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  • अपने साथी को खोने का गम सहना

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  • अपने साथी को खोने का गम सहना
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2013
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2013
w13 12/15 पेज 27-31

अपने साथी को खोने का गम सहना

बाइबल साफ-साफ बताती है कि पति “अपनी पत्नी से वैसा ही प्यार करे जैसा वह अपने आप से करता है।” और पत्नी “अपने पति का गहरा आदर करे।” दोनों को ‘एक तन’ होकर अपना-अपना भाग अदा करना चाहिए। (इफि. 5:33; उत्प. 2:23, 24) जैसे-जैसे वक्‍त गुज़रता है, पति-पत्नी का एक-दूसरे के लिए लगाव और प्यार बढ़ता जाता है। पति-पत्नी के रिश्‍ते की तुलना ऐसे दो पेड़ों की जड़ों से की जा सकती है, जो साथ-साथ बढ़ती हैं। समय के चलते, खुशहाल पति और पत्नी की ज़िंदगियाँ भी एक-दूसरे के साथ बहुत-ही करीबी से जुड़ जाती हैं।

लेकिन तब क्या जब पति या पत्नी में से कोई एक गुज़र जाए? ऐसे में एक बहुत ही मज़बूत और अटूट बंधन टूट जाता है। जो साथी अकेला रह जाता है, उसे अकसर दुख, अकेलेपन, यहाँ तक कि शायद गुस्से या दोष की भावनाएँ भी आ घेरती हैं। अपनी शादी के 58 सालों में दिक्षा ऐसे कई लोगों को जानती थी, जिन्होंने अपने साथी को खो दिया था।a लेकिन जब उसके पति की मौत हो गयी, तब उसने कहा: “मैं पहले कभी इस दर्द को नहीं समझ पायी थी। जब तक आप खुद इस दर्द से न गुज़रें, तब तक आप दूसरों का दर्द नहीं समझ सकते।”

ऐसा दर्द जो मानो मिटने का नाम नहीं लेता

कुछ शोधकर्ता कहते हैं कि अपने अज़ीज़ साथी को खोने से जो दर्द और तकलीफ होती है, उससे बढ़कर और कोई तकलीफ नहीं। कई लोग जिन्होंने अपने साथी को खोया है, इस बात से सहमत हैं। मेघा के पति की मौत कई साल पहले हुई थी। वह बताती है कि अपने साथी को खोने के बाद, उसकी ज़िंदगी कैसी हो गयी है: “मुझे लगता है जैसे मेरे शरीर का एक अंग मुझसे अलग हो गया हो।” ऐसा कहकर वह यह बताने की कोशिश कर रही थी कि 25 साल की शादी के बाद अपने पति को खोने का गम क्या होता है।

सोमा को यह बात अजीब लगती थी कि कुछ विधवाएँ सालों-साल अपने पति की मौत पर शोक मनाती रहती हैं। उसका मानना था कि वे कुछ ज़्यादा ही दुख मनाती हैं। लेकिन फिर उसकी शादी के 38 साल बाद, उसके पति की मौत हो गयी। आज उस बात को 20 से भी ज़्यादा साल हो चुके हैं, फिर भी वह कहती है, “मैं हर दिन उनके बारे में सोचती हूँ।” अपने पति को याद करके अकसर उसकी आँखें भर आती हैं।

बाइबल बताती है कि एक अज़ीज़ साथी को खोने का दर्द न सिर्फ दिल पर गहरे घाव छोड़ जाता है, बल्कि ये घाव जल्दी भरते भी नहीं। जब सारा की मौत हो गयी, तो उसका पति अब्राहम ‘सारा के लिये रोने पीटने’ लगा। (उत्प. 23:1, 2) हालाँकि अब्राहम को विश्‍वास था कि परमेश्‍वर मरे हुओं को दोबारा जी उठाएगा, फिर भी जब उसकी प्यारी पत्नी की मौत हो गयी, तो उसे गहरा दुख पहुँचा। (इब्रा. 11:17-19) और जब याकूब की प्यारी पत्नी राहेल की मौत हो गयी, तो वह उसे भुला नहीं पाया। अपने बेटों से राहेल के बारे में बात करते वक्‍त, उसने बड़े प्यार-से उसका ज़िक्र किया।—उत्प. 44:27; 48:7.

बाइबल के इन उदाहरणों से हम क्या सबक सीखते हैं? विधवाओं और विधुरों को अकसर सालों तक अपने साथी को खोने का गम रह-रहकर सताता है। हमें उनके आँसुओं और दुख में बिताए पलों को उनकी कमज़ोरी नहीं समझना चाहिए। इसके बजाय, हमें याद रखना चाहिए कि अपने अज़ीज़ साथी के बिछड़ जाने पर उठनेवाली उनकी ये भावनाएँ बिलकुल लाज़िमी हैं। ऐसे लोगों को शायद लंबे समय तक हमारी हमदर्दी और सहारे की ज़रूरत पड़े।

एक दिन में बस उसी दिन के बारे में सोचना

अपने साथी से बिछड़ जाने पर एक इंसान की ज़िंदगी दोबारा वैसी नहीं हो जाती जैसी शादी से पहले वह जीता था। सालों वक्‍त गुज़ारने के बाद आम तौर पर एक पति जानता है कि जब उसकी पत्नी मायूस या परेशान हो जाती है, तो कैसे उसे दिलासा देना है या उसका हौसला बढ़ाना है। मगर जब वह गुज़र जाता है, तो पत्नी उस प्यार और दिलासे से महरूम हो जाती है जो उसे अपने पति से मिलता था। उसी तरह, शादी के बाद जैसे-जैसे समय बीतता है, एक पत्नी सीख जाती है कि कैसे वह अपने पति का मान बढ़ा सकती है और उसे खुश कर सकती है। उसके कोमल स्पर्श, उसके दिलासा देनेवाले शब्द और पति की हर छोटी-से-छोटी ज़रूरत और पसंद-नापसंद का खयाल रखने के उसके जज़्बे की कोई तुलना नहीं की जा सकती। ऐसे में जब उसकी पत्नी गुज़र जाती है, तो पति की ज़िंदगी में जैसे सूनापन छा जाता है। इसलिए कुछ लोग जो अपने साथी को खो देते हैं, उन्हें भविष्य की चिंता सताती है, यहाँ तक कि अपने आनेवाले कल के बारे में सोचकर डर भी लगता है। बाइबल का कौन-सा सिद्धांत उन्हें सुरक्षित महसूस करने और मन की शांति पाने में मदद दे सकता है?

एक दिन में बस उसी दिन के दुख से उबरने में परमेश्‍वर आपकी मदद कर सकता है

“अगले दिन की चिंता कभी न करना, क्योंकि अगले दिन की अपनी ही चिंताएँ होंगी। आज के लिए आज की मुसीबत काफी है।” (मत्ती 6:34) यीशु के ये शब्द खासकर हमारी खाने-पहनने की ज़रूरतों पर लागू होते हैं, लेकिन इन्हीं शब्दों ने बहुत-से लोगों को अपने अज़ीज़ साथी से बिछड़ने का कड़वा अनुभव सहने में भी मदद दी है। अपनी पत्नी की मौत के कुछ महीनों बाद, चार्ल्स नाम के एक भाई ने लिखा: “आज भी मुझे मोनीक की बहुत याद आती है और कभी-कभी तो उसकी कमी इतनी खलती है कि यह दर्द मुझसे सहा नहीं जाता। लेकिन मैं जानता हूँ कि ऐसा होना लाज़िमी है और वक्‍त के गुज़रते, धीरे-धीरे मेरा दर्द कुछ हद तक कम हो जाएगा।”

जी हाँ, चार्ल्स को दर्द सहते हुए ‘वक्‍त गुज़ारना’ था। वह यह कैसे कर पाया? वह कहता है: “यहोवा की मदद से मैं एक दिन में बस उसी दिन के बारे में सोचता था और अगले दिन की चिंता अगले दिन पर छोड़ देता था।” चार्ल्स ने इस दुख को खुद पर हावी नहीं होने दिया। हालाँकि उसका दुख रातों-रात गायब नहीं हुआ, लेकिन वह गम के सागर में डूब भी नहीं गया। अगर आपने अपने साथी को खोया है, तो एक दिन में बस उसी दिन के दुख से उबरने की कोशिश कीजिए। क्या पता कल कोई आपका हौसला बढ़ा दे।

जब यहोवा ने इंसानों की सृष्टि की थी, तो उसका यह मकसद नहीं था कि उनकी मौत हो। यह तो “शैतान के कामों” में से एक है। (1 यूह. 3:8; रोमि. 6:23) शैतान मौत और मौत के डर का इस्तेमाल कर लोगों को अपना गुलाम बना लेता है और उनकी आशा छीन लेता है। (इब्रा. 2:14, 15) शैतान को बहुत खुशी होती है जब कोई सच्ची खुशी और संतुष्टि पाने की सारी उम्मीदें खो बैठता है, यहाँ तक कि परमेश्‍वर की नयी दुनिया में सच्ची खुशी और संतुष्टि पाने की आशा भी। जी हाँ, अपने साथी को खोने पर एक व्यक्‍ति को जो गहरा दुख होता है, उसके पीछे आदम का पाप और शैतान की बगावत है। (रोमि. 5:12) लेकिन यहोवा उस हर नुकसान की पूरी भरपाई करेगा, जो शैतान ने किए हैं और सबसे बड़े दुश्‍मन, मौत को भी हरा देगा। शैतान लोगों के मन में जो डर बिठाता है, उससे बहुत से ऐसे लोग भी आज़ाद हो पाएँ हैं, जिन्होंने शायद आपकी तरह अपने साथी को खो दिया है।

जब नयी दुनिया में लोग दोबारा जी उठेंगे, तब ज़ाहिर है कि वे इंसानी रिश्‍तों में काफी बदलाव होते देखेंगे। ज़रा उन माता-पिताओं, दादा-दादियों, नाना-नानियों और दूसरे पूर्वजों के बारे में सोचिए, जो दोबारा जी उठाए जाएँगे और अपने बच्चों और नाती-पोतों के साथ धीरे-धीरे सिद्धता की ओर बढ़ेंगे। बुढ़ापे का असर पूरी तरह खत्म हो जाएगा। हो सकता है नयी दुनिया में जवान पीढ़ी को अपने पूर्वजों की तरफ अपना वह नज़रिया पूरी तरह बदलना पड़े, जो आज उनका है। इसमें कोई शक नहीं कि ये सभी बदलाव इंसानी रिश्‍तों में सुधार लाएँगे।

दोबारा जी उठाए गए लोगों के बारे में हमारे मन में अनगिनत सवाल उठ सकते हैं। जैसे, उनके बारे में क्या जिनके दो या उससे ज़्यादा जीवन-साथियों की मौत हो गयी है? एक बार सदूकियों ने एक ऐसी स्त्री के बारे में सवाल उठाया जिसका पहला पति मर गया, फिर दूसरा पति भी मर गया और इस तरह एक-के-बाद-एक पाँच और पति मर गए। (लूका 20:27-33) दोबारा जी उठाए जाने के बाद, उनके बीच क्या रिश्‍ता होगा? हम नहीं जानते, और न ही इस बारे में अटकलें लगाने या फिर चिंता करने का कोई तुक बनता है। फिलहाल हम बस यहोवा पर भरोसा रख सकते हैं और इस बात का यकीन रख सकते हैं कि वह भविष्य में जो भी करेगा, वह हमारे अच्छे के लिए ही करेगा, कुछ ऐसा जिससे हमें खुशी मिले, दुख नहीं।

पुनरुत्थान की आशा दिलासा देती है

परमेश्‍वर के वचन में दी साफ सच्चाइयों में से एक है, मौत की नींद सो रहे हमारे अज़ीज़ फिर से जी उठाए जाएँगे। बाइबल में दिए पुनरुत्थान के वाकए इस बात की गारंटी हैं कि “वे सभी जो स्मारक कब्रों में हैं [यीशु की] आवाज़ सुनेंगे और बाहर निकल आएँगे।” (यूह. 5:28, 29) जब लोग दोबारा जी उठे अपने अज़ीज़ों से फिर से मिलेंगे, तो उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहेगा। वहीं दूसरी तरफ, जो लोग मौत की गिरफ्त से आज़ाद होकर निकलेंगे, उनकी खुशी की तो हम कल्पना भी नहीं कर सकते!

जब करोड़ों लोगों का पुनरुत्थान होगा, तब धरती पर खुशी का ऐसा आलम होगा, जैसा पहले कभी नहीं था। (मर. 5:39-42; प्रका. 20:13) भविष्य में होनेवाले इस चमत्कार पर मनन करने से उन सभी लोगों को दिलासा मिलना चाहिए, जिन्होंने अपने अज़ीज़ों को खो दिया है।

जब बड़े पैमाने पर लोगों को दोबारा ज़िंदा किया जाएगा, तब क्या किसी के पास दुखी होने की कोई वजह होगी? बाइबल इसका जवाब देती है, नहीं। यशायाह 25:8 के मुताबिक, यहोवा “मृत्यु को सदा के लिये नाश करेगा।” इसमें मौत और उससे होनेवाले दर्दनाक अंजामों का नामो-निशान मिटाना शामिल है, क्योंकि यह कहने के बाद, यशायाह की भविष्यवाणी कहती है: “प्रभु यहोवा सभों के मुख पर से आंसू पोंछ डालेगा।” भले ही आज आप अपने प्यारे पति या पत्नी को खोने के गम से जूझ रहे हों, लेकिन भविष्य में पुनरुत्थान के बाद, आपके सारे गम दूर हो जाएँगे।

कोई भी इंसान यह पूरी तरह समझ नहीं सकता कि परमेश्‍वर नयी दुनिया में क्या-क्या करेगा। यहोवा कहता है: “मेरी और तुम्हारी गति में और मेरे और तुम्हारे सोच विचारों में, आकाश और पृथ्वी का अन्तर है।” (यशा. 55:9) जब हम पुनरुत्थान के बारे में यीशु के किए वादे पर विश्‍वास करते हैं, तो हम दिखाते हैं कि हमें यहोवा पर भरोसा है, ठीक जैसे अब्राहम को था। मगर आज जो सबसे ज़रूरी चीज़ हम सभी मसीहियों को ध्यान में रखनी है, वह यह कि परमेश्‍वर हमसे जो चाहता है, उसे हम पूरा करें, ताकि हम भी पुनरुत्थान में आनेवाले लोगों की तरह ‘उस ज़माने में जीवन पाने के लायक समझे जाएँ।’—लूका 20:35.

आशा की एक वजह

अगर आप उस शानदार आशा को हमेशा अपने मन में रखें, तो आप भविष्य के बारे में सोचकर हद-से-ज़्यादा चिंता नहीं करेंगे। ज़्यादातर इंसानों को भविष्य की कोई आशा नहीं है। मगर यहोवा ने हमें एक सुनहरे भविष्य की आशा दी है। हम ठीक-ठीक तो नहीं जान सकते कि उस वक्‍त यहोवा हमारी सारी ज़रूरतें और ख्वाहिशें कैसे पूरी करेगा, लेकिन हम इस बात का यकीन रख सकते हैं कि वह ऐसा ज़रूर करेगा। प्रेषित पौलुस ने लिखा: “जिस चीज़ की आशा की जाती है, जब वह दिखायी पड़ जाती है तो वह आशा नहीं रहती, इसलिए कि इंसान जिसे देख लेता है क्या फिर उसकी आशा रखता है? लेकिन अगर हम उसकी आशा रखते हैं जिसे हमने देखा नहीं, तो हम धीरज के साथ उसका इंतज़ार करते रहते हैं।” (रोमि. 8:24, 25) परमेश्‍वर के वादों पर पक्की आशा आपको धीरज धरते हुए अपने साथी से बिछड़ने का गम सहने में मदद देगी। अगर आप धीरज धरते रहें, तो आप उस शानदार भविष्य का अनुभव करेंगे, जब यहोवा आपकी “मनोरथों को पूरा करेगा।” वह “प्रत्येक प्राणी की इच्छा को” संतुष्ट करेगा।—भज. 37:4; 145:16, अ न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन; लूका 21:19.

यहोवा के इस वादे पर भरोसा रखिए कि वह आनेवाले कल को खुशियों से भर देगा

जब यीशु की मौत का समय पास आ गया था, तब उसके प्रेषित बेहद दुखी हो गए थे। वे डर गए थे और उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था। यीशु ने इन शब्दों से उन्हें दिलासा दिया: “तुम्हारे दिल दुःख से बेहाल न हों। परमेश्‍वर पर विश्‍वास दिखाओ, मुझ पर भी विश्‍वास दिखाओ।” उसने उनसे कहा: “मैं तुम्हें मातम की हालत में नहीं छोड़ूँगा। मैं तुम्हारे पास फिर आ रहा हूँ।” (यूह. 14:1-4, 18, 27) यीशु के ये शब्द सदियों तक उसके अभिषिक्‍त चेलों को आशा रखने और धीरज धरने की एक वजह देते। और जो पुनरुत्थान में अपने अज़ीज़ों को दोबारा देखने की गहरी इच्छा रखते हैं, उनके पास भी आशा रखने की एक वजह है। आप इस बात का पूरा यकीन रख सकते हैं कि यहोवा और उसका बेटा कभी आपको मातम की हालत में नहीं छोड़ेंगे! मौत की नींद सो रहे लोग दोबारा जी उठाए जाएँगे और जिन्हें याद कर-करके आपने रात-दिन गुज़ार दिए हैं, उनसे आप बहुत जल्द दोबारा मिलेंगे!

a नाम बदल दिए गए हैं।

अफसोस मनानेवालों का हौसला बढ़ाइए

एक शादीशुदा मसीही की मौत के बाद, कुछ समय तक बहुत-से लोग उसके साथी को दिलासा देने और उसकी मदद करने आते हैं। मिसाल के लिए, लाज़िमी है कि अपने पति को खो चुकी एक बहन अपने परिवार और दोस्तों से मिली मदद के लिए शुक्रगुज़ार होगी। मगर उसे अपने अज़ीज़ को खोने के दुख से उबरने में शायद वक्‍त लगे। साथ ही, उसे लंबे समय तक दिलासे और सहारे की ज़रूरत भी पड़ेगी। बाइबल कहती है: “मित्र सब समयों में प्रेम रखता है, और विपत्ति के दिन भाई बन जाता है।”—नीति. 17:17.

अफसोस मनानेवाले साथी से मिलते वक्‍त आपको क्या कहना चाहिए? बाइबल हमें यह सलाह देती है: “तुम सभी के विचारों में एकता हो, एक-दूसरे का दर्द महसूस करो, भाइयों जैसा गहरा लगाव रखो, गहरी करुणा दिखाओ।” (1 पत. 3:8) अपने साथी को खोने के बाद, कुछ वक्‍त तक शायद उन्हें अच्छा न लगे। इसलिए भले ही हमारा इरादा नेक क्यों न हो, मगर बेहतर होगा कि हम उनसे ऐसा कुछ न कहें, जैसे “आप कैसा महसूस कर रहे हैं?” या “क्या आप ठीक हैं?” इस तरह के सवाल पूछने से अफसोस मनानेवाला साथी सोच सकता है, ‘आपको ज़रा भी अंदाज़ा नहीं कि मैं कैसा महसूस कर रह हूँ’ या ‘इस वक्‍त मैं ठीक कैसे हो सकता हूँ?’ इसलिए ऐसे सवाल पूछने के बजाए, अच्छा रहेगा अगर आप सच्चे दिल से उनसे कोई अच्छी बात कहें, जैसे, “आपको देखकर मुझे बहुत खुशी हुई” या “आपको सभाओं में देखकर मेरा हौसला बढ़ता है।”

ऐसे हालात से गुज़र रहे भाई या बहन को आप घर पर खाने के लिए बुला सकते हैं या उसे सैर पर ले जा सकते हैं। मारकोस नाम के एक भाई को अपने कुछ दोस्तों से बहुत दिलासा मिला, जो उससे मिलने आए थे। उन्होंने किस बारे में बात की? वह बताता है: “उन्होंने मेरी तकलीफों के बारे में इतनी बात नहीं की, बल्कि मुझसे हौसला बढ़ानेवाली बातें कीं।” नीना नाम की एक विधवा कहती है: “मेरे करीबी दोस्त अकसर सही वक्‍त पर सही बात कहते हैं। कभी-कभार वे कुछ नहीं कहते, बस मेरे साथ होते हैं।”

अगर एक विधवा या विधुर आपके साथ अपना दुख बाँटना चाहता है, तो धीरज रखते हुए उसकी ध्यान से सुनिए। हर बात की वजह जानने के लिए सवाल मत पूछिए। झट-से कोई राय कायम मत कीजिए। इस बारे में कोई सलाह मत दीजिए कि उसे किस तरह या कितने समय तक अफसोस मनाना चाहिए। अगर वह किसी से मिलना नहीं चाहता, तो बुरा मत मानिए। आप फिर कभी उससे मिलने जा सकते हैं। प्यार दिखाते रहिए।—यूह. 13:34, 35.

क्या आपके मन में भविष्य को लेकर सवाल उठते हैं?

इस बारे में सोचना लाज़िमी है कि यहोवा अपने वादे कैसे पूरे करेगा। अब्राहम अकसर यहोवा के किए इस वादे के बारे में सोचा करता था कि वह कैसे उसे एक बेटा देगा। यहोवा ने अब्राहम से सब्र रखने के लिए कहा। और आखिरकार अब्राहम ने यहोवा के वादे को पूरा होते देखा।—उत्प. 15:2-5; इब्रा. 6:10-15.

जब याकूब को लगा कि उसके बेटे यूसुफ की मौत हो गयी है, तो उसके बाद उसे यूसुफ की बहुत याद आने लगी। सालों तक वह अपने बेटे के लिए मातम मनाता रहा। लेकिन यहोवा वफादार याकूब को एक ऐसी आशीष देनेवाला था, जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। आगे चलकर, याकूब फिर अपने बेटे से मिल सका। और-तो-और वह अपने पोते-पोतियों से भी मिल पाया। उसने कहा: “मुझे आशा न थी, कि मैं तेरा मुख फिर देखने पाऊंगा: परन्तु देख, परमेश्‍वर ने मुझे तेरा वंश भी दिखाया है।”—उत्प. 37:33-35; 48:11.

हम इन वाकयों से क्या सबक सीख सकते हैं? पहला सबक, यकीन रखिए कि दुनिया की कोई भी ताकत सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर को उसकी मरज़ी पूरी करने से नहीं रोक सकती। दूसरा सबक, अगर हम परमेश्‍वर की मरज़ी के मुताबिक प्रार्थना करें और उसकी मरज़ी के मुताबिक काम भी करें, तो वह न सिर्फ आज हमारी देखभाल करेगा बल्कि भविष्य में भी हमारी सारी ज़रूरतें और इच्छाएँ पूरी करेगा। पौलुस ने लिखा: “उस परमेश्‍वर को, जिसकी ताकत हमारे अंदर काम कर रही है और जितना हम माँग सकते हैं या जहाँ तक हम सोच सकते हैं, उससे कहीं बढ़कर जो हमारे लिए कर सकता है, उसे मंडली के ज़रिए और मसीह यीशु के ज़रिए पीढ़ी-दर-पीढ़ी हमेशा-हमेशा तक महिमा मिलती रहे। आमीन।”—इफि. 3:20, 21.

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