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  • यहोवा के घर के लिए जोश दिखाइए
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2009
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  • परमेश्‍वर का घर—प्राचीन समय में और आज
  • तन-मन से सेवा करने से आशीषें मिलती हैं
  • अपने सभा-घरों की अच्छी देखभाल करना
  • परमेश्‍वर की हिदायतें मानिए
  • निर्देशनों को फौरन मानिए
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2009
w09 6/15 पेज 7-11

यहोवा के घर के लिए जोश दिखाइए

“तेरे घर के लिए जोश की आग मुझे भस्म कर देगी।”—यूह. 2:17.

1, 2. यीशु ने ईसवी सन्‌ 30 में मंदिर में क्या किया? उसने ऐसा क्यों किया?

ज़रा इस घटना को अपने मन की आँखों से देखने की कोशिश कीजिए। ईसवी सन्‌ 30 का समय है। यीशु को धरती पर अपनी सेवा शुरू किए छः महीने हो चुके हैं। यरूशलेम में फसह का त्योहार मनाया जा रहा है। इस मौके पर यीशु, यहोवा के मंदिर जाता है। वहाँ वह क्या देखता है? अन्यजातियों के आँगन में ‘मवेशियों और भेड़ों और कबूतरों की बिक्री करनेवाले और पैसे बदलनेवाले सौदागर अपनी-अपनी गद्दियों पर बैठे’ व्यापार कर रहे हैं। यीशु का खून खौल उठता है और वह तुरंत रस्सियों का एक कोड़ा बनाकर सारे जानवरों को बाहर खदेड़ देता है। जानवरों के पीछे-पीछे उनके बेचनेवाले भी मंदिर से चले जाते हैं। यीशु पैसे बदलनेवाले सौदागरों के सिक्के बिखरा देता है और उनकी मेज़ें उलट देता है। वह कबूतर बेचनेवालों को अपना सबकुछ लेकर वहाँ से दफा हो जाने के लिए कहता है।—यूह. 2:13-16.

2 यीशु ने जो किया उससे पता चलता है कि उसे मंदिर की कितनी फिक्र थी। वह सौदागरों को हुक्म देता है: “मेरे पिता के घर को बाज़ार मत बनाओ!” इस घटना से यीशु के चेलों को सदियों पहले लिखे भजनहार दाविद के ये शब्द याद आए: “तेरे घर के लिए जोश की आग मुझे भस्म कर देगी।”—यूह. 2:16, 17; भज. 69:9.

3. (क) जोश का मतलब बताइए। (ख) हमें खुद से क्या सवाल करना चाहिए?

3 जी हाँ, यीशु में परमेश्‍वर के घर के लिए गज़ब का जोश था और इसी बात ने उसे कदम उठाने के लिए उकसाया। जोश का मतलब है “किसी काम को करने के लिए उत्सुक रहना और उसे करने में गहरी दिलचस्पी दिखाना।” आज इस 21वीं सदी में 70 लाख से ज़्यादा मसीही, परमेश्‍वर के घर के लिए जोश दिखाते हैं। लेकिन हममें से हरेक को खुद से पूछना चाहिए, ‘मैं यहोवा के घर के लिए अपना जोश कैसे बढ़ा सकता हूँ?’ इस सवाल का जवाब पाने के लिए आइए पहले देखें कि आज परमेश्‍वर का घर क्या है? उसके बाद हम बाइबल से उन वफादार पुरुषों की मिसाल देखेंगे, जिन्होंने परमेश्‍वर के घर के लिए जोश दिखाया था। उनकी मिसाल “हमारी हिदायत के लिए” दर्ज़ की गयी है और उन पर गौर करने से हम और भी जोश दिखा पाएँगे।—रोमि. 15:4.

परमेश्‍वर का घर—प्राचीन समय में और आज

4. सुलैमान ने जो मंदिर बनाया, उसका क्या मकसद था?

4 प्राचीन इसराएल में परमेश्‍वर का घर, यरूशलेम का मंदिर था। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि यहोवा वहाँ सचमुच में रहता था। यहोवा ने कहा: “आकाश मेरा सिंहासन और पृथ्वी मेरे चरणों की चौकी है; तुम मेरे लिये कैसा भवन बनाओगे, और मेरे विश्राम का कौन सा स्थान होगा?” (यशा. 66:1) फिर भी सुलैमान की हुकूमत के दौरान यरूशलेम का मंदिर इस मकसद से बनाया गया था कि लोग वहाँ इकट्ठे होकर यहोवा की उपासना करें और उससे प्रार्थना करें।—1 राजा 8:27-30.

5. सुलैमान का मंदिर आज किस इंतज़ाम को दर्शाता है?

5 आज यहोवा का घर ईंट-पत्थरों से बनी कोई इमारत नहीं, जो यरूशलेम में या कहीं और मौजूद हो। यह एक लाक्षणिक मंदिर यानी वह इंतज़ाम है, जिसमें हम मसीह के फिरौती बलिदान के आधार पर परमेश्‍वर की उपासना करते हैं। धरती पर परमेश्‍वर के सभी वफादार सेवक मिलकर इस लाक्षणिक मंदिर में उपासना करते हैं।—यशा. 60:4, 8, 13; प्रेषि. 17:24; इब्रा. 8:5; 9:24.

6. यहूदा राज्य के किन राजाओं ने सच्ची उपासना के लिए बेमिसाल जोश दिखाया?

6 ईसा पूर्व 997 में इसराएल देश दो राज्यों में बँट गया था। दक्षिण के यहूदा राज्य में जिन 19 राजाओं ने हुकूमत की उनमें से 4 राजाओं ने सच्ची उपासना के लिए बेमिसाल जोश दिखाया। वे थे आसा, यहोशापात, हिजकिय्याह और योशिय्याह। उनके उदाहरण से हम क्या अहम सबक सीख सकते हैं?

तन-मन से सेवा करने से आशीषें मिलती हैं

7, 8. (क) यहोवा किस तरह की सेवा पर आशीष देता है? (ख) राजा आसा के उदाहरण से हमें क्या चेतावनी मिलती है?

7 राजा आसा की हुकूमत के दौरान यहोवा ने कई भविष्यवक्‍ता भेजे, जो उसके लोगों को वफादारी के रास्ते पर चलने में मदद देते थे। ओदेद का बेटा अजर्याह ऐसा ही एक भविष्यवक्‍ता था। बाइबल बताती है कि अजर्याह ने आसा को सच्ची उपासना में बने रहने का बढ़ावा दिया और आसा ने उसकी सलाह कबूल की। (2 इतिहास 15:1-8 पढ़िए।) आसा के किए सुधारों की वजह से यहूदा की प्रजा साथ ही वे लोग एक होकर सच्ची उपासना करने लगे, जो यरूशलेम में एक बड़े सम्मेलन के लिए इसराएल राज्य से आए थे। उन्होंने मिलकर यह पक्का इरादा किया कि वे वफादारी से यहोवा की उपासना करेंगे। इस बारे में हम पढ़ते हैं: “उन्हों ने जय जयकार के साथ तुरहियां और नरसिंगे बजाते हुए ऊंचे शब्द से यहोवा की शपथ खाई। और यह शपथ खाकर सब यहूदी आनन्दित हुए, क्योंकि उन्हों ने अपने सारे मन से शपथ खाई और बड़ी अभिलाषा से उसको ढ़ूंढ़ा और वह उनको मिला, और यहोवा ने चारों ओर से उन्हें विश्राम दिया।” (2 इति. 15:9-15) अगर हम भी तन-मन से यहोवा की सेवा करें, तो वह हमें ज़रूर आशीषें देगा।—मर. 12:30.

8 मगर अफसोस, आसा ने आगे चलकर यहोवा के भविष्यवक्‍ताओं का कहा नहीं माना। एक मौके पर जब हनानी दर्शी ने उसकी गलती के लिए उसे फटकारा, तो वह क्रोधित हो उठा। (2 इति. 16:7-10) हमारे बारे में क्या? जब यहोवा हमें मसीही प्राचीनों के ज़रिए सलाह या निर्देश देता है, तब हम कैसा रवैया दिखाते हैं? क्या हम बाइबल से दी उनकी सलाह को फौरन मान लेते हैं या मन में नाराज़गी पालते हैं?

9. यहोशापात और यहूदा के लोगों पर कौन-सा खतरा मँडरा रहा था? ऐसे में उन्होंने क्या किया?

9 ईसा पूर्व दसवीं सदी में यहूदा राज्य पर यहोशापात की हुकूमत थी। उसके राज के दौरान अम्मोन, मोआब और सेईर के पहाड़ी देश की सेनाएँ मिलकर यहूदा राज्य पर हमला करनेवाली थीं। यह खबर मिलते ही यहोशापात डर गया लेकिन गौर कीजिए कि उसने क्या किया। वह और उसके आदमी अपनी-अपनी पत्नियों और बच्चों के साथ यहोवा के घर में इकट्ठा होकर प्रार्थना करने लगे। (2 इतिहास 20:3-6 पढ़िए।) मंदिर के समर्पण के वक्‍त सुलैमान के कहे शब्दों को याद करते हुए यहोशापात ने गिड़गिड़ाकर यहोवा से बिनती की: “हे हमारे परमेश्‍वर, क्या तू उनका न्याय न करेगा? यह जो बड़ी भीड़ हम पर चढ़ाई कर रही है, उसके साम्हने हमारा तो बस नहीं चलता और हमें कुछ सूझता नहीं कि क्या करना चाहिये? परन्तु हमारी आंखें तेरी ओर लगी हैं।” (2 इति. 20:12, 13) जब यहोशापात की प्रार्थना खत्म हुई तब यहोवा की पवित्र शक्‍ति ने “मण्डली के बीच” यहजीएल नाम के एक लेवी को ऐसे शब्द कहने के लिए उभारा, जिससे लोगों को दिलासा और हिम्मत मिली।—2 इतिहास 20:14-17 पढ़िए।

10. (क) यहोशापात और यहूदा के लोगों को किसके ज़रिए निर्देशन मिला? (ख) आज हम यहोवा के निर्देशनों के लिए अपनी कदरदानी कैसे दिखा सकते हैं?

10 जी हाँ, उस समय यहोवा ने यहजीएल के ज़रिए यहोशापात और यहूदा के लोगों को निर्देशन दिया। आज वह हमें विश्‍वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाले दास वर्ग के ज़रिए दिलासा और निर्देशन देता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि हमें, ठहराए प्राचीनों को हमेशा सहयोग देना चाहिए और उनकी इज़्ज़त करनी चाहिए। क्योंकि वे हमारी देखभाल करने और ‘विश्‍वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाले दास’ के निर्देशों को लागू करने में कड़ी मेहनत करते हैं।—मत्ती 24:45; 1 थिस्स. 5:12, 13.

11, 12. यहोशापात और यहूदा के लोगों के साथ जो हुआ, उससे हम क्या सीख सकते हैं?

11 जिस तरह यहोशापात और उसके लोग यहोवा से मार्गदर्शन पाने के लिए इकट्ठा हुए, उसी तरह हमें भी नियमित तौर पर अपने भाइयों के साथ मसीही सभाओं में इकट्ठा होना चाहिए। अगर हम खुद को किसी बड़ी मुश्‍किल में पाते हैं और हमें कोई उपाय नहीं सूझता, तब हमें पूरे भरोसे के साथ यहोवा से प्रार्थना करनी चाहिए, ठीक जैसे यहोशापात और यहूदा के लोगों ने की थी। (नीति. 3:5, 6; फिलि. 4:6, 7) यहाँ तक कि जब हम अकेले और अपने भाई-बहनों से दूर होते हैं, तब भी हमारी प्रार्थनाएँ “सारी दुनिया में [हमारे] भाइयों की पूरी बिरादरी” से हमें एक करती हैं।—1 पत. 5:9.

12 यहोशापात और उसके लोगों ने परमेश्‍वर के निर्देशन का पालन किया जो उन्हें यहजीएल के ज़रिए मिला था। इसका क्या नतीजा हुआ? वे अपने दुश्‍मनों से जीत गए और “आनन्द के साथ” यरूशलेम लौटे और “सारंगियां, वीणाएं और तुरहियां बजाते हुए . . . यहोवा के भवन को आए।” (2 इति. 20:27, 28) उनकी तरह हम भी विश्‍वासयोग्य दास के ज़रिए यहोवा से मिलनेवाले निर्देशन को मानते हैं और उसके लोगों के साथ मिलकर उसकी स्तुति करते हैं।

अपने सभा-घरों की अच्छी देखभाल करना

13. हिजकिय्याह ने अपनी हुकूमत की शरूआत में क्या किया?

13 अब ज़रा राजा हिजकिय्याह पर ध्यान दीजिए। उसने अपने राज के पहले महीने में ही यहोवा की उपासना के लिए जोश दिखाया। उसने मंदिर को दोबारा खुलवाया और उसकी मरम्मत करवायी। परमेश्‍वर के घर को शुद्ध करने के लिए उसने याजकों और लेवियों को संगठित किया। उन्होंने 16 दिन में यह काम पूरा कर दिया। (2 इतिहास 29:16-18 पढ़िए।) आज भी हमारे सभा-घरों की मरम्मत और रख-रखाव के लिए ऐसी ही मेहनत की जाती है, जिससे यहोवा की उपासना के लिए उसके लोगों का जोश पता चलता है। आपने ज़रूर ऐसे कई अनुभव सुने होंगे, जिनमें भाई-बहनों का जोश देखकर बाहरवालों पर अच्छा असर हुआ है। जी हाँ, भाई-बहनों की मेहनत से यहोवा की स्तुति होती है।

14, 15. उदाहरण देकर बताइए कि आज किस काम से यहोवा की महिमा हो रही है।

14 उत्तरी इंग्लैंड के एक शहर में जब भाइयों ने अपने राज्य घर की मरम्मत करने की सोची, तो साथवाले घर के मालिक ने विरोध किया। उस आदमी ने भाइयों के साथ जैसा व्यवहार किया, क्या भाइयों ने भी वैसा व्यवहार किया? बिलकुल नहीं। उन्होंने देखा कि राज्य घर और उसके घर के बीच की दीवार खस्ताहाल है। इसलिए उन्होंने बिना उससे पैसे लिए दीवार की मरम्मत करने की पेशकश रखी। भाइयों ने काफी मेहनत की और एक तरह से नयी दीवार ही खड़ी कर दी। यह सब देखकर उस आदमी का रवैया बदल गया। अब वह भाइयों का विरोध करने के बजाय राज्य घर की रखवाली करने में भाइयों की मदद करता है।

15 यहोवा के लोग दुनिया-भर में राज्य घरों, सम्मेलन घरों और बेथेल घरों के निर्माण में हिस्सा लेते हैं। इस काम में पूरे समय के अंतर्राष्ट्रीय सेवकों के साथ कलीसिया के भाई-बहन भी खुशी-खुशी हाथ बँटाते हैं। सैम एक इंजीनियर है, जो इमारतों को हवादार बनाने, उनमें ए.सी. और हीटर लगाने का काम करता है। वह और उसकी पत्नी रूत, यूरोप और अफ्रीका के कई देशों में निर्माण-काम में हाथ बँटा चुके हैं। वे इस काम के लिए जहाँ भी जाते हैं, वहाँ मंडलियों के साथ प्रचार का लुत्फ भी उठाते हैं। सैम बताता है कि उसे अंतर्राष्ट्रीय निर्माण-काम में भाग लेने की प्रेरणा कहाँ से मिली: “मुझे उन लोगों से प्रेरणा मिली जो अलग-अलग देशों के बेथेल घरों में सेवा करते हैं। उनका जोश और उनकी खुशी देखकर मेरे दिल में भी इस तरह की सेवा करने का जोश भर आया।”

परमेश्‍वर की हिदायतें मानिए

16, 17. परमेश्‍वर के लोगों ने किस खास काम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया? और इसका क्या नतीजा निकला?

16 हिजकिय्याह ने मंदिर की मरम्मत करने के अलावा फसह के त्योहार को दोबारा शुरू किया, जिसे यहोवा ने हर साल मनाने की आज्ञा दी थी। (2 इतिहास 30:1, 4, 5 पढ़िए।) हिजकिय्याह और यरूशलेम के निवासियों ने इस त्योहार के लिए पूरे यहूदा राज्य को, यहाँ तक कि उत्तरी राज्य के लोगों को भी बुलाया। इस न्यौते को पहुँचाने के लिए हरकारे यानी तेज़ दौड़नेवाले दूतों को देश-भर में भेजा गया।—2 इति. 30:6-9.

17 हाल के सालों में हमने भी कुछ ऐसे ही अभियान में हिस्सा लिया है। हमने अपने प्रचार के इलाके में परचे बाँटकर लोगों को प्रभु के संध्या भोज में आने का न्यौता दिया, जिसे मनाने की आज्ञा यीशु ने दी थी। (लूका 22:19, 20) न्यौता बाँटने के सिलसिले में हमें सेवा सभा में कई हिदायतें मिलीं, जिससे हम पूरे जोश के साथ इस अभियान में हिस्सा ले पाए। यहोवा ने हमारी मेहनत पर कैसी आशीष दी? पिछले साल करीब 70 लाख साक्षियों ने स्मारक के न्यौते दिए, जिस वजह से कुल मिलाकर 1,77,90,631 लोग स्मारक में आए।

18. सच्ची उपासना के लिए जोश दिखाना क्यों ज़रूरी है?

18 हिजकिय्याह के बारे में कहा गया है: “वह इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा पर भरोसा रखता था, और उसके बाद यहूदा के सब राजाओं में कोई उसके बराबर न हुआ, और न उस से पहिले भी ऐसा कोई हुआ था। और वह यहोवा से लिपटा रहा और उसके पीछे चलना न छोड़ा; और जो आज्ञाएं यहोवा ने मूसा को दी थीं, उनका वह पालन करता रहा।” (2 राजा 18:5, 6) आइए हम भी हिजकिय्याह की मिसाल पर चलें। परमेश्‍वर के घर के लिए जोश दिखाने से हम ‘यहोवा से लिपटे’ रहेंगे और हमेशा की ज़िंदगी की आशा थामे रहेंगे।—व्यव. 30:16.

निर्देशनों को फौरन मानिए

19. स्मारक के समय में कैसा जोश दिखाया जाता है?

19 जब योशिय्याह यहूदा का राजा था, तब उसने भी फसह का त्योहार मनाने के लिए बड़ी-बड़ी तैयारियाँ की। (2 राजा 23:21-23; 2 इति. 35:1-19) हम भी ज़िला अधिवेशनों, सर्किट सम्मेलनों, खास सम्मेलन दिनों और स्मारक में हाज़िर होने के लिए अच्छी तैयारी करते हैं। कुछ देशों में तो भाई अपनी जान पर खेलकर मसीह की मौत का स्मारक मनाने के लिए इकट्ठा होते हैं। जोशीले प्राचीन स्मारक में हाज़िर होने के लिए बुज़ुर्ग और शारीरिक रूप से कमज़ोर भाई-बहनों की खास मदद करते हैं। वे ध्यान रखते हैं कि इस मौके पर मंडली का कोई भी भाई-बहन छूट न जाए।

20. (क) राजा योशिय्याह की हुकूमत के दौरान क्या हुआ? जब योशिय्याह को पुस्तक की बातें पढ़कर सुनायी गयीं, तो उस पर क्या असर हुआ और उसने क्या किया? (ख) योशिय्याह की मिसाल से हमें क्या अहम सीख मिलती है?

20 राजा योशिय्याह ने अपनी हुकूमत में मंदिर की मरम्मत का काम शुरू किया। इस दौरान महायाजक हिल्किय्याह को मंदिर में “मूसा के द्वारा दी हुई यहोवा की व्यवस्था की पुस्तक मिली।” उसने वह पुस्तक राजा के मंत्री शापान को दी और शापान ने उसमें लिखी बातें योशिय्याह को पढ़कर सुनायीं। (2 इतिहास 34:14-18 पढ़िए।) इसका क्या असर हुआ? दुख के मारे राजा ने अपने कपड़े फाड़े और कुछ आदमियों को यहोवा से पूछने के लिए भेजा कि अब उनका क्या होगा। वे लोग नबिया हुल्दा के पास गए जिसने यहोवा का यह पैगाम सुनाया कि वह यहूदा में हो रही झूठी उपासना से क्रोधित है और वह उस पूरे देश पर विपत्तियाँ लाने जा रहा है। लेकिन यहोवा ने मूर्तिपूजा मिटाने के योशिय्याह के अच्छे कामों को नज़रअंदाज़ नहीं किया। इस वजह से उसने वादा किया कि वह योशिय्याह को बख्श देगा। (2 इति. 34:19-28) इस घटना से हम क्या सीख सकते हैं? बेशक हमें भी योशिय्याह की तरह यहोवा के निर्देशन को फौरन मानना चाहिए। और इस बात पर गंभीरता से सोचना चाहिए कि अगर हम धीरे-धीरे सच्ची उपासना से दूर चले जाएँ और यहोवा के वफादार न रहें, तो उसके भयानक अंजाम हो सकते हैं। इसके अलावा, हम इस बात का भरोसा रख सकते हैं कि सच्ची उपासना के लिए हम जो जोश दिखाते हैं, उसे यहोवा नज़रअंदाज़ नहीं करता, ठीक जैसे उसने योशिय्याह के जोश को नज़रअंदाज़ नहीं किया था।

21, 22. (क) हम किस तरह यहोवा के घर के लिए अपना जोश दिखा सकते हैं? (ख) अगले लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?

21 यहूदा के इन चार राजाओं—आसा, यहोशापात, हिजकिय्याह और योशिय्याह ने परमेश्‍वर के घर और उसकी उपासना के लिए जोश दिखाकर हमारे लिए एक अच्छा उदाहरण रखा है। अगर हमारे अंदर उनके जैसा जोश होगा तो हम यहोवा पर भरोसा रखेंगे और उसकी उपासना में खुद को लगा देंगे। हम परमेश्‍वर के निर्देशनों को मानेंगे और मंडली और प्राचीनों के ज़रिए मिलनेवाले प्यार और ताड़ना को कबूल करेंगे। क्योंकि ऐसा करना न सिर्फ बुद्धिमानी होगी बल्कि इससे हमें सच्ची खुशी भी मिलेगी।

22 अगला लेख बताएगा कि हम प्रचार में जोश कैसे दिखा सकते हैं। साथ ही, जवानों को यहोवा की सेवा में जोश दिखाने का बढ़ावा मिलेगा। हम यह भी देखेंगे कि हम शैतान की एक धूर्त चाल से कैसे बच सकते हैं। यहोवा की इन चितौनियों को मानने में जोश दिखाकर हम उसके बेटे, यीशु के नक्शेकदम पर चल रहे होंगे जो जोश दिखाने में एक उम्दा मिसाल है। उसके बारे में कहा गया था: “तेरे घर की धुन ने मुझे खा लिया।”—भज. 69:9, नयी हिन्दी बाइबिल; भज. 119:111,129; 1 पत. 2:21.

क्या आपको याद है?

• यहोवा किस तरह की सेवा पर आशीष देता है? और क्यों?

• हम यहोवा पर अपना भरोसा कैसे दिखा सकते हैं?

• जोश कैसे हमें परमेश्‍वर की हिदायतें मानने के लिए उकसाएगा?

[पेज 9 पर तसवीरें]

आसा, यहोशापात, हिजकिय्याह और योशिय्याह ने यहोवा के घर के लिए जोश कैसे दिखाया?

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