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  • क्या आप मन की शांति पा सकते हैं?

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  • क्या आप मन की शांति पा सकते हैं?
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2000
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2000
w00 7/1 पेज 3-4

क्या आप मन की शांति पा सकते हैं?

एक अमरीकी लेखक हॆन्री थारो ने सन्‌ 1854 में लिखा: “आजकल हर तरफ लोग मायूस और बेचैन नज़र आते हैं।”

ज़ाहिर है कि थारो के ज़माने में ज़्यादातर लोग खुश नहीं थे। यह बात तो करीब 150 साल पहले की है। मगर क्या आज भी हालात वैसे ही नहीं हैं? अगर आप से पूछा जाए कि क्या आप वाकई खुश हैं, तो आप क्या कहेंगे? क्या आपको यह डर सताता रहता है कि न जाने भविष्य में मेरा क्या होगा? थॉरो के शब्दों में कहें तो क्या आप भी “बेचैन” हैं?

अफसोस की बात है कि दुनिया में आज इतनी दुख-तकलीफें और समस्याएँ हैं कि लोग मन की शांति पाने के लिए तरस रहे हैं। कुछ देशों में बेरोज़गारी और गरीबी इतनी बड़ी समस्या हो गई है कि लोग दाने-दाने को मोहताज हैं। दूसरी तरफ कुछ देशों में लोग धन-दौलत कमाने में अपनी सारी ज़िंदगी लगा देते हैं। लेकिन दौलत कमाने की होड़ में वे अपनी खुशियाँ, अपना सुख-चैन और सकून लुटा बैठते हैं। इसके अलावा बीमारी, ज़ुल्म, युद्ध, अपराध और अन्याय ने भी लोगों की नींद हराम कर रखी है।

सुख-चैन की तलाश

कुछ लोग मन की शांति पाने के लिए अपनी तरफ से पूरी कोशिश करते हैं। इनमें से एक अन्टोन्यूa भी था। वह ब्राज़ील के साओं पाउलू शहर में, एक बहुत बड़ी फैक्ट्री में काम करता था और मज़दूरों का लीडर था। मज़दूरों की भलाई के लिए उसने बहुत जुलूस निकाले मगर सब बेकार रहा। अंत में वह बहुत मायूस हो गया।

कुछ लोग सोचते हैं कि शादी करने से उनकी ज़िंदगी खुशियों से भर जाएगी। मगर हकीकत कुछ और है। मार्कोस के उदाहरण को लीजिए। वह एक बहुत बड़ा बिज़नॆसमैन था। बाद में उसने राजनीति में भी हिस्सा लिया। और फिर वह एक बहुत बड़े शहर का मेयर भी बन गया। मगर उसके परिवार में सुख-शांति नहीं थी। उसकी अपनी पत्नी के साथ बिल्कुल भी नहीं पटती थी। अंजाम यह हुआ कि दोनों अलग हो गए।

ब्राज़ील के सैल्वाडोर में गेर्ज़ोन नाम का एक आवारा लड़का रहता था। उस पर हमेशा कोई नया करिश्‍मा कर दिखाने का जुनून सवार रहता था। वह ट्रक ड्राइवरों से लिफ्ट लेकर शहर-शहर भटकता रहता था। कुछ समय बाद उसे ड्रग्स की लत लग गई। ड्रग्स खरीदने के लिए उसने लूट-मार शुरू कर दी जिसकी वज़ह से उसे कई बार गिरफ्तार भी होना पड़ा। वह दूसरों पर रौब जमानेवाला, खूँखार किस्म का इंसान बन गया। मगर फिर भी वह मन की शांति के लिए तरस रहा था। क्या उसे शांति मिली?

वानीया बहुत छोटी थी जब उसकी माँ गुज़र गई। इसलिए पूरे घर की देखभाल करने का ज़िम्मा उसके कंधों पर आ पड़ा। उसे अपनी बीमार बहन की भी सेवा करनी थी। वह मन की शांति के लिए तड़प रही थी। इसलिए उसने चर्च जाना शुरू कर दिया मगर उसे लगा कि परमेश्‍वर भी उससे रूठा हुआ है।

मार्सेलू अपनी ज़िंदगी में खूब मज़े लूटना चाहता था। दोस्तों के साथ मौज-मस्ती करना, शराब पीना और ड्रग्स लेना, यही उसकी ज़िंदगी थी। लेकिन एक बार उसकी लड़ाई हो गई और उसने एक लड़के को ज़ख्मी कर दिया। इस हादसे ने उसकी आँखें खोल दी। वह अपने किए पर बहुत शर्मिंदा था। उसने परमेश्‍वर से मन की शांति के लिए गिड़गिड़ाकर प्रार्थना की।

ये जीती-जागती मिसालें दिखाती हैं कि कौन-सी बातें हमारा सुख-चैन छीन सकती हैं। अब सवाल यह है कि ऊपर बताए गए लोग क्या मन की शांति पाने की तलाश में कामयाब हुए? क्या हम उनकी ज़िंदगी से कुछ सीख सकते हैं? इन दोनों सवालों का जवाब है “हाँ”। वह कैसे, आइए अगला लेख देखते हैं।

[फुटनोट]

a कुछ नाम बदल दिए गए हैं।

[पेज 3 पर तसवीर]

क्या आप मन की शांति के लिए तरस रहे हैं?

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