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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2010
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पाठकों के प्रश्‍न

यहेजकेल 18:20 कहता है कि ‘पुत्र पिता के अधर्म का भार नहीं उठाएगा।’ तो फिर निर्गमन 20:5 में क्यों लिखा है कि यहोवा “पितरों” की गलतियों का ‘दण्ड बेटों को देता है’? क्या ये दोनों आयतें एक-दूसरे को काटती हैं?

जी नहीं। यहेजकेल 18:20 में यह बताया गया है कि हर इंसान अपने काम के लिए खुद जवाबदेह है। जबकि निर्गमन 20:5 में यह सच्चाई बतायी गयी है कि जब एक इंसान गलती करता है, तो इसका बुरा असर उसके बच्चों या वंशजों पर भी पड़ सकता है।

यहेजकेल के पूरे अध्याय 18 में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि हर इंसान अपने कामों के लिए खुद जवाबदेह है। जैसे, आयत 4 कहती है: “जो प्राणी पाप करे वही मर जाएगा।” लेकिन ‘जो धर्मी है और न्याय और धर्म के काम करता है,’ उसके बारे में बताया गया है कि “वह निश्‍चय जीवित रहेगा।” (यहे. 18:5, 9) इसलिए जब कोई सयाना हो जाता है और इस काबिल हो जाता है कि परमेश्‍वर उसे उसके कामों के लिए ज़िम्मेदार ठहरा सके, तो उसका ‘न्याय उसके चालचलन के अनुसार किया जाता है।’—यहे. 18:30.

इस सच्चाई को समझने में कोरह नाम के एक लेवी की मिसाल हमारी मदद करती है। कोरह को परमेश्‍वर की सेवा में खास ज़िम्मेदारियाँ दी गयी थीं। मगर वीराने में इसराएलियों के सफर के दौरान, अपनी ज़िम्मेदारियों से संतुष्ट रहने के बजाय उसने याजकपद हथियाने की कोशिश की। उसने दूसरे बागियों को साथ लेकर मूसा और हारून के खिलाफ बगावत की, जो यहोवा के प्रतिनिधि थे। कोरह और उसके साथियों को याजक बनने का हक नहीं था, इसलिए यहोवा ने उन्हें इस गुस्ताखी की सज़ा दी। उसने उन सभी बागियों को मार डाला। (गिन. 16:8-11, 31-33) मगर कोरह के बेटों ने इस बगावत में उसका साथ नहीं दिया था। इसलिए परमेश्‍वर ने कोरह के पाप की सज़ा उसके बेटों को नहीं दी। वे यहोवा के वफादार बने रहे, इसलिए उनकी जान बख्श दी गयी।—गिन. 26:10, 11.

लेकिन निर्गमन 20:5 में दी चेतावनी के बारे में क्या, जिसका ज़िक्र दस आज्ञाओं के साथ किया गया है? इसे समझने के लिए भी आइए देखें कि यह चेतावनी किन हालात में दी गयी थी। यहोवा ने इसराएल राष्ट्र के साथ कानून का करार किया था। इस करार की शर्तें सुनने के बाद इसराएलियों ने सरेआम ऐलान किया: “जो कुछ यहोवा ने कहा है वह सब हम नित करेंगे।” (निर्ग. 19:5-8) इस करार की बदौलत, पूरा राष्ट्र यहोवा के साथ एक खास रिश्‍ते में बंध गया। इसलिए निर्गमन 20:5 में लिखे शब्द खास तौर पर इस पूरे राष्ट्र के लिए थे।

जब इसराएल राष्ट्र वफादारी से यहोवा की आज्ञाएँ मानता रहा, तो इससे पूरे राष्ट्र को फायदा हुआ और उन्हें कई आशीषें मिलीं। (लैव्य. 26:3-8) लेकिन जब इस राष्ट्र ने यहोवा से मुँह मोड़ लिया और झूठे देवताओं को पूजने लगा, तो यहोवा ने उस पर से अपनी आशीष हटा ली और उसकी हिफाज़त करना छोड़ दिया। नतीजा, पूरे इसराएल पर मुसीबतें आ गयीं। (न्यायि. 2:11-18) यह सच है कि जब पूरा देश मूर्तिपूजा में डूबा हुआ था, तब भी कुछ इसराएलियों ने परमेश्‍वर की तरफ अपनी खराई बनाए रखी और वे उसकी आज्ञाओं को मानते रहे। (1 राजा 19:14, 18) हालाँकि ऐसे वफादार लोगों को पूरे राष्ट्र पर आए अंजाम की वजह से कुछ तकलीफें सहनी पड़ीं, फिर भी यहोवा ने उनकी वफादारी के बदले उन्हें आशीष दी।

फिर एक वक्‍त ऐसा आया जब इसराएली ढीठ होकर यहोवा के सिद्धांतों के खिलाफ ऐसे घोर पाप करने लगे कि दूसरे राष्ट्रों में यहोवा का नाम मज़ाक बनकर रह गया। तब यहोवा ने इसराएलियों को सज़ा देने के लिए उन्हें बैबिलोन देश के हवाले कर दिया। उन्हें बंदी बनाकर बैबिलोन ले जाया गया। यह एक ऐसी सज़ा थी जो यहोवा ने अपने लोगों से बने पूरे राष्ट्र को दी थी और इस राष्ट्र के हरेक इंसान को इसके अंजाम भुगतने पड़े। (यिर्म. 52:3-11, 27, 28) बाइबल दिखाती है कि उन इसराएलियों का पाप इतना गंभीर था कि उसका बुरा असर आनेवाली तीन, चार और शायद उससे भी ज़्यादा पीढ़ियों तक हुआ। इसराएलियों के इन वंशजों के साथ बिलकुल वही हुआ जो निर्गमन 20:5 में बताया गया है।

परमेश्‍वर के वचन में ऐसे कुछ परिवारों के किस्से भी दिए गए हैं जो दिखाते हैं कि कैसे माँ-बाप की गलतियों का बुरा असर पूरे परिवार पर पड़ा। एक मिसाल महायाजक एली की है, जिसके बेटे “लुच्चे” यानी निकम्मे थे और बदचलन थे। एली को चाहिए था कि वह उन्हें याजकपद से हटा दे, मगर उसने ऐसा नहीं किया। (1 शमू. 2:12-16, 22-25) इस तरह एली ने यहोवा से ज़्यादा अपने बेटों का आदर किया। यह यहोवा के खिलाफ पाप था और यहोवा ने उसे इसकी सज़ा दी। परमेश्‍वर ने फैसला सुनाया कि एली के परिवार को महायाजक के पद से हटा दिया जाएगा। और ऐसा उसके परपोते के बेटे, एब्यातार के साथ हुआ जिसे महायाजक के पद से हटा दिया गया था। (1 शमू. 2:29-36; 1 राजा 2:27) निर्गमन 20:5 में दिए सिद्धांत को समझने में मदद देनेवाली एक और मिसाल गेहजी की है। वह एलीशा का सेवक था। मगर जब एलीशा ने अराम देश के सेनापति नामान को चंगा किया, तो गेहजी ने अपने पद का गलत इस्तेमाल कर नामान से चाँदी और कुछ कपड़े लिए। यहोवा ने गेहजी को इस पाप की सज़ा दी। उसने एलीशा के ज़रिए गेहजी को यह फैसला सुनाया: “नामान का कोढ़ तुझे और तेरे वंश को सदा लगा रहेगा।” (2 राजा 5:20-27) इस तरह, गेहजी को दी गयी सज़ा का असर उसके वंशजों पर भी पड़ा।

सिरजनहार और जीवनदाता होने के नाते यहोवा को यह तय करने का पूरा-पूरा हक है कि एक गुनहगार को कैसी सज़ा देना न्याय होगा। ऊपर दिए वाकए दिखाते हैं कि बाप-दादों के पाप का बुरा असर बच्चों और आनेवाली पीढ़ियों पर भी पड़ सकता है। फिर भी, यहोवा “दीन” या पीड़ित लोगों की “दोहाई” पर ध्यान देता है। जो कोई सच्चे दिल से उसे पुकारता है, वह उसकी सुनता है और कुछ हद तक उसे तकलीफ से राहत दिला सकता है।—अय्यू. 34:28.

[पेज 29 पर तसवीरें]

कोरह और दूसरे बागियों को उनके कामों के लिए जवाबदेह ठहराया गया

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