! इसके अलावा, यही ‘वैज्ञानिक प्रगति’ उन रसायनों के लिए भी कुछ हद तक ज़िम्मेदार है जिसने हवा, पानी, ज़मीन और खाने को प्रदूषित कर रखा है।
१०. शिक्षा भी एक अच्छे भविष्य की गारंटी क्यों नहीं दे सकती?
१० क्या हम आशा कर सकते हैं कि उच्च नैतिक स्तर, दूसरों के लिए लिहाज़, और पड़ोसी के प्रति प्रेम सिखाने के द्वारा दुनिया की शैक्षिक संस्थाएँ एक बेहतर भविष्य बनाने में मदद करेंगी? जी नहीं। इसके बजाय, ये नौकरी-पेशों पर, पैसे बनाने पर ज़्यादा ध्यान देती हैं। वे बहुत ही प्रतिस्पर्धी आत्मा पैदा करती हैं, एक सहयोगी आत्मा नहीं; ना ही स्कूल नैतिक बातें सिखाते हैं। इसके बजाय, कई स्कूल तो लैंगिक स्वच्छंदता को अनदेखा करते हैं, जिसकी वज़ह से किशोर गर्भावस्थाओं और लैंगिक रूप से फैलनेवाली बीमारियों में भारी वृद्धि हुई है।
११. व्यापार उद्यमों का रिकार्ड भविष्य को कैसे संदेहास्पद बना देता है?
११ क्या दुनिया के बड़े-बड़े व्यापारिक उद्यम हमारी पृथ्वी की अच्छी तरह से देखभाल करने और ऐसी चीज़ें बनाने के द्वारा दूसरों के लिए प्रेम दिखाने के लिए अचानक ही प्रेरित होंगे जो लोगों के असली लाभ के लिए हों और सिर्फ कमाई के लिए नहीं? ऐसा नहीं लगता। क्या वे हिंसा और अनैतिकता से भरे हुए टीवी कार्यक्रम बनाना छोड़ देंगे जो लोगों के, खासकर जवानों के मन को भ्रष्ट करते हैं? इस मामले में हाल के इतिहास से बिलकुल भी हौसला नहीं मिलता, क्योंकि टीवी ज़्यादातर अनैतिकता और हिंसा की सड़ी हुई गटर बन चुका है।
१२. बीमारी और मौत के बारे में इंसान की हालत क्या है?
१२ इसके अलावा, डॉक्टर चाहे कितना ही दिल लगाकर काम क्यों न करें, वे बीमारी और मौत को हटा नहीं सकते। मिसाल के तौर पर, पहले विश्व-युद्ध के आखिर में, वे स्पेनी हैज़े को रोक नहीं पाए; दुनिया भर में इसने करीब २ करोड़ लोगों की जान ली। आज, दिल की बीमारी, कैंसर, और दूसरी जानलेवा बीमारियाँ बहुत बढ़ गयी हैं। ना ही चिकित्सीय जगत ने एड्स की आधुनिक महामारी को रोका है। इसके विपरीत, नवंबर १९९७ में प्रकाशित एक संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट इस नतीजे पर पहुँची कि जिस दर से एड्स वाइरस फैल रहे हैं, वह पहले के अनुमान से दुगुनी ज़्यादा है। पहले ही लाखों लोग इसकी वज़ह से मर चुके हैं। हाल के एक वर्ष में और ३० लाख लोग इससे संक्रमित हो गए।
यहोवा के साक्षी भविष्य को किस नज़र से देखते हैं
१३, १४. (क) यहोवा के साक्षी भविष्य को किस नज़र से देखते हैं? (ख) इंसान एक बेहतर भविष्य क्यों नहीं ला सकते?
१३ लेकिन यहोवा के साक्षी मानते हैं कि इंसान का भविष्य बिलकुल उज्ज्वल है, एकदम बेहतरीन है! लेकिन वे यह अपेक्षा नहीं करते हैं कि वह बेहतर भविष्य इंसान अपनी कोशिशों से लाएगा। इसके बजाय, वे सृष्टिकर्ता, यहोवा परमेश्वर की ओर देखते हैं। वह जानता है कि आनेवाला कल कैसा होगा, और वो शानदार होगा! वह यह भी जानता है कि इंसान ऐसा भविष्य नहीं ला सकते। क्योंकि परमेश्वर ने इंसान को बनाया है, वही उनकी कमज़ोरियों को सबसे ज़्यादा जानता है। अपने वचन में वह हमें साफ-साफ बताता है कि उसने इंसान को इस योग्यता के साथ नहीं बनाया कि वह परमेश्वर के मार्गदर्शन के बगैर सफलतापूर्वक राज कर सके। परमेश्वर ने लंबे अरसे से इज़ाज़त दी है कि इंसान उसको नज़रअंदाज़ करते हुए राज करे, और इस बात से इंसान की यह अयोग्यता साफ-साफ ज़ाहिर होती है। एक लेखक ने कबूल किया: “इंसान ने सभी तरह की सरकारों को आज़माया है, और नाकाम रहा है।”
१४ यिर्मयाह १०:२३ में हम उत्प्रेरित भविष्यवक्ता के वचन पढ़ते हैं जिसने लिखा: “हे यहोवा, मैं जान गया हूं, कि मनुष्य का मार्ग उसके वश में नहीं है, मनुष्य चलता तो है, परन्तु उसके डग उसके अधीन नहीं हैं।” साथ ही, भजन १४६:३ में लिखा है: “तुम प्रधानों पर भरोसा न रखना, न किसी आदमी पर, क्योंकि उस में उद्धार करने की भी शक्ति नहीं।” दरअसल, क्योंकि हम पैदाइशी अपरिपूर्ण हैं, जैसे रोमियों ५:१२ कहता है, परमेश्वर का वचन हमें होशियार करता है कि अपने-आप पर भी भरोसा न करें। यिर्मयाह १७:९ कहता है: “मन तो सब वस्तुओं से अधिक धोखा देनेवाला होता है।” इसीलिए नीतिवचन २८:२६ कहता है: “जो अपने ऊपर भरोसा रखता है, वह मूर्ख है; और जो बुद्धि से चलता है, वह बचता है।”
१५. ऐसी बुद्धि हम कहाँ पा सकते हैं जो हमें मार्गदर्शित करे?
१५ हम यह बुद्धि कहाँ पा सकते हैं? “यहोवा का भय मानना बुद्धि का आरम्भ है, और परमपवित्र ईश्वर को जानना ही समझ है।” (नीतिवचन ९:१०) जी हाँ, सिर्फ यहोवा के पास वह बुद्धि है जो हमें इन भयानक समयों में मार्गदर्शित कर सकती है। और उसने पवित्र शास्त्र के द्वारा हमें अपनी बुद्धि मुहैय्या करायी है। परमेश्वर ने पवित्र शास्त्र को हमारे मार्गदर्शन के लिए उत्प्रेरित किया है।—नीतिवचन २:१-९; ३:१-६; २ तीमुथियुस ३:१६, १७.
मनुष्य के शासन का भविष्य
१६. भविष्य को किसने तय कर रखा है?
१६ तो फिर, परमेश्वर का वचन हमें भविष्य के बारे में क्या कहता है? यह हमें बताता है कि यकीनन भविष्य में वही बातें नहीं होंगी जो मनुष्यों ने अतीत में की हैं। सो पैट्रिक हॆन्री की राय गलत थी। इस पृथ्वी का और उस पर के सभी लोगों का भविष्य इंसान नहीं, बल्कि यहोवा परमेश्वर तय करेगा। उसकी इच्छा पृथ्वी पर पूरी होनेवाली है, इस संसार के किसी मनुष्य या राष्ट्रों की इच्छा नहीं। “मनुष्य के मन में बहुत सी कल्पनाएं होती हैं, परन्तु जो युक्ति यहोवा करता है, वही स्थिर रहती है।”—नीतिवचन १९:२१.
१७, १८. हमारे समय के लिए परमेश्वर की इच्छा क्या है?
१७ हमारे समय के लिए परमेश्वर की इच्छा क्या है? उसका उद्देश्य है कि इस हिंसक, अनैतिक रीति-व्यवस्था का नाश करे। जल्द ही मनुष्यों के इस सदियों-पुराने बुरे शासन की जगह परमेश्वर द्वारा स्थापित शासकत्व ले लेगा। दानिय्येल २:४४ की भविष्यवाणी कहती है: “उन राजाओं के दिनों में [जो आज मौजूद हैं] स्वर्ग का परमेश्वर, [स्वर्ग में] एक ऐसा राज्य उदय करेगा जो अनन्तकाल तक न टूटेगा, और न वह किसी दूसरी जाति के हाथ में किया जाएगा। वरन वह उन सब राज्यों को चूर चूर करेगा, और उनका अन्त कर डालेगा; और वह सदा स्थिर रहेगा।” यह राज्य शैतान, यानी इब्लीस के बुरे प्रभाव को भी हटा देगा, जो इंसान कभी नहीं कर सके। इस दुनिया पर से शैतान का शासन हमेशा-हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा।—रोमियों १६:२०; २ कुरिन्थियों ४:४; १ यूहन्ना ५:१९.
१८ गौर कीजिए कि वह स्वर्गीय सरकार सभी तरह के मानवी शासन को पूरी तरह नष्ट कर देगी। और फिर कभी भी इस पृथ्वी की बागडोर इंसान के हाथों नहीं दी जाएगी। स्वर्ग में, परमेश्वर का राज्य जिन लोगों से बनेगा, वे मनुष्यजाति की भलाई के लिए पूरी पृथ्वी की बागडोर सँभालेंगे। (प्रकाशितवाक्य ५:१०; २०:४-६) पृथ्वी पर, वफादार मनुष्य परमेश्वर के राज्य के निर्देशों को मानेंगे। यही वह शासन है जिसके बारे में यीशु ने हमें प्रार्थना करना सिखाया और कहा: “तेरा राज्य आए; तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो।”—मत्ती ६:१०.
१९, २०. (क) बाइबल राज्य प्रबंध का वर्णन कैसे करती है? (ख) उसका शासन मनुष्यों के लिए क्या करेगा?
१९ यहोवा के साक्षी परमेश्वर के राज्य पर विश्वास करते हैं। यही वह ‘नया आकाश’ है जिसके बारे में प्रेरित पतरस ने यूँ लिखा: “उस की प्रतिज्ञा के अनुसार हम एक नए आकाश और नई पृथ्वी की आस देखते हैं जिन में धार्मिकता बास करेगी।” (२ पतरस ३:१३) “नई पृथ्वी” वह नया मानवी समाज है जिसे नए आकाश, यानी परमेश्वर के राज्य द्वारा नियंत्रित किया जाएगा। यही वह प्रबंध है जिसे परमेश्वर ने प्रेरित यूहन्ना को एक दृष्टांत में प्रकट किया था। यूहन्ना ने लिखा: “मैं ने नये आकाश और नयी पृथ्वी को देखा, क्योंकि पहिला आकाश और पहिली पृथ्वी जाती रही थी, . . . और [परमेश्वर] उन की आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहिली बातें जाती रहीं।”—प्रकाशितवाक्य २१:१, ४.
२० ध्यान दीजिए कि नयी पृथ्वी एक धर्मी पृथ्वी होगी। सभी अधर्मी तत्वों को परमेश्वर के हस्तक्षेप, अरमगिदोन की लड़ाई द्वारा निकाल दिया जाएगा। (प्रकाशितवाक्य १६:१४, १६) नीतिवचन २:२१ और २२ की भविष्यवाणी इसे इस तरह कहती है: “धर्मी लोग देश में बसे रहेंगे, और खरे लोग ही उस में बने रहेंगे। दुष्ट लोग देश में से नाश होंगे।” और भजन ३७:९ वादा करता है: “कुकर्मी लोग काट डाले जाएंगे; और जो यहोवा की बाट जोहते हैं, वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे।” क्या आप एक ऐसी नई दुनिया में नहीं जीना चाहेंगे?
यहोवा के वादों पर विश्वास कीजिए
२१. हम यहोवा के वादों पर विश्वास क्यों कर सकते हैं?
२१ क्या हम यहोवा के वादों पर विश्वास कर सकते हैं? सुनिए कि यहोवा अपने भविष्यवक्ता यशायाह के ज़रिए क्या कहता है: “प्राचीनकाल की बातें स्मरण करो जो आरम्भ ही से हैं; क्योंकि ईश्वर मैं ही हूं, दूसरा कोई नहीं; मैं ही परमेश्वर हूं और मेरे तुल्य कोई भी नहीं है। मैं तो अन्त की बात आदि से और प्राचीनकाल से उस बात को बताता आया हूं जो अब तक नहीं हुई। मैं कहता हूं, मेरी युक्ति स्थिर रहेगी और मैं अपनी इच्छा को पूरी करूंगा।” आयत ११ का आखिरी भाग कहता है: “मैं ही ने यह बात कही है और उसे पूरी भी करूंगा; मैं ने यह विचार बान्धा है और उसे सुफल भी करूंगा।” (यशायाह ४६:९, १०) जी हाँ, हम यहोवा और उसके वादों पर निश्चित रूप से विश्वास कर सकते हैं मानो वे वादे पूरे हो चुके हों। बाइबल इसे इस तरह कहती है: “विश्वास आशा की हुई वस्तुओं का निश्चय, और अनदेखी वस्तुओं का प्रमाण है।”—इब्रानियों ११:१.
२२. हम क्यों यकीन कर सकते हैं कि यहोवा अपने वादे निभाएगा?
२२ नम्र लोग ऐसा विश्वास दिखाते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि परमेश्वर अपने वादे निभाएगा। मिसाल के तौर पर, भजन ३७:२९ में लिखा है: “धर्मी लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और उस में सदा बसे रहेंगे।” क्या हम इस पर विश्वास कर सकते हैं? जी हाँ, क्योंकि इब्रानी ६:१८ कहता है: “परमेश्वर का झूठा ठहरना अन्होना है।” क्या पृथ्वी परमेश्वर की है, कि वह उसे नम्र लोगों को दे सके? प्रकाशितवाक्य ४:११ कहता है: “तू ही ने सब वस्तुएं सृजीं और वे तेरी ही इच्छा से थीं, और सृजी गईं।” इसीलिए, भजन २४:१ कहता है: “पृथ्वी और जो कुछ उस में है यहोवा ही का है।” यहोवा ने पृथ्वी को सृजा, सो यह पृथ्वी उसकी है, और वह इसे उन लोगों को देगा जो उस पर विश्वास रखते हैं। इस बात पर अपना भरोसा बढ़ाने के लिए, अगला लेख दिखाएगा कि कैसे यहोवा ने अपने लोगों से किए वादों को बीते हुए समय में और आज भी निभाया है, और हम क्यों पूरी तरह से यकीन कर सकते हैं कि वह भविष्य में भी ऐसा ही करेगा।
दोहराने के लिए कुछ बातें
◻ पूरे इतिहास में लोगों की उम्मीदों का क्या हुआ है?
◻ एक बेहतर भविष्य के लिए हमें इंसानों की ओर क्यों नहीं देखना चाहिए?
◻ भविष्य के बारे में परमेश्वर की इच्छा क्या है?
◻ हमें क्यों यकीन है कि परमेश्वर अपने वादे निभाएगा?
[पेज 10 पर तसवीर]
बाइबल सही-सही कहती है: “मनुष्य . . . के डग उसके अधीन नहीं हैं।” —यिर्मयाह १०:२३
[चित्र का श्रेय]
बम: U.S. National Archives photo; भूखे बच्चे: WHO/OXFAM; शरणार्थी: UN PHOTO 186763/J. Isaac; मुसोलिनी और हिटलर: U.S. National Archives photo