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लूका 2:49नयी दुनिया अनुवाद—मसीही यूनानी शास्त्र
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49 लेकिन उसने उनसे कहा: “तुम मुझे यहाँ-वहाँ क्यों ढूँढ़ते रहे? क्या तुम्हें मालूम नहीं था कि मैं अपने पिता के घर में होऊँगा?”
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दुनिया के लिए सच्ची रौशनीयीशु की ज़िंदगी—एक अनोखी दास्तान—वीडियो गाइड
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12 साल का यीशु मंदिर में (यीशु की ज़िंदगी 1 1:03:57–1:09:40)
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लूका अध्ययन नोट—अध्याय 2पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद (अध्ययन बाइबल)
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उसने उनसे कहा: इसके बाद जो शब्द लिखे हैं, वे बाइबल में दर्ज़ ब्यौरे के मुताबिक यीशु के सबसे पहले शब्द हैं। ज़ाहिर है कि जब यीशु छोटा था, तब वह पूरी तरह नहीं जानता था कि धरती पर आने से पहले स्वर्ग में उसकी ज़िंदगी कैसी थी। (मत 3:16; लूक 3:21 के अध्ययन नोट देखें।) मगर यह कहना सही लगता है कि उसकी माँ और उसके दत्तक पिता ने उसे यह सब बताया होगा कि स्वर्गदूतों ने उन्हें क्या संदेश दिया और उसके जन्म के 40 दिन बाद जब वे यरूशलेम गए, तो शिमोन और हन्ना ने क्या भविष्यवाणी की थी। (मत 1:20-25; 2:13, 14, 19-21; लूक 1:26-38; 2:8-38) यहाँ यीशु के जवाब से पता चलता है कि उसे कुछ हद तक यह समझ थी कि उसका जन्म एक चमत्कार था और स्वर्ग में रहनेवाले पिता यहोवा के साथ उसका बहुत खास रिश्ता है।
मैं अपने पिता के घर में होऊँगा: “अपने पिता के घर में,” इनके यूनानी शब्दों का शाब्दिक अनुवाद है, “अपने पिता के [मामले] में।” संदर्भ से पता चलता है कि यूसुफ और मरियम को इस बात की चिंता थी कि यीशु कहाँ है। इसलिए यह समझना वाजिब है कि इन शब्दों में जगह की बात की गयी है, यानी “अपने पिता के घर [या “निवास; आँगनों”]” की। (लूक 2:44-46) बाद में अपनी सेवा के दौरान यीशु ने मंदिर को ही ‘मेरे पिता का घर’ कहा। (यूह 2:16) लेकिन कुछ विद्वानों के मुताबिक, लूका के शब्दों का यह भी मतलब हो सकता है: “मुझे अपने पिता के मामलों में लगे रहने की ज़रूरत है।”
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