माता-पिताओ, आपकी मिसाल से बच्चे क्या सीखते हैं?
“प्रिय, बालको की नाईं परमेश्वर के सदृश्य बनो। और प्रेम में चलो।”—इफिसियों ५:१, २.
१. यहोवा ने पहले आदमी और औरत को क्या-क्या हिदायतें दीं?
यहोवा ने पहले आदमी और औरत की शादी रचाई और उसने उन्हें संतान उत्पन्न करने की क्षमता दी। परमेश्वर की इसी आशीष की वज़ह से दुनिया में आज इतने सारे परिवार मौजूद हैं। (इफिसियों ३:१४, १५) उसने पहले आदमी और औरत यानी आदम और हव्वा को उनकी ज़िम्मेदारियों के बारे में ज़रूरी हिदायतें दीं। और इन ज़िम्मेदारियों को अपने ढंग से पूरा करने के लिए उन्हें पूरी छूट भी दी। (उत्पत्ति १:२८-३०; २:६, १५-२२) मगर, आदम और हव्वा के पाप करते ही हालात ने एक नया मोड़ लिया, और तबसे सभी परिवारों में हालात बिगड़ते चले गए हैं। इसके बावजूद, प्यार की वज़ह से यहोवा ने अपने सेवकों को ऐसी हिदायतें दीं जो उन्हें बिगड़ते हालात का मुकाबला करने में मदद करतीं।
२. (क) यहोवा ने लिखित हिदायतों के अलावा और क्या दिया है? (ख) माता-पिता को अपने आप से कौन-सा सवाल पूछना चाहिए?
२ यहोवा ही सबसे बेहतरीन शिक्षक है। इसलिए वह हमें हिदायत देता है कि हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं। और उसने सिर्फ लिखित हिदायतें ही नहीं दीं। पुराने ज़माने में उसने याजक, भविष्यवक्ता और परिवार के मुखिया के ज़रिए भी अपने सेवकों को हिदायतें दीं। लेकिन, आज हमें वह किन के ज़रिए हिदायत दे रहा है? इसके लिए वह मसीही प्राचीनों का और हमारे माता-पिताओं का इस्तेमाल करता है। सो अगर आप एक माता या पिता हैं, तो क्या आप अपने परिवार को यहोवा के मार्ग के बारे में सिखाकर अपनी भूमिका अदा कर रहे हैं?—नीतिवचन ६:२०-२३.
३. असरदार तरीके से सिखाने के लिए परिवार के मुखिया, यहोवा से क्या सीख सकते हैं?
३ माता-पिता अपने परिवार को यहोवा के मार्ग के बारे में कैसे सिखा सकते हैं? इसके लिए खुद यहोवा ने एक आदर्श रखा है। वह हमें साफ-साफ समझाता है कि क्या सही है और क्या नहीं। और उन्हीं बातों को याद दिलाने के लिए वह उन्हें बार-बार दोहराता है। (निर्गमन २०:४, ५; व्यवस्थाविवरण ४:२३, २४; ५:८, ९; ६:१४, १५; यहोशू २४:१९, २०) वह ऐसे सवालों का भी इस्तेमाल करता है जो हमें सोचने पर मजबूर करते हैं। (अय्यूब ३८:४, ८, ३१) और वह उदाहरणों का और सच्ची घटनाओं का इस्तेमाल करके हमारी भावनाओं को जगाता है और हमारे दिल तक पहुँचता है। (उत्पत्ति १५:५; दानिय्येल ३:१-२९) सो, माता-पिताओ, अपने बच्चों को सिखाते समय क्या आप यहोवा के इस आदर्श की नकल करते हैं?
४. यहोवा जिस तरह से ताड़ना देता है, उससे हम क्या सीख सकते हैं, और ताड़ना देना क्यों ज़रूरी है?
४ हालाँकि यहोवा हमेशा सही बात पर अटल रहता है, लेकिन वह यह ध्यान में रखता है कि इंसान असिद्ध हैं। सो, असिद्ध मनुष्यों को सज़ा देने से पहले, वह उन्हें सिखाने की कोशिश करता है और बार-बार चेतावनियाँ देता है और याद दिलाता है कि सही क्या है। (उत्पत्ति १९:१५, १६; यिर्मयाह ७:२३-२६) और, वह बिलकुल सही तरीके से, और सही हद तक ताड़ना देता है। (भजन १०३:१०, ११; यशायाह २८:२६-२९) अगर हम भी अपने बच्चों के साथ ऐसे ही पेश आएँ, तो इससे साबित होगा कि हम यहोवा को बहुत ही अच्छी तरह जानते हैं, और इससे बच्चों के लिए भी यहोवा को अच्छी तरह जानना आसान हो जाएगा।—यिर्मयाह २२:१६; १ यूहन्ना ४:८.
५. सुनने के बारे में माता-पिता यहोवा से क्या सीख सकते हैं?
५ यह भी दिलचस्पी की बात है कि यहोवा जो स्वर्ग में रहता है, एक प्रेमी पिता की तरह हमारी बातों को बड़े ध्यान से सुनता है। वह बैठे-बैठे बस हुक्म नहीं चलाता। मगर वह चाहता है कि हम दिल खोलकर उससे बात करें। (भजन ६२:८) और अगर कभी हम उससे कुछ ऐसी बात कह दें जो सही नहीं है, तो वह स्वर्ग से गरजकर हमें ताड़ना नहीं देता। इसके बजाय वह धीरज से हमें सिखाता है कि क्या सही है और क्या गलत। सो, प्रेरित पौलुस ने जो सलाह दी वह कितनी सही है: “बालको की नाईं परमेश्वर के सदृश्य बनो”! (इफिसियों ४:३१–५:१) इस तरह यहोवा उन माता-पिताओं के लिए कितनी अच्छी मिसाल कायम करता है जो अपने बच्चों को सिखाना चाहते हैं! यह ऐसी मिसाल है जो सचमुच हमारे दिल को छू लेती है और हममें जीवन के मार्ग पर चलने के लिए इच्छा पैदा करती है।
माता-पिता की मिसाल का असर
६. माता-पिता की मनोवृत्ति और चालचलन का बच्चों पर क्या असर हो सकता है?
६ बच्चों के दिलो-दिमाग पर उनके माता-पिता के सिखाने का तो असर पड़ता ही हैं लेकिन उनकी मिसाल का उससे भी गहरा असर पड़ता है। चाहे माता-पिता को पसंद आए या न आए, बच्चे उनकी नकल करते ही हैं। और यह देखकर माता-पिता को बहुत खुशी होती है जब उनके बच्चे भी वही कहते हैं जो उन्होंने कहा था; लेकिन हाँ, कभी-कभी बच्चों के मुँह से उन्हीं बातों को सुनकर उनका दिल बैठ भी सकता है। सो, जब माता-पिता अपने चालचलन से और अपनी मनोवृत्ति से आध्यात्मिक बातों के लिए गहरा आदर दिखाते हैं, तो इसका बच्चों पर काफी अच्छा असर होता है।—नीतिवचन २०:७.
७. यिप्तह ने अपनी बेटी के लिए कैसी मिसाल रखी, और इसका नतीजा क्या हुआ?
७ माता-पिता की अच्छी मिसाल का बच्चों पर जो असर होता है, वह हम बाइबल के उदाहरण से भी देख सकते हैं। यहोवा ने यिप्तह की अगुवाई में इस्राएल को अम्मोनियों पर विजय दिलायी थी। उसकी एक बेटी भी थी। यिप्तह ने अम्मोन के राजा के सवाल का जिस तरह से जवाब दिया, उससे पता चलता है कि उसने इस्राएल के साथ यहोवा के व्यवहार को बहुत बार पढ़ा होगा। जवाब देते वक्त वह इस्राएल का इतिहास बड़ी आसानी से बता सका, और उसने यहोवा पर बहुत ही पक्का विश्वास भी दिखाया। सो लाज़िमी है कि यिप्तह की इसी बात ने उसकी बेटी में भी ऐसा विश्वास पैदा किया कि उसने कुँवारी रहकर सारी ज़िंदगी यहोवा की सेवा में लगा दी और इस तरह एक बहुत बड़ी कुरबानी की।—न्यायियों ११:१४-२७, ३४-४०. यहोशू १:८ से तुलना कीजिए।
८. (क) शमूएल के माता-पिता ने कैसे अच्छी मिसाल रखी? (ख) इसका शमूएल को कैसे फायदा हुआ?
८ एक और उदाहरण शमूएल का है। जब वह बच्चा था तब भी उसने एक अच्छी मिसाल रखी और बड़ा होकर वह भविष्यवक्ता बना और ज़िंदगी भर वफादारी से परमेश्वर की सेवा करता रहा। क्या आप नहीं चाहेंगे कि आपके बच्चे भी शमूएल की तरह बनें? तो गौर कीजिए कि शमूएल के माता-पिता, एल्काना और हन्ना ने अपने बेटे के सामने कैसी मिसाल रखी। हालाँकि उनकी अपनी घरेलू समस्याएँ थीं, फिर भी वे उपासना के लिए हमेशा शीलो जाया करते थे, जहाँ पर पवित्र निवासस्थान था। (१ शमूएल १:३-८, २१) देखिए कि किस तरह हन्ना ने अपने दिल की गहरायी से प्रार्थना की। (१ शमूएल १:९-१३) ध्यान दीजिए कि उन दोनों को यहोवा से किए हुए वादे को पूरा करने के बारे में कैसा लगता था। (१ शमूएल १:२२-२८) सचमुच, उनकी अच्छी मिसाल की वज़ह से ही शमूएल ऐसे गुण पैदा कर सका होगा ताकि वह आगे चलकर सही रास्ता अपनाए। हालाँकि उसके लिए ऐसा करना आसान नहीं था, क्योंकि वह ऐसे लोगों से घिरा हुआ था जो यहोवा की सेवा करने का बस ढोंग करते थे, पर यहोवा के मार्ग के लिए उनके दिल में रत्ती भर भी आदर नहीं था। शमूएल के इसी गुण की वज़ह से यहोवा ने आगे चलकर उसे अपना भविष्यवक्ता ठहराया।—१ शमूएल २:११, १२; ३:१-२१.
९. (क) तीमुथियुस पर घर के किन लोगों का अच्छा असर पड़ा, और क्यों? (ख) तीमुथियुस आगे चलकर कैसा व्यक्ति बना?
९ क्या आप चाहते हैं कि आपका बेटा भी तीमुथियुस की तरह बने, जो जवानी में ही प्रेरित पौलुस का साथी बन गया था? तीमुथियुस का पिता एक मसीही नहीं था, मगर उसकी माँ और नानी आध्यात्मिक बातों को बहुत ही अहमियत देती थीं, और इस तरह उन्होंने उसके सामने एक बहुत ही अच्छा आदर्श रखा था। बेशक, तीमुथियुस के बचपन में ही इस आदर्श का बहुत ही गहरा असर पड़ा जिसकी वज़ह से आगे चलकर वह एक अच्छा मसीही बना। बाइबल में कहा गया है कि उसकी माँ, यूनिके और उसकी नानी लोइस का ‘विश्वास निष्कपट’ था। यानी वे मसीही होने का ढोंग नहीं रच रही थीं, इसके बजाय, वे जो कुछ विश्वास करने का दावा करती थीं, उसी के अनुसार जीती भी थीं। और उन्होंने नन्हे तीमुथियुस को भी ऐसा ही करने की तालीम दी थी। बड़ा होकर तीमुथियुस ने साबित किया कि उस पर भरोसा किया जा सकता है और वह दूसरों की दिल से परवाह करता है।—२ तीमुथियुस १:५; फिलिप्पियों २:२०-२२.
१०. (क) बच्चों पर बाहर के किन लोगों का असर पड़ सकता है? (ख) जब हमारे बच्चों की बोली या मनोवृत्ति में यह असर दिखायी देता है, तो हमें क्या करना चाहिए?
१० लेकिन, हमारे बच्चों पर सिर्फ घर के लोगों का ही असर नहीं पड़ता। उन पर और कई लोगों का भी असर पड़ सकता है, जैसे दूसरे बच्चे जिनके साथ वे स्कूल जाते हैं, स्कूल के टीचर जो इन बच्चों के सोच-विचार को ढालते हैं, समाज के ऐसे लोग जो अपनी परंपराओं को और रीति-रिवाज़ों को नहीं छोड़ना चाहते, खेल-कूद की दुनिया के सितारे जिनकी कामयाबी के चर्चे लोगों में रहते हैं, और ऐसे नेता और अधिकारी जिनका खराब चाल-चलन हमेशा सुर्खियों में रहता है। इसके अलावा ऐसे करोड़ों बच्चे हैं जिन्होंने युद्ध की क्रूरता को अपनी आँखों से देखा है और इसका भी असर पड़ता है। तो फिर, अगर इनका असर हमारे बच्चों की बोली या उनकी मनोवृत्ति में दिखाई दे तो क्या इसमें कोई ताज्जुब की बात होगी? अगर ऐसा होता है तब आप क्या करेंगे? क्या उसे कड़ी फटकार लगाने या एक लंबा-चौड़ा लेक्चर सुनाने से समस्या हल हो जाएगी? इस तरह जल्दबाज़ी में कदम उठाने के बजाय, क्या यह बेहतर नहीं होगा कि हम अपने आप से पूछें, ‘यहोवा जिस तरह से हमारे साथ व्यवहार करता है, क्या इससे मैं कुछ सीख सकता हूँ ताकि मुझे इस मामले को अच्छी तरह सुलझाने में मदद मिले?’—रोमियों २:४ से तुलना कीजिए।
११. जब माता-पिता गलती करते हैं, तो इसका बच्चों पर कैसा असर हो सकता है?
११ हाँ, यह बात तो सच है कि माता-पिता हमेशा हर समस्या का बेहतरीन हल नहीं निकाल पाएँगे क्योंकि वे भी असिद्ध हैं, और इसलिए वे भी गलतियाँ करेंगे। लेकिन, जब बच्चों को इस बात का एहसास हो जाता है, तो क्या उनका अपने माता-पिता के लिए आदर कम हो जाएगा? हाँ, कम हो सकता है अगर माता-पिता अपनी गलतियों को कबूल करने के बजाए उन पर अपने विचार थोपने की कोशिश करें। लेकिन, तब उनके लिए आदर कम नहीं होगा जब वे नम्रता से और बेझिझक अपनी गलतियों को कबूल करेंगे। इस तरह, वे अपने बच्चों के सामने एक बहुत ही बढ़िया मिसाल रखेंगे, और बच्चे भी आगे चलकर ऐसा ही करना सीखेंगे।—याकूब ४:६.
हमारा आदर्श बच्चों पर कैसे असर डाल सकता है
१२, १३. (क) बच्चों को प्यार के बारे में क्या सीखना होगा और उन्हें इसके बारे में असरदार तरीके से कैसे सिखाया जा सकता है? (ख) यह क्यों ज़रूरी है कि बच्चे प्यार के बारे में सीखें?
१२ जब हम हिदायत के अलावा अपने बच्चों के सामने अपनी अच्छी मिसाल रखेंगे तो हम कई महत्त्वपूर्ण बातों को उन्हें बहुत ही असरदार तरीके से सिखा सकेंगे। कुछ बातों पर गौर कीजिए।
१३ सच्चा प्रेम दिखाइए: अच्छी मिसाल से एक बहुत ही ज़रूरी सबक सिखाया जा सकता है कि प्यार का मतलब क्या है। “हम इसलिये प्रेम करते हैं, कि पहिले उस ने [परमेश्वर ने] हम से प्रेम किया।” (१ यूहन्ना ४:१९) परमेश्वर ने सबसे पहले और सबसे बढ़कर प्रेम दिखाया और इसलिए वही प्रेम की सबसे बढ़िया मिसाल है। यह प्रेम है अगापे, जिसका ज़िक्र बाइबल में १०० से ज़्यादा बार किया गया है। और यही प्रेम सच्चे मसीहियों की पहचान है। (यूहन्ना १३:३५) हममें परमेश्वर के लिए और यीशु मसीह के लिए ऐसा ही प्रेम होना चाहिए। साथ ही एक दूसरे के लिए भी हममें ऐसा ही प्रेम होना चाहिए, उनके लिए भी जिन्हें हम पसंद नहीं करते। (मत्ती ५:४४, ४५; १ यूहन्ना ५:३) यह प्यार सिर्फ ऊपरी नहीं बल्कि दिल से आना चाहिए और इसे हमारी रोज़ की ज़िंदगी में दिखना चाहिए, तभी हम अपने बच्चों को इसके बारे में असरदार तरीके से सिखा सकेंगे। हमारी बातों से ज़्यादा हमारे कामों में दम होता है, इसलिए बच्चों को परिवार में ऐसा प्यार दिखायी देना चाहिए और उन्हें खुद भी ऐसा प्यार मिलना चाहिए। उन्हें ममता और स्नेह भी मिलना चाहिए। अगर बच्चे प्यार के बारे में नहीं सीखेंगे तो तन-मन से उनका अच्छी तरह विकास नहीं होगा। बच्चों को यह भी सीखना होगा कि हमारे मसीही भाई-बहनों से कैसे सही तरह से प्यार करना चाहिए।—रोमियों १२:१०; १ पतरस ३:८.
१४. (क) बच्चों को अच्छी तरह काम करना कैसे सिखाया जा सकता है ताकि उन्हें अपने काम से खुशी मिले? (ख) आप अपने परिवार में यह कैसे कर सकते हैं?
१४ काम करना सिखाइए: काम ही ज़िंदगी का दूसरा नाम है। जब व्यक्ति अच्छा काम करना सीखता है तब वह खुद भी अच्छा महसूस करता है। (सभोपदेशक २:२४; २ थिस्सलुनीकियों ३:१०) मान लीजिए एक बच्चे को कोई काम दिया जाता है और उसे अच्छी तरह नहीं समझाया जाता कि उसे वह काम कैसे करना है। और अगर बाद में उसे डाँट दिया जाए कि उसने ठीक से काम नहीं किया, तो वह बच्चा कभी नहीं सीख पाएगा कि ठीक तरह से काम कैसे किया जाता है। लेकिन जब माता-पिता अपने बच्चों के साथ मिलकर काम करते हैं और सही ढंग से काम करने के लिए उनकी तारीफ करते हैं, तो इसकी ज़्यादा गुंजाइश है कि वे उस काम को ठीक तरह से करना सीखेंगे और इससे उन्हें खुशी भी मिलेगी। सो, जब माता-पिता अपने बच्चों के साथ काम करते हैं, और उन्हें काम करने का तरीका समझाते हैं, तो बच्चे न सिर्फ वह काम करना सीखेंगे, बल्कि यह भी सीखेंगे कि काम करते वक्त अगर कोई समस्या आयी तो उससे कैसे निपटें, काम खत्म होने तक कैसे उसमें लगे रहें, और किस तरह सोच-समझकर फैसला करें। ऐसे में बच्चों को यह भी समझाया जा सकता है कि खुद यहोवा परमेश्वर भी काम करता है, और वह भी अच्छा काम करता है, और यीशु अपने पिता की तरह ही करता है। (उत्पत्ति १:३१; नीतिवचन ८:२७-३१; यूहन्ना ५:१७) अगर परिवार खेती-बाड़ी करता है, या कोई धंधा करता है, तो परिवार के कुछ सदस्य भी इसमें साथ मिलकर काम कर सकते हैं। या माँ अपने बेटे या बेटी को खाना पकाना और खाने के बाद साफ-सफाई करना सिखा सकती है। एक पिता जो शायद घर से काफी दूर काम करता हो, वह घर पर ही कुछ ऐसे काम हाथ में ले सकता है जिसमें बच्चे भी उसके साथ शरीक हो सकें। सो, यह कितना फायदेमंद होगा जब बच्चों के साथ काम करते वक्त माता-पिता सिर्फ काम खत्म करने के बारे में ही न सोचें, बल्कि अपने बच्चों को आगे चलकर अपने पैरों पर खड़े होने के लिए अभी से तैयार करते हैं!
१५. विश्वास के बारे में बच्चों को कैसे सिखाया जा सकता है? समझाइए।
१५ बुरे हालात में भी अपने विश्वास को अटल बनाए रखिए: विश्वास भी हमारी ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा है। जब फैमिली स्टडी में विश्वास के बारे में चर्चा होती है, तो बच्चों को सिखाया जा सकता है कि विश्वास का असल में मतलब क्या है। और स्टडी के दौरान वे खुद भी ऐसी बातें सुनेंगे जिनसे उनके दिलों में विश्वास पैदा होगा। लेकिन जब वे देखेंगे कि बड़ी-से-बड़ी मुसीबतों में भी उनके माता-पिता विश्वास में अटल रहते हैं, तो उन पर इसका बहुत ही गहरा असर होगा जो उन पर ज़िंदगी-भर बना रहेगा। पनामा में एक औरत बाइबल का अध्ययन करती थी। मगर उसके पति ने उसे धमकी दी कि अगर उसने यहोवा की सेवा करना बंद नहीं किया तो वह उसे घर से बाहर निकाल देगा। इसके बावजूद भी, वह बहन अपने चार छोटे बच्चों के साथ १६ किलोमीटर पैदल चलती, फिर ३० किलोमीटर तक बस में सफर करती, सिर्फ इसलिए कि अपने सबसे पास के किंगडम हॉल तक पहुँच सके। उसकी इतनी अच्छी मिसाल को देखकर उसके परिवार के करीब २० लोगों ने सच्चाई को अपना लिया।
हर रोज़ बाइबल पढ़कर एक आदर्श बनिए
१६. हरेक परिवार को हर रोज़ बाइबल पढ़ने की सलाह क्यों दी जा रही है?
१६ हरेक परिवार हमेशा बाइबल पढ़ने का एक बहुत ही बढ़िया उसूल शुरू कर सकता है, एक ऐसा उसूल जिससे माता-पिता को भी फायदा होगा और जो बच्चों के लिए एक अच्छी मिसाल भी होगी। अगर हो सके, तो हर रोज़ बाइबल का कुछ भाग पढ़िए। यह ज़रूरी नहीं है कि आप बाइबल के कितने भाग पढ़ते हैं। लेकिन सबसे ज़रूरी बात यह है कि क्या आप उसे लगातार पढ़ते हैं और अगर पढ़ते हैं तो किस ढंग से पढ़ते हैं। छोटे बच्चों के साथ बाइबल पढ़ने के अलावा उन्हें बाइबल कहानियों की मेरी पुस्तक की कैसॆट सुनाइए। हर रोज़ परमेश्वर के वचन को पढ़ने की वज़ह से हमारा ध्यान सबसे ज़्यादा परमेश्वर की बातों पर होगा। अगर परिवार में सिर्फ एकाध व्यक्ति ही नहीं, बल्कि पूरा परिवार मिलकर बाइबल की पढ़ाई करे, तो इससे पूरे परिवार को यहोवा के मार्ग पर चलते रहने में मदद मिलेगी। इसी बात को हाल के “ईश्वरीय जीवन का मार्ग” अधिवेशन के नाटक में बताया गया था, जिसका विषय था परिवारो—बाइबल रोज़ पढ़ना अपने जीवन का हिस्सा बनाइए!—भजन १:१-३.
१७. हर रोज़ बाइबल पढ़ने से और ज़रूरी वचनों को याद करने से इफिसियों ६:४ की बातों को कैसे लागू किया जा सकता है?
१७ पूरे परिवार के साथ बाइबल की पढ़ाई करने से हम वही करते हैं जिसके बारे में प्रेरित पौलुस ने इफिसुस के मसीहियों को लिखे अपने खत में कहा था: “हे बच्चेवालो अपने बच्चों को रिस न दिलाओ परन्तु प्रभु की शिक्षा, और चितावनी देते हुए, उन का पालन-पोषण करो।” (इफिसियों ६:४) इसका मतलब क्या है? यहाँ जो शब्द “चितावनी” है यूनानी भाषा में उसका मतलब है “मन में बिठाना।” सो मसीही पिताओं से कहा गया है कि अपने बच्चों के मन में यहोवा परमेश्वर के सोच-विचार बिठाएँ ताकि बच्चे परमेश्वर के विचारों को अच्छी तरह जान सकें। ऐसा करने के लिए बच्चों से ज़रूरी वचनों को याद करने के लिए भी कहा जा सकता है। इन सब का उद्देश्य यही है कि बच्चों के मन में यहोवा के सोच-विचार हों ताकि आहिस्ते-आहिस्ते उनकी इच्छाओं से और चालचलन से परमेश्वर के स्तर नज़र आने लगें, चाहे माता-पिता अपने बच्चों के साथ हो या न हों। और ऐसा करने के लिए बाइबल ही सबसे बढ़िया नींव है।—व्यवस्थाविवरण ६:६, ७.
१८. बाइबल पढ़ते समय क्या ज़रूरी होगा ताकि: (क) उसे अच्छी तरह समझा जा सके? (ख) उसमें दी गयी सलाह को माना जा सके? (ग) उसमें बताए गए यहोवा के उद्देश्यों को अमल में लाया जा सके? (घ) उसमें बताए गए लोगों की मनोवृत्ति और कामों से फायदा उठाया जा सके?
१८ लेकिन, अगर हम चाहते हैं कि बाइबल का हमारे जीवन पर असर हो, तो हमें यह समझना चाहिए कि वह क्या कहती है। और बहुतों के लिए शायद यह ज़रूरी हो कि बाइबल के किसी भाग को एक से ज़्यादा बार पढ़ें। किसी बात का पूरा मतलब समझने के लिए हमें उन शब्दों को शब्दकोश में या इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स में देखना होगा। अगर उस वचन में कोई सलाह या कोई आज्ञा दी गयी है, तो परिवार के साथ इस पर बात करने के लिए समय निकालिए कि इसे हम अपनी ज़िंदगी में कैसे लागू कर सकते हैं। इसके लिए आप ऐसे सवाल पूछ सकते हैं जैसे ‘इस सलाह को मानने से हमें क्या फायदा होगा?’ (यशायाह ४८:१७, १८) अगर उस वचन में यहोवा के उद्देश्य के बारे में कुछ बताया गया है, तो यह सवाल कीजिए कि ‘इसका हमारे जीवन पर कैसा असर होता है?’ शायद आप बाइबल का एक ऐसा भाग पढ़ रहे हों जिसमें लोगों की मनोवृत्ति या उनके कामों के बारे में बताया गया है। तो यह पूछिए कि उनकी ज़िंदगी में कौन-कौन-सी मुसीबतें और दबाव थे? वे इन सबसे कैसे निपट सके? उनके उदाहरण से हम कैसे फायदा उठा सकते हैं? इस तरह, हमेशा इसकी चर्चा करने के लिए समय निकालिए कि बाइबल के इस भाग का आज हमारे लिए क्या मतलब है।—रोमियों १५:४; १ कुरिन्थियों १०:११.
१९. परमेश्वर के सदृश्य बनकर हम अपने बच्चों के सामने क्या रखेंगे?
१९ ये अपने दिलो-दिमाग में परमेश्वर के विचारों को बिठाने के लिए कितने बेहतरीन तरीके हैं! इन तरीकों को अपनाकर हम सचमुच “प्रिय, बालको की नाईं परमेश्वर के सदृश्य” बन जाएँगे। (इफिसियों ५:१) साथ ही हम अपने बच्चों के सामने एक ऐसी मिसाल रखेंगे जिस पर वे चल सकते हैं।
क्या आपको याद है?
◻ यहोवा की मिसाल से माता-पिताओं को कैसे फायदा हो सकता है?
◻ बच्चों को हिदायत देने के साथ-साथ माता-पिता को अच्छी मिसाल रखना भी ज़रूरी क्यों है?
◻ ऐसे कौन-से सबक है जिन्हें बच्चा सिर्फ माता-पिता को देखकर ही सीख सकता है?
◻ हम पूरे परिवार के साथ मिलकर बाइबल पढ़ने का पूरा-पूरा फायदा कैसे उठा सकते हैं?
[पेज 10 पर तसवीर]
कई परिवार साथ मिलकर बाइबल पढ़ने का आनंद लेते हैं