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  • ‘वे जहाज पर चढ़कर कुप्रुस को चले’

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  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2004
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    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1992
प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2004
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‘वे जहाज पर चढ़कर कुप्रुस को चले’

इन शब्दों से शुरू होती है मसीही मिशनरी पौलुस, बरनबास और यूहन्‍ना मरकुस के कुप्रुस के दौरे की दास्तान। वे सा.यु. 47 में कुप्रुस गए और उन्हें वहाँ कैसे-कैसे तजुरबे हुए यह प्रेरितों की किताब में दर्ज़ है। (प्रेरितों 13:4) आज की तरह उस ज़माने में भी, साइप्रस या कुप्रुस द्वीप पूर्वी भूमध्य सागर में बहुत ही अहम जगह पर था।

रोमी इस द्वीप पर कब्ज़ा करना चाहते थे और सा.यु.पू. 58 में यह द्वीप उनके अधीन आ गया। रोमी शासन से पहले, कुप्रुस का इतिहास बड़ा ही रोमांचकारी रहा था। यह द्वीप, फीनीके के लोगों, यूनानियों, अश्‍शूरियों, फारसियों और मिस्रियों के कब्ज़े में रह चुका था। फिर मध्य युग के दौरान धर्म-युद्ध लड़नेवालों, फ्रांक्स जाति और वेनिस के लोगों ने और उसके बाद तुर्कियों ने इस पर कब्ज़ा किया। सन्‌ 1914 में यह द्वीप अँग्रेज़ों की हुकूमत के अधीन आ गया और आखिरकार 1960 में इसे आज़ादी मिली।

आज साइप्रस द्वीप पर कमाई का खास ज़रिया पर्यटन है, मगर पौलुस के दिनों में इस द्वीप पर प्राकृतिक साधनों की भरमार थी। रोमियों ने इन साधनों का फायदा उठाकर रोम के खज़ाने भरे। इस द्वीप के इतिहास में बहुत पहले, ताँबा खोज निकाला गया और अनुमान लगाया जाता है कि रोम की हुकूमत के खत्म होने तक, इस द्वीप से 2,50,000 टन ताँबा निकाला गया था। ताँबे को गलाने और शुद्ध करने की प्रक्रिया में ईंधन के लिए लकड़ी की ज़रूरत थी, इसलिए घने जंगलों के ज़्यादातर हिस्से को काटा और जलाया गया। पौलुस के आने तक उस द्वीप के ज़्यादातर जंगल खत्म हो चुके थे।

रोमियों की हुकूमत के अधीन कुप्रुस

इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका के मुताबिक, जूलियस सीज़र और उसके बाद मार्क एन्टनी ने कुप्रुस द्वीप मिस्र को दिया। लेकिन, औगूस्तुस की हुकूमत के दौरान कुप्रुस फिर से रोम के अधीन आ गया। और जैसा प्रेरितों की किताब के लेखक लूका ने सही-सही लिखा, कुप्रुस के प्रांत पर रोमी सूबेदार का अधिकार था जो सीधे रोम को जवाबदेह था। जब पौलुस ने कुप्रुस में प्रचार किया तब वहाँ का सूबेदार सिरगियुस पौलुस था।—प्रेरितों 13:7.

पैक्स रोमाना, यानी सारी दुनिया में रोम ने जो शांति कायम की थी, उसकी वजह से कुप्रुस की खानों और दूसरे उद्योगों में बढ़ोतरी हुई। इस वजह से व्यापार में भी तेज़ी आयी। कुप्रुस द्वीप पर रोम की फौज की मौजूदगी से और द्वीप की रक्षा करनेवाली देवी अफ्रोडाइट की पूजा के लिए आनेवाले तीर्थयात्रियों की वजह से भी इस द्वीप के लोगों की कमाई होती थी। इस वजह से नयी-नयी सड़कें, बंदरगाह और आलीशान सरकारी इमारतें भी बनीं। यूनानी को सरकारी भाषा कायम रखा गया। रोम के सम्राट के साथ-साथ अफ्रोडाइट, अपोलो और ज़ूस देवताओं की भी पूजा की जाती थी। कुप्रुस के लोग खुशहाली का मज़ा लूट रहे थे और उनका सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन बड़ा दिलचस्प था।

इसी माहौल में पौलुस ने पूरे कुप्रुस की यात्रा की और लोगों को मसीह के बारे में सिखाया। लेकिन, पौलुस के कुप्रुस आने से पहले ही मसीहियत वहाँ पहुँच चुकी थी। प्रेरितों की किताब हमें बताती है कि मसीही शहीद, स्तिफनुस की मौत के बाद शुरू के कुछ मसीही भागकर कुप्रुस आ गए। (प्रेरितों 11:19) पौलुस का साथी, बरनबास कुप्रुस का रहनेवाला था और वह द्वीप के चप्पे-चप्पे से वाकिफ था। बेशक, पौलुस को प्रचार के लिए जगह-जगह जाने में बरनबास ने बहुत मदद की होगी।—प्रेरितों 4:36; 13:2.

पौलुस की यात्राओं पर एक नज़र

कुप्रुस में पौलुस की यात्राओं की हर घटना की सही-सही तसवीर खींचना बहुत मुश्‍किल है। लेकिन, रोम की हुकूमत के दौरान सड़कों की बढ़िया व्यवस्था के बारे में पुरातत्वज्ञानियों को काफी जानकारी हासिल हुई है। इस द्वीप की धरती की बनावट की वजह से, आज के महामार्ग भी ज़्यादातर उन्हीं रास्तों से गुज़रते हैं जिनसे पुराने ज़माने की सड़कें गुज़रती थीं और जिन पर पौलुस और बरनबास ने मिशनरी यात्रा की थी।

पौलुस, बरनबास और यूहन्‍ना मरकुस, सिलूकिया से जहाज़ लेकर सलमीस बंदरगाह तक आए। वे सलमीस पर क्यों उतरे जबकि कुप्रुस द्वीप का खास बंदरगाह और राजधानी पाफुस नगर था? एक वजह तो यह थी कि सलमीस, कुप्रुस के पूर्वी तट पर था और महाद्वीप के सिलूकिया से सिर्फ 200 किलोमीटर दूर था। हालाँकि रोम की हुकूमत के दौरान सलमीस की जगह पाफुस नगर को कुप्रुस की राजधानी बनाया गया, फिर भी इस द्वीप की संस्कृति, शिक्षा और व्यापार की खास जगह सलमीस ही थी। सलमीस में यहूदियों की बहुत बड़ी आबादी थी और इन मिशनरियों ने ‘परमेश्‍वर का वचन यहूदियों के आराधनालयों में सुनाया।’—प्रेरितों 13:5.

आज, सलमीस के सिर्फ खंडहर ही बाकी रह गए हैं। मगर पुरातत्वज्ञानियों ने जो खंडहर खोज निकाले हैं, वे इस नगर की बीती शान और धन-दौलत की कहानी बयान करते हैं। पुरातत्वज्ञानियों ने इस द्वीप पर रोमी अगोरा यानी उस ज़माने का बाज़ार-हाट ढूँढ़ निकाला है, जहाँ लोग धर्म और राजनीति से जुड़े कामों के लिए इकट्ठा होते थे। मालूम होता है कि इतना बड़ा अगोरा, भूमध्य सागर के इलाके में आज तक और कहीं नहीं मिला है। इसके खंडहर, औगूस्तुस कैसर के ज़माने के हैं और इनमें बड़ी बारीक डिज़ाइन के पत्थरों से जड़े फर्श, व्यायामशालाएँ, हम्मामों की उम्दा व्यवस्था, एक स्टेडियम, आलीशान मकबरे और एक बड़ा थिएटर मिला है जिसमें 15,000 लोगों के बैठने की जगह थी! इस अगोरा के पास ही ज़ूस देवता के एक विशाल मंदिर के खंडहर मौजूद हैं।

मगर ज़ूस देवता इस नगर को भूकंपों की तबाही से नहीं बचा सका। सा.यु.पू. 15 में एक ज़बरदस्त भूकंप ने सलमीस के ज़्यादातर हिस्सों को तहस-नहस कर डाला, मगर बाद में औगूस्तुस ने इस नगर को दोबारा बनवाया। सा.यु. 77 में एक और भूकंप ने सलमीस को खाक में मिला दिया, मगर इसे फिर से बनवाया गया। चौथी सदी में, एक-के-बाद-एक कई भूकंपों ने सलमीस पर कहर ढाया और इसके बाद वह फिर कभी पहले जैसी शानो-शौकत हासिल नहीं कर पाया। मध्य युग तक, इसके बंदरगाह पर कीचड़ जमा होने से इसका इस्तेमाल बंद कर दिया गया।

सलमीस के लोगों ने पौलुस का प्रचार सुनकर क्या किया यह हमें नहीं बताया गया। मगर पौलुस को सलमीस के अलावा दूसरे नगरों के यहूदी समुदायों में भी प्रचार करना था। सलमीस से निकलने पर, मिशनरियों के आगे तीन खास रास्ते थे: एक था उत्तरी तट जिसमें उन्हें किरीन्या पर्वत पार करने थे; दूसरा पश्‍चिम की तरफ मॆसेऑर्या का मैदान पार करके द्वीप के खास हिस्से से गुज़रना था; और तीसरा दक्षिणी तट के रास्ते से जाना था।

परंपरा के मुताबिक कहा जाता है कि पौलुस ने तीसरा रास्ता चुना। यह रास्ता उन खेतों से निकलता है जिनकी खासियत है उपजाऊ लाल मिट्टी। यह रास्ता, 50 किलोमीटर दक्षिण-पश्‍चिम में लारनाका शहर के पास से गुज़रता है और फिर मुड़कर उत्तर की तरफ द्वीप के अंदरूनी हिस्से में चला जाता है।

“सारे टापू में होते हुए”

यह महामार्ग जल्द ही पौलुस और उसके साथियों को प्राचीन नगर लीड्रा पहुँचाता। इसी जगह पर आज कुप्रुस द्वीप की राजधानी निकोसिया है। इस जगह पर प्राचीन नगर के होने का कोई भी सबूत नहीं बचा है। मगर, वेनिस के लोगों ने 16वीं सदी में जो शहरपनाह खड़ी की थी, वह आज भी निकोसिया शहर के खास भाग को घेरे हुए है। निकोसिया के इसी भाग में एक पतली सड़क का नाम है लीड्रा स्ट्रीट, जहाँ दिन भर लोगों का आना-जाना लगा रहता है। पौलुस लीड्रा आया था या नहीं, यह हम नहीं जानते। मगर बाइबल सिर्फ इतना कहती है कि पौलुस और उसके साथी “सारे टापू में होते हुए” गए। (तिरछे टाइप हमारे; प्रेरितों 13:6) विक्लिफ के मुताबिक बाइबल देशों के ऐतिहासिक इलाके (अँग्रेज़ी) किताब कहती है कि “शायद इन शब्दों का यह मतलब था कि कुप्रुस के ज़्यादातर यहूदी समुदायों में” पौलुस और उसके साथी “घूम चुके थे।”

बेशक, पौलुस कुप्रुस में ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को प्रचार करना चाहता था। इसलिए, वह दक्षिणी रास्ते से गया होगा जो लीड्रा से आमथस और कूरियन शहरों से निकलता है। इन दोनों बड़े शहरों की आबादी फल-फूल रही थी, और अलग-अलग संस्कृति और भाषा के लोग यहाँ आकर बस गए थे।

कूरियन नगर, सागर से निकलनेवाली खड़ी चट्टानों के बीच बहुत ऊँचाई पर बसा हुआ था। यूनानी और रोमी सभ्यता के इस आलीशान नगर पर भी उसी भूकंप ने कहर ढाया जिसने सा.यु. 77 में सलमीस को तबाह किया। इस जगह पर अब अपोलो देवता को समर्पित एक मंदिर के खंडहर हैं जो सा.यु. 100 के ज़माने के हैं। यहाँ के स्टेडियम में 6,000 दर्शक बैठ सकते थे। कूरियन में लोगों की कोठियों के फर्श भी बड़े सुंदर पत्थरों से जड़े होते थे। इससे पता चलता है कि कूरियन के बहुत-से लोग ऐशो-आराम और विलास की ज़िंदगी जीते थे।

पाफुस की ओर

कूरियन से पश्‍चिम की तरफ जाते वक्‍त आपको रास्ते में बढ़िया नज़ारे देखने को मिलेंगे और यह रास्ता दाख की बारियों के इलाके से निकलता हुआ, धीरे-धीरे ऊँचा उठता जाता है और फिर अचानक सर्पिला रास्ता नीचे चट्टानों तक चला जाता है जहाँ सागर किनारे रेत में बड़े-बड़े कंचों के आकार के चिकने पत्थर मिलते हैं। यूनानी कथाओं में कहा गया है कि यही वह जगह थी जहाँ अफ्रोडाइट देवी को सागर ने जन्म दिया था।

कुप्रुस में लोग, यूनानी देवी-देवताओं में सबसे ज़्यादा अफ्रोडाइट को मानते थे और सा.यु. दूसरी सदी तक इसके भक्‍त बड़े जोश से इसकी पूजा करते थे। अफ्रोडाइट की पूजा की खास जगह पाफुस थी। उसके सम्मान में हर साल यहाँ बहार के मौसम में एक बड़ा त्योहार मनाया जाता था। इस त्योहार के लिए, तीर्थयात्री एशिया माइनर, मिस्र, यूनान और दूर-दूर के देशों जैसे कि फारस से भी आते थे। जब कुप्रुस, मिस्र के अधीन हुआ और टॉल्मियों का राजवंश इस पर हुकूमत करने लगा, तब कुप्रुस के लोगों की भक्‍ति में फिरौन की पूजा भी शामिल हो गयी।

पाफुस, रोम के अधीन कुप्रुस की राजधानी था और रोमी सूबेदार भी इसी शहर में रहता था। इस नगर को ताँबे के सिक्के बनाने का अधिकार मिला हुआ था। यह नगर भी सा.यु.पू. 15 के भूकंप में तबाह हो गया और जिस तरह औगूस्तुस ने सलमीस को दोबारा बनाने के लिए पैसा दिया था, उसी तरह पाफुस के लिए भी दिया। खुदाई से पता चलता है कि पहली सदी में पाफुस के अमीर लोगों की ज़िंदगी बड़े ऐशो-आराम और शान से गुज़रती थी। इस नगर के चौड़े रास्ते, सजी-सजायी कोठियाँ, संगीत सिखानेवाले स्कूल, व्यायामशालाएँ और एक स्टेडियम इस बात की गवाही देते हैं।

यही वह पाफुस था जिसमें पौलुस, बरनबास और यूहन्‍ना मरकुस आए और यहीं टोन्हा करनेवाले इलीमास के कड़े विरोध के बावजूद सूबेदार सिरगयुस पौलुस ने, जो एक “बुद्धिमान पुरुष” था, “परमेश्‍वर का वचन सुनना चाहा।” वह सूबेदार, “प्रभु के उपदेश से चकित” हुआ।—प्रेरितों 13:6-12.

कुप्रुस में अपना प्रचार काम पूरा करने में कामयाबी पाकर, मिशनरियों ने एशिया माइनर में अपना काम जारी रखा। पौलुस की उस पहली मिशनरी यात्रा का, सच्ची मसीहियत को फैलाने में बहुत बड़ा हाथ था। इस यात्रा को, यूनानी पूर्व में संत पौलुस की यात्राएँ (अँग्रेज़ी) किताब में “मसीही प्रचार की और . . . पौलुस के मिशनरी जीवन की असली शुरूआत” कहा गया है। यह किताब आगे कहती है: “कुप्रुस ऐसी जगह पर है जहाँ सूरिया, एशिया माइनर और यूनान जानेवाले समुद्री रास्ते मिलते हैं, इसलिए यह लाज़िमी है कि मिशनरी यात्रा शुरू करने के लिए कुप्रुस को ही चुना गया।” मगर वह तो सिर्फ पहला कदम था। आज, बीस सदियाँ गुज़रने के बाद भी, कुप्रुस या साइप्रस में मिशनरी काम जारी है और अब सही मायनों में कहा जा सकता है कि यहोवा के राज्य की खुशखबरी वाकई “पृथ्वी की छोर तक” पहुँच गयी है।—प्रेरितों 1:8.

[पेज 20 पर नक्शा]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

कुप्रुस

निकोसिया (लीड्रा)

पाफुस

कूरियन

आमथस

लारनाका

सलमीस

किरीन्या पर्वत

मॆसेऑर्या का मैदान

ट्रूडस पर्वत

[पेज 21 पर तसवीर]

पवित्र आत्मा से भरकर, पाफुस में पौलुस ने टोन्हा करनेवाले इलीमास को अंधा कर दिया

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
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