अलग-अलग रस्म-रिवाज़ और बाइबल—क्या ये मेल खाते हैं?
उत्तरी यूरोप के स्टीवन नामक एक यहोवा के साक्षी को किसी अफ्रीकी देश में बतौर मिशनरी भेजा गया। वहाँ के एक भाई के साथ वह शहर की सैर करने के लिए निकला। अचानक जब उस भाई ने स्टीवन के हाथ में हाथ डाला तब वह चौंक पड़ा।
भरी सड़क पर किसी पुरुष का हाथ पकड़े हुए सैर करने की बात स्टीवन सोच भी नहीं सकता था क्योंकि उसके देश में अगर दो आदमी हाथ में हाथ डालकर चलते हैं तो उन्हें समलैंगिक समझा जाता है। (रोमियों १:२७) लेकिन इस अफ्रीकी भाई के लिए ऐसे हाथ पकड़कर चलने में कोई बुराई नहीं थी। उसके देश में इसे दोस्ती का इज़हार समझा जाता है और हाथ ठुकराने का मतलब है दोस्ती ठुकरा देना।
संस्कृतियाँ अलग-अलग होती हैं, यह समझना हमारे लिए क्यों ज़रूरी है? सबसे पहली बात है कि यहोवा के लोग परमेश्वर द्वारा दी गयी ज़िम्मेदारी को पूरा करना चाहते हैं। यह ज़िम्मेदारी है ‘सब जातियों के लोगों को चेला बनाना।’ (मत्ती २८:१९) इसे पूरा करने के लिए कुछ लोग ऐसी जगहों पर गए हैं जहाँ मसीही सेवकों की बहुत ज़रूरत है। अगर वे अपने नए माहौल में कामयाब होना चाहते हैं तो उन्हें वहाँ की संस्कृति को समझना होगा और उसे स्वीकार करना होगा। इस तरह वे अपने संगी भाई-बहनों के साथ अच्छी तरह मिलकर काम कर पाएँगे, साथ ही प्रचार कार्य में ज़्यादा असरदार हो पाएँगे।
दूसरी बात, इस अशांत और गड़बड़ी-भरी दुनिया में अनेक देशों में उथल-पुथल हो रही है या वहाँ बहुत गरीबी है जिसकी वज़ह से वहाँ के लोग अपने-अपने देश को छोड़कर दूसरे देशों में बसने जा रहे हैं। इस तरह हमारे देश में आकर बसे ऐसे लोगों को प्रचार करते वक्त, हमें नए-नए रिवाज़ देखने को मिलेंगे। (मत्ती २२:३९) शुरू-शुरू में इन अलग-अलग रिवाज़ों को देखकर हम शायद उलझन में पड़ जाएँ।
किन से उल्लंघन, किन से नहीं
हरेक समाज की अपनी ही संस्कृति होती है और ऐसा कोई समाज नहीं जिसकी अपनी कोई संस्कृति न हो। इसीलिए बाइबल लेकर हर छोटे-से-छोटे रीति-रिवाज़ की बाल की खाल निकालना “बहुत धर्मी” बनना होगा और ऐसे करने से कोई फायदा नहीं होगा!—सभोपदेशक ७:१६.
दूसरी तरफ, अपने इलाके के ऐसे रिवाज़ों को पहचानना ज़रूरी है जिनसे परमेश्वर के कानूनों का सीधा-सीधा उल्लंघन होता है। इन रिवाज़ों को पहचानना मुश्किल नहीं है क्योंकि हमारे पास परमेश्वर का वचन बाइबल है जो हमारी समझ को ‘सुधार’ सकता है। (२ तीमुथियुस ३:१६) मसलन, कुछ देशों में कई पत्नियाँ रखने का दस्तूर हो सकता है, लेकिन बाइबल के मुताबिक सच्चे मसीहियों में एक पुरुष की एक ही पत्नी होनी चाहिए।—उत्पत्ति २:२४; १ तीमुथियुस ३:२.
इसी तरह, किसी के मरने पर भूत-पिशाचों को दूर भगाने के लिए क्रियाकर्म किए जाते हैं या ऐसी रस्में की जाती हैं जो अमर आत्मा में विश्वास से जुड़ी होती हैं। ऐसे क्रियाकर्मों और रस्मो-रिवाज़ों में सच्चे मसीही कभी-भी हिस्सा नहीं लेते। कुछ लोग मरे हुओं के लिए धूप जलाते हैं या उनसे प्रार्थनाएँ करते हैं ताकि बुरी आत्माएँ दूर रहें। दूसरे लोग अंतिम संस्कार की ऐसी रस्में करते हैं जिनमें मरे हुओं के लिए रात भर जागना पड़ता है या ऐसी रस्में भी की जाती हैं जिनसे वे समझते हैं कि मरे हुओं को ‘दूसरी दुनिया’ के जीवन में मदद मिलेगी। लेकिन, बाइबल सिखाती है कि मरे हुए “कुछ भी नहीं जानते” और इसलिए वे न तो किसी का भला कर सकते हैं, ना ही किसी का बुरा।—सभोपदेशक ९:५; भजन १४६:४.
ऐसे भी कई रिवाज़ हैं जिनको मानने से परमेश्वर के वचन का उल्लंघन नहीं होता। जैसे, लोगों की मेहमान-नवाज़ी करना, अजनबियों को भी मुसकुराते हुए सलाम बोलना और ज़रूरत पड़ने पर उन्हें अपने घर पर ठहराना। ऐसा अब भी कई देशों में किया जाता है और ऐसे दस्तूरों को देखकर दिल को कितना सुकून मिलता है! जब आपको कोई ऐसी मेहमान-नवाज़ी दिखाता है, तो क्या आपका दिल नहीं करता कि आप भी ऐसा ही करें? अगर आप ऐसा करते हैं, तो इससे आपमें अच्छे मसीही गुण पैदा होंगे।—इब्रानियों १३:१, २.
क्या आपको अच्छा लगेगा अगर आपसे कोई घंटों इंतज़ार करवाए? कुछ देशों में इसकी नौबत नहीं आती क्योंकि वहाँ वक्त की पाबंदी को महत्त्व दिया जाता है। बाइबल हमें बताती है कि यहोवा गड़बड़ी का नहीं बल्कि व्यवस्था का परमेश्वर है। (१ कुरिन्थियों १४:३३) उसने दुष्टता का अंत करने के लिए भी एक ‘दिन और घड़ी’ तय की है, और वह हमें यकीन दिलाता है कि ऐसा करने में वह ‘देर नहीं करेगा।’ (मत्ती २४:३६; हबक्कूक २:३) ऐसे देशों में जहाँ वक्त की पाबंदी पर ज़ोर दिया जाता है वहाँ हम भी उसी तरह वक्त का पाबंद होना सीखते हैं और दूसरों का आदर और उनके वक्त की कदर करने लगते हैं। यह बात बाइबल के उसूलों के मुताबिक भी है।—१ कुरिन्थियों १४:४०; फिलिप्पियों २:४.
ऐसे रिवाज़ों का क्या जो अपने आपमें बुरे नहीं?
जबकि कुछ रिवाज़ ऐसे हैं जिन्हें मसीही अपना सकते हैं, ऐसे भी रिवाज़ हैं जिन्हें अपनाना मसीहियों के लिए गलत होगा। लेकिन ऐसे रिवाज़ों का क्या जिनके सही या गलत होने के बारे में बाइबल कुछ नहीं कहती? बहुत-से रिवाज़ ऐसे होते हैं जो अपने आपमें बुरे नहीं। ऐसे रिवाज़ों को हम जिस नज़र से देखते हैं उससे पता चलता है कि हम अपने आध्यात्मिक सोच-विचार में कितने संतुलित हैं।
मिसाल के तौर पर, मिलने के कई तरीके होते हैं—हाथ मिलाना, सिर झुकाना, चूमना या फिर गले लगाना। इसी तरह, खाते वक्त हमें किस प्रकार पेश आना है, इसके बारे में भी अनेक रिवाज़ होते हैं। कई जगहों में सब लोग मिलकर एक ही थाली में से खाते हैं। कुछ देशों में डकार लेने को बहुत अच्छा समझा जाता है। इसका मतलब होता है कि आपको खाना पसंद आया। लेकिन दूसरे देशों में डकार लेना पसंद नहीं किया जाता और इसे बहुत बुरी आदत समझा जाता है।
ऐसे रिवाज़ों में से कौन-कौन से हमें पसंद है या कौन-कौन से नहीं, यह सोचने में समय बरबाद करने के बजाय, हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि हम इनके बारे में अपने नज़रिए को कैसे सुधारें। हमेशा काम आनेवाली बाइबल की सलाह कहती है कि “ईर्ष्या और बेकार के अहंकार से कुछ मत करो। बल्कि नम्र बनो तथा दूसरों को अपने से उत्तम समझो।” (फिलिप्पियों २:३, ईज़ी टू रीड वर्शन) इसी तरह, एलिनर बोइकिन अपनी पुस्तक, दिस वे प्लीस—ए बुक ऑफ मैन्नर्स में कहती है: “सबसे पहली ज़रूरत है एक अच्छा दिल।”
अगर हम ऐसे नम्र विचार रखते हैं, तो हम दूसरों के रिवाज़ों को तुच्छ नहीं समझेंगे। दूसरे लोगों के रिवाज़ों में बुराई देखने और उनमें हिस्सा लेने से हिचकिचाने के बजाय हम उनकी रहन-सहन और तौर-तरीके सीखने, उनके रिवाज़ों में हिस्सा लेने, और उनके खाने का ज़ायका लेने की कोशिश करेंगे। अगर हम खुले विचार रखकर अपने मेज़बान के या विदेशी पड़ोसियों के रिवाज़ों को आज़माते हैं तो इससे उनकी इज़्ज़त बढ़ेगी। जब हम इस तरह से अपनी समझ और अनुभव को बढ़ाते हैं और अपने दिल को ‘खोल देते’ हैं, तो इससे हमें भी फायदा होता है।—२ कुरिन्थियों ६:१३.
जब रिवाज़ से आध्यात्मिक प्रगति में बाधा होती हो
तब क्या जब हम ऐसे रिवाज़ों को देखते हैं जो बाइबल के खिलाफ तो नहीं हैं, पर आध्यात्मिक प्रगति के लिए बाधा हैं? मसलन, कुछ देशों में लोगों की आदत होती है कि हर काम को कल पर छोड़ दें। ऐसा करने से ज़िंदगी में शायद तनाव कम हो, लेकिन इससे हमारे लिए अपनी सेवकाई को ‘पूरा कर’ पाना मुश्किल हो जाएगा।—२ तीमुथियुस ४:५.
हम दूसरों को कैसे समझा सकते हैं कि वे ज़रूरी बातों को कल पर न टालें? याद रखिए कि “सबसे पहली ज़रूरत है एक अच्छा दिल।” उनके लिए एक अच्छा उदाहरण रखने के अलावा हम उन्हें प्यार से समझा सकते हैं कि आज का काम आज करने के क्या-क्या फायदे हैं। (सभोपदेशक ११:४) दूसरी तरफ, हमें काम पर इतना भी ज़ोर नहीं देना चाहिए कि उन्हें यह लगने लगे कि हम उन पर भरोसा नहीं करते। अगर दूसरे लोग हमारे सुझावों को फौरन स्वीकार नहीं करते, तो भी हमें अपनी बात मनवाने के लिए उन पर अपना अधिकार नहीं जताना चाहिए ना ही उन पर अपनी झुँझलाहट निकालनी चाहिए। प्यार से बर्ताव कीजिए, सिर्फ काम करवाने के चक्कर में मत रहिए, क्योंकि प्यार काम से बढ़कर है।—१ पतरस ४:८; ५:३.
अपने इलाके की पसंद-नापसंद को ध्यान में रखना
अगर हम सुझाव देना चाहते हैं, तो उसमें दम होना चाहिए और हमें दूसरों पर अपनी पसंद-नापसंद थोपने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। मसलन, पहनावे को लीजिए। अलग-अलग जगहों पर पहनावे के तौर-तरीके अलग-अलग होते हैं। अनेक देशों में अगर एक भाई टाई पहनकर प्रचार करता है तो इसे अच्छा समझा जाता है, जबकि दूसरे देशों में इसे शायद बहुत ही अजीब समझा जाए। इसलिए हमारे इलाके में किस तरह के पहनावे को अच्छा समझा जाता है या किसे अजीब, यह जानना अच्छा होगा। और इसे जानने में वहाँ के बिजनॆसमैन के पहनावे को देखना ठीक रहेगा। पहनावे जैसे नाज़ुक मसले पर किसी भी तरह की राय कायम करते वक्त, हमें बुद्धि से काम लेना चाहिए।—१ तीमुथियुस २:९, १०.
जब कोई रिवाज़ हमें पसंद नहीं आता, तब क्या? क्या हम इस रिवाज़ को स्वीकार ही नहीं करेंगे? ज़रूरी नहीं। पुरुषों का एक-दूसरे के हाथ में हाथ डालकर चलने का रिवाज़, जिसका ज़िक्र पहले किया गया है, उस अफ्रीकी देश में आम बात है। जब उस मिशनरी ने देखा कि दूसरे पुरुष भी एक-दूसरे के हाथ में हाथ डालकर घूम रहे हैं, तो वह ज़्यादा सहज महसूस करने लगा।
प्रेरित पौलुस अपनी मिशनरी यात्रा में दूर-दूर देशों की कलीसियाओं में गया, जिनमें अलग-अलग जगहों के लोग थे। ज़ाहिर है कि अलग-अलग रस्मो-रिवाज़ों की वज़ह से लोगों का अलग-अलग नज़रिया था। इसलिए, पौलुस उनके रस्मो-रिवाज़ों को जहाँ तक हो सके मानता था और यह ध्यान रखता था कि वह बाइबल के उसूलों के खिलाफ न जाए। उसने कहा, “मैं सब मनुष्यों के लिये सब कुछ बना हूं, कि किसी न किसी रीति से कई एक का उद्धार कराऊं।”—१ कुरिन्थियों ९:२२, २३; प्रेरितों १६:३.
कुछ सवाल यह जानने में हमारी मदद कर सकते हैं कि नए रस्मो-रिवाज़ों के मामलों में हमें क्या करना चाहिए। अगर हम किसी रिवाज़ को अपनाते हैं या नहीं अपनाते, तो इससे दूसरों पर क्या असर पड़ेगा? जब वे देखते हैं कि हम उनके रस्मो-रिवाज़ों को अपनाने की कोशिश कर रहे हैं, तो क्या इससे राज्य संदेश स्वीकार करने में उन्हें आसानी होती है? दूसरी तरफ, अगर हम वहाँ के किसी रिवाज़ को अपनाते हैं, तो क्या लोग इससे “हमारी सेवा पर कोई दोष” लगा सकते हैं?—२ कुरिन्थियों ६:३.
अगर हम सचमुच ‘सब मनुष्यों के लिये सब कुछ बनना’ चाहते हैं तो रिवाज़ों को अच्छा या बुरा समझने के बारे में हमें अपनी पक्की राय को शायद बदलना पड़े। अकसर किसी काम को करने के तरीके को “सही” या “गलत” कहना इस बात पर निर्भर करता है कि हम कहाँ रह रहे हैं। इसलिए जहाँ एक देश में दो पुरुषों का हाथ में हाथ डालकर चलना दोस्ती की निशानी समझा जाता है, वहीं किसी दूसरे देश में इसे देखकर शायद कोई भी राज्य संदेश न सुने।
लेकिन ऐसे कुछ रिवाज़ होते हैं, जिन्हें कई जगहों में माना जाता है और जो शायद मसीहियों के लिए ठीक भी हों, फिर भी हमें सावधानी बरतने की ज़रूरत है।
हद पार करने से खबरदार!
यीशु मसीह ने कहा कि उसके चेले संसार से तो नहीं जा सकते थे, मगर उन्हें संसार में रहते हुए भी “संसार का [कोई भाग] नहीं” होना था। (यूहन्ना १७:१५, १६) लेकिन कभी-कभी यह फर्क करना बहुत मुश्किल हो जाता है कि रिवाज़ों में किस हद तक हिस्सा लेने से यह सिर्फ रिवाज़ ही रहेगा और किस हद को पार करना हमें शैतान के इस संसार का भाग बना देगा। मसलन, हर जगह नाच-गाने का चलन है। कुछ देशों में इस पर ज़्यादा ज़ोर दिया जाता है।
हम बहुत जल्दी कोई ऐसी राय कायम कर लेते हैं जो बाइबल की सच्चाई पर नहीं बल्कि हमारी परवरिश या सोच-विचार के आधार पर होती है। जर्मनी के एलैक्स नामक एक भाई को सेवकाई के लिए स्पेन भेजा गया। जहाँ वह पहले रहता था, वहाँ डांसिंग इतना आम नहीं था, लेकिन स्पेन में यह तो संस्कृति का एक हिस्सा है। जब उसने पहली बार वहाँ एक भाई और बहन को झूम-झूम कर नाचते हुए देखा, तो वह सोच में पड़ गया। क्या इस तरह नाचना सही है? क्या यह दुनियावी नहीं? अगर वह इस रिवाज़ को स्वीकार करता है तो क्या वह अपने मसीही उसूलों से गिर जाएगा? एलैक्स को बाद में एहसास हुआ कि भले ही उसके लिए इस जगह का संगीत व नाच अलग है, फिर भी उसे यह नहीं मान लेना चाहिए कि उसके स्पैनिश भाई-बहन अपने मसीही उसूलों से गिर गए हैं। संस्कृतियों की भिन्नता की वज़ह से ही वह गलतफहमी में पड़ गया था।
भाई एमील्यो को स्पेन के पारंपरिक नाच-गाने पसंद तो हैं लेकिन उसे एक खतरा भी दिखता है। वह कहता है, “मैंने देखा है कि कई नाच के तरीके ऐसे होते हैं जिनमें बहुत करीब होकर नाचना पड़ता है। चूँकि मैं अविवाहित हूँ, मैं समझ सकता हूँ कि इसका क्या असर हो सकता है। शायद एक पार्टनर के दिल में भावनाएँ जाग जाएँ। कभी-कभी, डांसिंग का बहाना बनाकर लड़का या लड़की सिर्फ मज़ा लेने के लिए अपने पार्टनर की भावनाओं से खेलते हैं। ऐसे खतरों से दूर रहा जा सकता है अगर संगीत मसीहियों के लायक हो और नाचते वक्त जानबूझकर शरीर का स्पर्श न किया जाए। फिर भी, मुझे मानना पड़ेगा कि जब अविवाहित युवा भाई-बहन एक-साथ नाचने-गाने लगते हैं, तब ऐसे माहौल में मसीही उसूलों को नज़रअंदाज़ करना आसान हो जाता है।”
हमें कभी-भी दुनिया के लोगों जैसी हरकतें करने के लिए अपने रिवाज़ की आड़ नहीं लेनी चाहिए। नाच-गाना इस्राएल की संस्कृति का हिस्सा था। जब इस्राएली लोगों को लाल समुद्र के पास मिस्र की बंधुवाई से छुटकारा मिला, तब उन्होंने नाच-गाकर ही इसका जश्न मनाया। (निर्गमन १५:१, २०) लेकिन, उस समय के मूर्तिपूजक लोगों के नाचने-गाने से इस्राएलियों के नाचने-गाने का तरीका बिलकुल अलग था।
अफसोस की बात है, सीनै पर्वत से मूसा के लौटने का इंतज़ार करते वक्त इस्राएली बेचैन हो उठे, उन्होंने सोने का बछड़ा बनाया और खाने-पीने और “नाचने कूदने” लगे। (१ कुरिन्थियों १०:७, हिन्दुस्तानी बाइबल; निर्गमन ३२:१-६) जब मूसा और यहोशू के कानों में उनके गाने की आवाज़ पड़ी, तब वे एकदम घबरा गए। (निर्गमन ३२:१७, १८) इस्राएली अपनी “हद” पार कर चुके थे, और अब उनका नाच-गाना बिलकुल उनके आस-पास के मूर्तिपूजक लोगों के नाच-गाने की तरह हो गया था।
इसी तरह आज, हो सकता है कि हमारे इलाके में संगीत या नाच-गाना आम हो, और शायद किसी को भी इसमें कोई बुराई न दिखे। लेकिन अगर रोशनी कम कर दी जाए, जगमगाती बत्तियाँ लगायी जाएँ, या कोई धमाकेदार ताल बजाई जाए, तब वही नाच-गाना अब दुनिया के लोगों के नाच-गाने की तरह लगने लगेगा। कोई शायद बहस करे, “इसमें क्या बुराई है? यह तो महज हमारी संस्कृति है।” हारुन ने भी ऐसे ही बहाने की आड़ ली। जब इस्राएली लोग उसी तरीके से मौज-मस्ती और उपासना करना चाहते थे जैसे मूर्तिपूजा करनेवाले लोग करते थे, तब उसने उन्हें वैसा करने दिया और ऊपर से कहा कि यह “यहोवा के लिये पर्ब्ब” है। एकदम बेबुनियाद और झूठा बहाना! उनकी इस हरकत ने उन्हें “उन के दुश्मनों के दरमियान ज़लील कर दिया।”—निर्गमन ३२:५, २५, किताबे मुकद्दस।
संस्कृति की अपनी जगह है
अजीब लगनेवाले रिवाज़ों से हम शायद शुरू-शुरू में चौंक जाएँ, लेकिन ज़रूरी नहीं कि ये सब-के-सब ठुकराने लायक हों। क्योंकि अपनी ‘ज्ञानेन्द्रियों के अभ्यास’ के कारण, हम यह पहचानना सीख सकते हैं कि मसीहियों के लिए कौन-कौन-से रिवाज़ भले हैं और कौन-कौन-से बुरे। (इब्रानियों ५:१४) अगर हमारा दिल लोगों के लिए प्यार और मुहब्बत से भरा होता है, तो जब ऐसे रिवाज़ों को अपनाने की बात आती है जो अपने आपमें बुरे नहीं हैं, तब हमारा पेश आने का तरीका सही होगा।
जब हम यह बात मानते हैं कि संस्कृतियाँ तरह-तरह की और सतरंगी होती हैं तभी हम अपने या दूसरे इलाके में लोगों को राज्य की खुशखबरी सुनाते वक्त “सब मनुष्यों के लिये सब कुछ” बन पाएँगे। और हमारी ज़िंदगी रंगीन, खुशनुमा और हसीन बन जाएगी।
[पेज 20 पर तसवीर]
मसीही कई तरीकों से एक-दूसरे का स्वागत करते हैं
[पेज 23 पर तसवीर]
तरह-तरह की और सतरंगी संस्कृतियों को अपनाने से ज़िंदगी रंगीन, खुशनुमा और हसीन बन जाएगी