‘परमेश्वर की मरज़ी पूरी हो’
1. 2012 सेवा साल के खास सम्मेलन दिन का विषय क्या है, और हमारे लिए इस विषय पर ध्यान देना क्यों सही है?
हम यहोवा की मरज़ी से ही रचे गए हैं। (प्रका. 4:11) अगर हम परमेश्वर की मरज़ी नहीं जानेंगे और उसे पूरी नहीं करेंगे तो हमारा जीना बेकार होगा और हम अपनी ज़िंदगी का मकसद पूरा नहीं कर पाएँगे। यह उतना आसान नहीं है जितना लगता है। हमें अपने ‘शरीर की चाहत और सोच’ के मुताबिक काम करने या “दुनियावी लोगों की मरज़ी” पूरी करने की अपनी फितरत के खिलाफ लड़ना होगा। (इफि. 2:3; 1 पत. 4:3; 2 पत. 2:10) परमेश्वर की मदद के बिना ‘[शैतान] हमें जीते-जी फँसा सकता है ताकि हम उसकी मरज़ी पूरी करें।’ (2 तीमु. 2:26) 2012 के सेवा साल के खास सम्मेलन दिन से हमें यीशु की प्रार्थना में दर्ज़ तीन खास बिनतियों में से तीसरी के मुताबिक काम करने का बढ़ावा मिलेगा। (मत्ती 6:10) इस सम्मेलन का विषय है ‘परमेश्वर की मरज़ी पूरी हो।’
2. कार्यक्रम के दौरान किन सवालों के जवाब दिए जाएँगे?
2 सवाल जिनके जवाब दिए जाएँगे: कार्यक्रम को सुनते वक्त इन सवालों के जवाब पाने की कोशिश कीजिए: जितना ज़रूरी परमेश्वर के वचन को सुनना है, उतना ही ज़रूरी और क्या है? हम अपने लिए परमेश्वर की मरज़ी कैसे समझ सकते हैं और उसे मालूम कर सकते हैं? हमें सब किस्म के लोगों की मदद करने के लिए क्यों तैयार रहना चाहिए? ज़िंदगी में सच्ची खुशी पाने के लिए क्या करना चाहिए? जवानो, आपको यहोवा के सामने क्या साबित करना है? परमेश्वर की मरज़ी पूरी करने से क्या आशीषें मिलती हैं? क्यों आज के समय में दूसरों की हिम्मत बढ़ाना बहुत ज़रूरी है?
3. हम इस आध्यात्मिक इंतज़ाम का पूरा-पूरा फायदा कैसे उठा सकते हैं?
3 इस सम्मेलन में ज़रूर हाज़िर होइए और कार्यक्रम को ध्यान से सुनिए। बेथेल से कोई भाई या फिर एक सर्किट निगरान, मेहमान वक्ता के तौर पर आएँगे। कार्यक्रम के पहले और बाद में उनसे और अगर वह शादीशुदा हैं तो उनकी पत्नी से ज़रूर बात कीजिए। जब आप घर लौटें, तो ‘सुनकर भूलनेवाले’ मत बनिए बल्कि एक परिवार के तौर पर कार्यक्रम पर दोबारा गौर कीजिए और चर्चा कीजिए कि आप परमेश्वर की मरज़ी के मुताबिक और ज़्यादा काम कैसे कर सकते हैं।—याकू. 1:25.
4. यह क्यों ज़रूरी है कि हम परमेश्वर की मरज़ी पूरी करने को पहली जगह दें?
4 बहुत जल्द उन लोगों का नाश कर दिया जाएगा जो अपनी मरज़ी पूरी करने में लगे हुए हैं और यहोवा की मरज़ी मानने से इनकार कर देते हैं। (1 यूह. 2:17) हम कितने शुक्रगुज़ार हैं कि यहोवा ने इस जानकारी को हमारे लिए सही वक्त पर तैयार किया है ताकि हम परमेश्वर की मरज़ी पूरी करने को पहली जगह दे पाएँ।