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  • एक चिट्ठी जो अंत तक धीरज धरने में आपकी मदद कर सकती है

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  • एक चिट्ठी जो अंत तक धीरज धरने में आपकी मदद कर सकती है
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (अध्ययन)—2024
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  • “पूरा ज़ोर लगाकर प्रौढ़ता के लक्ष्य की तरफ बढ़ते जाएँ”
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अध्ययन लेख 37

गीत 118 “हमारा विश्‍वास बढ़ा”

एक चिट्ठी जो अंत तक धीरज धरने में आपकी मदद कर सकती है

“हम अपना वह भरोसा आखिर तक मज़बूत बनाए रखते हैं जो हमारे अंदर शुरू में था।”—इब्रा. 3:14.

क्या सीखेंगे?

बाइबल में इब्रानियों की किताब में हमारे लिए कई बढ़िया सलाह दी गयी हैं। इन्हें मानने से हम अंत तक धीरज धर पाएँगे और वफादार रह पाएँगे।

1-2. (क) जब पौलुस ने यहूदी मसीहियों को चिट्ठी लिखी, तब यरूशलेम और यहूदिया के हालात कैसे थे? (ख) यह क्यों कहा जा सकता है कि पौलुस ने उन्हें यह चिट्ठी बिलकुल सही समय पर लिखी?

यीशु की मौत के बाद यरूशलेम और यहूदिया में रहनेवाले मसीहियों पर कई मुश्‍किलें आयीं। मसीही मंडली बनने के कुछ ही समय बाद उनका कड़ा विरोध होने लगा। (प्रेषि. 8:1) और इसके करीब 20 साल बाद उन्हें अकाल और घोर गरीबी की मार झेलनी पड़ी। (प्रेषि. 11:27-30) फिर ईसवी सन्‌ 61 के आस-पास शांति का एक दौर आया और भाई-बहनों को थोड़ी राहत मिली। पर आगे हालात बदलनेवाले थे। तभी यहोवा ने पौलुस के ज़रिए उन मसीहियों के लिए एक चिट्ठी लिखवायी। इसमें ऐसी बढ़िया सलाह थी जो उनके बहुत काम आती।

2 पौलुस की यह चिट्ठी उन्हें बिलकुल सही समय पर मिली। शांति का दौर खत्म होनेवाला था, जैसा यीशु ने बताया था यरूशलेम और उसके मंदिर का नाश होनेवाला था। (लूका 21:20) लेकिन इस चिट्ठी में दी बढ़िया सलाह मानने से यहूदी मसीही आनेवाली मुश्‍किलों का अच्छी तरह सामना कर पाते। पर एक बात थी, ना तो पौलुस और ना ही यहूदी मसीही जानते थे कि यह नाश ठीक कब होगा। इस बचे हुए वक्‍त में ये मसीही खुद को तैयार कर सकते थे। वे विश्‍वास और धीरज जैसे गुण बढ़ा सकते थे जिनकी उन्हें बहुत ज़रूरत पड़ती।—इब्रा. 10:25; 12:1, 2.

3. आज हमारे लिए इब्रानियों की किताब पर ध्यान देना क्यों बहुत ज़रूरी है?

3 यहूदिया में रहनेवाले मसीहियों ने जिस संकट का सामना किया था, हम पर उससे भी बड़ा संकट आनेवाला है। (मत्ती 24:21; प्रका. 16:14, 16) इसलिए आइए हम इब्रानियों की किताब में दी बढ़िया सलाह पर ध्यान दें जो यहोवा ने उन मसीहियों को दी थीं। ऐसा करने से हमें बहुत फायदा होगा।

“पूरा ज़ोर लगाकर प्रौढ़ता के लक्ष्य की तरफ बढ़ते जाएँ”

4. जो यहूदी लोग मसीही बने, उनके आगे कौन-सी मुश्‍किलें थीं? (तसवीर भी देखें।)

4 जो यहूदी लोग मसीही बने, उन्हें बड़े-बड़े बदलाव करने थे। वह क्यों? एक वक्‍त पर यहूदी यहोवा के चुने हुए लोग थे। उनका शहर यरूशलेम बहुत खास था। यहोवा के चुने हुए राजा वहीं से राज करते थे। इतना ही नहीं, यहोवा का मंदिर वहाँ था और लोग उपासना करने के लिए वहीं आते थे। उनके धर्म गुरु मूसा के कानून के आधार पर जो शिक्षाएँ देते थे, उन्हें वे पूरे दिल से मानते थे। जैसे, उन्हें क्या खाना चाहिए और क्या नहीं, खतना के बारे में उनका क्या नज़रिया होना चाहिए और गैर-यहूदियों के साथ उन्हें कैसा व्यवहार करना चाहिए। लेकिन यीशु की मौत के बाद सबकुछ बदल गया। मूसा का कानून रद्द हो गया और अब मंदिर में बलिदान चढ़ाने की कोई ज़रूरत नहीं थी। पर यहूदी मसीहियों के लिए मूसा का कानून छोड़ना आसान नहीं था, क्योंकि यह उनकी रग-रग में बसा था। (इब्रा. 10:1, 4, 10) यहाँ तक कि प्रेषित पतरस जैसे प्रौढ़ मसीहियों को भी पुरानी बातों को छोड़ना मुश्‍किल लग रहा था। (प्रेषि. 10:9-14; गला. 2:11-14) और-तो-और, उनके इस नए विश्‍वास की वजह से यहूदी धर्म गुरु उन्हें सताने लगे, उन पर ज़ुल्म करने लगे।

यहूदी धर्म गुरु मंदिर में हैं और वे उन मसीहियों की बुराई कर रहे हैं जो कुछ दूर खड़े प्रचार कर रहे हैं।

मसीहियों को यहूदी धर्म गुरुओं की झूठी शिक्षाओं को ठुकराना था और सच्चाई को थामे रहना था (पैराग्राफ 4-5)


5. यहूदी मसीहियों को क्यों सतर्क रहना था?

5 यहूदी मसीहियों पर बाहर से भी मुश्‍किलें आ रही थीं और मंडली के अंदर से भी। एक तो यहूदी धर्म गुरु उन्हें धर्मत्यागी समझ रहे थे और उन पर ज़ुल्म कर रहे थे। ऊपर से मंडली में कुछ मसीही मूसा के कानून की कुछ बातों को मानने पर ज़ोर दे रहे थे। शायद वे सोच रहे थे कि इन्हें मानने से वे धर्म गुरुओं के ज़ुल्मों से बच जाएँगे। (गला. 6:12) ऐसे में यहूदी मसीही गुमराह हो सकते थे। तो यहोवा के वफादार रहने के लिए उन्हें क्या करना था?

6. पौलुस ने मसीहियों को क्या बढ़ावा दिया? (इब्रानियों 5:14–6:1)

6 पौलुस ने अपनी चिट्ठी में यहूदी मसीहियों को बढ़ावा दिया कि वे परमेश्‍वर के वचन का गहराई से अध्ययन करें और उस पर मनन करें। (इब्रानियों 5:14–6:1 पढ़िए।) उसने इब्रानी शास्त्र से हवाले देकर उन्हें समझाया कि मसीही जिस तरह यहोवा की उपासना करते हैं, वह क्यों यहूदियों के तरीके से कहीं बेहतर है।a पौलुस जानता था कि अगर यहूदी मसीही अपना ज्ञान बढ़ाएँ और सच्चाई की अच्छी समझ हासिल करें, तो वे गुमराह नहीं होंगे। वे झूठी दलीलों और शिक्षाओं को पहचान पाएँगे और उन्हें ठुकरा पाएँगे।

7. आज हमें किन मुश्‍किलों का सामना करना पड़ता है?

7 हमारे ज़माने में भी ऐसी बातें फैलायी जाती हैं जो यहोवा के स्तरों के खिलाफ हैं। विरोधी अकसर हम पर यह इलज़ाम लगाते हैं कि हमारी सोच बहुत छोटी है, क्योंकि सेक्स के बारे में हमारा नज़रिया बिलकुल अलग है। आज लोगों का रवैया और उनकी सोच बिगड़ती जा रही है और यहोवा से और भी दूर होती जा रही है। (नीति. 17:15) इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि हम उन बातों को पहचानें जो यहोवा की सोच से मेल नहीं खातीं और उन्हें ठुकराएँ। ऐसा करने से हम विरोधियों की बातों में नहीं आएँगे और सच्चाई से बहकेंगे नहीं।—इब्रा. 13:9.

8. प्रौढ़ता हासिल करने के लिए हमें क्या करते रहना होगा?

8 पौलुस ने यहूदी मसीहियों को सलाह दी कि वे “पूरा ज़ोर लगाकर प्रौढ़ता के लक्ष्य की तरफ बढ़ते जाएँ।” आज हमें भी ऐसा ही करना है। इसका मतलब, हमें गहराई से बाइबल का अध्ययन करना है ताकि हम यहोवा को और उसकी सोच को अच्छी तरह जान पाएँ। यहोवा को अपना जीवन समर्पित करने और बपतिस्मा लेने के बाद भी हमें ऐसा करते रहना है। हम चाहे कितने भी समय से यहोवा की उपासना कर रहे हों, हमें हर दिन बाइबल पढ़नी चाहिए और उसका अध्ययन करना चाहिए। (भज. 1:2) लगातार बाइबल का अध्ययन करने से हम अपना विश्‍वास बढ़ा पाएँगे। पौलुस ने यहूदी मसीहियों को भी अपना विश्‍वास बढ़ाने के लिए कहा था।—इब्रा. 11:1, 6.

‘विश्‍वास रखें ताकि अपना जीवन बचा सकें’

9. यहूदी मसीहियों को क्यों मज़बूत विश्‍वास की ज़रूरत थी?

9 बहुत जल्द यहूदिया पर जो संकट आनेवाला था, उसका सामना करने के लिए यहूदी मसीहियों को मज़बूत विश्‍वास की ज़रूरत होती। (इब्रा. 10:37-39) यीशु ने अपने चेलों को पहले से बताया था कि जब वे यरूशलेम को फौजों से घिरा हुआ देखें, तो पहाड़ों की तरफ भागना शुरू कर दें। यह सलाह सभी मसीहियों को माननी थी, फिर चाहे वे यरूशलेम में रहते थे या देहातों में। (लूका 21:20-24) यीशु की यह सलाह शायद उन्हें बेतुकी-सी लगी हो, क्योंकि जब दुश्‍मन हमला करते थे तो आम तौर पर लोग पनाह लेने के लिए शहर के अंदर जाते थे। इसलिए यीशु की सलाह मानने के लिए उन्हें सच में मज़बूत विश्‍वास की ज़रूरत थी।

10. जिन यहूदी मसीहियों का विश्‍वास मज़बूत था, उन्होंने क्या किया होगा? (इब्रानियों 13:17)

10 यहूदी मसीहियों को उन भाइयों पर भी भरोसा करना था जिनके ज़रिए यीशु मंडलियों को निर्देश दे रहा था। इन भाइयों ने ज़रूर साफ-साफ हिदायतें दी होंगी कि मसीहियों को क्या करना है और कब यरूशलेम छोड़कर भागना है। (इब्रानियों 13:17 पढ़िए।) इब्रानियों 13:17 में जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “आज्ञा मानो” किया गया है, उससे पता चलता है कि किसी को आज्ञा मानने के लिए कायल किया गया है। तो पौलुस चाहता था कि भाई-बहन अगुवाई करनेवालों पर भरोसा करें और इस वजह से उनकी आज्ञा मानें, ना कि बस फर्ज़ समझकर। यहूदी मसीहियों के लिए बहुत ज़रूरी था कि संकट आने से पहले ही वे अगुवाई करनेवालों पर भरोसा करना सीखें। अगर वे शांति के इस दौर में उन पर भरोसा करते और उनकी आज्ञा मानते, तो मुश्‍किल घड़ी में भी उनके लिए ऐसा करना आसान होता।

11. आज हम मसीहियों के लिए अपना विश्‍वास बढ़ाना क्यों ज़रूरी है?

11 यहूदी मसीहियों की तरह हमें भी अपना विश्‍वास बढ़ाने की ज़रूरत है। वह क्यों? क्योंकि आज हम दुनिया के आखिरी दिनों में जी रहे हैं, जैसा बाइबल में बताया गया था। आज ज़्यादातर लोग हमारा संदेश नहीं सुनते, उलटा हमारा मज़ाक उड़ाते हैं। (2 पत. 3:3, 4) यही नहीं, आनेवाले महा-संकट के बारे में बाइबल में थोड़ी-बहुत जानकारी तो दी गयी है, लेकिन हम सबकुछ नहीं जानते। इसलिए हमें पूरा भरोसा रखना है कि अंत बिलकुल सही वक्‍त पर आएगा और उस वक्‍त यहोवा हमारी हिफाज़त करेगा।—हब. 2:3.

12. अगर हम महा-संकट में बचना चाहते हैं, तो हमें क्या करना होगा?

12 हमें “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” पर भी अपना भरोसा बढ़ाना है, जिसके ज़रिए आज यहोवा हमारा मार्गदर्शन कर रहा है। (मत्ती 24:45) जब महा-संकट शुरू होगा, तो हो सकता है हमें साफ-साफ हिदायतें मिलें कि हमें क्या करना है, ठीक जैसे यहूदी मसीहियों को उस वक्‍त हिदायतें दी गयी होंगी, जब रोमी सेना ने यरूशलेम को घेर लिया था। तो यह बहुत ज़रूरी है कि आज हम अपना विश्‍वास बढ़ाएँ और अगुवाई करनेवाले भाइयों पर पूरा भरोसा रखें। अगर आज हम ऐसा करेंगे, तो महा-संकट के दौरान भी भाइयों की आज्ञा मानना हमारे लिए आसान होगा।

13. यहूदी मसीहियों के लिए इब्रानियों 13:5 में दी सलाह मानना क्यों ज़रूरी था?

13 यहूदी मसीही जानते थे कि एक दिन उन्हें सबकुछ छोड़कर भागना होगा। इसलिए उन्हें अपना जीवन सादा रखना था और ध्यान रखना था कि वे “पैसे से प्यार” ना करने लगें। (इब्रानियों 13:5 पढ़िए।) इनमें से कुछ मसीहियों ने गरीबी और अकाल की मार झेली थी। (इब्रा. 10:32-34) एक वक्‍त पर यहूदिया में रहनेवाले मसीही अपने विश्‍वास की खातिर सबकुछ सहने के लिए तैयार थे, लेकिन अब शायद कुछ मसीही पैसों पर भरोसा करने लगे थे। वे सोचने लगे थे कि पैसा उन्हें हर मुश्‍किल से बचा सकता है। लेकिन असल में पैसों से भरी तिजोरी भी उन्हें आनेवाले नाश से नहीं बचा सकती थी। (याकू. 5:3) अगर एक मसीही धन-दौलत से प्यार करने लगता, तो उसके लिए अपना घर-बार और अपनी संपत्ति छोड़कर भागना मुश्‍किल हो जाता।

14. अगर हमारा विश्‍वास मज़बूत होगा, तो हम पैसे के मामले में क्या फैसला लेंगे?

14 अगर हमें पूरा विश्‍वास होगा कि इस दुनिया का अंत करीब है, तो हम धन-दौलत बटोरने में नहीं लगे रहेंगे। महा-संकट के दौरान पैसे की कोई कीमत नहीं होगी। बाइबल में लिखा है, लोग “अपनी चाँदी सड़कों पर फेंक देंगे,” क्योंकि वे समझ जाएँगे कि ‘यहोवा की जलजलाहट के दिन न उनकी चाँदी उन्हें बचा सकती है, न उनका सोना।’ (यहे. 7:19) इसलिए आज हम पैसा कमाने में नहीं लग जाएँगे। इसके बजाय, अपनी ज़िंदगी में ऐसे फैसले लेंगे जिससे हम अपनी और अपने परिवार की ज़रूरतें पूरी कर सकें और यहोवा की सेवा में लगे रहें। हम बेवजह कर्ज़ नहीं लेंगे, ना ही इतनी सारी चीज़ें इकट्ठी कर लेंगे कि उनकी देखभाल करने में हमारा सारा समय चला जाए। और फिलहाल हमारे पास जो चीज़ें हैं, उनसे हद-से-ज़्यादा लगाव नहीं रखेंगे। (मत्ती 6:19, 24) अंत आने से पहले शायद कई बार हमारे विश्‍वास की परख होगी। हमें दिखाना होगा कि हम यहोवा से प्यार करते हैं, ना कि चीज़ों से।

“तुम्हें धीरज धरने की ज़रूरत है”

15. यहूदी मसीहियों को क्यों धीरज धरने की बहुत ज़रूरत थी?

15 आगे चलकर यहूदिया के हालात बिगड़नेवाले थे, इसलिए मसीहियों को धीरज धरने की ज़रूरत थी। (इब्रा. 10:36) कुछ मसीहियों ने बहुत-से ज़ुल्म सहे थे। लेकिन ज़्यादातर भाई-बहन तब मसीही बने थे जब शांति का दौर था और हालात बेहतर थे। इसलिए पौलुस ने उनसे कहा कि उन्हें आगे आनेवाली मुश्‍किलें सहने के लिए तैयार रहना है, यहाँ तक कि यीशु की तरह मौत भी सहने को तैयार रहना है। (इब्रा. 12:4) जैसे-जैसे और भी यहूदी लोग मसीही बने, विरोधी गुस्से से पागल हो गए और भाइयों को बुरी तरह सताने लगे। इब्रानियों की चिट्ठी लिखने से कुछ ही साल पहले जब पौलुस यरूशलेम में था, तो उसे देखकर यहूदी भड़क उठे। चालीस से ज़्यादा यहूदियों ने कसम खायी, “जब तक हम पौलुस को मार न डालें तब तक अगर हमने कुछ खाया या पीया, तो हम पर शाप पड़े।” (प्रेषि. 22:22; 23:12-14) यहूदी मसीहियों को ना सिर्फ ऐसे कट्टर यहूदियों के बीच जीना था, बल्कि उपासना करने के लिए इकट्ठा होना था, प्रचार करना था और अपना विश्‍वास मज़बूत बनाए रखना था।

16. आज़माइशों के बारे में सही नज़रिया रखने के लिए हमें इब्रानियों की चिट्ठी से कैसे मदद मिलती है? (इब्रानियों 12:7)

16 विरोध होने पर यहूदी मसीही कैसे धीरज धर पाते? पौलुस जानता था कि उन्हें अपनी मुश्‍किलों के बारे में सही नज़रिया रखना होगा। इसलिए उसने उन्हें समझाया कि परमेश्‍वर हमारे विश्‍वास की परख होने देता है और उस दौरान हमें प्रशिक्षण देता है। (इब्रानियों 12:7 पढ़िए।) इस वजह से हम अपने अंदर कई अच्छे गुण बढ़ा पाते हैं और उन्हें निखार भी पाते हैं। अगर यहूदी मसीही याद रखते कि आज़माइशों से गुज़रने पर अच्छे नतीजे निकलते हैं, तो इन्हें सहना उनके लिए थोड़ा आसान हो जाता।—इब्रा. 12:11.

17. मुश्‍किलें सहने के बारे में पौलुस का क्या अनुभव था?

17 पौलुस ने यहूदी मसीहियों से गुज़ारिश की कि वे हिम्मत से अपनी मुश्‍किलों का सामना करें और हार ना मानें। पौलुस उन्हें यह सलाह क्यों दे पाया? मसीही बनने से पहले पौलुस ने भाई-बहनों पर कई ज़ुल्म किए थे और मसीही बनने के बाद उसने तरह-तरह के ज़ुल्म सहे थे। (2 कुरिं. 11:23-25) इसलिए वह अच्छी तरह समझ सकता था कि उन पर क्या बीत रही है और उन्हें बता सकता था कि मुश्‍किलें सहने के लिए वे क्या कर सकते हैं। पौलुस ने मसीहियों को याद दिलाया कि मुश्‍किलें सहते वक्‍त उन्हें खुद पर भरोसा नहीं रखना है, बल्कि यहोवा पर निर्भर रहना है और हिम्मत रखनी है। पौलुस ने भी ऐसा ही किया था, तभी वह कह पाया, “यहोवा मेरा मददगार है, मैं नहीं डरूँगा।”—इब्रा. 13:6.

18. आगे चलकर क्या होगा और आज हमें क्या करना चाहिए?

18 आज हमारे कुछ भाई-बहनों पर ज़ुल्म हो रहे हैं और उन्हें सताया जा रहा है। फिर भी वे सबकुछ धीरज से सह रहे हैं। हम कैसे उन भाई-बहनों के लिए अपना प्यार ज़ाहिर कर सकते हैं? हम उनके लिए प्रार्थना कर सकते हैं। और अगर मुमकिन हो, तो ज़रूरत की चीज़ें पहुँचाकर उनकी मदद कर सकते हैं। (इब्रा. 10:33) बाइबल में बताया गया है, “जितने भी मसीह यीशु में परमेश्‍वर की भक्‍ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं उन सब पर इसी तरह ज़ुल्म ढाए जाएँगे।” (2 तीमु. 3:12) इसलिए हम सबको आनेवाली मुश्‍किलों के लिए खुद को तैयार करना है। तो आइए हम यहोवा पर पूरा भरोसा रखें कि वह आनेवाली हर मुश्‍किल को सहने में हमारी मदद करेगा और आगे चलकर अपने हर सेवक को पूरी तरह राहत देगा।—2 थिस्स. 1:7, 8.

19. हम महा-संकट के लिए खुद को कैसे तैयार कर सकते हैं? (तसवीर भी देखें।)

19 पौलुस ने यहूदी मसीहियों को जो चिट्ठी लिखी, उससे वे आनेवाली मुश्‍किलों का सामना करने के लिए तैयार हो पाए। पौलुस ने उनसे कहा कि वे शास्त्र का गहराई से अध्ययन करें और उसकी अच्छी समझ हासिल करें। ऐसा करने से वे उन शिक्षाओं को पहचान पाते और उन्हें ठुकरा पाते जिनसे उनका विश्‍वास कमज़ोर पड़ सकता था। पौलुस ने उनसे यह भी कहा कि वे अपना विश्‍वास मज़बूत करें, ताकि वे यीशु और मंडली में अगुवाई करनेवालों के निर्देश तुरंत मान सकें। उसने उन्हें यह भी बताया कि मुश्‍किलें आने पर वे कैसे धीरज धर सकते हैं। उसने कहा कि वे मुश्‍किलों के बारे में सही नज़रिया रखें, इस बात को समझें कि यहोवा उन्हें प्रशिक्षण दे रहा है। आइए हम भी इब्रानियों की चिट्ठी में दी सलाह मानें। तब हम भी अंत तक धीरज धर पाएँगे और वफादार रह पाएँगे।—इब्रा. 3:14.

पहली सदी के मसीही एक खुली जगह में एक-साथ इकट्ठा हैं।

धीरज धरने की वजह से वफादार मसीहियों को आशीषें मिलीं। यहूदिया छोड़ने के बाद भी वे एक-साथ इकट्ठा होते रहे। हम उनसे क्या सीख सकते हैं? (पैराग्राफ 19)

आपका जवाब क्या होगा?

  • हम प्रौढ़ता के लक्ष्य की तरफ कैसे बढ़ सकते हैं?

  • यह क्यों ज़रूरी है कि हम अपना विश्‍वास बढ़ाएँ?

  • हमें धीरज धरने की ज़रूरत क्यों है?

गीत 126 जागते रहो, शक्‍तिशाली बनते जाओ

a इब्रानियों की किताब के पहले अध्याय में ही पौलुस ने इब्रानी शास्त्र से कम-से-कम सात हवाले देकर समझाया कि मसीही जिस तरह उपासना करते हैं, वह यहूदियों के उपासना करने के तरीके से कहीं बेहतर है।—इब्रा. 1:5-13.

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