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  • “अपना हृदय खोल दो”
  • हमारी राज-सेवा—2004
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km 5/04 पेज 4

“अपना हृदय खोल दो”

मसीही बिरादरी में होने के नाते, हम में से हरेक की यह ज़िम्मेदारी है कि हम कलीसिया में प्यार भरा माहौल बनाए रखने में अपना भाग अदा करें। (1 पत. 1:22; 2:17) ऐसा माहौल तभी पैदा होता है जब हम एक-दूसरे के लिए कोमल स्नेह दिखाने में “अपना हृदय खोल” देते हैं। (2 कुरि. 6:12, 13) अपने भाई-बहनों को अच्छी तरह जानना क्यों ज़रूरी है?

2 दोस्ती का बंधन मज़बूत होता है: मसीही भाई-बहनों से हमारी पहचान जितनी ज़्यादा बढ़ेगी, हम उनके विश्‍वास, धीरज और दूसरे बढ़िया गुणों की उतनी ज़्यादा कदर कर पाएँगे। फिर उनकी कमज़ोरियाँ हमारे लिए खास मायने नहीं रखेंगी और हमारी दोस्ती गहरी होती जाएगी। अच्छी जान-पहचान होने से, एक-दूसरे को मज़बूत करना और सांत्वना देना आसान हो जाता है। (1 थिस्स. 5:11) हम एक-दूसरे के लिए “मज़बूत करनेवाले सहायक” बन सकते हैं। (कुलु. 4:11, NW) फिर शैतान का संसार हमें अपने साँचे में ढालने की चाहे लाख कोशिश करे, हम उसका विरोध कर सकेंगे। इन अंतिम दिनों में, जहाँ दुनिया मुसीबतों से घिरी हुई है, ऐसे में हम वाकई एहसानमंद हैं कि हमें यहोवा के लोगों के बीच अच्छे दोस्त मिले हैं!—नीति. 18:24.

3 कठिन परीक्षाओं के दौरान हमारे करीबी दोस्त हमें खास तौर से मज़बूत कर सकते हैं और हमें दिलासा दे सकते हैं। (नीति. 17:17) एक मसीही बहन, जिसने अपनी हीन-भावना दूर करने के लिए काफी संघर्ष किया था, वह अपने बीते दिन याद करके कहती है: “मेरे दोस्त मुझसे हौसला बढ़ानेवाली सुहावनी बातें किया करते थे ताकि मैं मायूस करनेवाले विचार मन से निकाल सकूँ।” ऐसे दोस्त सचमुच यहोवा की आशीष होते हैं।—नीति. 27:9.

4 दूसरों में दिलचस्पी लीजिए: हम ज़्यादा-से-ज़्यादा भाई-बहनों के लिए कोमल स्नेह कैसे दिखा सकते हैं? मसीही सभाओं में उन्हें सिर्फ ‘हैलो,’ ‘नमस्ते’ कहने के बजाय, उनके साथ ऐसी बातचीत कीजिए जिससे कुछ सीखने को मिले। उनके ज़ाती मामलों में दखल दिए बगैर, उनमें निजी दिलचस्पी लीजिए। (फिलि. 2:4; 1 पत. 4:15) दूसरों में दिलचस्पी लेने का एक और तरीका है, उन्हें खाने पर बुलाना। (लूका 14:12-14) या फिर आप उनके साथ प्रचार करने का इंतज़ाम कर सकते हैं। (लूका 10:1) जब हम अपने भाइयों को अच्छी तरह जानने के लिए पहल करेंगे, तो कलीसिया की एकता मज़बूत होगी।—कुलु. 3:14.

5 क्या हम सिर्फ ऐसे लोगों को अपना जिगरी दोस्त बनाते हैं जो हमारी उम्र के हैं या जिनके शौक हमारे जैसे हैं? हमें सिर्फ ऐसी बातें देखकर कलीसिया में गिने-चुने भाई-बहनों से ही दोस्ती नहीं करनी चाहिए। दाऊद और योनातन, साथ ही रूत और नाओमी के बीच उम्र का बहुत बड़ा फासला था और उनकी परवरिश अलग-अलग माहौल में हुई थी, फिर भी वे एक-दूसरे को जान से प्यार करते थे। (रूत 4:15; 1 शमू. 18:1) क्या आप अपने दोस्तों का दायरा बढ़ा सकते हैं? नए-नए दोस्त बनाने से आपको ऐसी आशीषें मिलेंगी जिनकी आपने कल्पना भी नहीं की होगी।

6 जब हम ज़्यादा-से-ज़्यादा भाई-बहनों को कोमल स्नेह दिखाएँगे, तो हम एक-दूसरे को मज़बूत कर पाएँगे और इससे कलीसिया में शांति का माहौल बना रहेगा। इतना ही नहीं, भाइयों के लिए प्यार दिखाने से यहोवा हमें आशीषें देगा। (भज. 41:1, 2; इब्रा. 6:10) इसलिए क्यों न आप यह लक्ष्य रखें कि आप जितना ज़्यादा हो सके, उतने भाई-बहनों से अच्छी जान-पहचान बढ़ाने की कोशिश करेंगे?

[अध्ययन के लिए सवाल]

1. हम में से हरेक की क्या ज़िम्मेदारी है?

2. अपने मसीही भाई-बहनों के साथ दोस्ती बढ़ाना क्यों ज़रूरी है?

3. हम दूसरों के लिए मज़बूत करनेवाले सहायक कैसे बन सकते हैं?

4. हम कलीसिया में दूसरों से अच्छी जान-पहचान कैसे बढ़ा सकते हैं?

5. दोस्तों का दायरा बढ़ाने का एक तरीका क्या है?

6. ज़्यादा-से-ज़्यादा भाई-बहनों को कोमल स्नेह दिखाने से मिलनेवाले कुछ फायदे क्या हैं?

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