प्रचार में अपना हुनर बढ़ाना—मौके ढूँढ़कर गवाही देने के लिए बातचीत शुरू करने की पहल करना
यह क्यों ज़रूरी है: घर-घर गवाही देते वक्त अकसर हम देखते हैं कि कई लोग घर पर नहीं मिलते। लेकिन ऐसे लोग हमें बस या ट्रेन में, डॉक्टर का इंतज़ार करते वक्त, काम की जगह या स्कूल में लंच-ब्रेक के समय या फिर किसी दूसरी जगह पर मिल सकते हैं। यहोवा की मरज़ी है कि हरेक को राज की खुशखबरी सुनने का मौका मिले। (1 तीमु. 2:3, 4) गवाही देने के लिए अकसर ज़रूरी होता है कि हम बातचीत शुरू करने की पहल करें।
कैसे कर सकते हैं:
• सोच-समझकर चुनिए कि आप किससे बात करेंगे। क्या वह शख्स दोस्ताना स्वभाव का लग रहा है? क्या वह बातचीत करने के लिए तैयार है? क्या ऐसा माहौल है कि आराम से बातचीत हो सके? कुछ प्रचारक पहले, व्यक्ति से नज़र मिलाते हैं और फिर मुस्कराते हैं। अगर वह भी मुस्कराता है, तो वे बातचीत शुरू करने की कोशिश करते हैं।
• अगर आप बातचीत शुरू करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं, तो मन-ही-मन छोटी-सी प्रार्थना कीजिए।—नहे. 2:4; प्रेषि. 4:29.
• कोई साधारण-सी बात कहकर शुरू कीजिए, जैसे दुआ-सलाम। यीशु ने जब सामरी स्त्री से बातचीत शुरू की, तो उसने बातचीत की शुरूआत परमेश्वर के राज से नहीं की। (यूह. 4:7) कभी-कभी बातचीत की शुरूआत तारीफ के दो शब्द बोलकर भी की जा सकती है। जैसे: “आपके बच्चे दूसरों से बड़े अच्छे-से पेश आते हैं!” कोई सवाल पूछकर भी बातचीत शुरू की जा सकती है, जैसे “क्या आपने कल की न्यूज़ देखी?”
• एक बार बातचीत शुरू हो जाए, तो इस ताक में रहिए कि कैसे आप उसे खुशखबरी सुना सकते हैं। मगर ऐसा करने में जल्दबाज़ी मत कीजिए। बातचीत को खुद-ब-खुद आगे बढ़ने दीजिए। हो सके तो कोई ऐसी बात कहिए जिससे वह फौरन आपसे कुछ सवाल पूछने के लिए मजबूर हो जाए। उदाहरण के लिए, अगर आपकी बातचीत परिवार के मामले पर हो रही है, तो आप कह सकते हैं, “मैंने बच्चों की परवरिश के बारे में एक ऐसी सलाह पढ़ी थी जो बहुत ही कारगर है।” अगर आप न्यूज़ या खबर पर बातचीत कर रहे हैं, तो आप कह सकते हैं, “हाल ही में मैंने दुनिया के बदलाव के बारे में एक खुशखबरी पढ़ी जो बड़ी दिलचस्प थी।” अगर आपकी बातचीत गवाही देने से पहले ही खत्म हो जाए, तो निराश मत होइए।
• सूझ-बूझ और व्यवहार-कुशलता से काम लीजिए। ध्यान रखिए, कहीं ऐसा न लगे कि आप अपने विचार दूसरों पर थोपने की कोशिश कर रहे हैं। शास्त्र से कोई बात बताने से पहले एक सवाल पूछकर यह भाँपिए कि क्या उसे शास्त्रों की बातों में दिलचस्पी है या नहीं।
• अपने साथ ट्रैक्ट या दूसरे साहित्य रखिए ताकि आप दिलचस्पी दिखानेवालों को दे सकें।
महीने के दौरान इसे आज़माइए:
• हर हफ्ते कम-से-कम एक व्यक्ति के साथ मौका ढूँढ़कर गवाही देने के मकसद से बातचीत शुरू करने की कोशिश कीजिए।