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  • “[तुम] दाम देकर मोल लिये गए हो”

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  • “[तुम] दाम देकर मोल लिये गए हो”
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2005
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2005
w05 3/15 पेज 15-20

“[तुम] दाम देकर मोल लिये गए हो”

“[तुम] दाम देकर मोल लिये गए हो, इसलिये . . . परमेश्‍वर की महिमा करो।”—1 कुरिन्थियों 6:20.

1, 2. (क) मूसा की कानून-व्यवस्था के मुताबिक, इस्राएली गुलामों के साथ किस तरह पेश आना चाहिए था? (ख) अपने मालिक से प्रेम करनेवाला गुलाम क्या चुनाव कर सकता था?

“गुलामों का इस्तेमाल प्राचीनकाल में बहुत आम था और लोग भी इसे बुरा नहीं मानते थे।” ये शब्द हॉलमन का तस्वीरोंवाला बाइबल शब्दकोश (अँग्रेज़ी) से हैं। आगे यह कोश कहता है: “मिस्र, यूनान और रोम की अर्थव्यवस्था की बुनियाद गुलाम थे। पहली मसीही सदी के दौरान, इटली की आबादी में से एक-तिहाई और बाकी देशों की आबादी का पाँचवाँ हिस्सा गुलामों से बना था।”

2 प्राचीन इस्राएल में भी गुलाम हुआ करते थे, मगर मूसा की कानून-व्यवस्था में इस बात का ध्यान रखा गया था कि इब्री गुलामों के साथ ज़्यादती न की जाए। मसलन, कानून-व्यवस्था की माँग थी कि एक इस्राएली से छः साल से ज़्यादा गुलामी नहीं करवायी जा सकती। सातवें साल में, वह ‘स्वतन्त्र मनुष्य की तरह बिना दाम चुकाए चला जा’ सकता था। (NHT) गुलामों के साथ किस तरह पेश आना चाहिए, इस बारे में मूसा की कानून-व्यवस्था के नियम इतने निष्पक्ष और करुणा से भरपूर थे कि व्यवस्था में यह गुंजाइश भी छोड़ी गयी थी: “यदि वह दास दृढ़ता से कहे, कि मैं अपने स्वामी, और अपनी पत्नी, और बालकों से प्रेम रखता हूं; इसलिये मैं स्वतन्त्र होकर न चला जाऊंगा; तो उसका स्वामी उसको परमेश्‍वर के पास ले चले; फिर उसको द्वार के किवाड़ वा बाजू के पास ले जाकर उसके कान में सुतारी से छेद करे; तब वह सदा उसकी सेवा करता रहे।”—निर्गमन 21:2-6; लैव्यव्यवस्था 25:42, 43; व्यवस्थाविवरण 15:12-18.

3. (क) पहली सदी के मसीहियों ने किस किस्म की गुलामी कबूल की? (ख) क्या बात हमें परमेश्‍वर की सेवा करने को उभारती है?

3 अपनी मरज़ी से किसी की गुलामी करने का यह इंतज़ाम, दरअसल सच्चे मसीहियों की गुलामी की एक झलक थी। मिसाल के लिए, पौलुस, याकूब, पतरस और यहूदा, इन सारे बाइबल के लेखकों ने खुद को परमेश्‍वर और मसीह के दास कहा। (तीतुस 1:1; याकूब 1:1; 2 पतरस 1:1; यहूदा 1) पौलुस ने थिस्सलुनीके के मसीहियों को याद दिलाया कि वे ‘मूरतों से परमेश्‍वर की ओर फिरें ताकि जीवते और सच्चे परमेश्‍वर की सेवा’ या गुलामी करें। (1 थिस्सलुनीकियों 1:9) किस बात ने इन मसीहियों को उभारा कि वे खुशी-खुशी परमेश्‍वर की गुलामी करें? एक बार फिर उस इस्राएली दास के बारे में सोचिए। उसे किस बात ने उभारा होगा कि वह अपनी आज़ादी छोड़ने को तैयार था? क्या अपने मालिक के लिए प्यार ने नहीं? मसीही भी खासकर इसलिए परमेश्‍वर के गुलाम बनते हैं क्योंकि वे उससे प्यार करते हैं। जब हम सच्चे और जीवते परमेश्‍वर को जान लेते हैं और उससे प्रेम करने लगते हैं, तो हम “अपने पूरे मन और अपने सारे प्राण से” उसकी सेवा करने के लिए उकसाए जाते हैं। (व्यवस्थाविवरण 10:12, 13) मगर, परमेश्‍वर और मसीह के गुलाम बनने में क्या शामिल है? हमारी रोज़मर्रा ज़िंदगी पर इसका कैसा असर होता है?

“सब कुछ परमेश्‍वर की महिमा के लिये करो”

4. हम परमेश्‍वर और मसीह के दास कैसे बनते हैं?

4 एक गुलाम की परिभाषा यूँ दी गयी है, “ऐसा इंसान जो किसी और शख्स या लोगों की कानूनी मिल्कियत है और उनका हर हुक्म उसे मानना होता है।” जब हम अपनी ज़िंदगी यहोवा को समर्पित करके बपतिस्मा लेते हैं, तब हम कानूनन उसकी मिल्कियत हो जाते हैं। प्रेरित पौलुस बताता है: ‘तुम अपने नहीं हो क्योंकि दाम देकर मोल लिये गए हो।’ (1 कुरिन्थियों 6:19, 20) हमारे लिए जो दाम दिया गया है वह बेशक यीशु मसीह का छुड़ौती बलिदान है, क्योंकि इसी के आधार पर परमेश्‍वर हमें अपने सेवक कबूल करता है, फिर चाहे हम अभिषिक्‍त मसीही हों या उनके साथी जिन्हें इस धरती पर जीने की आशा है। (इफिसियों 1:7; 2:13; प्रकाशितवाक्य 5:9) इस तरह, हम अपने बपतिस्मे के समय से ‘यहोवा ही के हैं।’ (रोमियों 14:8) और क्योंकि हमें यीशु मसीह के बेशकीमती लहू से मोल लिया गया है, तो हम उसके भी गुलाम बन जाते हैं और उसकी आज्ञाएँ मानना हमारा फर्ज़ है।—1 पतरस 1:18, 19.

5. यहोवा के गुलाम होने के नाते, हमारा सबसे बड़ा फर्ज़ क्या है और हम इसे कैसे पूरा कर सकते हैं?

5 गुलाम का फर्ज़ होता है कि अपने मालिक का हर हुक्म माने। मगर हम खुशी-खुशी परमेश्‍वर की गुलामी करते हैं क्योंकि हम अपने मालिक से प्यार करते हैं। पहला यूहन्‍ना 5:3 कहता है: “परमेश्‍वर का प्रेम यह है, कि हम उस की आज्ञाओं को मानें; और उस की आज्ञाएं कठिन नहीं।” परमेश्‍वर की आज्ञाएँ मानकर दरअसल हम अपने प्यार का और अधीनता का सबूत देते हैं। यह हमारे हर काम से ज़ाहिर होता है। पौलुस ने कहा: “तुम चाहे खाओ, चाहे पीओ, चाहे जो कुछ करो, सब कुछ परमेश्‍वर की महिमा के लिये करो।” (1 कुरिन्थियों 10:31) रोज़मर्रा ज़िंदगी की छोटी-छोटी बातों में भी हम दिखाना चाहते हैं कि हम ‘यहोवा की खिदमत करते’ हैं।—रोमियों 12:11, किताब-ए-मुकद्दस।

6. परमेश्‍वर के गुलाम होने का हमारी ज़िंदगी के फैसलों पर कैसे फर्क पड़ता है? एक मिसाल देकर समझाइए।

6 मसलन, ज़िंदगी के फैसले करते वक्‍त हम पहले यह जानना चाहेंगे कि स्वर्ग में विराजमान हमारे मालिक यहोवा की मरज़ी क्या है। (मलाकी 1:6) मुश्‍किल फैसलों से हमारी परख हो सकती है कि हम परमेश्‍वर के आज्ञाकारी रहते हैं या नहीं। ऐसे वक्‍त पर हम क्या करेंगे? अपने दिल की बात सुनेंगे जो “छल-कपट से भरा” और “सब से अधिक भ्रष्ट” है, या परमेश्‍वर की सलाह मानेंगे? (यिर्मयाह 17:9, नयी हिन्दी बाइबिल) मेलिसा एक अविवाहित मसीही है जिसके बपतिस्मे के कुछ ही समय बाद एक नौजवान उसमें दिलचस्पी लेने लगा। ऐसा लगता था कि वह लड़का बहुत ही अच्छा इंसान है और वह यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल का अध्ययन भी कर रहा था। मगर एक प्राचीन ने मेलिसा को सलाह दी कि यहोवा ने “केवल प्रभु में” विवाह करने की जो आज्ञा दी है, उसे मानना समझदारी होगी। (1 कुरिन्थियों 7:39; 2 कुरिन्थियों 6:14) मेलिसा कबूल करती है: “इस सलाह को मानना मेरे लिए आसान नहीं था। मगर मैंने फैसला किया कि जब मैं यहोवा की मरज़ी पूरी करने के लिए उसको अपना समर्पण कर चुकी हूँ, तो उसने साफ शब्दों में जो हिदायत दी है उसे मैं ज़रूर मानूँगी।” बाद में जो हुआ उसे याद करते हुए, वह कहती है: “मैं बहुत खुश हूँ कि मैंने वह सलाह मानी। उस लड़के ने कुछ ही समय बाद अध्ययन करना बंद कर दिया। अगर मैंने उससे नाता जोड़ा होता, तो आज मैं एक अविश्‍वासी के साथ शादी के बंधन में बंधी होती।”

7, 8. (क) हमें इंसानों को खुश करने के बारे में हद-से-ज़्यादा चिंता क्यों नहीं करनी चाहिए? (ख) मिसाल देकर समझाइए कि मनुष्य के भय पर कैसे काबू पाया जा सकता है।

7 परमेश्‍वर के गुलाम होने की वजह से, हम इंसानों की गुलामी नहीं करेंगे। (1 कुरिन्थियों 7:23) यह सच है कि हममें से कोई भी ज़माने से जुदा नहीं होना चाहता, मगर हमें याद रखना होगा कि मसीहियों के स्तर इस संसार के स्तरों से बिलकुल अलग हैं। पौलुस ने पूछा: “क्या मैं मनुष्यों को प्रसन्‍न करना चाहता हूं?” उसका जवाब था: “यदि मैं अब तक मनुष्यों को ही प्रसन्‍न करता रहता, तो मसीह का दास न होता।” (गलतियों 1:9, 10) हम साथियों के दबाव में आकर इंसान को खुश करनेवाले बनना गवारा नहीं कर सकते। तो जब हम पर दुनिया के साँचे में ढलने का दबाव आता है तब हम क्या कर सकते हैं?

8 स्पेन की एक जवान मसीही एलेना की मिसाल पर गौर कीजिए। उसकी क्लास के कई साथी रक्‍तदान किया करते थे। वे जानते थे कि एलेना यहोवा की एक साक्षी है और इसलिए न तो वह दूसरों के लिए खून दान करती है, ना ही अपने शरीर में खून चढ़वाना कबूल करती है। एक बार एलेना को पूरी क्लास के सामने अपने इस विश्‍वास के बारे में समझाने का मौका मिला, तो उसने कुछ जानकारी पेश करने की इच्छा ज़ाहिर की। एलेना बताती है: “सच पूछिए तो यह सब करने में मुझे बहुत घबराहट महसूस हो रही थी। मगर मैंने अच्छी तैयारी की और इसका जो नतीजा निकला वह देखकर मैं हैरान हो गयी। मेरे साथ पढ़नेवाले कई विद्यार्थी मेरी इज़्ज़त करने लगे और टीचर ने कहा कि मैं जो काम कर रही हूँ उसकी वे कदर करते हैं। सबसे बढ़कर, मुझे इस बात का संतोष मिला कि मैंने यहोवा के नाम की पैरवी की और बाइबल पर आधारित अपने विश्‍वास की वजह मैं साफ-साफ समझा पायी।” (उत्पत्ति 9:3, 4; प्रेरितों 15:28, 29) जी हाँ, परमेश्‍वर और मसीह के गुलाम होने के नाते, हम दूसरों से अलग दिखायी देते हैं। मगर, हम ज़्यादातर लोगों से इज़्ज़त पा सकते हैं बशर्ते हम जो मानते हैं उसकी पूरे आदर के साथ पैरवी करने के लिए तैयार हों।—1 पतरस 3:15.

9. प्रेरित यूहन्‍ना को दर्शन देनेवाले स्वर्गदूत से हम क्या सीखते हैं?

9 यह याद रखना कि हम परमेश्‍वर के गुलाम हैं, हमें नम्र रहने में भी मदद देता है। एक मौके पर, प्रेरित यूहन्‍ना को स्वर्गीय यरूशलेम का शानदार दर्शन दिया गया। यूहन्‍ना पर इस दर्शन का इतना ज़बरदस्त असर हुआ कि वह परमेश्‍वर की तरफ से बोलनेवाले स्वर्गदूत के पाँवों पर गिरकर उसे दण्डवत्‌ करने लगा। उस स्वर्गदूत ने कहा: “देख, ऐसा मत कर; क्योंकि मैं तेरा और तेरे भाई भविष्यद्वक्‍ताओं और इस पुस्तक की बातों के माननेवालों का संगी दास हूं; परमेश्‍वर ही को दण्डवत कर।” (प्रकाशितवाक्य 22:8, 9) परमेश्‍वर के सभी दासों के लिए उस स्वर्गदूत ने क्या ही बढ़िया मिसाल कायम की! कुछ मसीही, कलीसिया में ज़िम्मेदारी के खास पदों पर हो सकते हैं। फिर भी, यीशु ने कहा था: “जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे, वह तुम्हारा सेवक बने। और जो तुम में प्रधान होना चाहे, वह तुम्हारा दास बने।” (मत्ती 20:26, 27) यीशु के चेले होने के नाते, हम सभी गुलाम हैं।

“जो हमें करना चाहिए था वही किया है”

10. बाइबल से ऐसी मिसालें बताइए जो दिखाती हैं कि परमेश्‍वर के वफादार सेवकों के लिए उसकी मरज़ी पूरी करना हमेशा आसान नहीं होता था।

10 असिद्ध इंसान के लिए परमेश्‍वर की मरज़ी के मुताबिक काम करना हमेशा आसान नहीं होता। जब यहोवा ने भविष्यवक्‍ता मूसा से कहा कि जाकर इस्राएलियों को मिस्र की गुलामी से आज़ाद कराए, तब मूसा ने आनाकानी की। (निर्गमन 3:10, 11; 4:1, 10) जब योना को नीनवे के लोगों के खिलाफ दंड का संदेश सुनाने का काम मिला, तब वह “यहोवा के सम्मुख से तर्शीश को भाग जाने के लिये उठा।” (योना 1:2, 3) भविष्यवक्‍ता यिर्मयाह के लिए लिखनेवाले मददगार बारूक ने शिकायत की कि वह थककर पस्त हो चुका है। (यिर्मयाह 45:2, 3) हमें ऐसे वक्‍त पर क्या करना चाहिए जब हमारी इच्छाएँ या हमारी पसंद परमेश्‍वर की मरज़ी के खिलाफ हों? यीशु के एक दृष्टांत से इसका जवाब मिलता है।

11, 12. (क) लूका 17:7-10 में दर्ज़ यीशु का दृष्टांत चंद शब्दों में बयान कीजिए। (ख) यीशु के दृष्टांत से हम कौन-सा सबक सीखते हैं?

11 यीशु ने एक ऐसे दास के बारे में बताया जो मैदानों में सारा दिन अपने मालिक की भेड़ों की देखभाल करता रहा था। जब 12 घंटे की मेहनत-मज़दूरी के बाद वह थका-माँदा घर लौटा, तो उसके मालिक ने उसे अपने पास बिठाकर लज़ीज़ खाना खाने के लिए नहीं कहा। इसके बजाय, मालिक ने कहा: “मेरा खाना तैयार कर: और जब तक मैं खाऊं-पीऊं तब तक कमर बान्धकर मेरी सेवा कर; इस के बाद तू भी खा पी लेना।” वह दास अपने मालिक की सेवा करने के बाद ही अपनी भूख-प्यास मिटा सकता था। यीशु ने यह कहकर दृष्टांत खत्म किया: “इसी रीति से तुम भी, जब उन सब कामों को कर चुको जिस की आज्ञा तुम्हें दी गई थी, तो कहो, हम निकम्मे दास हैं; कि जो हमें करना चाहिए था वही किया है।”—लूका 17:7-10.

12 यीशु ने यह दृष्टांत यह दिखाने के लिए नहीं दिया कि हम यहोवा की सेवा में जो करते हैं उसकी यहोवा कदर नहीं करता। बाइबल इस बारे में साफ कहती है: “परमेश्‍वर अन्यायी नहीं, कि तुम्हारे काम, और उस प्रेम को भूल जाए, जो तुम ने उसके नाम के लिये . . . दिखाया।” (इब्रानियों 6:10) इसके बजाय, यीशु की इस कहानी का सबक यह है कि एक दास या गुलाम अपनी खुशी के लिए या सिर्फ अपने सुख-चैन के लिए काम नहीं कर सकता। जब हमने परमेश्‍वर को अपना जीवन समर्पित किया और उसके गुलाम बनने का चुनाव किया, तब हमने कबूल किया कि हम अपनी मरज़ी के आगे उसकी मरज़ी रखेंगे। हमें सबसे पहली जगह परमेश्‍वर की मरज़ी को देनी चाहिए, न कि अपनी मरज़ी को।

13, 14. (क) किन हालात में शायद हमें अपने असिद्ध शरीर की कमज़ोरियों पर काबू करना पड़े? (ख) हमें क्यों परमेश्‍वर की इच्छा को पहला स्थान देना चाहिए?

13 परमेश्‍वर के वचन और “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” की किताबों-पत्रिकाओं का बिना नागा अध्ययन करने के लिए हमें शायद बहुत मेहनत करनी पड़े। (मत्ती 24:45) यह खासकर हमारे लिए और भी ज़्यादा मुश्‍किल हो सकता है अगर हमारे अंदर शुरू से कमी रही है कि हम लगकर पढ़ाई नहीं कर सकते या फिर हम कोई ऐसी किताब पढ़ रहे हैं जिसमें “परमेश्‍वर की गूढ़ बातें” समझायी गयी हैं। (1 कुरिन्थियों 2:10) लेकिन, क्या हमें निजी अध्ययन के लिए समय नहीं निकालना चाहिए? हमें शायद खुद से सख्ती करनी पड़े ताकि हम शांति से बैठकर कुछ वक्‍त बाइबल साहित्य का अध्ययन करने में बिताएँ। अगर हम ऐसा नहीं करेंगे, तो हम उस “ठोस भोजन” (NHT) को खाने की इच्छा कैसे पैदा कर पाएँगे, जो “सयानों के लिए [होता] है”?—इब्रानियों 5:14.

14 तब क्या जब हम दिन भर काम करने के बाद थके-हारे घर लौटते हैं? हमें शायद मसीही सभाओं में हाज़िर होने के लिए खुद को घसीटना पड़े। या फिर अजनबियों को प्रचार करना हमें पसंद न हो। खुद पौलुस ने भी कबूल किया, कभी-कभी ऐसा भी होता है कि हम सुसमाचार का ऐलान ‘अपनी इच्छा से नहीं करते।’ (1 कुरिन्थियों 9:17) पर फिर भी हम ये सारे काम इसलिए करते हैं क्योंकि स्वर्ग में बैठा हमारा मालिक, यहोवा जिससे हम बेहद प्यार करते हैं, हमें यह सब करने के लिए कहता है। और क्या हमेशा ऐसा नहीं होता कि जब भी हम अध्ययन करने, सभाओं में हाज़िर होने और प्रचार करने की जी-जान से कोशिश करते हैं तो हमें संतोष और ताज़गी मिलती है?—भजन 1:1, 2; 122:1; 145:10-13.

“पीछे” मत देखिए

15. यीशु ने परमेश्‍वर के अधीन रहने में कैसे एक मिसाल रखी?

15 यीशु मसीह ने जिस उम्दा तरीके से दिखाया कि वह अपने स्वर्गीय पिता के अधीन है, वैसी मिसाल आज तक किसी ने कायम नहीं की। यीशु ने अपने चेलों से कहा: “मैं अपनी इच्छा नहीं, बरन अपने भेजनेवाले की इच्छा पूरी करने के लिये स्वर्ग से उतरा हूं।” (यूहन्‍ना 6:38) गतसमनी के बाग में दुःख से तड़पते हुए उसने प्रार्थना की: “हे मेरे पिता, यदि हो सके, तो यह कटोरा मुझ से टल जाए; तौभी जैसा मैं चाहता हूं वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो।”—मत्ती 26:39.

16, 17. (क) हमें उन चीज़ों को क्या समझना चाहिए, जिन्हें हम पीछे छोड़ आए हैं? (ख) बताइए कि पौलुस का दुनियावी शोहरत को “कूड़ा” समझना कैसे सही था।

16 यीशु मसीह चाहता है कि हम परमेश्‍वर के गुलाम होने के अपने फैसले पर वफादारी से चलें। उसने कहा: “जो कोई अपना हाथ हल पर रखकर पीछे देखता है, वह परमेश्‍वर के राज्य के योग्य नहीं।” (लूका 9:62) परमेश्‍वर की सेवा करते वक्‍त, यह हरगिज़ सही नहीं होगा कि हम उन बातों पर मन लगाए रहें जिन्हें हम पीछे छोड़ आए हैं। इसके बजाय, परमेश्‍वर के गुलाम बनने पर हमने जो पाया है उसकी हमें सच्चे दिल से कदर करनी चाहिए। पौलुस ने फिलिप्पियों को लिखा: “मैं अपने प्रभु मसीह यीशु की पहिचान की उत्तमता के कारण सब बातों को हानि समझता हूं: जिस के कारण मैं ने सब वस्तुओं की हानि उठाई, और उन्हें कूड़ा समझता हूं, जिस से मैं मसीह को प्राप्त करूं।”—फिलिप्पियों 3:8.

17 ज़रा सोचिए कि पौलुस ने किन चीज़ों को कूड़ा समझकर छोड़ दिया ताकि वह परमेश्‍वर का गुलाम बनकर आध्यात्मिक आशीषें पा सके। उसने दुनिया का ऐशो-आराम तो छोड़ा ही, साथ ही भविष्य में यहूदी धर्म का अगुवा बनने का सुनहरा मौका भी ठुकरा दिया। अगर पौलुस यहूदी धर्म में ही रहता तो उसे शायद वही शोहरत और ओहदा हासिल होता जो पौलुस के गुरू, गमलीएल के बेटे सिमिअन को हासिल हुआ था। (प्रेरितों 22:3; गलतियों 1:14) सिमिअन आगे जाकर फरीसियों का नेता बना और सा.यु. 66-70 में रोम के खिलाफ यहूदियों की बगावत में उसने एक खास भूमिका अदा की—हालाँकि उसे यकीन नहीं था कि यह बगावत कामयाब होगी भी या नहीं। इस झगड़े में, वह शायद यहूदी कट्टरपंथियों के हाथों या फिर रोम की सेना के हाथों मारा गया।

18. एक मिसाल देकर बताइए कि कैसे आध्यात्मिक मायने में बढ़िया काम करने से आशीषें मिलती हैं।

18 बहुत-से यहोवा के साक्षी पौलुस की मिसाल पर चले हैं। जीन कहती है: “स्कूल छोड़ने के कुछ ही साल बाद, मुझे लंदन के एक मशहूर वकील की सेक्रेट्री की नौकरी मिल गयी। मैं अपने काम से खुश थी और पैसा भी अच्छा कमा रही थी। मगर मेरा मन कहता था कि मैं यहोवा की सेवा में ज़्यादा कर सकती हूँ। आखिरकार, मैंने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और पायनियर सेवा शुरू की। लगभग 20 साल पहले उठाए गए इस कदम के लिए आज भी मैं कितनी एहसानमंद हूँ! पूरे समय की सेवा ने मेरी ज़िंदगी को सफल बना दिया है। दुनिया की बड़ी-से-बड़ी हस्ती की सेक्रेट्री बनने पर भी मैं यह खुशी हासिल नहीं कर सकती थी। यहोवा का वचन एक इंसान की ज़िंदगी कैसे बदल सकता है, यह देखने का सबसे बड़ा संतोष और किसी काम से नहीं मिल सकता। इसमें अपना छोटा-सा भाग अदा करना सचमुच एक लाजवाब एहसास है। हम यहोवा को जो देते हैं वह उन आशीषों के मुकाबले कुछ भी नहीं जो हम बदले में उससे पाते हैं।”

19. हमारा पक्का फैसला क्या होना चाहिए, और क्यों?

19 वक्‍त के साथ-साथ हमारे हालात भी बदल सकते हैं। मगर, परमेश्‍वर को हमारा समर्पण नहीं बदलता। हम फिर भी यहोवा के गुलाम हैं और उसने यह फैसला हम पर छोड़ा है कि हम अपना वक्‍त, ताकत, हुनर और दौलत वगैरह का किस तरह इस्तेमाल करते हैं। इसलिए, इस मामले में हम जो भी फैसला करेंगे वह दिखाएगा कि हम यहोवा से कितना प्यार करते हैं। इससे यह भी ज़ाहिर होगा कि हम किस हद तक त्याग करने के लिए तैयार हैं। (मत्ती 6:33) हमारे हालात चाहे जैसे भी हों, क्या हमारा यह पक्का इरादा नहीं होना चाहिए कि हम यहोवा को अपनी तरफ से अच्छे-से-अच्छा दें? पौलुस ने लिखा: “यदि मन की तैयारी हो तो दान उसके अनुसार ग्रहण भी होता है जो उसके पास है न कि उसके अनुसार जो उसके पास नहीं।”—2 कुरिन्थियों 8:12.

“तुम को फल मिला”

20, 21. (क) परमेश्‍वर के गुलाम कैसा फल काटते हैं? (ख) यहोवा, जी-जान से सेवा करनेवाले अपने गुलामों को कैसे आशीष देता है?

20 परमेश्‍वर की गुलामी करने से हम पर कोई तकलीफ नहीं आती। इसके उलटे, यह गुलामी हमें एक ऐसी गुलामी से बचाती है जिसमें हमारा नुकसान होता है और जो हमारी खुशी छीन लेती है। पौलुस ने लिखा: “अब पाप से स्वतंत्र होकर और परमेश्‍वर के दास बनकर तुम को फल मिला जिस से पवित्रता प्राप्त होती है, और उसका अन्त अनन्त जीवन है।” (रोमियों 6:22) परमेश्‍वर के गुलाम बनने से हम पवित्रता का फल काटते हैं, यानी हम पवित्र या नैतिक रूप से शुद्ध चालचलन के फायदे पाते हैं। इसके अलावा, भविष्य में हमें हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी।

21 यहोवा बड़ा ही दरियादिल मालिक है। जब हम जी-जान लगाकर उसकी सेवा करते हैं, तो वह “आकाश के झरोखे” खोलकर हम पर “अपरम्पार आशीष की वर्षा करता” है। (मलाकी 3:10) ज़रा सोचिए, यहोवा के गुलाम बनकर हमेशा-हमेशा तक सेवा करते रहना कितना अच्छा होगा और हमें इससे कितनी खुशी मिलेगी!

क्या आपको याद है?

• हम परमेश्‍वर की गुलामी क्यों करते हैं?

• हम कैसे दिखाते हैं कि हम खुद को परमेश्‍वर की मरज़ी के अधीन करते हैं?

• हमें क्यों यहोवा की मरज़ी को अपनी मरज़ी से आगे रखने के लिए तैयार होना चाहिए?

• क्यों हमें “पीछे” नहीं देखना चाहिए?

[पेज 16, 17 पर तसवीर]

इस्राएल में अपनी मरज़ी से किसी की गुलामी करने का इंतज़ाम, मसीहियों की सेवा की एक झलक थी

[पेज 17 पर तसवीर]

जब हम बपतिस्मा लेते हैं, तब हम परमेश्‍वर के गुलाम बन जाते हैं

[पेज 17 पर तसवीरें]

मसीही, परमेश्‍वर की मरज़ी को सबसे आगे रखते हैं

[पेज 18 पर तसवीर]

मूसा अपनी ज़िम्मेदारी को कबूल करने में आनाकानी कर रहा था

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