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  • यूनीके व लोइस—आदर्श शिक्षक
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
w98 5/15 पेज 7-9

यूनीके व लोइस—आदर्श शिक्षक

यहोवा के सेवक होने के नाते, हमें मालूम है कि अपने बच्चों को एक प्रभावकारी धार्मिक शिक्षा देना एक गंभीर ज़िम्मेदारी है। अच्छे-से-अच्छे माहौल में भी, इस कार्य में शायद हर प्रकार की बाधाएँ व मुश्‍किलात आएँ। यह तब और भी मुश्‍किल हो जाता है जब एक मसीही जनक धार्मिक रूप से विभाजित परिवार में इस चुनौती का सामना कर रहा हो। ऐसी स्थिति कोई नयी बात नहीं है। शास्त्र हमें एक ऐसे जनक के बारे में बताता है जिसने सा.यु. पहली सदी में खुद को ऐसी स्थिति में पाया।

यूनीके नामक स्त्री का परिवार लुस्त्रा में रहता था, एक ऐसा शहर जो केंद्रीय-दक्षिण एशिया माइनर के लुकाउनिया क्षेत्र में था। लुस्त्रा एक छोटा प्रांतीय शहर था जिसका कोई खास महत्त्व नहीं था। वह यूलया फेलिक्स जॆमिना लुस्त्रा नामक रोमी बस्ती थी, जिसे औगुस्तुस कैसर ने आस-पास के इलाकों के चोर-लुटेरों के कार्यकलापों का प्रतिकार करने के लिए स्थापित किया था। यूनीके एक यहूदिनी मसीही थी जो अपने यूनानी पति, अपने बेटे तीमुथियुस, व अपनी माँ लोइस के साथ धार्मिक तौर पर विभाजित परिवार में रहती थी।—प्रेरितों १६:१-३.

संभव है कि लुस्त्रा में बस नाम के लिए यहूदी लोग थे, क्योंकि बाइबल में वहाँ किसी आराधनालय के होने का ज़िक्र नहीं है, हालाँकि कुछ ३० किलोमीटर दूर इकुनियुम में यहूदी आबादी ज़रूर थी। (प्रेरितों १४:१९) सो यूनीके के लिए अपने विश्‍वास की राह पर चलना आसान नहीं रहा होगा। इस हकीकत की वज़ह से कि तीमुथियुस के जन्म के बाद उसका खतना नहीं हुआ था, कुछ विद्वानों ने अनुमान लगाया है कि यूनीके के पति ने इस विचार का विरोध किया होगा।

लेकिन, अपने विश्‍वास के अनुसार चलनेवाली बस यूनीके अकेली नहीं थी। ऐसा लगता है कि तीमुथियुस को “पवित्र शास्त्र” का उपदेश उसकी माँ तथा उसकी नानी, लोइस दोनों से मिला था।a प्रेरित पौलुस ने तीमुथियुस से आग्रह किया था: “इन बातों पर जो तू ने सीखीं हैं और प्रतीति की थी [“जिन का यक़ीन तुझे दिलाया गया था,” हिंदुस्तानी बाइबल], यह जानकर दृढ़ बना रह; कि तू ने उन्हें किन लोगों से सीखा था? और बालकपन से पवित्र शास्त्र तेरा जाना हुआ है, जो तुझे मसीह पर विश्‍वास करने से उद्धार प्राप्त करने के लिये बुद्धिमान बना सकता है।”—२ तीमुथियुस ३:१४, १५.

“बालकपन से” शिक्षा

जब पौलुस ने कहा कि तीमुथियुस को “पवित्र शास्त्र” की शिक्षा “बालकपन से” दी गयी थी, तो स्पष्ट है कि इसका अर्थ था शिशुपन से। यह यूनानी शब्द (ब्रीफॉस) के उसके प्रयोग के अनुरूप है जो प्रायः नवजात शिशु को सूचित करता है। (लूका २:१२, १६ से तुलना कीजिए।) अतः यूनीके ने परमेश्‍वर द्वारा दी गयी अपनी बाध्यता को गंभीरता से लिया, और तीमुथियुस को ऐसा प्रशिक्षण देने की शुरूआत करने में बिलकुल भी समय नहीं गँवाया जो उसे परमेश्‍वर का एक समर्पित सेवक बनने में मदद करता।—व्यवस्थाविवरण ६:६-९; नीतिवचन १:८.

तीमुथियुस को शास्त्रीय सच्चाइयों का ‘यक़ीन दिलाया गया’ (HB) था। एक यूनानी शब्दकोश के मुताबिक, पौलुस ने जिस शब्द का यहाँ इस्तेमाल किया उसका अर्थ है किसी बात का “दृढ़तापूर्वक यकीन दिलाया जाना; विश्‍वस्त किया जाना।” बेशक, तीमुथियुस के दिल में ऐसे दृढ़ विश्‍वास की जड़ पकड़वाने और परमेश्‍वर के वचन पर दलील करने व उस पर विश्‍वास करने में उसकी मदद करने के लिए काफी समय व परिश्रम की ज़रूरत थी। इससे स्पष्ट होता है कि दोनों यूनीके व लोइस ने तीमुथियुस को शास्त्र की शिक्षा देने में कड़ी मेहनत की। और इन धर्मपरायण स्त्रियों को क्या ही प्रतिफल मिला! पौलुस तीमुथियुस के बारे में लिख सका: “मुझे तेरे उस निष्कपट विश्‍वास की सुधि आती है, जो पहिले तेरी नानी लोइस, और तेरी माता यूनीके में थी, और मुझे निश्‍चय हुआ है, कि तुझ में भी है।”—२ तीमुथियुस १:५.

तीमुथियुस के जीवन में यूनीके व लोइस ने क्या ही अहम भूमिका निभायी थी! इस संबंध में, लेखक डेविड रीड कहता है: “यदि प्रेरित मानता कि धर्म-परिवर्तन के बारे में तीमुथियुस के अपने अनुभव के सिवाय कोई और बात मायने नहीं रखती, तो वह उसी वक्‍त उसे इसकी याद दिला देता। लेकिन तीमुथियुस के विश्‍वास के बारे में जो सबसे पहली बात उसे कहनी थी, वह थी कि यह विश्‍वास पहले ही ‘लोइस और यूनीके में जीवित था।’” लोइस, यूनीके व तीमुथियुस के विश्‍वास के बारे में पौलुस का कथन दिखाता है कि एक बच्चे के आध्यात्मिक भविष्य को निर्धारित करने में अकसर माता-पिता और यहाँ तक कि दादा-दादी व नाना-नानी द्वारा घर पर दी गयी प्रारंभिक शास्त्रीय शिक्षा प्रमुख है। क्या इस बात से परिवार के सदस्यों को गंभीरतापूर्वक इस बारे में सोचने के लिए प्रेरित नहीं होना चाहिए कि वे परमेश्‍वर व अपने बच्चों, दोनों के प्रति इस ज़िम्मेदारी को पूरा करने के लिए क्या कर रहे हैं?

शायद घर पर जिस प्रकार का माहौल लोइस व यूनीके ने बनाया था, उसके बारे में भी पौलुस सोच रहा था। सामान्य युग ४७/४८ के करीब, लुस्त्रा में पहली बार ठहरते वक्‍त शायद प्रेरित उनके घर भेंट करने गया हो। संभवतः उस समय वे दो स्त्रियाँ मसीहियत में परिवर्तित हुई थीं। (प्रेरितों १४:८-२०) पौलुस तीमुथियुस की नानी लोइस के लिए जो “नानी” शब्द इस्तेमाल कर रहा था, उसका चयन शायद उसने जो स्नेहिल, खुशनुमा रिश्‍ते उस परिवार में देखे थे, शायद उससे प्रभावित होने की वज़ह से हो। विद्वान सॆसला स्पीक के मुताबिक, जिस यूनानी शब्द (माम्मे, प्रतिष्ठित व आदरपूर्ण टेथे के विपरीत) का प्रयोग उसने किया वह अपनी नानी के लिए “बच्चों द्वारा कहा गया प्रीति का शब्द” है, जो इस संदर्भ में “घनिष्ठता व प्रीति का भाव” देता है।

तीमुथियुस की विदाई

पौलुस जब दूसरी बार (लगभग सा.यु. ५०) लुस्त्रा गया उस समय यूनीके की वैवाहिक स्थिति क्या थी, यह स्पष्ट नहीं है। कई विद्वान यह अंदाज़ा लगाते हैं कि वह विधवा थी। चाहे जो भी हो, अपनी माँ व नानी के मार्गदर्शन में तीमुथियुस पल-बढ़कर एक उत्तम युवक बन गया था, शायद उस समय वह कुछ २० बरस का रहा हो। “वह लुस्त्रा और इकुनियुम के भाइयों में सुनाम था।” (प्रेरितों १६:२) स्पष्ट है कि तीमुथियुस के दिल में राज्य के सुसमाचार को फैलाने की तमन्‍ना बिठा दी गयी थी, क्योंकि उसने पौलुस व सीलास के साथ उनकी मिशनरी यात्रा पर चलना स्वीकार किया।

कल्पना कीजिए कि जब तीमुथियुस विदा होने ही वाला था, तब यूनीके व लोइस के दिल पर क्या गुज़री होगी! वे जानती थीं कि पौलुस जब उनके शहर में पहली बार आया था, तब उस प्रेरित को पत्थरवाह करके मरने को छोड़ दिया गया था। (प्रेरितों १४:१९) सो युवा तीमुथियुस को विदा करना उनके लिए आसान नहीं रहा होगा। संभवतः उन्होंने सोचा होगा कि पता नहीं वह कितने समय के लिए जुदा रहेगा और क्या वह सही-सलामत घर लौटेगा भी या नहीं। ऐसी संभव चिंताओं के बावजूद, उसकी माँ व नानी ने बेशक इस खास विशेषाधिकार को स्वीकार करने के लिए उसे प्रोत्साहित किया होगा जो उसे यहोवा की सेवा और भी पूरी तरह से करने में समर्थ करता।

अनमोल सबक

यूनीके व लोइस के बारे में ध्यानपूर्वक विचार करने से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। विश्‍वास ने उन्हें प्रेरित किया कि वे तीमुथियुस की ऐसी परवरिश करें जिससे कि वह आध्यात्मिक रूप से मज़बूत हो। दादा-दादियों व नाना-नानियों द्वारा अपने पोते-पोतियों के लिए तथा अन्य लोगों द्वारा रखा जानेवाला ईश्‍वरीय भक्‍ति का प्रौढ़, संतुलित आदर्श निश्‍चय ही पूरी मसीही कलीसिया के लिए लाभदायक हो सकता है। (तीतुस २:३-५) उसी तरह यूनीके का उदाहरण ऐसी माताओं को, जिनका पति अविश्‍वासी है, अपने बच्चों को आध्यात्मिक उपदेश देने की ज़िम्मेदारी तथा उसके प्रतिफल के बारे में उनकी याद ताज़ा कर सकता है। ऐसा करने के लिए कभी-कभी बड़े साहस की ज़रूरत पड़ सकती है, खासकर यदि पिता अपने विवाह-साथी के धार्मिक विश्‍वासों के प्रति रुचि नहीं दिखाता हो। यह व्यवहार-कुशलता की भी माँग करता है क्योंकि मसीही पत्नी को अपने पति के मुखियापन का आदर करना है।

लोइस व यूनीके के विश्‍वास, मेहनत व आत्मत्याग का प्रतिफल मिला जब उन्होंने तीमुथियुस को एक अत्युत्तम मिशनरी व ओवरसियर की हद तक आध्यात्मिक प्रगति करते हुए देखा। (फिलिप्पियों २:१९-२२) उसी तरह आज, अपने बच्चों को शास्त्रीय सच्चाइयाँ सिखाना, समय, धीरज व दृढ़-संकल्प की माँग करता है, लेकिन बढ़िया परिणाम से सारी मेहनत का फल मिल जाता है। अनेक आदर्श मसीही युवा जिन्हें धार्मिक रूप से विभाजित परिवार में “बालकपन से पवित्र शास्त्र” सिखाया गया है, उनको देखकर उनके धर्मपरायण जनक का दिल गद्‌गद हो उठता है। और यह नीतिवचन कितना सही है जो कहता है: ‘बुद्धिमान की जननी मगन होए’!—नीतिवचन २३:२३-२५.

प्रेरित यूहन्‍ना ने अपने आध्यात्मिक बच्चों के बारे में कहा: “मुझे इस से बढ़कर और कोई आनन्द नहीं, कि मैं सुनूं, कि मेरे लड़के-बाले सत्य पर चलते हैं।” (३ यूहन्‍ना ४) निश्‍चय ही, इन शब्दों में व्यक्‍त की गयी भावना उन लोगों की भावना के समान है जो यूनीके व लोइस, दो आदर्श शिक्षक की तरह साबित होते हैं।

[फुटनोट]

a यह जानकारी कि लोइस तीमुथियुस की दादी नहीं थी, सीरियाई अनुवाद से सूचित होता है जो २ तीमुथियुस १:५ में कहता है, “उसकी माता की माता।”

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