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  • मर्यादा में रहना क्यों ज़रूरी है?

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  • मर्यादा में रहना क्यों ज़रूरी है?
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (अध्ययन)—2017
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  • मिलते-जुलते लेख
  • मर्यादा में रहना क्यों ज़रूरी है?
  • मर्यादा में रहने में क्या-क्या शामिल है?
  • परमेश्‍वर के इंतज़ाम में आपकी भूमिका
  • मर्यादा के बारे में सही नज़रिया
  • “नम्र लोगों में बुद्धि होती है”
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  • मुश्‍किल हालात में भी आप मर्यादा में रह सकते हैं
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (अध्ययन)—2017
w17 जनवरी पेज 17-21
शमूएल राजा शाऊल को फटकारता है

मर्यादा में रहना क्यों ज़रूरी है?

“जो अपनी मर्यादा में रहता है वह बुद्धिमान है।”—नीति. 11:2.

गीत: 38, 11

क्या आप समझा सकते हैं?

  • मर्यादा में रहना क्यों ज़रूरी है?

  • मर्यादा में रहने और नम्र होने के बीच क्या नाता है?

  • हम यहोवा की सेवा में कैसे खुश रह सकते हैं?

1, 2. परमेश्‍वर ने शाऊल को क्यों ठुकरा दिया? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

जब यहोवा ने शाऊल को राजा होने के लिए चुना, तो वह मर्यादा में रहनेवाला इंसान था। (1 शमू. 9:1, 2, 21; 10:20-24) लेकिन राजा बनने के बाद, वह गुस्ताख बन गया। एक मौके पर, हज़ारों पलिश्‍ती इसराएलियों से लड़ने के लिए इकट्ठा हुए। भविष्यवक्‍ता शमूएल ने शाऊल को बताया था कि वह आकर यहोवा के लिए बलिदान चढ़ाएगा। मगर इससे पहले कि शमूएल वहाँ आता, इसराएली डर गए और उनमें से कई शाऊल को छोड़कर जाने लगे। शाऊल का सब्र टूटने लगा। शमूएल का इंतज़ार करने के बजाय उसने खुद ही बलिदान चढ़ा दिया। उसके पास ऐसा करने का अधिकार नहीं था और इससे यहोवा खुश नहीं हुआ।—1 शमू. 13:5-9.

2 जब शमूएल आया तो उसने शाऊल को यहोवा की आज्ञा तोड़ने के लिए फटकारा। लेकिन अपनी गलती मानने के बजाय शाऊल बहाने बनाने लगा यहाँ तक कि अपनी गलती दूसरों पर थोपने लगा। (1 शमू. 13:10-14) इसके बाद से, शाऊल ने एक-के-बाद-एक कई गुस्ताखी की। इसलिए यहोवा ने उसे राजा होने से ठुकरा दिया। (1 शमू. 15:22, 23) शाऊल की ज़िंदगी की शुरूआत तो अच्छी हुई लेकिन उसका अंत बहुत बुरा हुआ।—1 शमू. 31:1-6.

3. (क) कई लोग मर्यादा के बारे में क्या सोचते हैं? (ख) हमें किन सवालों के जवाब मिलेंगे?

3 आज कई लोग सोचते हैं कि मर्यादा में रहकर वे न तो अपनी ज़िंदगी में कामयाब हो सकते हैं, न ही अपना करियर बना सकते हैं। इसलिए खुद को दूसरों से बेहतर दिखाने के लिए वे अपने बारे में डींगें मारते हैं। उदाहरण के लिए, एक मशहूर अभिनेता ने जो एक राजनेता भी है, कहा, “मर्यादा एक ऐसा शब्द है जो मुझ पर किसी भी तरह लागू नहीं होता और उम्मीद है कि यह कभी-भी मुझ पर लागू नहीं होगा।” लेकिन एक मसीही के लिए मर्यादा में रहना क्यों ज़रूरी है? मर्यादा क्या है और क्या नहीं है? इस लेख में हमें इन सवालों के जवाब मिलेंगे। और अगले लेख में हम देखेंगे कि मुश्‍किल हालात में भी हम कैसे अपनी मर्यादा में रह सकते हैं।

मर्यादा में रहना क्यों ज़रूरी है?

4. गुस्ताखी किसे कहते हैं?

4 बाइबल बताती है कि गुस्ताखी करना मर्यादा में रहने के बिलकुल उलट है। (नीतिवचन 11:2 पढ़िए।) दाविद ने यहोवा से गिड़गिड़ाकर कहा, “अपने सेवक को गुस्ताखी करने से रोक।” (भज. 19:13) गुस्ताखी किसे कहते हैं? जब एक इंसान बेसब्र होकर या घमंड में आकर कोई ऐसा काम करे जिसे करने का उसे हक या अधिकार नहीं है तो उसे गुस्ताखी कहते हैं। परिपूर्ण न होने की वजह से हम सभी ने कभी-न-कभी कुछ गुस्ताखी की होगी। लेकिन जैसा हमने राजा शाऊल के उदाहरण से सीखा, अगर गुस्ताखी करना हमारी आदत बन जाए तो यहोवा इससे खुश नहीं होगा। भजन 119:21 कहता है कि यहोवा “गुस्ताखों को डाँट लगाता है।” वह क्यों ऐसा करता है?

5. गुस्ताखी करना क्यों कोई छोटी-मोटी भूल नहीं है?

5 गुस्ताखी करना कोई छोटी-मोटी भूल नहीं है। वह क्यों? क्योंकि ऐसा करने से सबसे पहले हम यहोवा का अनादर करते हैं जो हमारा परमेश्‍वर और राजा है। दूसरा, जब हम कोई ऐसा काम करते हैं जिसे करने का हमें अधिकार नहीं, तो दूसरों के साथ हमारा झगड़ा हो सकता है। (नीति. 13:10) और तीसरा, जब दूसरों को पता चलता है कि हमने गुस्ताखी की है तो हमें उनके सामने शर्मिंदा होना पड़ता है। (लूका 14:8, 9) इन बातों से साफ पता चलता है कि क्यों यहोवा चाहता है कि हम मर्यादा में रहें।

मर्यादा में रहने में क्या-क्या शामिल है?

6, 7. मर्यादा में रहने और नम्र होने के बीच क्या नाता है?

6 मर्यादा में रहने और नम्र होने के बीच गहरा नाता है। एक नम्र मसीही घमंडी नहीं होता लेकिन वह दूसरों को खुद से बेहतर समझता है। (फिलि. 2:3) एक नम्र इंसान अकसर मर्यादा में भी रहता है। वह अपनी हदें पहचानता है और नम्र होकर अपनी गलतियाँ कबूल करता है। वह दूसरों के विचार सुनने और उनसे सीखने के लिए तैयार रहता है। एक नम्र इंसान से यहोवा बहुत खुश होता है।

7 बाइबल बताती है कि मर्यादा में रहनेवाला इंसान अपने आपको अच्छी तरह जानता है और उसे एहसास रहता है कि कुछ चीज़ें हैं जिन्हें वह खुद नहीं कर सकता या जिन्हें करने की उसे इजाज़त नहीं। यह एहसास उसे दूसरों का आदर करने और उनके साथ प्यार से पेश आने के लिए उभारेगा।

8. हम कैसे अपनी सोच और कामों में गुस्ताखी करने लग सकते हैं?

8 हमें शायद एहसास भी न हों लेकिन हम अपनी सोच और कामों में गुस्ताखी करने लग सकते हैं। वह कैसे? हम मन-ही-मन खुद को दूसरों से बेहतर समझने लगें क्योंकि हमें या हमारे जान-पहचानवालों को मंडली में कुछ खास ज़िम्मेदारियाँ मिली हों। (रोमि. 12:16) या हम शायद दूसरों का ध्यान अपनी तरफ खींचने की कोशिश करें। (1 तीमु. 2:9, 10) हम शायद दूसरों को यह भी बताने लगें कि उन्हें क्या करना चाहिए या क्या नहीं करना चाहिए।—1 कुरिं. 4:6.

9. कुछ लोग क्यों गुस्ताख बन गए? बाइबल से एक उदाहरण दीजिए।

9 अगर हम अपनी गलत इच्छाओं पर काबू न करें तो हम गुस्ताखी करने लग सकते हैं। कई लोग इसलिए गुस्ताख बन गए क्योंकि वे खुद की बड़ाई चाहते थे, दूसरों से जलते थे या उन्हें अपने गुस्से पर काबू नहीं था। अबशालोम, उज्जियाह और नबूकदनेस्सर के साथ ऐसा ही हुआ। उनकी गुस्ताखी की वजह से यहोवा ने उनको नीचा दिखाया।—2 शमू. 15:1-6; 18:9-17; 2 इति. 26:16-21; दानि. 5:18-21.

10. हमें क्यों दूसरों के इरादों पर शक नहीं करना चाहिए? बाइबल से एक उदाहरण दीजिए।

10 कुछ और वजह भी हो सकती हैं कि क्यों लोग कभी-कभी अपनी मर्यादा में नहीं रहते। अबीमेलेक और पतरस के बारे में सोचिए। (उत्प. 20:2-7; मत्ती 26:31-35) उन दोनों ने जो काम किया था, क्या वह सचमुच गुस्ताखी थी? कहीं असली वजह यह तो नहीं कि उन्हें पूरी बात मालूम नहीं थी या उन्होंने बिना सोचे-समझे वह काम किया? हम दूसरों का मन नहीं पढ़ सकते इसलिए हमें उनके इरादों पर शक नहीं करना चाहिए।—याकूब 4:12 पढ़िए।

परमेश्‍वर के इंतज़ाम में आपकी भूमिका

11. हमें क्या समझने की ज़रूरत है?

11 मर्यादा में रहनेवाला इंसान परमेश्‍वर के इंतज़ाम में अपनी भूमिका समझता है। यहोवा ऐसा परमेश्‍वर है जो सब बातें कायदे से करता है। उसने मंडली में सभी को एक भूमिका दी है। इसलिए हर सदस्य बहुत अहमियत रखता है। यहोवा ने हम सभी को अलग-अलग वरदान, काबिलीयतें और हुनर दिए हैं और हमें आज़ादी दी है कि हम जिस तरह चाहें इनका इस्तेमाल करें। अगर हम मर्यादा में रहेंगे तो हम इन वरदानों का इस्तेमाल यहोवा की मरज़ी के मुताबिक करेंगे। (रोमि. 12:4-8) हम इस बात को समझेंगे कि यहोवा चाहता है कि हम इन वरदानों के ज़रिए उसका आदर करें और दूसरों की मदद करें।—1 पतरस 4:10 पढ़िए।

यीशु चीज़ों को बनाने में हाथ बँटाता है, इंसान के रूप में पैदा होता है, अपने चेलों को सिखाता है, अपना जीवन बलिदान करता है और राजा बनकर राज करता है

जब हमारी ज़िम्मेदारी बदल जाती है, तब हम यीशु की मिसाल से क्या सीख सकते हैं? (पैराग्राफ 12-14 देखिए)

12, 13. यहोवा की सेवा में अगर हम किसी बदलाव का सामना करते हैं तो हमें क्या याद रखना चाहिए?

12 यहोवा की सेवा में हमें जो काम मिला है, वह समय के गुज़रते बदल सकता है। यीशु के बारे में सोचिए जिसे कई बदलावों का सामना करना पड़ा। पहला, वह अपने पिता के साथ अकेला था। (नीति. 8:22) फिर उसने स्वर्गदूत, इस विश्‍व और इंसानों को बनाने में यहोवा का हाथ बँटाया। (कुलु. 1:16) बाद में उसे धरती पर भेजा गया। वह एक बच्चे के रूप में पैदा हुआ और फिर बड़ा होता गया। (फिलि. 2:7) अपनी मौत के बाद, यीशु स्वर्ग लौट गया और 1914 में परमेश्‍वर के राज का राजा बना। (इब्रा. 2:9) और भविष्य में, हज़ार साल तक हुकूमत करने के बाद, वह यहोवा का राज वापस उसे दे देगा ताकि “परमेश्‍वर ही सबके लिए सबकुछ हो।”—1 कुरिं. 15:28.

13 हमें भी शायद अपनी ज़िंदगी में कई बदलावों का सामना करना पड़े। कभी-कभी हमारे अपने फैसलों की वजह से हमारी ज़िम्मेदारियाँ बदल जाए। मिसाल के लिए, पहले हम अविवाहित थे और फिर हमने शादी करने का फैसला किया। या शादी के बाद हमारे बच्चे हो गए। आगे चलकर हमने कुछ फेरबदल करने का फैसला किया ताकि हम पूरे समय की सेवा कर सकें। कभी-कभी शायद हमारे हालात बदल जाएँ और इससे हमारी ज़िम्मेदारियाँ भी बदल जाएँ। ऐसे में हम यहोवा की सेवा में पहले जितना न कर पाएँ या फिर पहले से ज़्यादा कर पाएँ। लेकिन हम चाहे जवान हों या बूढ़े, सेहतमंद हों या नहीं, यहोवा जानता है कि हममें से हरेक उसकी सेवा में किस तरह अपना भरसक कर सकता है। और हम जितना कर सकते हैं, उससे ज़्यादा की वह उम्मीद नहीं करता। हम उसकी सेवा में जो भी कर पाते हैं वह उससे बहुत खुश होता है।—इब्रा. 6:10.

14. मर्यादा में रहने से हम कैसे खुश रह सकते हैं?

14 यहोवा ने यीशु को जो भी काम दिया यीशु उससे खुश था और हम भी अपने काम से खुश हो सकते हैं। (नीति. 8:30, 31) मर्यादा में रहनेवाले इंसान को मंडली में जो भी काम और ज़िम्मेदारियाँ दी जाती हैं, वह उनसे संतुष्ट रहता है। उसे इस बात की चिंता नहीं होती कि दूसरों को क्या ज़िम्मेदारियाँ मिल रही हैं। इसके बजाय, परमेश्‍वर के संगठन में उसकी जो भी भूमिका है उससे वह खुश रहता है। वह कबूल करता है कि उसे यहोवा की तरफ से यह भूमिका मिली है। मर्यादा में रहनेवाला इंसान दूसरों का आदर भी करता है और खुशी-खुशी उन्हें सहयोग देता है। वह जानता है कि यहोवा ने उन्हें भी एक भूमिका दी है।—रोमि. 12:10.

मर्यादा के बारे में सही नज़रिया

15. हम गिदोन की मिसाल से क्या सीख सकते हैं?

15 गिदोन ने मर्यादा में रहने की एक बढ़िया मिसाल रखी। जब यहोवा ने उसे यह काम सौंपा कि वह इसराएलियों को मिद्यानियों से बचाए तो गिदोन ने कहा, “मेरा कुल तो मनश्‍शे के गोत्र में सबसे छोटा है और मैं अपने पिता के पूरे घराने में एक मामूली इंसान हूँ।” (न्यायि. 6:15) लेकिन गिदोन ने यहोवा पर भरोसा रखा और यह काम कबूल किया। फिर गिदोन ने यह जानने की भी कोशिश की कि यहोवा उससे ठीक-ठीक क्या चाहता है और उसने मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना की। (न्यायि. 6:36-40) गिदोन बहुत हिम्मतवाला था लेकिन वह बुद्धिमान भी था और सतर्क भी रहता था। (न्यायि. 6:11, 27) बाद में जब लोग चाहते थे कि वह उन पर राज करे तो उसने मना कर दिया। यहोवा ने उससे जो करने के लिए कहा था वह करने के बाद, वह वापस घर लौट गया।—न्यायि. 8:22, 23, 29.

16, 17. मर्यादा में रहनेवाला इंसान कैसे तरक्की करता है?

16 अगर एक मसीही कोई नयी ज़िम्मेदारी कबूल करता है या मंडली में ज़्यादा ज़िम्मेदारियाँ पाना चाहता है तो इसका यह मतलब नहीं कि वह अपनी मर्यादा लाँघ रहा है। बाइबल सभी को बढ़ावा देती है कि वे यहोवा की सेवा में तरक्की करें। (1 तीमु. 4:13-15) लेकिन क्या एक नयी ज़िम्मेदारी पाने से ही हम तरक्की कर सकते हैं? जी नहीं। हम सभी अपनी मसीही शख्सियत में और यहोवा से मिली काबिलीयतों में निखार लाते रह सकते हैं ताकि हम यहोवा की सेवा और अच्छी तरह कर सकें और दूसरों की मदद कर सकें।

17 मर्यादा में रहनेवाला इंसान कोई ज़िम्मेदारी कबूल करने से पहले, यह जानने की कोशिश करता है कि उससे क्या करने की उम्मीद की जा रही है। वह इस बारे में प्रार्थना करता है और ध्यान से सोचता है कि क्या वह यह काम कर पाएगा। क्या उसके पास दूसरी ज़रूरी बातों के लिए समय और ताकत बचेगी? अगर नहीं, तो जो काम वह अभी कर रहा है, क्या उसमें से कुछ काम दूसरे कर सकते हैं? इस बारे में सोचने के बाद, मर्यादा में रहनेवाला इंसान शायद यह फैसला करे कि वह इस नयी ज़िम्मेदारी को ठीक से नहीं निभा पाएगा। उसी तरह, अगर हम अपनी मर्यादा जानते हैं तो हमें शायद किसी नयी ज़िम्मेदारी के लिए ना कहना पड़े।

18. (क) मर्यादा में रहनेवाले इंसान को जब कोई नयी ज़िम्मेदारी दी जाती है तो वह क्या करता है? (ख) रोमियों 12:3 कैसे अपनी मर्यादा में रहने में हमारी मदद करता है?

18 यहोवा चाहता है कि हम “मर्यादा में रहकर” उसके साथ चलें। (मीका 6:8) इसलिए जब हमें कोई नयी ज़िम्मेदारी मिलती है तो हम गिदोन की तरह परमेश्‍वर से मार्गदर्शन लेते हैं और उससे मदद माँगते हैं। हमें गहराई से सोचना चाहिए कि यहोवा बाइबल और उसके संगठन के ज़रिए हमसे क्या कह रहा है। आइए हम याद रखें कि हम उसकी सेवा में जो भी कर पाते हैं वह हम अपनी काबिलीयत से नहीं बल्कि इसलिए कर पाते हैं क्योंकि यहोवा नम्र है और हमारी मदद करने को तैयार रहता है। (भज. 18:35) मर्यादा में रहनेवाला इंसान ‘अपने आपको जितना समझना चाहिए, उससे बढ़कर नहीं समझेगा।’—रोमियों 12:3 पढ़िए।

19. मर्यादा में रहना क्यों ज़रूरी है?

19 मर्यादा में रहनेवाला इंसान जानता है कि सिर्फ यहोवा ही महिमा पाने के योग्य है क्योंकि वह सृष्टिकर्ता है और सारे जहान का मालिक है। (प्रका. 4:11) अगर हम अपनी मर्यादा में रहते हैं, तो हम यहोवा की सेवा में जितना कर पाते हैं उससे खुश होंगे। हम अपने भाई-बहनों की भावनाओं और विचारों का आदर करेंगे और नतीजा यह होगा कि हममें एकता होगी। मर्यादा में रहनेवाला इंसान कुछ भी करने से पहले ध्यान से सोचता है और बड़ी-बड़ी गलतियाँ करने से बचता है। इसलिए मर्यादा में रहना परमेश्‍वर के लोगों के लिए बहुत ज़रूरी है। ऐसे इंसान से यहोवा बहुत खुश होता है। अगले लेख में, हम सीखेंगे कि मुश्‍किल हालात में भी हम कैसे अपनी मर्यादा में रह सकते हैं।

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