क्या यहोवा हमसे बहुत ज़्यादा की माँग करता है?
“यहोवा तुझ से इसे छोड़ और क्या चाहता है, कि तू न्याय से काम करे, और कृपा से प्रीति रखे, और अपने परमेश्वर के साथ नम्रता से चले?”—मीका ६:८.
१. कुछ लोग शायद किस वज़ह से यहोवा की सेवा नहीं करना चाहते?
यहोवा अपने लोगों के सामने कुछ माँगें रखता है। और भविष्यवक्ता मीका के ऊपर लिखे शब्दों को पढ़कर शायद आप कहें कि परमेश्वर हमसे कुछ ऐसी माँग नहीं करता जो हमारे बस से बाहर हो। मगर, ऐसे बहुत-से लोग हैं जो यह सोचते हैं कि परमेश्वर बहुत ज़्यादा की माँग करता है। इसलिए वे उसकी सेवा करना नहीं चाहते या अगर पहले सेवा करते भी थे तो अब नहीं करते। लेकिन क्या यह सच है कि परमेश्वर हमसे बहुत ज़्यादा की माँग करता है? या, क्या ऐसा है कि यहोवा की माँगों के बारे में उनका अपना ही नज़रिया गलत है? आइए इस बारे में पुराने ज़माने की एक घटना पर गौर करें जिससे हमें बहुत अच्छी सीख मिलती है।
२. नामान कौन था और यहोवा के भविष्यवक्ता ने उसे क्या करने के लिए कहा?
२ यह किस्सा अराम देश के सेनापति नामान का है। उसे कोढ़ की बीमारी थी और उससे कहा गया था कि वह इस्राएल देश में यहोवा के भविष्यवक्ता के पास जाए जो उसे चंगा कर सकता है। नामान अपने काफिले को लेकर इस्राएल देश की ओर निकल पड़ा और लंबा सफर तय करने के बाद परमेश्वर के भविष्यवक्ता एलीशा के घर तक आ पहुँचा। मगर इतना बड़ा ओहदा रखनेवाले अपने इस खास मेहमान का स्वागत करने के लिए एलीशा अपने घर से बाहर नहीं निकला। इसके बजाय, उसने अपने दास के ज़रिये नामान को यह कहलवा भेजा: “तू जाकर यरदन में सात बार डुबकी मार, तब तेरा शरीर ज्यों का त्यों हो जाएगा, और तू शुद्ध होगा।”—२ राजा ५:१०.
३. नामान ने यहोवा की माँगों को पूरा करने से इनकार क्यों कर दिया?
३ अगर नामान परमेश्वर के भविष्यवक्ता के ज़रिये बतायी गयी इस माँग को पूरा करता तो उसे उस घिनौनी बीमारी से छुटकारा मिल जाता। क्या यहोवा ने उसके सामने बहुत बड़ी माँग रखी थी? नहीं, बिलकुल नहीं। पर फिर भी नामान ने यहोवा की इस माँग को पूरा करने से इनकार कर दिया। उसने कहा: “क्या दमिश्क की अबाना और पर्पर नदियां इस्राएल के सब जलाशयों से उत्तम नहीं हैं? क्या मैं उन में स्नान करके शुद्ध नहीं हो सकता हूं?” इस तरह, नामान क्रोधित होकर वहाँ से चला गया।—२ राजा ५:१२.
४, ५. (क) यहोवा की बात मानने का नामान को क्या फल मिला और जब वह चंगा हो गया तो उसने क्या फैसला किया? (ख) अब हम किस बात पर चर्चा करेंगे?
४ नामान की मुश्किल क्या थी? ऐसा नहीं था कि परमेश्वर के भविष्यवक्ता द्वारा बतायी गयी वह माँग पूरी करना उसके लिए बहुत कठिन था। नामान के सेवकों ने भी उससे गुज़ारिश की: “यदि भविष्यद्वक्ता तुझे कोई भारी काम करने की आज्ञा देता, तो क्या तू उसे न करता? फिर जब वह कहता है, कि स्नान करके शुद्ध हो जा, तो कितना अधिक इसे मानना चाहिये।” (२ राजा ५:१३) नामान की मुश्किल थी, उसका नज़रिया। उसे लगा कि जो इज़्ज़त उसे दी जानी चाहिए थी वह उसे नहीं मिली और उससे ऐसा काम करने के लिए कहा गया है जिससे उसे कोई फायदा नहीं होगा और जो उसकी शान के खिलाफ है। मगर अपने दासों की गुज़ारिश पर नामान ने यरदन नदी में सात बार डुबकी लगायी। और सोचिए उसे कितनी खुशी हुई होगी जब “उसका शरीर छोटे लड़के का सा हो गया; और वह शुद्ध हो गया”! उसने यहोवा का एहसान माना। और तो और, नामान ने यह फैसला किया कि अब से वह यहोवा को छोड़ किसी और ईश्वर की पूजा नहीं करेगा।—२ राजा ५:१४-१७.
५ यहोवा ने हमेशा ही अपने लोगों से कुछ माँगें की हैं। और अलग-अलग समय पर उसकी माँगें अलग-अलग रही हैं। आइए हम इनमें में कुछ माँगों पर चर्चा करें। इस चर्चा के दौरान, आप अपने आपसे पूछिए, अगर यही माँगें यहोवा मेरे सामने रखता तो मैं क्या करता। बाद में हम यह भी देखेंगे कि यहोवा आज हमसे क्या-क्या माँग करता है।
पुराने ज़माने में यहोवा की माँगें क्या थीं
६. पहले मानव जोड़े को क्या काम दिया गया था और अगर ये काम आपको दिए जाते तो आप क्या करते?
६ यहोवा ने पहले मानव जोड़े, आदम और हव्वा को यह काम दिया कि वे बच्चे पैदा करें, उन्हें पाले-पोसें, पृथ्वी को एक सुंदर बगीचा बनाकर उसे अपने वश में कर लें और जानवरों पर अधिकार रखें। उन्हें एक बहुत बड़ा और सुंदर घर भी दिया गया था, अदन का हरा-भरा बगीचा जहाँ वे सुख से रहते। (उत्पत्ति १:२७, २८; २:९-१५) लेकिन उन पर एक पाबंदी भी लगायी गयी थी। उन्हें अदन के ढेर सारे फल देनेवाले पेड़ों में से एक खास पेड़ का फल नहीं खाना था। (उत्पत्ति २:१६, १७) क्या यहोवा की यह माँग बहुत बड़ी थी? जो काम आदम और हव्वा को दिया गया था, अगर वो आपको दिया जाता तो क्या आप उसे खुशी-खुशी न करते, यह जानते हुए कि ऐसा करने से आप हमेशा सेहतमंद रहेंगे और सदा तक जीते रहेंगे? और अगर कोई धूर्त जन उस बगीचे में आकर, आपको परमेश्वर के खिलाफ भड़काता तो क्या आप उसकी बातों में आ जाते? क्या आप उसकी बात को अनसुना नहीं कर देते? और अगर यहोवा आप पर एक छोटी-सी पाबंदी लगा देता तो क्या आपको यह नहीं लगता कि यहोवा को ऐसा करने का पूरा-पूरा अधिकार है?—उत्पत्ति ३:१-५.
७. (क) नूह को क्या काम दिया गया था और उसे किन मुश्किलात का सामना करना पड़ा? (ख) नूह से यहोवा ने जो माँग की उसके बारे में आप क्या सोचते हैं?
७ कुछ अरसे बाद, यहोवा ने अपने सेवक नूह से एक जहाज़ बनाने के लिए कहा क्योंकि पूरी दुनिया पर जलप्रलय आनेवाला था। और इसी जहाज़ के ज़रिये कई जानें बचायी जातीं। यहोवा ने जो माप दी थी उस हिसाब से जहाज़ बनाना कोई बच्चों का खेल नहीं था और जब नूह जहाज़ बना रहा था तो शायद लोगों ने उसका मज़ाक उड़ाया होगा और बहुत-से लोग उसके दुश्मन भी हो गए होंगे। मगर नूह के लिए यह कितनी बड़ी आशीष थी कि वह अपने परिवार की और पृथ्वी के बहुत-से जानवरों की ज़िंदगी बचा सका! (उत्पत्ति ६:१-८, १४-१६; इब्रानियों ११:७; २ पतरस २:५) अगर आपको ऐसा काम दिया जाता, तो क्या आप हर हाल में इसे पूरा करने की जी-तोड़ मेहनत न करते? या फिर, क्या आप यह सोचते कि यहोवा आपसे बहुत ज़्यादा की माँग कर रहा है?
८. यहोवा ने इब्राहीम के सामने क्या माँग रखी और इस घटना से परमेश्वर ने क्या दर्शाया?
८ परमेश्वर ने इब्राहीम से ऐसा काम करने की माँग की जो बहुत ही मुश्किल था। यहोवा ने उससे कहा: “अपने पुत्र को अर्थात् एकलौते पुत्र इसहाक को, जिस से तू प्रेम रखता है, संग लेकर मोरिय्याह देश में चला जा; और वहां उसको एक पहाड़ के ऊपर जो मैं तुझे बताऊंगा होमबलि करके चढ़ा।” (उत्पत्ति २२:२) इससे पहले यहोवा ने इब्राहीम से वादा किया था कि उसके बेटे इसहाक का वंश बहुत बढ़ेगा, हालाँकि उस समय तक इसहाक के कोई बच्चा नहीं था। इसलिए इसहाक की बलि चढ़ाने की माँग से इब्राहीम की परीक्षा हुई कि क्या उसे विश्वास है कि यहोवा उसके बेटे को फिर से ज़िंदा करके उसका वंश बढ़ाएगा। इसी विश्वास से, इब्राहीम ने जब इसहाक की बलि चढ़ाने के लिए हाथ उठाया ही था कि परमेश्वर ने उसे रोक लिया और उस नौजवान की ज़िंदगी बचायी। इस घटना ने यह भी दर्शाया कि भविष्य में कैसे परमेश्वर खुद, इंसानों के लिए अपने ही बेटे का बलिदान देगा और बाद में उसे मरे हुओं से ज़िंदा करेगा।—उत्पत्ति १७:१९; २२:९-१८; यूहन्ना ३:१६; प्रेरितों २:२३, २४, २९-३२; इब्रानियों ११:१७-१९.
९. हम क्यों कह सकते हैं कि यहोवा ने इब्राहीम से हद-से-ज़्यादा की माँग नहीं की?
९ कुछ लोगों को शायद लगे कि यहोवा परमेश्वर इब्राहीम से हद-से-ज़्यादा ही माँग कर रहा था। मगर क्या सचमुच ऐसा था? मरे हुओं को फिर से जीवन देनेवाला हमारा सिरजनहार, अगर हमसे माँग करता है कि हम उसकी आज्ञा मानें, चाहे इसके लिए हमें कुछ देर तक मौत की नींद ही क्यों न सोनी पड़े, तो क्या आप उसे कठोर मान लेंगे? यीशु मसीह और पहली सदी के उसके चेले ऐसा नहीं मानते थे। वे परमेश्वर की इच्छा पूरी करने के लिए मार खाने, और मर-मिटने को तैयार थे। (यूहन्ना १०:११, १७, १८; प्रेरितों ५:४०-४२; २१:१३) अगर ज़रूरत आ पड़े तो क्या आप भी ऐसा ही करने के लिए तैयार होंगे? आइए अब इस बात पर गौर करें कि यहोवा ने उन लोगों से क्या माँगें कीं जो खुद यहोवा की प्रजा बनना चाहते थे।
इस्राएल जाति के लिए यहोवा की कानून-व्यवस्था
१०. किसने यह वादा किया कि जो कुछ यहोवा कहता है उसे वे पूरा करेंगे और यहोवा ने उन्हें क्या दिया?
१० इब्राहीम के बेटे इसहाक और परपोते याकूब या इस्राएल की संतान बढ़ती गयी और वह इस्राएल जाति कहलायी। इस्राएली मिस्र में बंधुआ थे और यहोवा ने उन्हें छुटकारा दिलाया। (उत्पत्ति ३२:२८; ४६:१-३; २ शमूएल ७:२३, २४) इसके कुछ ही समय बाद, इस्राएलियों ने वादा किया कि वे परमेश्वर की हर माँग पूरी करेंगे। उन्होंने कहा: “जो कुछ यहोवा ने कहा है वह सब हम नित करेंगे।” (निर्गमन १९:८) इस तरह इस्राएलियों ने अपनी यह इच्छा ज़ाहिर की कि परमेश्वर उन पर राज करे। इसलिए यहोवा ने इस जाति को दस आज्ञाएँ दीं और इनके अलावा ६०० से ज़्यादा दूसरे नियम भी दिए। कुछ समय बाद, मूसा के ज़रिये दिए गए परमेश्वर के ये नियम ‘व्यवस्था’ कहलाए जाने लगे।—एज्रा ७:६; लूका १०:२५-२७; यूहन्ना १:१७.
११. व्यवस्था का एक मकसद क्या था और कौन-से कुछ नियमों से यह मकसद पूरा किया गया?
११ व्यवस्था का एक मकसद था इस्राएलियों को सुरक्षित रखना। इसके लिए, व्यवस्था में कई मामलों पर, जैसे कि लैंगिकता, व्यापार में लेन-देन और बच्चों की परवरिश के बारे में बढ़िया नियम दिए गए थे। (निर्गमन २०:१४; लैव्यव्यवस्था १८:६-१८, २२-२४; १९:३५, ३६; व्यवस्थाविवरण ६:६-९) इस्राएलियों को अपने जाति भाइयों से और पशुओं से कैसा व्यवहार करना है इस बारे में भी नियम दिए गए थे। (लैव्यव्यवस्था १९:१८; व्यवस्थाविवरण २२:४, १०) सालाना पर्वों और उपासना के लिए इकट्ठा होने के बारे में दिए गए नियमों से, इस्राएली आध्यात्मिक रूप से सुरक्षित रहकर यहोवा की उपासना कर सकते थे।—लैव्यव्यवस्था २३:१-४३; व्यवस्थाविवरण ३१:१०-१३.
१२. व्यवस्था का खास मकसद क्या था?
१२ व्यवस्था के खास मकसद के बारे में प्रेरित पौलुस ने लिखा: “वह तो अपराधों के कारण [या, अपराधों को ज़ाहिर करने के लिए, NW] बाद में दी गई, कि उस वंश [मसीह] के आने तक रहे, जिस को प्रतिज्ञा दी गई थी।” (गलतियों ३:१९) व्यवस्था इस्राएलियों को एहसास दिलाती रहती थी कि वे परमेश्वर की नज़रों में अपराधी या असिद्ध हैं, पापी हैं। इसलिए, उन्हें मसीह के सिद्ध बलिदान की ज़रूरत थी जिससे उनके पाप पूरी तरह मिटाए जा सकें। (इब्रानियों १०:१-४) इस तरह, व्यवस्था ने लोगों को मसीहा के लिए या यीशु मसीह को अपनाने के लिए तैयार किया। पौलुस ने लिखा: “व्यवस्था मसीह तक पहुंचाने को हमारा शिक्षक हुई है, कि हम विश्वास से धर्मी ठहरें।”—गलतियों ३:२४.
क्या यहोवा की व्यवस्था बोझ थी?
१३. (क) असिद्ध इंसान व्यवस्था को क्या मानते थे और क्यों? (ख) क्या व्यवस्था सचमुच एक बोझ थी?
१३ हालाँकि यह व्यवस्था “पवित्र, खरी और उत्तम” थी, बहुत-से लोग इसे एक बोझ मानते थे। (रोमियों ७:१२, NHT) क्यों? क्योंकि इस्राएली अपनी असिद्धता के कारण सिद्ध व्यवस्था के ऊँचे दर्जों तक नहीं पहुँच पाए। (भजन १९:७, NHT) इसीलिए प्रेरित पतरस ने इसे “ऐसा जूआ” कहा, “जिसे न हमारे बापदादे उठा सके थे और न हम उठा सकते” हैं। (प्रेरितों १५:१०) मगर, व्यवस्था के नियम अपने आप में कठिन नहीं थे और इन्हें मानने से लोगों का फायदा ही होता था।
१४. कौन-सी मिसालें दिखाती हैं कि व्यवस्था इस्राएलियों के लिए बहुत फायदेमंद थी?
१४ मिसाल के तौर पर, व्यवस्था के हिसाब से एक चोर को कैदखाने में नहीं डाला जाता था, बल्कि उसे मेहनत करके चोरी किए गए माल का दोगुना या उससे ज़्यादा जुर्माना भरना पड़ता था। इसलिए जिसके यहाँ चोरी होती थी उसका कोई नुकसान नहीं होता था और कैदखानों को चलाने के लिए लोगों को अपने खून-पसीने की कमाई में से टैक्स देने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी। (निर्गमन २२:१, ३, ४, ७) खाने के मामले में भी कुछ ऐसी चीज़ों पर मनाही थी जो स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक होतीं। जैसे कि सूअर के मांस को सही तरह से न पकाने से ट्राइकिनोसिस और खरगोश के मांस से ट्यूलरीमिया जैसी बीमारियाँ हो सकती हैं। (लैव्यव्यवस्था ११:४-१२) व्यवस्था में शव को छूने की भी मनाही थी, जिससे इस्राएलियों की रक्षा होती थी। अगर एक व्यक्ति किसी शव को छू भी ले, तो उसे स्नान करना होता था और अपने कपड़ों को भी धोना होता था। (लैव्यव्यवस्था ११:३१-३६; गिनती १९:११-२२) मल-त्याग करने के बाद मल को मिट्टी से ढाँपना होता था, जिससे कीटाणुओं के फैलने का खतरा नहीं रहता था। ये नियम देकर, हज़ारों साल पहले इस्राएलियों को परमेश्वर ने उन कीटाणुओं से बचाया जबकि वैज्ञानिकों को इनके बारे में हाल ही में पता चला है।—व्यवस्थाविवरण २३:१३.
१५. इस्राएलियों के लिए कौन-सी बात एक बोझ थी?
१५ व्यवस्था में यहोवा ने तो बहुत ज़्यादा की माँग नहीं की थी। मगर कुछ लोगों ने व्यवस्था में ढेरों नियम जोड़कर इसे एक भारी बोझ बना दिया। ये लोग व्यवस्था का अर्थ समझानेवाले बन बैठे थे। इन नियमों के बारे में जेम्स् हेस्टिंग्स् ने अ डिक्शनरी ऑफ द बाइबल में कहा: “व्यवस्था की हर आज्ञा के साथ ढेरों छोटे-छोटे नियम जोड़ दिए गए थे। . . . इतना ही नहीं, यहाँ तक कोशिश की गई कि ज़िंदगी की हर छोटी-छोटी बात पर कोई-न-कोई नियम ज़रूर हो। . . . लोग इन नियमों के बोझ तले इतने दब गए थे कि वे सही और गलत के बीच फैसला करना और अपने ज़मीर की आवाज़ सुनना भूल गए। इंसान पर लादे गए इन ढेर सारे नियमों के बोझ तले परमेश्वर के जीवित वचन का भी दम घुटकर रह गया और इंसान की पूरी ज़िंदगी सख्त और बेतुके नियमों की ज़ंजीरों से जकड़कर रह गयी।”
१६. यीशु ने धर्मगुरुओं के ढेर सारे नियमों और परंपराओं के बारे में क्या कहा?
१६ यीशु मसीह ने लोगों पर ढेर सारे नियम थोपनेवाले धर्मगुरुओं की निंदा की। उसने कहा: “वे एक ऐसे भारी बोझ को जिन को उठाना कठिन है, बान्धकर उन्हें मनुष्यों के कन्धों पर रखते हैं; परन्तु आप उन्हें अपनी उंगली से भी सरकाना नहीं चाहते।” (मत्ती २३:२, ४) हर छोटी-छोटी बात के लिए नियम और परंपराएँ बनायी गयी थीं, जैसे कि हाथ धोते वक्त कोहनी तक धोने की परंपरा। यीशु ने साफ-साफ कहा कि उन्होंने ये नियम और परंपराएँ बनाकर ‘परमेश्वर के वचन को रद्द’ कर दिया था। (मरकुस ७:१-१३, हिन्दुस्तानी बाइबल; मत्ती २३:१३, २४-२६) मगर, यीशु के आने से पहले ही इस्राएल में धर्म के ठेकेदार, लोगों को यहोवा की माँगों का गलत अर्थ समझा रहे थे।
यहोवा असल में हमसे क्या माँग कर रहा है
१७. यहोवा इस्राएलियों की होमबलियों से नाखुश क्यों था?
१७ यशायाह भविष्यवक्ता के ज़रिये यहोवा ने कहा: “मैं मेढ़ों के होमबलियों तथा पाले हुए पशुओं की चर्बी से अघा गया हूं। मैं बैलों, भेड़ों अथवा बकरों के लहू से प्रसन्न नहीं होता।” (यशायाह १:१०, ११, NHT) परमेश्वर उन बलिदानों से क्यों नाखुश था, जबकि उसने खुद ही व्यवस्था में ये बलिदान चढ़ाने की आज्ञा दी थी? (लैव्यव्यवस्था १:१-४:३५) क्योंकि लोग अपने कामों से उसका निरादर कर रहे थे। इसलिए उनसे कहा गया: “अपने को धोकर पवित्र करो; मेरी आंखों के साम्हने से अपने बुरे कामों को दूर करो; भविष्य में बुराई करना छोड़ दो, भलाई करना सीखो; यत्न से न्याय करो, उपद्रवी को सुधारो; अनाथ का न्याय चुकाओ, विधवा का मुक़द्दमा लड़ो।” (यशायाह १:१६, १७) क्या इससे आपको यह समझने में मदद नहीं मिलती कि यहोवा अपने सेवकों से असल में क्या चाहता है?
१८. यहोवा इस्राएलियों से असल में क्या चाहता था?
१८ यीशु ने दिखाया कि परमेश्वर असल में क्या चाहता है। उससे यह सवाल पूछा गया: “व्यवस्था में कौन सी आज्ञा [सबसे] बड़ी है?” यीशु ने जवाब दिया: “तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख। बड़ी और मुख्य आज्ञा तो यही है। और उसी के समान यह दूसरी भी है, कि तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख। ये ही दो आज्ञाएं सारी व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं का आधार है।” (मत्ती २२:३६-४०; लैव्यव्यवस्था १९:१८; व्यवस्थाविवरण ६:४-६) भविष्यवक्ता मूसा ने भी पहले यही बात कही थी जब उसने इस्राएलियों से पूछा: “तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ से इसके अतिरिक्त क्या चाहता है कि तू अपने परमेश्वर यहोवा का भय माने, उसके सब मार्गों पर चले, तथा उस से प्रेम रखे, और अपने सारे मन और अपने सारे प्राण से अपने परमेश्वर यहोवा की आराधना करे, तथा यहोवा की जो जो आज्ञाएं और विधियां मैं आज तुझे सुनाता हूं उनका पालन करे?”—व्यवस्थाविवरण १०:१२, १३; १५:७, ८, NHT.
१९. इस्राएलियों ने कैसे खुद को धर्मी दिखाने की कोशिश की, मगर यहोवा ने उनसे क्या कहा?
१९ पापी होने के बावजूद, इस्राएली दिखाना चाहते थे कि वे धर्मी हैं, पवित्र हैं। हालाँकि व्यवस्था में साल में सिर्फ एक बार, प्रायश्चित्त के दिन उपवास करने की माँग की गयी थी, वे बार-बार उपवास करने लगे। (लैव्यव्यवस्था १६:३०, ३१) इसलिए यहोवा ने उन्हें फटकार लगायी: “जिस उपवास से मैं प्रसन्न होता हूं, वह क्या यह नहीं, कि, अन्याय से बनाए हुए दासों, और अन्धेर सहनेवालों का जूआ तोड़कर उनको छुड़ा लेना, और, सब जूओं को टुकड़े टुकड़े कर देना? क्या वह यह नहीं है कि अपनी रोटी भूखों को बांट देना, अनाथ और मारे-मारे फिरते हुओं को अपने घर ले आना, किसी को नंगा देखकर वस्त्र पहिनाना, और अपने जातिभाइयों से अपने को न छिपाना?”—यशायाह ५८:३-७.
२०. यीशु ने कपटी धर्मगुरुओं को क्यों फटकारा?
२० खुद को धर्मी समझनेवाले इन इस्राएलियों की तरह ही वे कपटी धर्मगुरु भी थे, जिनसे यीशु ने कहा: “तुम पोदीने और सौंफ और जीरे का दसवां अंश देते हो, परन्तु तुम ने व्यवस्था की गम्भीर बातों को अर्थात् न्याय, और दया, और विश्वास को छोड़ दिया है; चाहिये था कि इन्हें भी करते रहते, और उन्हें भी न छोड़ते।” (मत्ती २३:२३; लैव्यव्यवस्था २७:३०) यीशु के इन शब्दों से क्या हमें यह समझने में मदद नहीं मिलती कि यहोवा असल में हमसे क्या चाहता है?
२१. मीका ने कैसे साफ-साफ समझाया कि यहोवा हमसे क्या चाहता है और क्या नहीं?
२१ यह साफ-साफ समझाने के लिए कि यहोवा हमसे क्या चाहता है और क्या नहीं, परमेश्वर के भविष्यवक्ता मीका ने पूछा: “मैं क्या लेकर यहोवा के सम्मुख आऊं, और ऊपर रहनेवाले परमेश्वर के साम्हने झुकूं? क्या मैं होमबलि के लिये एक एक वर्ष के बछड़े लेकर उसके सम्मुख आऊं? क्या यहोवा हजारों मेढ़ों से, वा तेल की लाखों नदियों से प्रसन्न होगा? क्या मैं अपने अपराध के प्रायश्चित्त में अपने पहिलौठे को वा अपने पाप के बदले में अपने जन्माए हुए किसी को दूं? हे मनुष्य, वह तुझे बता चुका है कि अच्छा क्या है; और यहोवा तुझ से इसे छोड़ और क्या चाहता है, कि तू न्याय से काम करे, और कृपा से प्रीति रखे, और अपने परमेश्वर के साथ नम्रता से चले?”—मीका ६:६-८.
२२. यहोवा ने व्यवस्था के अधीन रहनेवालों से खासकर क्या माँग की?
२२ तो फिर, यहोवा ने व्यवस्था के अधीन रहनेवालों से खासकर क्या माँग की? बेशक उन्हें यहोवा परमेश्वर से प्रेम करना था। इसके अलावा, प्रेरित पौलुस ने कहा: “सारी व्यवस्था इस एक ही बात में पूरी हो जाती है, कि तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।” (गलतियों ५:१४) यही बात पौलुस ने रोम के मसीहियों से कही: “जो दूसरे से प्रेम रखता है, उसी ने व्यवस्था पूरी की है। . . . प्रेम रखना व्यवस्था को पूरा करना है।”—रोमियों १३:८-१०.
बहुत ज़्यादा की माँग नहीं की गयी
२३, २४. (क) यहोवा की माँगों को पूरा करना हमारे लिए बोझ क्यों नहीं है? (ख) इसके बाद हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?
२३ यहोवा की माँगें क्या आपके दिलो-दिमाग पर यह छाप नहीं छोड़ जातीं कि वह हमसे प्रेम करता है, हमारी सीमाएँ जानता है और हम पर दया करता है? उसका एकलौता बेटा, यीशु मसीह स्वर्ग से यहाँ पृथ्वी पर आया कि हमें समझाए कि यहोवा को हमसे कितना प्रेम है और हम उसके लिए कितने अनमोल हैं। परमेश्वर के प्यार की मिसाल देते हुए यीशु ने नन्हीं-सी गौरैया के बारे में कहा: “उनमें से एक भी तुम्हारे पिता के जाने बिना पृथ्वी पर नहीं गिरती।” इसलिए, उसने कहा: “डरो मत; तुम बहुत गौरैयों से श्रेष्ठ हो।” (मत्ती १०:२९-३१, न्यू हिन्दी बाइबल) सच, ऐसे प्यारे परमेश्वर की कोई भी माँग हमें बोझ नहीं लगेगी! ना ही हम यह सोचेंगे कि वो हमसे बहुत बड़ी-बड़ी माँग कर रहा है।
२४ तो फिर, आज हमारे दिनों में यहोवा हमसे क्या माँग करता है? और कुछ लोगों को ऐसा क्यों लगता है कि परमेश्वर उनसे बहुत ज़्यादा की माँग कर रहा है? इन सवालों पर चर्चा करके, हम यह समझ पाएँगे कि यहोवा की हर माँग को पूरा करना क्यों एक बहुत बड़ी आशीष है।
क्या आप जवाब दे सकते हैं?
◻ कुछ लोग यहोवा की सेवा क्यों नहीं करना चाहते?
◻ अलग-अलग समय पर यहोवा ने क्या-क्या माँगें रखी हैं?
◻ व्यवस्था दिए जाने के कौन-कौन-से मकसद थे?
◻ हम क्यों कह सकते हैं कि यहोवा हमसे बहुत ज़्यादा की माँग नहीं करता?
[पेज 18 पर तसवीर]
कोहनी तक हाथ धोने जैसे इंसानी नियमों से परमेश्वर की उपासना बोझ बन गयी थी