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लूका 6:20नयी दुनिया अनुवाद—मसीही यूनानी शास्त्र
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20 यीशु ने नज़र उठाकर अपने चेलों को देखा और यह कहना शुरू किया:
“सुखी हो तुम गरीबो, क्योंकि परमेश्वर का राज तुम्हारा है।
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लूका अध्ययन नोट—अध्याय 6पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद (अध्ययन बाइबल)
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अपने चेलों: “चेले” के यूनानी शब्द माथेतेस का मतलब है, सीखनेवाला या जिसे सिखाया जाता है। इस शब्द से यह भी पता चलता है कि गुरु-चेले के बीच गहरा लगाव है, इतना गहरा कि गुरु की शिक्षाओं का चेले की पूरी ज़िंदगी पर असर होता है। हालाँकि यीशु की बातें सुनने के लिए एक बड़ी भीड़ इकट्ठा थी, फिर भी ऐसा लगता है कि यीशु ने खासकर अपने चेलों से बात की जो उसके करीब बैठे थे।—मत 5:1, 2; 7:28, 29.
और वह कहने लगा: पहाड़ी उपदेश के बारे में मत्ती (अध्याय 5-7) और लूका (6:20-49), दोनों ने लिखा। लूका ने इस उपदेश की कुछ बातें लिखीं, जबकि मत्ती ने बहुत-सी बातें लिखीं। इसलिए मत्ती का ब्यौरा लूका से चार गुना बड़ा है। लूका ने पहाड़ी उपदेश की जो बातें लिखीं, उनमें से कुछ को छोड़ बाकी सब बातें मत्ती की किताब में पायी जाती हैं। दोनों ब्यौरों की शुरूआत और अंत एक जैसे हैं। इन ब्यौरों में मिलते-जुलते शब्द इस्तेमाल हुए हैं। इनमें जो जानकारी दी गयी है और विषयों को जिस क्रम में पेश किया गया है, वे भी मोटे तौर पर एक जैसे हैं। लेकिन कुछ जगह हैं जहाँ शब्दों में बहुत फर्क है। फिर भी दोनों ब्यौरों में मेल है। गौर करनेवाली बात यह है कि इस उपदेश के जिन बड़े-बड़े भागों को लूका ने दर्ज़ नहीं किया, उन्हें यीशु ने दूसरे मौकों पर फिर से बताया। उदाहरण के लिए, पहाड़ी उपदेश में यीशु ने प्रार्थना (मत 6:9-13) और ज़रूरत की चीज़ों के बारे में सही नज़रिया रखने की सलाह दी (मत 6:25-34)। ऐसा मालूम होता है कि करीब डेढ़ साल बाद यीशु ने ये बातें फिर से बतायीं और तब इन्हें लूका ने दर्ज़ किया। (लूक 11:2-4; 12:22-31) इसके अलावा, लूका ने अपनी किताब सभी मसीहियों के लिए लिखी, फिर चाहे वे किसी भी संस्कृति के रहे हों, इसलिए उसने शायद इस उपदेश की वे बातें नहीं लिखीं, जो खासकर यहूदियों के लिए थीं।—मत 5:17-27; 6:1-18.
सुखी: मत 5:3; रोम 4:7 के अध्ययन नोट देखें।
तुम जो गरीब हो: ये शब्द यीशु ने पहाड़ी उपदेश में कहे थे। यहाँ जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “गरीब” किया गया है उसका मतलब है, “ज़रूरतमंद; कंगाल; भिखारी।” और यही यूनानी शब्द मूल पाठ में मत 5:3 में भी आता है। पर मत्ती ने इसके साथ शब्द नफ्मा भी लिखा। इन शब्दों से उसने उन लोगों की बात की जिन्हें इस बात का ज़बरदस्त एहसास है कि उनका परमेश्वर के साथ कोई रिश्ता नहीं है मानो वे कंगाल हैं और उन्हें परमेश्वर के मार्गदर्शन की ज़रूरत है। (मत 5:3; लूक 16:20 के अध्ययन नोट देखें।) लूक 6:20 में गरीबों की बात की गयी है जिनके पास ज़्यादा कुछ नहीं है। यह बात मत 5:3 में लिखी बात से मेल खाती है, क्योंकि जो गरीब और कुचले हुए हैं अकसर उन्हें दूसरों से ज़्यादा एहसास होता है कि उन्हें परमेश्वर से मार्गदर्शन चाहिए। देखा जाए तो यीशु के मसीहा बनकर आने की एक खास वजह यह थी कि वह ‘गरीबों को खुशखबरी सुनाए।’ (लूक 4:18) जो लोग यीशु के शिष्य बने और परमेश्वर के राज की आशीषें पाने की आशा रखते थे, वे ज़्यादातर गरीब और साधारण लोग थे। (1कुर 1:26-29; याकू 2:5) पर मत 5:3 में लिखी बात से यह साफ पता चलता है कि सिर्फ गरीब होने से ही एक इंसान को परमेश्वर की मंज़ूरी नहीं मिलती। इसलिए मत्ती और लूका ने सुखी होने के बारे में जो पहली बात कही, वह एक-दूसरे से मेल खाती है।
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