जीवन कहानी
त्याग की भावना से सेवा करना
डॉन रेन्डॆल की ज़ुबानी
सन् 1927 में जब मैं पाँच साल का था तब मेरी माँ चल बसी। फिर भी उनके विश्वास का मेरे जीवन पर बहुत गहरा असर पड़ा। यह कैसे हो सकता है?
जब मेरी माँ की शादी हुई उस वक्त वह चर्च ऑफ इंग्लैंड की कट्टर सदस्य थी। मेरे पिता सेना में थे। यह बात प्रथम विश्वयुद्ध से पहले की है। सन् 1914 में जब पहला विश्वयुद्ध छिड़ गया, उस वक्त मेरी माँ ने अपने चर्च के पादरी के सामने यह मुद्दा उठाया कि वह चर्च के मंच से लोगों को सेना में भर्ती होने का बढ़ावा क्यों दे रहा है। जानते हैं उस पादरी ने क्या जवाब दिया? “अपने घर जाओ और इस तरह के सवालों से अपने आपको परेशान मत करो!” इस जवाब से माँ को तसल्ली नहीं हुई।
सन् 1917 में जब युद्ध ज़ोरों पर था, तब माँ “फोटो-ड्रामा ऑफ क्रिएशन” देखने गयी। फिल्म देखने के बाद उसे यकीन हो गया कि उसे सच्चाई मिल गयी है। उसने बाइबल विद्यार्थियों से, जो अब यहोवा के साक्षी नाम से जाने जाते हैं, संगति रखने के लिए तुरंत चर्च से नाता तोड़ दिया। वह योविल की एक कलीसिया की सभाओं में जाने लगी जो इंग्लैंड के सोमरेस्ट प्रांत में हमारे गाँव, वॆस्ट कोकर का सबसे नज़दीकी कस्बा है।
माँ ने जल्द ही, अपने नए विश्वास के बारे में अपनी तीन बहनों को बताया। योविल कलीसिया के बुज़ुर्ग सदस्यों ने मुझे बताया कि किस तरह मेरी माँ और मेरी मौसी, मिली दोनों साइकल पर बड़े जोश के साथ दूर-दूर गाँवों में जाकर बाइबल अध्ययन की किताबें, स्टडीज़ इन द स्क्रिप्चर्स बाँटती थीं। लेकिन दुःख की बात है कि माँ को अपनी ज़िंदगी के आखिरी 18 महीने बिस्तर पर बिताने पड़े। उसे तपेदिक हो गया था जो उस समय एक लाइलाज बीमारी थी।
रोज़मर्रा की ज़िंदगी में त्याग
मेरी मौसी मिली, उस समय हमारे साथ रहती थीं। जब मेरी माँ बीमार थी तो वे उसकी देखभाल करती थीं, साथ ही मेरा और मेरी सात साल की बहन, जोन का भी ख्याल रखती थीं। माँ की मौत के कुछ ही समय बाद मौसी मिली ने कहा कि वह हम बच्चों की देखभाल करने का ज़िम्मा लेना चाहती हैं। मेरे पिता खुश हुए कि उन पर से इस ज़िम्मेदारी का बोझ हलका हो गया और मौसी मिली को हमेशा के लिए हमारे साथ रखने को राज़ी हो गए।
हम अपनी मौसी से बेहद प्यार करने लगे, और खुश थे कि वे अब हमारे साथ रहेंगी। लेकिन उन्होंने हमारे साथ रहने का फैसला क्यों किया? बहुत साल बाद मौसी मिली ने हमें बताया कि उसे इस बात का एहसास था कि जोन और मुझे बाइबल सिखाना उसका फर्ज़ है जिसकी नींव हमारी माँ ने डाली थी। वह जानती थी कि यह काम हमारे पिता कभी नहीं करेंगे क्योंकि उन्हें धर्म में कोई दिलचस्पी नहीं थी।
कुछ समय बाद हमें मौसी के एक निजी फैसले के बारे में भी पता चला कि वह हमारी अच्छी देखभाल करने के लिए कभी शादी नहीं करेंगी। कितना बड़ा त्याग! मुझ पर और जोन पर मौसी मिली के बहुत एहसान हैं। हमें मौसी मिली ने जो भी सिखाया और उन्होंने जो बेहतरीन मिसाल कायम की, उसे हम आज भी नहीं भूले हैं।
फैसला करने की घड़ी
मैं और जोन गाँव के चर्च ऑफ इंग्लैंड के स्कूल में पढ़ते थे जहाँ मेरी मौसी मिली ने वहाँ की प्रिंसीपल को हमारी धार्मिक शिक्षा के बारे में अपना अटल फैसला बताया। जब स्कूल के दूसरे बच्चे चर्च जाते तो हम घर चले आते थे और जब चर्च का पादरी स्कूल में धार्मिक शिक्षा देने आता तो हम दूसरे बच्चों से अलग जाकर बैठ जाते। हमें बाइबल के कुछ वचन याद करने को दिए जाते थे। यह मेरे लिए खासकर आगे चलकर बहुत फायदेमंद साबित हुआ क्योंकि ये वचन मेरे दिमाग में अच्छी तरह बैठ गए।
मैंने 14 साल की उम्र में स्कूल छोड़ दिया और अपने इलाके की चीज़ बनाने की फैक्टरी में चार साल तक चीज़ बनाना सीखा। मैंने प्यानो बजाना भी सीखा और संगीत और बालरूम डांस करना मेरे शौक बन गए। हालाँकि बाइबल की सच्चाई मेरे दिल में रच-बस गयी थी मगर उसे अमल करने का जोश अभी तक पैदा नहीं हुआ था। तब एक दिन मार्च 1940 में एक बुज़ुर्ग साक्षी ने मुझे अपने साथ स्विन्डन में होनेवाले सम्मेलन में आने का बुलावा दिया, जो कि करीब 110 किलोमीटर दूर था। उस सम्मेलन में एलबर्ट डी. श्रोडर ने जन-भाषण दिया। वे ब्रिटेन में यहोवा के साक्षियों के प्रिसाइंडिंग मिनिस्टर थे। उस सम्मेलन से मेरी ज़िंदगी को एक नया मोड़ मिला।
दूसरा विश्वयुद्ध पूरे ज़ोरों पर था। और मैं अपनी ज़िंदगी यूँ ही गँवा रहा था। मैंने दोबारा योविल राज्यगृह जाने का फैसला कर लिया और जब मैं उस सभा में हाज़िर हुआ तो उसी दिन वहाँ पहली बार सड़क गवाही करने के बारे में बताया गया था। ज़्यादा ज्ञान न होने के बावजूद मैंने इस सेवा में भाग लेने की इच्छा ज़ाहिर की। मुझे यह काम करते देख वे सभी हैरान रह गए जो बस नाम के लिए मेरे दोस्त थे। और उन्होंने वहाँ से गुज़रते वक्त मेरी खिल्ली उड़ायी!
जून 1940 में ब्रिस्टल शहर में मेरा बपतिस्मा हुआ। एक महीने में ही मैं रेग्यूलर पायनियर के तौर पर पूरे समय का सेवक बन गया। मैं कितना खुश था कि कुछ समय बाद मेरी बहन ने भी बपतिस्मा लेकर अपना समर्पण ज़ाहिर किया।
युद्ध के दौरान पायनियरिंग
युद्ध शुरू होने के एक साल बाद मुझे कुछ कागज़ात मिले जिनमें मेरे सेना में भर्ती होने के बारे में लिखा हुआ था। योविल में, अपने विवेक के कारण सेना में भर्ती न होनेवाले के तौर पर मेरा नाम पंजीकृत कर दिया गया, जिस वजह से मुझे ब्रिस्टोल की कचहरी में पेश होना पड़ा। मैंने जॉन विन के साथ सिंडरफर्ड, ग्लॉसेसटरशाइर में पायनियरिंग की। उसके बाद हैवरफोर्डवेस्ट और कारमार्दन, वेल्स में।a फिर कारमार्दन में अदालत की सुनवायी में मुझे स्वॉन्ज़ी जेल में तीन महीने की सज़ा हो गयी। इसके अलावा मुझे 1,725 रुपए जुर्माना भी देना था। उन दिनों यह बहुत बड़ी रकम थी। जुर्माना न भरने की वजह से मुझे और तीन महीने की सज़ा काटनी पड़ी।
तीसरी सुनवायी के वक्त मुझसे पूछा गया: “क्या तुम नहीं जानते कि बाइबल कहती है, ‘जो कैसर का है, वह कैसर को दो’?” मैंने जवाब दिया, “जी हाँ, जानता हूँ मगर मैं इस आयत को पूरा करना चाहता हूँ: ‘जो परमेश्वर का है, वह परमेश्वर को दो।’ और मैं वही कर रहा हूँ।” (मत्ती 22:21) कुछ हफ्तों बाद मुझे एक खत मिला जिसमें लिखा था कि मैं सेना में भर्ती होने की ज़िम्मेदारी से मुक्त हूँ।
सन् 1945 की शुरूआत में मुझे लंदन बेथेल परिवार का सदस्य बनने का बुलावा आया। उसी साल की सर्दियों में नेथन एच. नॉर ने, जो उस समय संसार भर में होनेवाले प्रचार काम की निगरानी करते थे और उनके सेक्रेटरी, मिल्टन जी. हेनशल ने लंदन का दौरा किया। ब्रिटेन के आठ जवान भाइयों को मिशनरी ट्रेनिंग के लिए, वॉच टावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड की आठवीं क्लास में दाखिल किया गया। और उनमें मैं भी एक था।
मिशनरी सेवा में नियुक्तियाँ
मई 23, 1946 को हम फोई के छोटे-से कोरनीश बंदरगाह से युद्ध के समय इस्तेमाल होनेवाले एक मालवाहक जहाज़ से रवाना हो गए। जब हमारा जहाज़ बंदरगाह से दूर हो रहा था, तो बंदरगाह के अधिकारी कप्तान कॉलिन्ज़ ने, जो यहोवा का साक्षी था, साइरन बजाया। जब ब्रिटेन की तट-रेखा हमारी नज़रों से ओझल होने लगी तो स्वाभाविक था कि हम दुःखी भी थे और खुश भी। अटलांटिक सागर को पार करने का सफर बहुत ही कठिन था, मगर 13 दिन बाद हम सही-सलामत अमरीका पहुँच गए।
सन् 1946 में अगस्त 4 से 11 तक हम आनंदित जातियाँ ईश्वरशासित सम्मेलन में हाज़िर हुए जो क्लीवलैंड ओहायो में आयोजित किया गया। इस अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में बिताए आठ दिन एक यादगार अनुभव है। इसमें अस्सी हज़ार लोग हाज़िर हुए, जिनमें से 302 लोग 32 अलग-अलग देशों से आए थे। इस अधिवेशन में अवेक!b पत्रिका और बाइबल अध्ययन कराने के लिए एक किताब, “लॆट गॉड बी ट्रू” रिलीज़ की गयी और जोशीले श्रोताओं में बाँटी गयी।
हम 1947 में गिलियड से ग्रेजुएट हुए और बिल कॉपसन और मुझे मिस्र में काम सौंपा गया। लेकिन हमारे वहाँ जाने से पहले मुझे ब्रुकलिन बेथेल में रिचर्ड एब्राहैमसन से दफ्तर का काम सँभालने की अच्छी तालीम पाने का मौका मिला। हम एलेक्ज़ेंड्रिया में उतरे और कुछ समय में मैंने अपने आपको मध्य-पूर्व के रहन-सहन के मुताबिक ढाल लिया। लेकिन अरबी भाषा सीखना मेरे लिए चुनौती था और मुझे चार भाषाओं में टॆस्टमनी कार्ड इस्तेमाल करने पड़े।
बिल कॉपसन उस देश में सात साल रहा, पर एक साल के बाद मेरे वीज़ा का नवीनीकरण न होने की वजह से मुझे वह देश छोड़ना पड़ा। जब मैं मिशनरी सेवा के उस वर्ष को याद करता हूँ तो मुझे एहसास होता है कि मेरी ज़िंदगी का वह सबसे कामयाब वर्ष था। मेरे पास हर हफ्ते 20 बाइबल अध्ययन करने का सुनहरा मौका था। और उनमें से कुछ जिन्होंने सच्चाई सीखी आज भी बड़े जोश के साथ यहोवा का गुणगान कर रहे हैं। फिर मिस्र से मुझे साइप्रस भेजा गया।
साइप्रस और इस्राएल
मैं एक नयी भाषा, यूनानी का अध्ययन करने लगा और वहाँ की प्रांतीय बोली सीखने लगा। कुछ समय बाद जब एन्थनी साइडेरिस को यूनान जाने को कहा गया तो उस वक्त मुझे साइप्रस में काम की निगरानी करने के लिए नियुक्त किया गया। उस समय वहाँ का शाखा दफ्तर, इस्राएल में होनेवाले प्रचार काम पर भी निगरानी रखता था। और दूसरे कुछ भाइयों के साथ मुझे भी वहाँ के चंद साक्षियों से समय-समय पर मिलने का मौका मिला।
इस्राएल में अपने पहले दौरे पर हमने हाइफा के एक रेस्तराँ में एक छोटा-सा सम्मेलन आयोजित किया जिसमें 50 से 60 लोग आए। हमने लोगों को अपने-अपने देश के मुताबिक समूहों में अलग किया और सम्मेलन को कार्यक्रम छः भाषाओं में पेश किया! एक दूसरे मौके पर मैं यहोवा के साक्षियों के ज़रिए बनायी एक फिल्म जेरूसलेम में दिखा सका और मैंने एक जन-भाषण भी दिया, जिसके बारे में वहाँ के अँग्रेज़ी अखबार में सराहना की गयी।
उस समय साइप्रस में करीब 100 साक्षी थे और उन्हें अपने विश्वास के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा। ग्रीक ऑर्थोडॉक्स चर्च के पादरी, भीड़ को अपने साथ लाकर हमारे सम्मेलनों में रुकावट पैदा करते थे। जब मैं देहाती इलाकों में प्रचार करता तो लोग मुझे पत्थर मारते थे जो मेरे लिए एक नया अनुभव था। मुझे सीखना पड़ा कि ऐसे वक्त पर कैसे तुरंत भाग जाना चाहिए! इस तरह की हिंसा और कड़े विरोध के बावजूद यह देखकर हमारा विश्वास काफी मज़बूत हुआ कि और भी कई मिश्नरियों को यहाँ इस द्वीप में भेजा गया था। डेनिस और मेविस मैथ्यूज़, उनके साथ जोन हली और बेरल हेवुड, फामागुस्ता में मेरे साथ सेवा करने आए। टॉम और मॆरी गूल्डन और लंदन में जन्मी साइप्रसवासी नीना कॉनस्टॉन्टी लीमासोल गए। उसी समय बिल कॉपसन का भी तबादला साइप्रस में हो गया और बाद में बर्ट और बेरल वाइसी वहाँ आ गए।
बदलते हालात के मुताबिक खुद को ढालना
सन् 1957 के अंत में मैं बीमार हो गया और मिशनरी काम जारी रखना मेरे लिए मुश्किल हो रहा था। बड़े दुःख के साथ मैंने यह फैसला किया कि मुझे अपना स्वास्थ्य सुधारने के लिए इंग्लैंड वापस लौट जाना चाहिए। वहाँ लौटने के बाद मैंने 1960 तक पायनियरिंग जारी रखी। मेरी बहन और उसके पति ने मुझे बड़े प्यार से अपने घर में रखा लेकिन परिस्थितियाँ बदल गयी थीं। जोन के लिए हालात मुश्किल होते जा रहे थे। वह अपने पति और जवान बेटी की देखभाल कर रही थी और जिन 17 सालों तक मैं घर पर नहीं था, उस दौरान उसने हमारे पिता और मौसी मिली की बड़े प्यार से देखभाल की। वे दोनों अब काफी बूढ़े हो चुके थे और उनकी तबियत भी ठीक नहीं रहती थी। अब यह बात साफ ज़ाहिर होने लगी कि मुझे अपनी मौसी मिली के त्याग के उदाहरण पर चलने की ज़रूरत है। इसलिए मैं अपने पिता और मौसी की मौत होने तक अपनी बहन के यहाँ रह गया।
इंग्लैंड में ही बस जाना मेरे लिए बड़ा आसान होता लेकिन थोड़े आराम के बाद मुझे अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास हुआ कि मुझे अपने काम पर लौट जाना चाहिए। आखिर, यहोवा के संगठन ने मेरी ट्रेनिंग के लिए इतना पैसा जो खर्च किया था! इसलिए सन् 1972 में मैं खुद खर्च उठाकर साइप्रस गया और फिर से पायनियरिंग शुरू की।
नेथन एच. नॉर अगले साल होनेवाले अधिवेशन की तैयारी करने के लिए वहाँ आए। जब उन्होंने देखा कि मैं लौट आया हूँ तो उन्होंने मुझे उस पूरे द्वीप का सर्किट ओवरसियर नियुक्त करने की सिफारिश भेजी और इस खास सेवा में मैंने चार साल बिताए। लेकिन यह एक चुनौती भरा काम था क्योंकि मुझे ज़्यादातर समय यूनानी भाषा बोलनी पड़ती।
परेशानियों का दौर
मैं काराकूमी गाँव में रहता था, जो साइप्रस के उत्तरी समुद्रतट पर कायरीन्या के बस पूर्व में था। मेरे साथ उसी घर में पॉल ऑन्ड्राऊ भी रहता था। यह भाई साइप्रसवासी था और यूनानी भाषा बोलनेवाला था। साइप्रस का शाखा दफ्तर कायरीन्या पर्वत के दक्षिण की ओर, निकोसिया में था। सन् 1974, जुलाई की शुरूआत में मैं निकोसिया में ही था जब राष्ट्रपति माकारियोस का तख्ता पलटने के प्रयास में उसके घर पर हमला हुआ। मैंने देखा कि उसका महल कैसे आग में धूँ-धूँ करके जलने लगा। जब हालात ऐसे हो गए कि हम सफर कर सकते थे तो मैं तुरंत कायरीन्या पहुँच गया क्योंकि वहाँ पर हम सर्किट सम्मेलन की तैयारियों कर रहे थे। दो दिन बाद मैंने बंदरगाह पर पहले बम-विस्फोट का धमाका सुना और देखा कि आसमान हेली-कॉप्टरों से भरा था जो तुर्की के हमलावर सैनिकों को ला रहे थे।
ब्रिटेन का एक नागरिक होने के नाते मुझे तुर्की सैनिक, निकोसिया की बाहरी सीमा पर ले गए। वहाँ संयुक्त राष्ट्र के अधिकारी ने मुझसे पूछताछ की और उन्होंने शाखा दफ्तर से संपर्क किया। फिर मुझे बहुत ही खतरनाक रास्ता तय करना पड़ा जहाँ बिजली और टेलीफोन के तार उलझे पड़े थे। और मुझे दो सरहदों के बीच के रास्ते से गुज़रकर दूसरी ओर निकोसिया जाना पड़ा जहाँ उजड़े हुए घर थे। इतना सब होने पर भी मैं खुश था कि परमेश्वर यहोवा से बात करने के का ज़रिया नहीं टूटा! मेरी प्रार्थनाओं ने मुझे ज़िंदगी के उस दिल दहला देनेवाले हादसे से गुज़रने की ताकत दी।
मैं अपना सब सामान खो बैठा था, लेकिन मैं शाखा दफ्तर में खुद को सुरक्षित महसूस कर सका। मगर यह सुरक्षा ज़्यादा दिनों तक नहीं रही। कुछ ही दिनों के अंदर हमलावर सैनिकों ने साइप्रस द्वीप के उत्तरी भाग का एक तिहाई हिस्सा अपने कब्जे में कर लिया। हमें बेथेल छोड़कर लीमासोल जाना पड़ा। वहाँ पर मुझे एक समिति के साथ काम करने में बड़ी खुशी हुई। यह समिति उन 300 भाइयों की मदद करने के लिए बनायी गयी थी, जिन पर इस खलबली का बुरा असर हुआ था और उनमें से कई बेघर हो गए थे।
काम में और भी बदलाव
जनवरी 1981 में शासी निकाय ने मुझे यूनान जाकर एथेन्स के बेथेल परिवार के साथ काम करने को कहा। लेकिन साल के खत्म होने तक मैं साइप्रस लौट आया और मुझे ब्राँच कमिटी कोऑर्डिनेटर नियुक्त किया गया। वहाँ साइप्रसवासी भाई आन्द्रेआस कॉन्डॉयॉरजीस और उनकी पत्नी मारो भी थे जिन्हें लंदन से भेजा गया था। वे मेरे लिए “शान्ति का कारण” बने।—कुलुस्सियों 4:11.
सन् 1984 में भाई थियोडोर जारज़, ज़ोन विज़िट के लिए आए। उनके दौरे के आखिर में शासी निकाय से मुझे एक खत मिला जिसमें सिर्फ इतना लिखा था: “हम चाहते हैं कि जब भाई जारज़ साइप्रस में अपना ज़ोन विज़िट खत्म कर लें, तो आप उनके साथ यूनान जाएँ।” कोई वजह नहीं बतायी गयी थी लेकिन जब हम यूनान पहुँचे तो शासी निकाय का एक और खत ब्राँच कमिटी को पढ़कर सुनाया गया जिसमें लिखा था कि मुझे उस देश का ब्राँच कोऑर्डिनेटर नियुक्त किया गया है।
उस समय यूनान में साक्षी धर्मत्याग का सामना कर रहे थे। हम पर गैर-कानूनी रूप से धर्म-परिवर्तन करने के झूठे आरोप भी लगाए गए। रोज़ाना यहोवा के लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा था और अदालत में पेश किया जा रहा था। ऐसे भाई-बहनों को जानना मेरे लिए कितने गर्व की बात थी, जिन्होंने परीक्षाओं के समय भी अपनी खराई नहीं तोड़ी! उनमें से कुछ भाई-बहनों के मामलों की सुनवायी बाद में मानव अधिकारों की यूरोपीय अदालत में हुई और उनके इतने बढ़िया नतीजे निकले कि उनकी वजह से यूनान में प्रचार काम पर बड़ा अच्छा असर पड़ा।c
यूनान में सेवा करते वक्त मुझे एथेन्स, थिस्सलुनीका और रोड्स और क्रीत द्वीपों के यादगार अधिवेशनों में हाज़िर होने का मौका मिला। उन चार सालों में मुझे बहुत खुशी और अच्छे नतीजे मिले। लेकिन सन् 1988 में एक और बदलाव आया और वो था साइप्रस को मेरी वापसी।
साइप्रस और फिर यूनान को वापसी
जब मैं साइप्रस में नहीं था तो भाइयों ने वहाँ निकोसिया से कुछ किलोमीटर दूर नीसू में एक नया शाखा दफ्तर बनाया और यहोवा के साक्षियों के ब्रुकलिन मुख्यालय के भाई कैरी बार्बर ने समर्पण भाषण दिया। इस द्वीप में अब हालात सुधर गए थे और मैं यहाँ लौटकर खुश था मगर बहुत जल्द कुछ और बदलाव आनेवाले थे।
शासी निकाय ने यूनान में उत्तरी एथेन्स से कुछ किलोमीटर की दूरी पर एक नया बेथेल घर बनाने की योजनाओं को मंज़ूरी दी। मैं अँग्रेज़ी और यूनानी भाषा भी बोल सकता था, इसलिए मुझे 1990 में इस नयी इमारत के काम के लिए बुलाया गया ताकि मैं अलग-अलग देशों से आए सेवकों के परिवार के लिए अनुवादक का काम करूँ। मैं उन खुशी के लम्हों को आज भी याद करता हूँ कि गर्मियों में सुबह छः बजे निर्माण की जगह जाकर कैसे मैं उन सैकड़ों यूनानी भाई-बहनों का स्वागत करता था जो निर्माण करनेवाले सेवकों के परिवार की मदद करने के लिए आते थे! उनकी खुशी और जोश की यादें हमेशा मेरे दिल में कायम रहेंगी।
यूनानी ऑर्थोडॉक्स पादरियों और उनके समर्थकों ने हमारे काम की जगह पर घुसने की कोशिश की और खलबली मचानी चाही। लेकिन यहोवा ने हमारी प्रार्थनाएँ सुनीं और हमें सुरक्षित रखा। मैं निर्माण योजना में तब तक रहा जब तक कि अप्रैल 13, 1991 को नए बेथेल घर का समर्पण नहीं हो गया।
अपनी प्यारी बहन को मदद देना
अगले साल छुट्टियों पर मैं इंग्लैंड गया और अपनी बहन और उसके पति के साथ ठहरा। लेकिन दुःख की बात है कि जब मैं वहाँ था तो मेरे बहनोई को दो बार दिल का दौरा पड़ा और उनकी मौत हो गयी। जोन ने मेरे मिशनरी काम के दौरान मुझे बहुत सहारा दिया। ऐसा शायद ही कोई सप्ताह जाता जब मुझे उसकी तरफ से कोई उत्साह बढ़ानेवाला खत न मिलता हो। एक मिशनरी के लिए ऐसा संपर्क बने रहना सचमुच आशीष है! अब वह विधवा हो गयी थी और उसकी सेहत भी खराब होती जा रही थी इसलिए उसे मदद की ज़रूरत थी। ऐसे में मुझे क्या करना चाहिए था?
जोन की बेटी, थेल्मा और उसका पति पहले से ही अपनी कलीसिया की एक वफादार विधवा की देखभाल कर रहे थे जो रिश्ते में भी हमारी बहन लगती थी और वह बहुत बीमार थी। इसलिए बहुत प्रार्थनाओं के बाद मैंने फैसला किया कि मुझे अपनी बहन जोन की देखभाल करने के लिए उसके पास रह जाना चाहिए। मेरे लिए अपने आपको उस माहौल में ढालना आसान नहीं था। मगर मैं खुश हूँ कि मुझे योविल की दो कलीसियाओं में से पैन मिल कलीसिया में प्राचीन के तौर पर सेवा करने की आशीष मिली है।
वे भाई जिनके साथ मैं विदेश में सेवा करता था, मुझसे टेलीफोन और खतों के ज़रिए लगातार संपर्क रखते हैं जिसके लिए मैं बहुत शुक्रगुज़ार हूँ। अगर मैं कभी यूनान लौटने की इच्छा ज़ाहिर करूँ, तो मुझे यकीन है कि मेरे भाई फौरन मुझे यात्रा का टिकिट भेज देंगे। लेकिन अब मैं 80 साल का हो चुका हूँ और न तो मैं ठीक से देख पाता हूँ, न ही मेरा स्वास्थ्य पहले की तरह अच्छा है। कभी-कभी मुझे बहुत खीज आती है कि मैं पहले की तरह काम नहीं कर पा रहा हूँ। लेकिन मेरी सालों की बेथेल सेवा ने ऐसी कई आदतें बढ़ाने में मेरी मदद की जो आज मेरे लिए बहुत फायदेमंद साबित हो रही हैं। उदाहरण के लिए, मैं हर रोज़ नाश्ते से पहले दैनिक पाठ पढ़ता हूँ। और मैंने दूसरों के साथ अच्छी तरह पेश आना और उन्हें प्यार करना भी सीखा है जो कि मिशनरी सेवा को सफल बनाने का राज़ है।
जब मैं यहोवा की स्तुति में बिताए करीब 60 बढ़िया सालों को याद करता हूँ तो मैं समझता हूँ कि पूरे समय की सेवा ही सबसे बड़ी सुरक्षा है और यही सबसे बेहतरीन शिक्षा देती है। मैं पूरे दिल से, यहोवा से कहे दाऊद के इन शब्दों के साथ हाँ-में-हाँ मिला सकता हूँ: “तू मेरा ऊंचा गढ़ है, और संकट के समय मेरा शरणस्थान ठहरा है।”—भजन 59:16.
[फुटनोट]
a जॉन विन की जीवन कहानी, “मेरा हृदय आभार से उमड़ता है,” सितंबर 1, 1997 की प्रहरीदुर्ग के पेज 25-8 में दी गयी है।
b पहले यह कन्सोलेशन के नाम से जानी जाती थी।
c दिसंबर 1, 1998, पेज 20-21 और सितंबर 1, 1993 पेज 27-31 (अँग्रेज़ी) की प्रहरीदुर्ग और जनवरी 8, 1998, पेज 21-2 (अँग्रेज़ी) और अप्रैल 8, 1997 की सजग होइए! के पेज 11-12 देखिए।
[पेज 24 पर नक्शे]
(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)
यूनान
एथेन्स
साइप्रस
निकोसिया
कायरीन्या
फामागुस्ता
लीमासोल
[पेज 21 पर तसवीर]
सन् 1915 में, मेरी माँ
[पेज 22 पर तसवीर]
सन् 1946 में ब्रुकलिन बेथेल की छत पर, मैं (बाँयी ओर से चौथा) और गिलियड की आठवीं क्लास के दूसरे भाइयों के साथ
[पेज 23 पर तसवीर]
मौसी मिली के साथ, पहली बार इंग्लैंड लौटने पर