कभी-भी “यहोवा से चिढ़ने” मत लगिए
“मूढ़ता के कारण मनुष्य का मार्ग टेढ़ा होता है, और वह मन ही मन यहोवा से चिढ़ने लगता है।”—नीति. 19:3.
1, 2. इंसान की तकलीफों के लिए हमें यहोवा को कसूरवार क्यों नहीं ठहराना चाहिए? उदाहरण देकर समझाइए।
मान लीजिए कि आप एक शादीशुदा इंसान हैं। आप कई सालों से एक खुशहाल शादीशुदा ज़िंदगी बिता रहे हैं। मगर एक दिन आप घर लौटकर देखते हैं कि आपके घर का सारा सामान तहस-नहस हो चुका है। मेज़, कुर्सियाँ सब टूटी पड़ी हैं, काँच के बर्तन चकना-चूर हो गए हैं, कालीन भी पूरी तरह खराब हो चुका है। आपके सुंदर-से घर में मानो भूचाल आ गया है। क्या यह सब देखकर आप चिल्ला उठेंगे: “यह क्या कर दिया मेरी पत्नी ने”? या क्या आप यह कहेंगे: “किसने किया यह सब?” ज़ाहिर है आप अपनी पत्नी को कसूरवार नहीं ठहराएँगे, क्योंकि आप जानते हैं कि आपकी प्यारी पत्नी कभी ऐसा नहीं कर सकती।
2 आज यह पूरी धरती प्रदूषण, हिंसा और अनैतिक कामों की वजह से बरबाद हो चुकी है। लेकिन बाइबल का अध्ययन करने पर हम यह जान पाएँ हैं कि इन सारी मुसीबतों के लिए यहोवा कसूरवार नहीं है। वह तो चाहता था कि यह धरती एक खूबसूरत फिरदौस बन जाए। (उत्प. 2:8, 15) यहोवा प्यार का परमेश्वर है। (1 यूह. 4:8) बाइबल का अध्ययन करने से हम इस दुनिया की ज़्यादातर परेशानियों की असल वजह जान पाए हैं। इनके लिए कोई और नहीं, “इस दुनिया का राजा” शैतान इब्लीस ही ज़िम्मेदार है।—यूह. 14:30; 2 कुरिं. 4:4.
3. हमारी सोच कैसे बिगड़ सकती है?
3 लेकिन हम अपनी सारी परेशानियों के लिए शैतान पर दोष नहीं मढ़ सकते। क्यों नहीं? क्योंकि हमारी कुछ परेशानियाँ हमारी अपनी गलतियों का नतीजा होती हैं। (व्यवस्थाविवरण 32:4-6 पढ़िए।) भले ही हम इस हकीकत से सहमत हों, लेकिन हमारी असिद्धता हमारी सोच बिगाड़ सकती है, जिसके आगे चलकर खतरनाक अंजाम हो सकते हैं। (नीति. 14:12) किस तरह? किसी मुश्किल के लिए खुद को या शैतान को कसूरवार ठहराने के बजाए, हम यहोवा को दोषी ठहराने लग सकते हैं। यहाँ तक कि हम शायद ‘यहोवा से चिढ़ने लगें।’—नीति. 19:3.
4, 5. एक मसीही कैसे “यहोवा से चिढ़ने” लग सकता है?
4 क्या सच में ऐसा हो सकता है कि हम ‘यहोवा से चिढ़ने लगें’? ऐसा करना तो मानो अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारना होगा। (यशा. 41:11) यहोवा से चिढ़कर हम कुछ हासिल नहीं कर सकते। एक बार एक कवि ने कहा: “परमेश्वर से लड़ने के लिए तुम्हारे हाथ बहुत छोटे हैं।” हो सकता है कि हम अपने शब्दों से न जताएँ कि हम यहोवा से चिढ़ने लगे हैं। लेकिन नीतिवचन 19:3 कहता है कि एक इंसान की मूर्खता के कारण उसका “मार्ग टेढ़ा होता है, और वह मन ही मन यहोवा से चिढ़ने लगता है।” जी हाँ, एक इंसान अपने मन या दिल में परमेश्वर से चिढ़ने लग सकता है। और उसका यह रवैया उसके कामों में दिखायी देने लग सकता है। एक इंसान शायद यहोवा के खिलाफ नाराज़गी पालने लगे। नतीजा, वह शायद मंडली से दूर चला जाए या यहोवा की उपासना से जुड़े इंतज़ामों में पूरी तरह से सहयोग न दे।
5 कौन-सी बातें हमें ‘यहोवा से चिढ़’ दिला सकती हैं? हम इस जाल में फँसने से कैसे बच सकते हैं? यह ज़रूरी है कि हम इन सवालों के जवाब जानें, क्योंकि यहोवा के साथ हमारा अनमोल रिश्ता दाँव पर लगा है।
कौन-सी बातें हमें ‘यहोवा से चिढ़’ दिला सकती हैं?
6, 7. मूसा के ज़माने में इसराएलियों ने यहोवा के खिलाफ कुड़कुड़ाना क्यों शुरू कर दिया?
6 यहोवा के किसी वफादार सेवक का दिल कैसे परमेश्वर के खिलाफ शिकायत करने लग सकता है? आइए हम पाँच बातों पर गौर करें और उनसे जुड़े बाइबल के कुछ उदाहरणों पर चर्चा करें, जो दिखाते हैं कि कैसे पुराने ज़माने में कुछ लोग इस जाल में फँस गए थे।—1 कुरिं. 10:11, 12.
दूसरों की बातों का आप पर असर हो सकता है (पैराग्राफ 7 देखिए)
7 दूसरों की बातों का हम पर असर हो सकता है। (व्यवस्थाविवरण 1:26-28 पढ़िए।) इसराएली बस अभी-अभी मिस्र की गुलामी से आज़ाद हुए थे। इस उपद्रवी राष्ट्र पर यहोवा दस विपत्तियाँ लाया था और फिरौन और उसकी सेना को लाल समुद्र में नाश कर दिया था। (निर्ग. 12:29-32, 51; 14:29-31; भज. 136:15) परमेश्वर के लोग वादा किए गए देश में बस दाखिल होने ही वाले थे। लेकिन ऐन वक्त पर वे यहोवा के खिलाफ कुड़कुड़ाने लगे। उन्होंने किस वजह से विश्वास की कमी दिखायी? जब दस जासूसों ने इसराएलियों को वादा किए गए देश के बारे में बुरी खबर दी, तो उनकी हिम्मत टूट गयी और वे डर गए। (गिन. 14:1-4) इसका क्या नतीजा हुआ? यहोवा ने उन्हें “अच्छे देश” में दाखिल नहीं होने दिया। (व्यव. 1:34, 35) क्या कभी-कभी दूसरों की बातों की वजह से यहोवा पर हमारा विश्वास कमज़ोर पड़ जाता है और हम यहोवा के खिलाफ कुड़कुड़ाने लगते हैं?
8. यशायाह के दिनों में, यहूदा राष्ट्र के लोग अपनी परेशानियों के लिए यहोवा को दोषी क्यों ठहराने लगे?
8 तकलीफें और परेशानियाँ हमें निराश कर सकती हैं। (यशायाह 8:21, 22 पढ़िए।) यशायाह के दिनों में, यहूदा राष्ट्र के लोगों पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था। वे दुश्मनों से घिरे हुए थे। खाने के लाले पड़े हुए थे। बहुत लोग भूखों मर रहे थे। लेकिन इससे भी बदतर, उन्होंने यहोवा की सुननी छोड़ दी थी और यहोवा के साथ उनका रिश्ता कमज़ोर पड़ता जा रहा था। (आमो. 8:11) इन मुश्किलों का सामना करने के लिए यहोवा से मदद माँगने के बजाए, वे अपने राजा और अपने परमेश्वर को ‘शाप देने लगे।’ जी हाँ, वे अपनी परेशानियों के लिए यहोवा को ज़िम्मेदार ठहराने लगे। जब हमारे साथ कोई हादसा होता है या हम पर कोई मुश्किल आ पड़ती है, तो हो सकता है हम भी अपने दिल में कहने लगें: ‘जब मुझे ज़रूरत थी, तब यहोवा कहाँ था?’
9. यहेजकेल के दिनों में इसराएलियों ने क्यों गलत सोच अपना ली थी?
9 हमें सारी बातों की जानकारी नहीं होती। सारी बातों की जानकारी न होने की वजह से, यहेजकेल के दिनों में इसराएलियों को लगा कि यहोवा के काम “उचित नहीं” हैं। (यहे. 18:29, अ न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन) यह ऐसा था मानो वे खुद परमेश्वर के न्यायी बन बैठे थे। और अपने स्तरों के आधार पर फैसला कर रहे थे कि परमेश्वर सही तरह से काम कर रहा है या नहीं, जबकि उन्हें सारी वजह पता नहीं थीं। अगर हम कभी बाइबल में दिए किसी वाकए को पूरी तरह नहीं समझ पाते या यह नहीं समझ पाते कि हमारी ज़िंदगी में कोई घटना क्यों घट रही है, तो क्या हम भी अपने दिल में यह सोचने लगेंगे कि यहोवा का तरीका सही नहीं है, या “उचित नहीं” है?—अय्यू. 35:2.
10. एक इंसान कैसे आदम की बुरी मिसाल पर चलने लग सकता है?
10 हम अपने पाप और गलतियों के लिए दूसरों को कसूरवार ठहराते हैं। पहले इंसान आदम ने अपने पाप के लिए यहोवा को कसूरवार ठहराया। (उत्प. 3:12) हालाँकि आदम ने जानबूझकर और अपनी गलती के अंजाम जानते हुए भी परमेश्वर का नियम तोड़ा था, फिर भी उसने यहोवा पर दोष लगाया। वह मानो कह रहा था कि यहोवा ने उसे एक बुरी पत्नी दी है। तब से लेकर आज तक, दूसरों ने भी आदम की तरह अपनी गलतियों के लिए परमेश्वर पर इलज़ाम लगाया है। हमें खुद से पूछना चाहिए: ‘क्या कभी मैं भी अपनी गलतियों से इतना निराश हो जाता हूँ या खीज उठता हूँ कि यह सोचने लगता हूँ कि यहोवा के स्तर बहुत सख्त हैं?’
11. हम योना से क्या सबक सीखते हैं?
11 हम सिर्फ अपने बारे में सोचने लगते हैं। जब यहोवा ने नीनवे के लोगों पर दया दिखायी, तो योना नबी को बहुत गुस्सा आया। (योना. 4:1-3) क्यों? वह सोचने लगा कि वहाँ के लोग उसे एक झूठा भविष्यवक्ता कहेंगे, क्योंकि उसकी भविष्यवाणी पूरी नहीं हुई और नीनवे शहर नाश नहीं हुआ। वहाँ के पश्चातापी लोगों पर तरस खाने के बजाय, उसे शायद अपने नाम की चिंता होने लगी। क्या हम भी इस हद तक अपने बारे में सोचने लग सकते हैं कि हम “यहोवा से चिढ़ने” लगें कि वह अभी तक अंत क्यों नहीं लाया? हो सकता है हम कई सालों से प्रचार करते आ रहे हैं कि यहोवा का दिन करीब है। लेकिन जब दूसरे हमारी खिल्ली उड़ाते हैं कि वह दिन अब तक क्यों नहीं आया, तो क्या यहोवा के सब्र की वजह से हम अपना सब्र खो देते हैं?—2 पत. 3:3, 4, 9.
हम “यहोवा से चिढ़ने” से कैसे दूर रह सकते हैं?
12, 13. अगर दिल-ही-दिल में हम यहोवा के कामों पर सवाल उठाने लगते हैं, तो हमें किस बात को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए?
12 अपने पापी दिल की वजह से जब हम यहोवा के कुछ कामों पर सवाल उठाने लगते हैं, तो हम क्या कर सकते हैं? याद रखिए कि ऐसा करना सही नहीं होगा। बाइबल के एक और अनुवाद में नीतिवचन 19:3 कहता है: “मनुष्य की मूर्खता उसके मार्ग को बिगाड़ देती है, और उसका हृदय यहोवा के विरुद्ध क्रोध से भड़क उठता है।” (अ न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन) इस बात को ध्यान में रखते हुए आइए हम पाँच बातों पर गौर करें, जो हमारी मदद करेंगी कि हम अपनी ज़िंदगी की परेशानियों के लिए कभी यहोवा पर दोष न लगाएँ।
13 यहोवा के साथ अपने रिश्ते को नज़रअंदाज़ मत कीजिए। अगर हम परमेश्वर के साथ एक करीबी रिश्ता बनाकर रखें, तो हम यहोवा पर दोष लगाने की फितरत से बच सकते हैं। (नीतिवचन 3:5, 6 पढ़िए।) हमें यहोवा पर पूरा भरोसा रखना चाहिए। हमें कभी यह नहीं सोचना चाहिए कि हम उससे बेहतर जानते हैं या हमारी ज़रूरतें सबसे ज़्यादा अहमियत रखती हैं। (नीति. 3:7; सभो. 7:16) इस तरह, जब हमारे साथ कुछ बुरा होगा, तो हम यहोवा पर दोष नहीं लगाएँगे।
14, 15. दूसरों की बातों का हम पर असर न हो, इसके लिए क्या बात हमारी मदद करेगी?
14 दूसरों की बातों का खुद पर असर मत होने दीजिए। मूसा के ज़माने के इसराएलियों के पास इस बात पर भरोसा करने की कई वजह थीं कि यहोवा उन्हें वादा-ए-मुल्क में ज़रूर ले जाएगा। (भज. 78:43-53) लेकिन जब उन्होंने दस अविश्वासी जासूसों की बातों पर कान दिया, तो वे “परमेश्वर की शक्ति को भूल गये,” यानी वे भूल गए कि परमेश्वर ने उनके लिए क्या-क्या किया था। (भज. 78:42, हिंदी ईज़ी-टू-रीड वर्शन) अगर हम यहोवा के कामों पर मनन करें और उन अच्छी बातों को याद करें जो यहोवा ने हमारे लिए अब तक की हैं, तो हम यहोवा के साथ अपने रिश्ते को मज़बूत कर पाएँगे। नतीजा, दूसरों की बातें हमारे और यहोवा के बीच दरार पैदा नहीं करेंगी।—भज. 77:11, 12.
15 तब क्या अगर किसी भाई या बहन के खिलाफ हमारे अपने ही दिल में कुछ कुढ़न है? ऐसे हालात में यहोवा के साथ हमारा रिश्ता खराब हो सकता है। (1 यूह. 4:20) जब यहोवा ने हारून को महायाजक ठहराया, तब इसराएली कुड़कुड़ाने लगे। मगर यहोवा की नज़र में यह ऐसा था मानो वे उसी के खिलाफ कुड़कुड़ा रहे हों। (गिन. 17:10) उसी तरह, आज यहोवा धरती पर अपने काम की निगरानी करने के लिए जिन भाइयों का इस्तेमाल कर रहा है, अगर उनके खिलाफ हम कुड़कुड़ाएँ, तो हम दरअसल यहोवा के खिलाफ कुड़कुड़ा रहे होंगे।—इब्रा. 13:7, 17.
16, 17. जब हम पर परेशानियाँ आती हैं, तो हमें क्या याद रखना चाहिए?
16 याद रखिए कि यहोवा हमारी परेशानियों की वजह नहीं है। हालाँकि यशायाह के दिनों में, इसराएली यहोवा से दूर हो गए थे, लेकिन वह तब भी उनकी मदद करना चाहता था। (यशा. 1:16-19) भले ही हम किसी भी परेशानी का सामना कर रहे हों, हम इस बात से दिलासा पा सकते हैं कि यहोवा को हमारी परवाह है और वह हमारी मदद करना चाहता है। (1 पत. 5:7) यहाँ तक कि वह हमसे वादा करता है कि परेशानियों को सहने के लिए वह हमें ज़रूरी ताकत भी देगा।—1 कुरिं. 10:13.
17 वफादार अय्यूब की तरह, अगर हम भी किसी तरह का अन्याय सह रहे हैं, तो हमें खुद को याद दिलाते रहना चाहिए कि यहोवा इसकी वजह नहीं है। यहोवा अन्याय से नफरत करता है, वह न्याय से प्रीति रखता है। (भज. 33:5) हमें अय्यूब के दोस्त एलीहू की तरह होना चाहिए, जिसने इस बात को माना: “यह सम्भव नहीं कि ईश्वर दुष्टता का काम करे, और सर्वशक्तिमान बुराई करे।” (अय्यू. 34:10) हम पर मुसीबतें लाने के बजाए, यहोवा हमें “हरेक अच्छा तोहफा और हरेक उत्तम देन” देता है।—याकू. 1:13, 17.
18, 19. हमें क्यों कभी यहोवा पर शक नहीं करना चाहिए? उदाहरण देकर समझाइए।
18 यहोवा पर कभी शक मत कीजिए। यहोवा सिद्ध परमेश्वर है और उसकी सोच हमारी सोच से कहीं ज़्यादा ऊँची है। (यशा. 55:8, 9) इसलिए नम्रता और अपनी हद का एहसास हमें इस बात को कबूल करने के लिए उभारेंगे कि हमारी सोच सीमित है। (रोमि. 9:20) शायद ही कभी ऐसा होता है जब हमें फलाँ हालात से जुड़ी सारी जानकारी होती है। बेशक आपने नीतिवचन में दर्ज़ इस बात को सच होते देखा होगा: “मुकदमे में जो पहिले बोलता, वही धर्मी जान पड़ता है, परन्तु पीछे दूसरा पक्षवाला आकर उसे खोज लेता है।”—नीति. 18:17.
19 मिसाल के लिए, मान लीजिए हमारा एक भरोसेमंद दोस्त कुछ ऐसा काम करता है, जो हमें समझ नहीं आता या हम सोचते हैं कि वह काम उस तरीके से नहीं किया जाता। ऐसे में क्या हम फौरन यह मान बैठेंगे कि उसने कोई गलत काम किया है? नहीं, इसके बजाय हम शायद यही सोचेंगे कि हम उस मामले से जुड़ी सारी बातें नहीं जानते। तो अगर हम एक असिद्ध दोस्त के साथ इस तरह पेश आने के लिए तैयार हैं, तो हमें ज़रूर यही भरोसा स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता पर भी दिखाना चाहिए। उसके काम करने और सोचने का तरीका हमसे कहीं ज़्यादा ऊँचा है!
20, 21. हमें अपनी तकलीफों के लिए यहोवा को क्यों दोषी नहीं ठहराना चाहिए?
20 हमारी समस्याओं की असली वजह याद रखिए। हमें इस बात का एहसास होना चाहिए कि हमारी कुछ समस्याओं के लिए हम खुद ज़िम्मेदार होते हैं। (गला. 6:7) इनके लिए हमें यहोवा को कसूरवार नहीं ठहराना चाहिए। क्यों? एक मिसाल लीजिए। अगर एक ड्राइवर सड़क के मोड़ पर भी अपनी गाड़ी तेज़ रफ्तार से मोड़ेगा, तो क्या होगा? उसकी गाड़ी कहीं टकरा सकती है। इसके लिए क्या इस ड्राइवर का कार बनानेवाली कंपनी को दोष देना सही होगा? नहीं। उसी तरह, यहोवा ने हमें अपने फैसले खुद करने की आज़ादी दी है। मगर साथ ही, उसने हमें यह भी सिखाया है कि अच्छे फैसले कैसे लिए जा सकते हैं। इसलिए अगर हम कोई गलती करते हैं, तो हमें यहोवा को दोष नहीं देना चाहिए।
21 मगर हमारी सारी मुसीबतें हमारी अपनी गलती या गलत कामों का नतीजा नहीं होतीं। कुछ मुसीबतें हम पर “समय और संयोग” की वजह से आती हैं। (सभो. 9:11) इसके अलावा, यह भी कभी मत भूलिए कि असल में शैतान इब्लीस इस दुनिया में फैली बुराई के लिए ज़िम्मेदार है। (1 यूह. 5:19; प्रका. 12:9) हमारा असली दुश्मन शैतान है, न कि यहोवा!—1 पत. 5:8.
यहोवा के साथ अपने अनमोल रिश्ते को हमेशा सँजोकर रखिए
यहोवा ने यहोशू और कालेब को आशीष दी क्योंकि उन्होंने उस पर भरोसा रखा (पैराग्राफ 22 देखिए)
22, 23. अगर हम अपनी परेशानियों की वजह से निराश हो जाते हैं, तो हमें क्या याद रखना चाहिए?
22 जब आप तकलीफों और परेशानियों से गुज़र रहे होते हैं, तो यहोशू और कालेब के उदाहरण को याद कीजिए। दस जासूस बुरी खबर लेकर आए थे, लेकिन ये दोनों वफादार जासूस अच्छी खबर लाए थे। (गिन. 14:6-9) हालाँकि उन्होंने यहोवा पर विश्वास दिखाया, लेकिन फिर भी उन्हें बाकी इसराएलियों के साथ 40 साल तक वीराने में भटकना पड़ा। क्या उन्होंने इस बात की शिकायत की या क्या वे यह सोचकर कड़वाहट से भर गए कि उनके साथ अन्याय हो रहा है? जी नहीं। उन्होंने यहोवा पर भरोसा रखा। क्या उन्हें इसके लिए आशीष मिली? बेशक। हालाँकि बहुत-से इसराएली वीराने में ही मर गए, लेकिन यहोवा की आशीष से ये दोनों वादा किए गए देश में दाखिल हुए। (गिन. 14:30) उसी तरह, अगर हम परमेश्वर की मरज़ी पूरी करने में “हार न मानें,” तो हमें भी यहोवा की आशीषें मिलेंगी।—गला. 6:9; इब्रा. 6:10.
23 अगर आप अपनी परेशानियों, दूसरों की असिद्धताओं या अपनी असिद्धताओं की वजह से निराश हो जाते हैं, तो आपको क्या करना चाहिए? यहोवा के बेमिसाल गुणों पर ध्यान दीजिए। उन शानदार चीज़ों की कल्पना कीजिए, जिन्हें देने का वादा यहोवा ने हमसे किया है। खुद से पूछिए, ‘अगर मैं यहोवा को नहीं जानता, तो आज मेरी ज़िंदगी कैसी होती?’ यहोवा के करीब बने रहिए और कभी-भी अपने दिल में यहोवा से चिढ़ने मत लगिए।