पाएँ बाइबल का खज़ाना | मत्ती 20-21
“तुममें जो बड़ा बनना चाहता है, उसे तुम्हारा सेवक होना चाहिए”
घमंडी शास्त्रियों और फरीसियों को बाज़ारों में लोगों से नमस्कार सुनना और सम्मान पाना अच्छा लगता था
शास्त्री और फरीसी बहुत घमंडी थे। वे हमेशा लोगों की नज़रों में छाना चाहते थे और उनसे आदर-सम्मान पाना चाहते थे। (मत 23:5-7) लेकिन यीशु उनके जैसा नहीं था। वह लोगों से ‘सेवा करवाने नहीं, बल्कि उनकी सेवा करने आया था।’ (मत 20:28) क्या हम यहोवा की उपासना के नाम पर सिर्फ ऐसे काम करना पसंद करते हैं, जिनसे हम लोगों की नज़रों में आएँ और वे हमारी तारीफ करें? यीशु की तरह लोगों की सेवा करने में ही बड़प्पन है। अकसर इस तरह की सेवा इंसान नहीं देख पाते, सिर्फ यहोवा देखता है। (मत 6:1-4) एक नम्र सेवक . . .
राज-घर की साफ-सफाई और रख-रखाव में हाथ बँटाता है
खुद आगे बढ़कर बुज़ुर्गों और बाकी लोगों की मदद करता है
राज के कामों के लिए दान करता है