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  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (अध्ययन)—2021
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (अध्ययन)—2021
w21 अक्टूबर पेज 29-31

1921​—सौ साल पहले

1 जनवरी, 1921 की प्रहरीदुर्ग  में बाइबल विद्यार्थियों से एक सवाल किया गया, “हमें इस साल कौन-सा काम करना है?” इसके बाद यशायाह 61:1, 2 की आयत दी गयी थी, जिसमें लिखा है, “यहोवा ने मेरा अभिषेक किया है कि मैं दीन लोगों को खुशखबरी सुनाऊँ। . . . यहोवा की मंज़ूरी पाने के साल का प्रचार करूँ, हमारे परमेश्‍वर के बदला लेने के दिन के बारे में बताऊँ।” इस आयत से उन्हें याद दिलाया गया कि उन्हें प्रचार काम करना है।

निडर प्रचारक

प्रचार करने के लिए बाइबल विद्यार्थियों को निडर होना था। उन्हें न सिर्फ दीन लोगों को “खुशखबरी” सुनानी थी बल्कि दुष्ट लोगों को “परमेश्‍वर के बदला लेने के दिन” के बारे में भी बताना था।

कनाडा में रहनेवाले भाई जे. एच. हौसकन ने विरोध के बावजूद निडरता से प्रचार किया। सन्‌ 1921 में उनकी मुलाकात एक पादरी से हुई। बातचीत शुरू करने से पहले भाई ने उससे कहा, “बाइबल से बात करते वक्‍त हमें बहस नहीं करनी चाहिए। हमें आराम से बात करनी चाहिए। अगर हम किसी बात पर सहमत नहीं होते, तो हमें शांति से बातचीत रोक देनी चाहिए।” लेकिन ऐसा नहीं हुआ। भाई ने बताया, “कुछ ही मिनटों में पादरी ने इतने ज़ोर-से दरवाज़े पर हाथ मारा कि मुझे लगा कि उस पर लगा शीशा टूट जाएगा।”

पादरी ने चिल्लाकर कहा, “जाओ, ऐसे लोगों से बात करो जो ईसाई नहीं हैं।” भाई हौसकन का मन किया कि वे बोलें, “तुम कौन-से ईसाई हो? व्यवहार से तो नहीं लगता।” पर उन्होंने ऐसा नहीं कहा।

अगले दिन पादरी ने चर्च में एक भाषण दिया और भाई के बारे में बुरा-भला कहा। भाई हौसकन ने बताया, “पादरी ने चर्च के लोगों से कहा कि मैं शहर का सबसे बड़ा झूठा हूँ और मुझे मार डालना चाहिए।” लेकिन भाई डरे नहीं। वे प्रचार करते रहे और उनकी कई लोगों के साथ अच्छी बातचीत हुई। उन्होंने बताया, “मुझे शहर में प्रचार करने में बहुत मज़ा आया। कुछ लोगों ने तो यह भी कहा कि हम जानते हैं कि तुम परमेश्‍वर का काम कर रहे हो। वे मुझे ज़रूरत की चीज़ें देने को भी तैयार थे।”

अध्ययन करने के लिए शृंखलाएँ

दिलचस्पी रखनेवालों की मदद करने के लिए, बाइबल विद्यार्थियों ने स्वर्ण युग  पत्रिका में कुछ शृंखलाएँ प्रकाशित कीं।a जैसे, “बच्चों-जवानों का बाइबल अध्ययन।” इस शृंखला में कुछ सवाल-जवाब दिए गए थे। माता-पिता अपने बच्चों से ये सवाल करते और उन्हें उनके जवाब बाइबल से ढूँढ़ने में मदद देते। कुछ सवालों से वे बाइबल की छोटी-मोटी बातें जान पाते, जैसे “बाइबल में कितनी किताबें हैं?” नौजवानों को निडर प्रचारक बनाने के लिए कुछ ऐसे सवाल दिए गए थे, “क्या सभी मसीहियों पर ज़ुल्म किए जाएँगे?”

जिन बाइबल विद्यार्थियों को बाइबल की ज़्यादा समझ थी, उनके लिए स्वर्ण युग  में एक और शृंखला प्रकाशित की गयी। इस शृंखला के सवालों के जवाब शास्त्र का अध्ययन  किताब के पहले खंड में दिए गए थे। इन दोनों शृंखलाओं से हज़ारों लोगों को फायदा हुआ। लेकिन 21 दिसंबर, 1921 की स्वर्ण युग में बताया गया कि अब से ये शृंखलाएँ बंद कर दी जाएँगी। वह क्यों?

एक नयी किताब

परमेश्‍वर का सुरमंडल  किताब

कार्ड, जिसमें लिखा है कि कितने पन्‍ने पढ़ने हैं

सवालों के कार्ड

संगठन में अगुवाई लेनेवाले भाइयों को एहसास हुआ कि नए बाइबल विद्यार्थियों को एक-एक करके बाइबल के विषयों के बारे में सीखना चाहिए। इसलिए नवंबर 1921 में परमेश्‍वर का सुरमंडल  किताब प्रकाशित की गयी। जो भी इस किताब को लेता था, उसे एक कोर्स में शामिल किया जाता था। इसके ज़रिए वह खुद अध्ययन कर सकता था और समझ सकता था कि परमेश्‍वर इस खूबसूरत धरती पर इंसानों को हमेशा की ज़िंदगी देगा। इस कोर्स में क्या-क्या होता था?

जब एक व्यक्‍ति वह किताब लेता, तो उसे एक छोटा कार्ड दिया जाता। उस कार्ड में लिखा होता कि उसे कितने पन्‍ने पढ़ने हैं। अगले हफ्ते उसे एक और कार्ड मिलता। उस कार्ड में, उसने जितना पढ़ा होता उसके आधार पर कुछ सवाल किए जाते। उसमें यह भी लिखा होता कि उसे अगले हफ्ते के लिए कितना पढ़ना है। यह सिलसिला 12 हफ्तों तक चलता।

ये कार्ड उन्हें डाक के ज़रिए मिलते। ये कार्ड अकसर मंडली के ऐसे भाई-बहन भेजते थे, जो बुज़ुर्ग थे या जो घर-घर जाकर प्रचार नहीं कर सकते थे। अमरीका में रहनेवाली, आना के. गार्डनर ने अपनी बहन, थेल के बारे में बताया, “वह चल-फिर नहीं सकती थी। जब यह नयी किताब आयी, तो उसके पास करने के लिए बहुत कुछ था। उसे हर हफ्ते सवालों के कार्ड भेजने होते थे।” जब यह कोर्स खत्म होता, तो कोई विद्यार्थी से मिलने जाता और उसे बाइबल के बारे में और सिखाता।

थेल गार्डनर व्हीलचेयर पर

और भी काम बाकी था

सन्‌ 1921 के आखिर में, भाई जे. एफ. रदरफर्ड ने सभी मंडलियों को एक खत लिखा। उस खत में भाई ने बताया, “पिछले सालों के मुकाबले, इस साल और भी ज़्यादा लोगों को खुशखबरी सुनायी गयी। लेकिन काम अब भी बहुत है। इसलिए दूसरों को बढ़ावा दीजिए कि वे इस बढ़िया काम में हिस्सा लें।” बाइबल विद्यार्थियों ने भाई की यह बात मानी। अगले साल, 1922 में उन्होंने निडर होकर और भी ज़्यादा लोगों को प्रचार किया।

बहादुर दोस्त

बाइबल विद्यार्थी एक-दूसरे से प्यार करते थे। इसलिए उन्होंने बहादुरी से एक-दूसरे की मदद की। वे “मुसीबत की घड़ी में भाई बन” गए थे। (नीति. 17:17) आइए एक घटना पर गौर करें।

मंगलवार, 31 मई, 1921 को अमरीका के एक शहर टलसा में जाति संहार हुआ। इसकी वजह क्या थी? एक अश्‍वेत आदमी पर यह इलज़ाम लगाया गया कि उसने एक श्‍वेत औरत के साथ ज़बरदस्ती करने की कोशिश की। इस वजह से उस अश्‍वेत आदमी को जेल की सज़ा हुई। इसके बाद करीब 1,000 श्‍वेत आदमियों ने कुछ अश्‍वेत आदमियों के साथ लड़ाई की। देखते-ही-देखते दंगे की आग पास के इलाके ग्रीनवुड में फैल गयी, जहाँ अश्‍वेत लोग रहते थे। इस दंगे में 1,400 से ज़्यादा घर और दुकानें लूट ली गयीं और जला दी गयीं। हालाँकि खबरों के मुताबिक 36 लोग मारे गए, लेकिन मरनेवालों की संख्या शायद 300 थी।

उस दिन क्या हुआ था, इस बारे में भाई रिचर्ड जे. हिल ने बताया, जो एक अश्‍वेत बाइबल विद्यार्थी थे और ग्रीनवुड के रहनेवाले थे। उन्होंने कहा, “उस दिन हमारी सभा थी। सभा खत्म होने के बाद हमें शहर के बीच से गोलियाँ चलने की आवाज़ आयी। यह आवाज़ देर रात तक हमें सुनायी दी।” अगले दिन हालात और भी बिगड़ गए। भाई हिल ने कहा, “कुछ लोग हमारे घर आए और हमसे कहने लगे कि अगर हम बचना चाहते हैं, तो हमें फौरन एक सरकारी इमारत में जाना होगा।” भाई हिल अपनी पत्नी और 5 बच्चों को लेकर वहाँ गए। वहाँ करीब 3,000 अश्‍वेत लोग इकट्ठा थे। उनकी हिफाज़त करने और दंगे को रोकने के लिए सरकार ने सैनिक भेजे थे।

उसी दौरान एक श्‍वेत भाई, आर्थर क्लौस ने एक बहुत ही बहादुरी का काम किया। उन्होंने बताया, “जब मुझे पता चला कि ग्रीनवुड में लोग लूटमार कर रहे हैं और घरों को आग लगा रहे हैं, तो मैंने फैसला किया कि मैं अपने दोस्त भाई हिल के पास जाऊँगा और देखूँगा कि वह और उनका परिवार ठीक है या नहीं।”

भाई आर्थर क्लौस ने परमेश्‍वर का सुरमंडल  किताब से 14 बच्चों को सिखाया

भाई क्लौस जैसे ही भाई हिल के घर पहुँचे, उन्होंने देखा कि एक श्‍वेत आदमी बंदूक ताने खड़ा है। वह आदमी दरअसल भाई हिल का पड़ोसी और दोस्त था। उसे लगा कि भाई क्लौस दंगा करनेवालों में से एक हैं। इसलिए उसने चिल्लाकर पूछा, “तुम यहाँ क्या कर रहे हो?”

भाई क्लौस ने बताया, “वह पड़ोसी तो मुझे मारने के लिए तैयार था। इसलिए मैंने उसे यकीन दिलाया कि मैं भाई हिल का ही दोस्त हूँ। मैं कई बार उनके घर आ चुका हूँ।” फिर वह आदमी मान गया और दोनों ने मिलकर भाई हिल के घर की हिफाज़त की।

कुछ ही समय बाद, भाई क्लौस को पता चला कि भाई हिल और उनका परिवार एक सरकारी इमारत में है। उनको यह भी पता चला कि किसी अश्‍वेत को वहाँ से बाहर निकालने के लिए जनरल बैरिट से इजाज़त लेनी होगी। भाई क्लौस ने बताया, “उस जनरल से मिलना बहुत मुश्‍किल था। लेकिन जब मैं उससे मिला, तो मैंने उसे बताया कि मैं भाई हिल के परिवार को आपने साथ ले जाना चाहता हूँ। जनरल ने पूछा, ‘क्या तुम उस परिवार की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी लेते हो?’ मैंने खुशी से हाँ कहा।”

तब जनरल ने भाई क्लौस को इजाज़त दे दी और एक दस्तावेज़ पर दस्तखत कर दिया। भाई क्लौस वह दस्तावेज़ लेकर सरकारी इमारत के पास गए। जब उन्होंने वह दस्तावेज़ वहाँ के अफसर को दिखाया, तो उसने कहा, “इस पर तो खुद जनरल के दस्तखत हैं। क्या तुम्हें पता है कि तुम वह पहले व्यक्‍ति हो, जो यहाँ से किसी को ले जा रहे हो?” फिर भाई क्लौस ने अफसर की मदद से भाई हिल और उनके परिवार को ढूँढ़ लिया। फिर भाई क्लौस ने उन सबको अपनी गाड़ी में बिठा लिया और उन्हें उनके घर तक पहुँचा दिया।

“परमेश्‍वर की नज़र में हम सब एक-समान हैं”

भाई क्लौस ने इस बात का ध्यान रखा कि भाई हिल के परिवार को कोई खतरा न हो। उन्होंने जिस तरह भाई हिल के परिवार के लिए अपना प्यार ज़ाहिर किया और बहादुरी दिखायी, वह देखकर दूसरों को बहुत अच्छा लगा। भाई क्लौस ने बताया, “जिस पड़ोसी ने भाई हिल के घर की हिफाज़त करने में मेरी मदद की, वह बाइबल विद्यार्थियों की और भी इज़्ज़त करने लगा। जब कई लोगों ने देखा कि हममें रंग को लेकर कोई भेदभाव नहीं है और हम यह मानते हैं कि परमेश्‍वर की नज़र में हम सब एक-समान हैं, तो उन्होंने परमेश्‍वर के राज के बारे में जानना चाहा।”

a सन्‌ 1937 में स्वर्ण युग  का नाम बदलकर सांत्वना रखा गया। फिर 1946 में उसका नाम सजग होइए!  रखा गया।

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