परमेश्वर यहोवा मुझे हमेशा सम्भाले रहा
यॉनिस ऑनड्रॉनीकॉस की ज़ुबानी
सन् १९५६ की बात है। मेरी शादी हुए सिर्फ नौ ही दिन हुए थे। और अब मैं उत्तरी ग्रीस के कोमोटीनी अपील कोर्ट में खड़ा हुआ था। मुझे एक साल की सज़ा मिली थी, क्योंकि मेरा यह कसूर था कि मैंने परमेश्वर के राज्य के बारे में प्रचार किया था। वैसे तो मुझे पूरी उम्मीद थी कि मेरी सज़ा माफ कर दी जाएगी, मगर ऐसा नहीं हुआ। अपील कोर्ट ने मुझे छ: महीने की सज़ा सुना दी और मेरी उम्मीदों पर पानी फिर गया। बस तभी से मुझ पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। मगर यहोवा परमेश्वर मुझे हमेशा सम्भाले रहा।
मेरा जन्म अक्तूबर १, १९३१ में हुआ। उस समय हमारा परिवार वहाँ रहता था जहाँ कभी प्रेरित पौलुस अपने दूसरे मिशनरी दौरे के लिए आया था, यानी मेसदोनीआ में नीएपलस के कॉवॉलॉ शहर में। मैं पाँच साल का था, तब मेरी मम्मी यहोवा की साक्षी बन गई। वह पढ़ना-लिखना नहीं जानती थी। फिर भी उसने मुझे परमेश्वर से प्यार करनेवाला और उसकी राह पर चलनेवाला इंसान बनाने के लिए जी-तोड़ मेहनत की। मगर मेरे पापा अकसर मम्मी का विरोध करते और उन्हें मारते-पीटते थे। उन्हें बाइबल की सच्चाई से कोई लगाव नहीं था, क्योंकि वे ग्रीक ऑर्थोडॉक्स चर्च के रीति रिवाज़ों में बुरी तरह फँसे हुए थे।
इस तरह, मैं मार-पीट के माहौल में बड़ा होता गया जहाँ पापा, मम्मी को बुरी तरह पीटते और सताते थे। और तो और वो हम सबको छोड़कर भी चले गए। मगर जब हम बहुत छोटे थे तभी से मम्मी ने मुझे और मेरी छोटी बहन को, अपने साथ मसीही सभाओं में ले जाना शुरू कर दिया था। आगे चलकर, जब मैं १५ साल का हुआ तो आज़ादी के रंग और जवानी के जोश ने मिलकर मुझे यहोवा के साक्षियों से दूर कर दिया। लेकिन मेरी प्यारी मम्मी ने हिम्मत नहीं हारी और उन्होंने मेरी खातिर बहुत आँसू बहाए और मुझे सुधारने की बहुत कोशिश की।
एक तो गरीबी की मार, दूसरे आवारा ज़िंदगी की वज़ह से बीमारी ने मुझे इतनी बुरी तरह जकड़ लिया कि लगभग साढ़े तीन महीने तक मैं बिस्तर से ना उठ सका। उसी दौरान एक बहुत-ही नम्र भाई मुझसे मिलने आए, ये वही भाई थे जिन्होंने मेरी मम्मी को बाइबल सच्चाई सिखाई थी। मुझे देखकर उन्हें ऐसा लगा कि मुझे परमेश्वर से प्यार है और अगर मेरी मदद की गई तो मैं फिर से सच्चाई में आगे बढ़ सकता हूँ। मगर दूसरे लोगों ने उनसे कहा: “तुम यॉनिस के पीछे अपना समय बर्बाद मत करो, तुम उसकी मदद करना चाहते हो, मगर अब वह कभी धार्मिक बातों में रुचि नहीं लेनेवाला।” लेकिन उस भाई ने धीरज से काम लिया जिससे उसकी मेहनत रंग लाई। और इसका नतीजा यह हुआ कि १५ अगस्त १९५२ के दिन २१ साल की उम्र में मैंने बपतिस्मा लेकर यह दिखाया कि मैंने अपना जीवन यहोवा को समर्पित कर दिया है।
पहले शादी फिर सज़ा
तीन साल बाद मेरी मुलाकात मॉरथा से हुई, जो आध्यात्मिक कार्यों में बड़ी जोशीली थी और उसमें बहुत-से अच्छे गुण थे। फिर जल्द ही हमारी सगाई हो गई। एक दिन मॉरथा ने मुझे यह कहकर चौंका दिया: “आज मेरा दिल कर रहा है कि मैं घर-घर जाकर प्रचार करूँ। तुम मेरे साथ चलोगे?” इससे पहले मैंने कभी घर-घर जाकर प्रचार नहीं किया था, क्योंकि उन दिनों ग्रीस में प्रचार-कार्य पर पाबंदी थी। इसलिए हम चुपचाप यहाँ-वहाँ जाकर प्रचार करते थे। और उन दिनों गिरफ्तारियाँ भी बहुत हो रही थीं, मुकद्दमे भी चल रहे थे और कैद की सज़ाएँ सुनाई जा रही थीं। मगर मैं, इतना सब कुछ जानते हुए भी अपनी मँगेतर से न नहीं कह सका!
सन् १९५६ में मैंने मॉरथा से शादी कर ली। फिर जैसा कि मैंने शुरू में ही बताया था, शादी को नौ ही दिन बीते थे कि कोमोटीनी अपील कोर्ट ने मुझे छ: महीने की सज़ा सुना दी। उस वक्त मुझे एक सवाल याद आया, जो मैंने अपनी मम्मी की सहेली और एक मसीही बहन से किया था। मैंने पूछा था: “मैं कैसे दिखा सकता हूँ कि मैं यहोवा का सच्चा साक्षी हूँ? मुझे तो कोई ऐसा मौका नहीं मिला जिससे मैं यह दिखा सकूँ कि मेरा विश्वास कितना मज़बूत है।” बाद में जब वही बहन कैद में मुझसे मिलने आई तो उसने वही सवाल मुझे याद दिलाते हुए कहा: “यही वक्त है कि तुम अब दिखा सकते हो कि तुम्हें यहोवा से कितना प्यार है। और यह अब तुम्हारी ज़िम्मेदारी भी है।”
जब मुझे पता चला कि मेरा वकील पैसा भरकर मुझे ज़मानत पर छुड़ाने की कोशिश कर रहा है तो मैंने उससे कहा कि ज़मानत पर छूटने के बजाय मैं कैद में रहना ज़्यादा पसंद करूँगा। इन छः महीनों के आखिर में, मुझे यह देखकर बेहद खुशी हुई कि दो कैदियों ने सच्चाई को अपना लिया था। उसके बाद कई सालों तक मैं सुसमाचार के लिए बहुत-से मुकद्दमों में लगा रहा।
कदम उठाकर कभी पछताए नहीं
कैद से छूटने के दो साल बाद, सन् १९५९ में जब मैं काँग्रीगेशन सर्वेंट (प्रिसाइडिंग ओवरसियर) के तौर पर सेवा कर रहा था तो मुझे भी किंगडम मिनिस्ट्री स्कूल के लिए बुलाया गया, इस स्कूल में कलीसिया के प्राचीनों को ट्रेनिंग दी जाती है। और उसी दौरान मुझे सरकारी अस्पताल से पक्की नौकरी का ऑफर आया। मैं अच्छी तरह जानता था कि वह नौकरी मेरे और मेरे परिवार के गुज़र-बसर के लिये बहुत बड़ा सहारा बन सकती है, अब मैं क्या करता क्योंकि उस अस्पताल में काम करते मुझे तीन महीने बीत गए थे और मेरे काम से डायरेक्टर भी खुश था। मगर मुझे जब स्कूल का निमंत्रण आया तो डायरेक्टर मुझे छुट्टी देने के लिए राज़ी नहीं हुआ था। उस वक्त मैं एक अजीब सी कश्म-कश में फँसा था कि मैं क्या करूँ फिर मैंने दिल से यहोवा से प्रार्थना की, और यह फैसला किया कि चाहे जो हो जाए मैं राज्य के कामों को ही पहला स्थान दूँगा और मैंने नौकरी के बुलावे को ठुकरा दिया।—मत्ती ६:३३.
लगभग उसी समय पर, सर्किट और डिस्ट्रिक्ट ओवरसियर हमारी कलीसिया में विज़िट के लिए आए। उन दिनों ग्रीक ऑर्थोडॉक्स चर्च के पादरियों और अधिकारियों की ओर से बहुत ज़्यादा विरोध की वज़ह से हमें अपनी सभाएँ छिप-छिपकर अपने घरों में करनी पड़ती थीं। एक दिन मीटिंग के बाद डिस्ट्रिक्ट ओवरसियर मेरे पास आए और मुझसे बात करने लगे, उन्होंने मुझसे बातों-बातों में पूछा कि क्या मैंने कभी फुल-टाइम सर्विस करने के बारे में सोचा है। उनकी बातों से मुझे बहुत अच्छा लगा क्योंकि बपतिस्मे के बाद से एक यही तो मेरा सपना था कि मैं फुल-टाइम सर्विस करूँ। मैंने उनसे कहा कि, “मैं तो बहुत चाहता हूँ।” मगर मेरे ऊपर अपनी बेटी का पालन-पोषण करने की भी ज़िम्मेदारी है। भाई ने मुझसे कहा: “अपना भरोसा यहोवा पर रखो, एक दिन वह तुम्हारे सपनों को ज़रूर पूरा करेगा।” मैंने और मेरी पत्नी ने कभी-भी अपनी ज़िम्मेदारियों से मुँह नहीं मोड़ा। और हमने अपने घर की हालत में कुछ फेर-बदल किया जिससे मेरे लिए यह मुमकिन हुआ कि मैं दिसंबर १९६० में पूर्वी मैसदोनीआ में स्पेशल पायनियरिंग शुरू कर सका। वहाँ पूरे देश में सिर्फ पाँच स्पेशल पायनियर थे जिनमें से मैं एक था।
एक साल स्पेशल पायनियरिंग करने के बाद एथेंस ब्रांच ऑफिस ने मुझे ट्रेवलिंग ओवरसियर के तौर पर सेवा करने के लिए कहा। इसके लिए मुझे एक महीने की ट्रेनिंग दी गई। ट्रेनिंग के बाद मैं घर पहुँचा ही था और मॉरथा को ट्रेनिंग के बारे में बहुत सारी बातें बता ही रहा था कि एक बहुत बड़ी मैंगनीज़ खान का डाएरेक्टर मेरे पास आकर कहने लगा कि वह मुझे रिफाइनिंग डिविजन का मैनेजर बनाना चाहता है। और तो और वह मुझसे पाँच साल का कॉन्ट्रॆक्ट करने के लिए भी तैयार था। इसके अलावा वह मुझे घर और गाड़ी भी देना चाहता था। और उसने मुझे जवाब देने के लिए दो दिन का वक्त भी दिया। लेकिन इस बार भी मैंने यहोवा के काम को पहला स्थान देने के लिए बगैर किसी झिझक के यहोवा से प्रार्थना की और कहा: “मैं यहां हूं! मुझे भेज।” (यशायाह ६:८) इस फैसले से मेरी पत्नी को भी बहुत खुशी हुई। बस, परमेश्वर पर भरोसा रखते हुए हमने सफरी-कार्य शुरू कर दिया, और यहोवा ने हमें कभी नहीं छोड़ा।
हर हाल में सेवा की
पैसों की तंगी होने के बावजूद भी हमने कभी हार नहीं मानी। हम पूरे जोश के साथ परमेश्वर की सेवा में लगे रहे और यहोवा हमारी ज़रूरतों को पूरा करता रहा। शुरू-शुरू में कलीसियाओं के विज़िट के लिए मेरे पास बस एक छोटी-सी मोटर-साइकल थी, जिससे करीब ५०० कि. मी. का सफर तय करना पड़ता था। बहुत बार मुझे कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा और कई बार मेरा एक्सीडैंट भी हुआ। सर्दी की एक रात मीटिंग से घर लौटते समय, तेज़ी से बहती नदी पार करते वक्त अचानक मेरी गाड़ी बंद हो गई, और मैं घुटनों तक गीला हो गया। और तो और टायर की भी हवा निकल गयी। रास्ते में मुझे एक गाड़ीवाला दिखा जिससे मैंने मदद माँगी, उसके हवा-पंप की बदौलत ही मैं पास के गाँव तक पहुँच पाया और वहाँ टायर ठीक करवा सका। ठंड से मैं पूरी तरह जम चुका था, और थककर चूर-चूर हो गया था। आधी रात बीतने के बाद जब मैं घर पहुँचा तो तीन बज रहे थे।
एक दिन जब मैं एक कलीसिया का विज़िट खतम करके दूसरी कलीसिया के विज़िट के लिए जा रहा था तो अचानक मेरी मोटर-साइकल स्लिप हो गई, और मेरे घुटने पर गिर पड़ी। जिससे मेरी पैन्ट फट गई और खून से तर हो गई। उस समय मेरे पास दूसरा कोई जोड़ा भी नहीं था, और शाम को मुझे टॉक भी देनी थी इसलिए मुझे एक भाई से पैन्ट माँगकर पहननी पड़ी, जो मेरे लिए बहुत ढीली थी। यह सब होने के बाद भी, यहोवा की और अपने प्यारे भाई-बहनों की सेवा करने में मेरा जोश कभी ठंडा नहीं पड़ा।
एक और बार एक्सीडैंट में मैं बुरी तरह से ज़ख्मी हो गया, उस एक्सीडैंट में मेरा हाथ और सामने के दाँत टूट गए। उस दौरान, मेरी छोटी बहन मुझसे मिलने के लिए आई। वह अमरीका में रहती थी और साक्षी नहीं थी। उसने मुझे कार खरीदने में मदद की जिससे मुझे काफी राहत मिली! जब एथेंस ब्रांच के भाइयों को मेरे एक्सीडैंट के बारे में पता चला, तो उन्होंने मुझे एक ऐसी चिट्ठी लिखी जिससे मेरी हिम्मत बढ़े और मेरा जोश कम ना हो। और बातों के साथ-साथ उन्होंने रोमियों ८:२८ लिखकर भेजा, जिसमें यह लिखा है: “जो लोग परमेश्वर से प्रेम रखते हैं, उन के लिये सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्पन्न करती हैं।” ये हिम्मत देनेवाले शब्द मेरी ज़िंदगी में बार-बार सच साबित हुए हैं।
एक चौंकानेवाला तोहफा
सन् १९६३ में, मैं एक स्पेशल पायनियर के साथ प्रचार कर रहा था। क्योंकि गाँव के लोग राज्य संदेश में कुछ दिलचस्पी नहीं ले रहे थे, इसलिए हमने फैसला किया कि हम अलग-अलग प्रचार करेंगे, एक सड़क के इस तरफ और दूसरा सड़क के दूसरी तरफ से। मैंने एक घर का दरवाज़ा खटखटाया तो एक औरत ने धड़ाक से दरवाज़ा खोला, और झट से मुझे घर के अंदर खींच लिया, फिर एकदम से दरवाज़ा बंद करके कुंडी लगा दी। मैं तो बुरी तरह घबरा गया कि यह क्या हो रहा है। बाद में उसने स्पेशल पायनियर को भी बुलाकर घर के अंदर खींच लिया। फिर वह औरत बोली: “श..श..श! आवाज़ मत करो!” तभी हमने बाहर से विरोधियों की आवाज़ें सुनी। वे हमें ही ढूँढ़ रहे थे। जब वे चले गए तो उस औरत ने हमसे कहा: “ऐसा मैंने तुम्हें बचाने के लिए ही किया था। मेरे दिल में तुम लोगों के लिए बहुत इज़्ज़त है क्योंकि मुझे विश्वास है कि तुम लोग सच्चे मसीही हो।” हम उसके बहुत एहसानमंद थे हमने उसे तहे दिल से धन्यवाद कहा और बहुत-सी किताबें और पत्रिकाएँ देकर वहाँ से चले आए।
चौदह साल बाद ग्रीस में जब मैं एक डिस्ट्रिक्ट कनवैनशन में था, तो एक औरत ने मेरे पास आकर कहा: “भाई, क्या आप मुझे पहचानते हैं? याद है आपको, जब आप हमारे गाँव में प्रचार के लिए आए थे तो मैंने आपको विरोधियों से बचाया था।” दरअसल वह औरत बाद में जर्मनी में जाकर रहने लगी थी और वहाँ उसने बाइबल पढ़ना और यहोवा के साक्षियों के साथ मिलना-जुलना शुरू कर दिया था। और अब उसका पूरा परिवार सच्चाई में आ गया था।
सचमुच इन सालों में हमें बहुत-सी “सिफारिश की पत्रियां” पाने की आशीषें मिली हैं। (२ कुरिन्थियों ३:१) ऐसे ही बहुत-से लोग जिन्हें बाइबल की सच्चाई को समझने में हमने मदद की थी वे अब प्राचीन, मिनिस्ट्रियल सर्वेंट, और पायनियर के रूप में सेवा कर रहे हैं। और यह देखकर भी बहुत खुशी होती है कि १९६० के दशक में पूरे सर्किट में मुट्ठीभर प्रचारक आज बढ़कर १०,००० यहोवा के उपासक बन गए हैं। इसके लिए सारी महिमा, करुणामय परमेश्वर को जाती है, जो अपने ही तरीके से हमें इस्तेमाल करता है।
खाट पकड़ ली
सफरी-कार्य में मॉरथा ने मेरा साथ नहीं छोड़ा और वह मेरे लिए बहुत अच्छी मददगार साबित हुई, वह हमेशा हँसमुख रहती थी। लेकिन, अक्तूबर १९७६ में मॉरथा इतनी बीमार हो गई कि उसका ऑपरेशन करवाना पड़ा। नौबत यहाँ तक आ पहुँची कि उसे व्हील-चेअर का सहारा लेना पड़ा क्योंकि उसके आधे शरीर को लकवा मार गया था। इतनी सारी मुसीबतों, खर्चों और दुखों को हमने एक साथ कैसे सहा? एक बार फिर, हमने अपना पूरा भरोसा यहोवा पर बनाए रखा। ऐसा करने से हमें उसकी मदद, प्यार, और दया का सहारा मिला। बाद में मैं मॉरथा को फिज़िकल थैरपी के लिए एक भाई के घर एथेंस में छोड़कर सेवा के लिए अकेले ही मैसदोनीआ गया। वहाँ वह मुझे फोन करती और मेरी हिम्मत बढ़ाते हुए कहती: “मैं यहाँ ठीक हूँ, आप सेवा में लगे रहें, जब मैं थोड़ी अच्छी हो जाऊँगी तो व्हील-चेअर पर रहकर भी आपका साथ दूँगी।” और उसने ऐसा ही किया। हमारी हिम्मत बढ़ाने के लिए हमारे प्यारे भाई-बहनों ने बॆथॆल से हमें बहुत सारे पत्र भेजे। बार-बार मॉरथा को भजन ४१:३ के शब्द याद दिलाए जाते: “जब वह [रोग] के मारे [खाट] पर पड़ा हो, तब यहोवा उसे सम्भालेगा; तू रोग में उसके पूरे बिछौने को उलटकर ठीक करेगा।”
सन् १९८६ में सोसाइटी ने फैसला किया कि बीमारी की वज़ह से मेरे लिए यही अच्छा होगा कि मैं कॉवॉलॉ में स्पेशल पायनियर के रूप में सेवा करूँ। हमारी प्यारी बेटी का परिवार भी वहीं रहता था। पिछले मार्च में मेरी प्यारी मॉरथा चल बसी, वह अपनी मौत तक वफादारी से सेवा करती रही। उसकी मौत से पहले जब भाई-बहन मॉरथा से पूछते: “तुम कैसी हो?” तो वह यही जवाब देती: “मैं यहोवा के करीब हूँ, इसलिए बिल्कुल ठीक हूँ!” जब भी हम मीटिंग की तैयारी करते या जब हमें ऐसे इलाकों में जाकर सेवा करने के न्यौते आते जहाँ बहुत बढ़ोतरी हो रही है तो मॉरथा कहा करती थी: “यॉनिस, चलो वहाँ चलकर सेवा करें जहाँ ज़्यादा ज़रूरत है।” उसका जोश कभी-भी कम नहीं हुआ।
कुछ साल पहले मुझे भी बीमारी से जूझना पड़ा। मार्च १९९४ में मुझे बहुत ही खतरनाक हृदय-रोग हो गया जिसका मुझे ऑपरेशन करवाना पड़ा। एक बार फिर, मुसीबतों ने मुझे आ घेरा लेकिन इस समय भी यहोवा ने मुझे सम्भाला। मैं उस प्रार्थना को कभी भी नहीं भूल सकता जो इंटैंसिव केयर यूनिट से बाहर निकलने के बाद एक सर्किट ओवरसियर ने मेरे पास खड़े होकर की थी। इसके अलावा मैंने अस्पताल के अपने कमरे में चार दूसरे मरीज़ों के साथ स्मारक समारोह मनाया। इन मरीज़ों ने भी सच्चाई में थोड़ी-बहुत दिलचस्पी ली थी।
यहोवा हमारी मदद करता रहा
समय तो पंख लगाकर उड़ जाता है और हमारा शरीर कमज़ोर पड़ता जाता है। लेकिन हमारा जोश, बाइबल पढ़ने, अध्ययन करने और परमेश्वर के राज्य का प्रचार करने से बना रहता है। (२ कुरिन्थियों ४:१६) उस बात को ३७ साल गुज़र चुके हैं जब मैंने कहा था, “मैं यहां हूं! मुझे भेज।” मेरी ज़िंदगी आशीषों और खुशियों भरी रही है। हाँ, कभी-कभी मुझे महसूस होता है, “मैं तो दीन और दरिद्र हूं,” मगर फिर मैं पूरे भरोसे से यहोवा से कहता हूँ: “तू मेरा सहायक और छुड़ानेवाला है।” (भजन ४०:१७) यहोवा वाकई एक ऐसा परमेश्वर है जिसने मुझे हमेशा सम्भाला।
[पेज 25 पर तसवीर]
सन् १९५६ में मॉरथा के साथ
[पेज 26 पर तसवीर]
कॉवॉलॉ बंदरगाह
[पेज 26 पर तसवीर]
सन् १९९७ में मॉरथा के साथ