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व्यवस्थाविवरण का सारांश

      • इसराएल को क्यों देश दिया गया (1-6)

      • इसराएल ने चार बार यहोवा को गुस्सा दिलाया (7-29)

        • सोने का बछड़ा (7-14)

        • मूसा ने बीच-बचाव किया (15-21, 25-29)

        • तीन बार और क्रोध भड़काया (22)

व्यवस्थाविवरण 9:1

संबंधित आयतें

  • +यह 4:19
  • +व्य 7:1
  • +गि 13:28

व्यवस्थाविवरण 9:2

संबंधित आयतें

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इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    सभा पुस्तिका के लिए हवाले, 5/2021, पेज 14-15

व्यवस्थाविवरण 9:3

फुटनोट

  • *

    या “बेदखल करके।”

संबंधित आयतें

  • +व्य 1:30; 20:4; 31:3
  • +व्य 4:24; इब्र 12:29
  • +निर्ग 23:31; व्य 7:23, 24

व्यवस्थाविवरण 9:4

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  • +व्य 7:7, 8; यहे 36:22
  • +उत 15:16; व्य 12:31; 18:9, 12

व्यवस्थाविवरण 9:5

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  • +लैव 18:25
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व्यवस्थाविवरण 9:6

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  • +निर्ग 34:9; भज 78:8

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  • +व्य 9:22; भज 78:40; इब्र 3:16
  • +निर्ग 17:2; गि 11:4; 16:1, 2; 25:2, 3; व्य 31:27

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    12/1/1996, पेज 30

व्यवस्थाविवरण 9:8

संबंधित आयतें

  • +निर्ग 32:4, 10

व्यवस्थाविवरण 9:9

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  • +निर्ग 24:12; 31:18; 32:16
  • +निर्ग 24:7
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व्यवस्थाविवरण 9:10

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  • +निर्ग 19:19; व्य 4:10-13

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    सभा पुस्तिका के लिए हवाले, 1/2024, पेज 11

व्यवस्थाविवरण 9:12

फुटनोट

  • *

    या “ढली हुई मूरत।”

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व्यवस्थाविवरण 9:13

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व्यवस्थाविवरण 9:14

फुटनोट

  • *

    शा., “आकाश के नीचे से।”

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व्यवस्थाविवरण 9:15

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व्यवस्थाविवरण 9:16

फुटनोट

  • *

    या “अपने लिए एक बछड़ा ढालकर बना लिया है।”

संबंधित आयतें

  • +निर्ग 20:3, 4

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग, 3/1/2005, पेज 31

व्यवस्थाविवरण 9:17

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व्यवस्थाविवरण 9:25

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व्यवस्थाविवरण 9:26

फुटनोट

  • *

    या “विरासत।”

  • *

    या “महानता।”

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  • +निर्ग 19:5; भज 135:4
  • +निर्ग 32:11

व्यवस्थाविवरण 9:27

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  • +निर्ग 32:31, 32

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  • +निर्ग 32:12; गि 14:15, 16

व्यवस्थाविवरण 9:29

फुटनोट

  • *

    या “विरासत।”

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  • +1रा 8:51; नहे 1:10
  • +निर्ग 6:6; व्य 4:20, 34

दूसरें अनुवाद

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दूसरी

व्यव. 9:1यह 4:19
व्यव. 9:1व्य 7:1
व्यव. 9:1गि 13:28
व्यव. 9:2गि 13:33
व्यव. 9:3व्य 1:30; 20:4; 31:3
व्यव. 9:3व्य 4:24; इब्र 12:29
व्यव. 9:3निर्ग 23:31; व्य 7:23, 24
व्यव. 9:4व्य 7:7, 8; यहे 36:22
व्यव. 9:4उत 15:16; व्य 12:31; 18:9, 12
व्यव. 9:5लैव 18:25
व्यव. 9:5उत 13:14, 15; 17:1, 8
व्यव. 9:5उत 26:3
व्यव. 9:5उत 28:13
व्यव. 9:6निर्ग 34:9; भज 78:8
व्यव. 9:7व्य 9:22; भज 78:40; इब्र 3:16
व्यव. 9:7निर्ग 17:2; गि 11:4; 16:1, 2; 25:2, 3; व्य 31:27
व्यव. 9:8निर्ग 32:4, 10
व्यव. 9:9निर्ग 24:12; 31:18; 32:16
व्यव. 9:9निर्ग 24:7
व्यव. 9:9निर्ग 24:18
व्यव. 9:10निर्ग 19:19; व्य 4:10-13
व्यव. 9:12निर्ग 32:7
व्यव. 9:12निर्ग 32:4
व्यव. 9:13निर्ग 32:9
व्यव. 9:14निर्ग 32:10
व्यव. 9:15निर्ग 32:15
व्यव. 9:15निर्ग 19:18
व्यव. 9:16निर्ग 20:3, 4
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व्यव. 9:18निर्ग 34:28
व्यव. 9:19निर्ग 32:10
व्यव. 9:19निर्ग 32:11, 14; भज 106:23
व्यव. 9:20निर्ग 32:2, 21
व्यव. 9:21निर्ग 32:4
व्यव. 9:21निर्ग 32:20
व्यव. 9:22गि 11:3
व्यव. 9:22निर्ग 17:7
व्यव. 9:22गि 11:4, 34
व्यव. 9:23गि 13:26
व्यव. 9:23गि 14:3, 4
व्यव. 9:23व्य 1:32; भज 106:24, 25; इब्र 3:19
व्यव. 9:25निर्ग 34:28
व्यव. 9:26निर्ग 19:5; भज 135:4
व्यव. 9:26निर्ग 32:11
व्यव. 9:27निर्ग 3:6; 6:8; व्य 9:5
व्यव. 9:27निर्ग 32:31, 32
व्यव. 9:28निर्ग 32:12; गि 14:15, 16
व्यव. 9:291रा 8:51; नहे 1:10
व्यव. 9:29निर्ग 6:6; व्य 4:20, 34
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पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद (अध्ययन बाइबल)
व्यवस्थाविवरण 9:1-29

व्यवस्थाविवरण

9 हे इसराएल सुन, आज तू यरदन पार करके+ उस देश में जानेवाला है और वहाँ से ऐसी जातियों को हटानेवाला है जो तुझसे ज़्यादा बड़ी और ताकतवर हैं,+ जिनके शहर बहुत बड़े-बड़े हैं और जिनकी शहरपनाह आसमान छूती है,+ 2 जहाँ के अनाकी लोग+ लंबे-चौड़े और ताकतवर हैं और उनके बारे में तू जानता है और तूने यह सुना है, ‘कौन अनाकियों से टक्कर ले सकता है?’ 3 इसलिए आज तू यह जान ले कि तेरे आगे-आगे तेरा परमेश्‍वर यहोवा उस पार जाएगा।+ तेरा परमेश्‍वर भस्म करनेवाली आग है+ और वह उन्हें नाश कर देगा। वह उन्हें तेरी आँखों के सामने हरा देगा और तू उन्हें देखते-ही-देखते खदेड़कर* नाश कर देगा, ठीक जैसे यहोवा ने तुझसे वादा किया है।+

4 जब तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा उन जातियों को तुम्हारे सामने से खदेड़ देगा तो उसके बाद तुम अपने दिल में यह मत कहना, ‘हम नेक लोग हैं इसीलिए यहोवा हमें इस देश में ले आया कि हम इसे अपने अधिकार में कर लें।’+ असल बात यह है कि यहोवा उन जातियों को तुम्हारे सामने से इसलिए भगा रहा है क्योंकि वे बहुत दुष्ट हैं।+ 5 तुम जो उनके देश पर कब्ज़ा करने जा रहे हो, इसकी वजह यह नहीं कि तुम बड़े नेक हो या मन के सीधे-सच्चे हो। तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा उन्हें तुम्हारे सामने से इसलिए भगा रहा है क्योंकि वे बहुत दुष्ट हैं+ और यहोवा ने शपथ खाकर तुम्हारे पुरखों को, अब्राहम,+ इसहाक+ और याकूब+ को जो वचन दिया था उसे वह पूरा कर रहा है। 6 इसलिए जान लो कि तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा तुम्हें इस बढ़िया देश का जो अधिकारी बना रहा है, उसकी वजह यह नहीं कि तुम नेक हो। तुम तो दरअसल बहुत ढीठ किस्म के लोग हो।+

7 यह बात हमेशा याद रखना और कभी मत भूलना कि तुमने वीराने में अपने परमेश्‍वर यहोवा को कैसे गुस्सा दिलाया था।+ जिस दिन तुमने मिस्र छोड़ा था, उस दिन से लेकर यहाँ इस जगह पहुँचने तक तुमने न जाने कितनी बार यहोवा से बगावत की।+ 8 तुमने होरेब में भी यहोवा को गुस्सा दिलाया जिस वजह से यहोवा का क्रोध ऐसा भड़क उठा कि वह तुम्हें नाश करनेवाला था।+ 9 उस वक्‍त मैं पत्थर की पटियाएँ लेने पहाड़ पर गया हुआ था।+ यहोवा ने तुम्हारे साथ जो करार किया था उस करार की पटियाएँ+ लेने मैं गया था और 40 दिन और 40 रात वहीं पहाड़ पर रहा।+ इतने दिन तक न मैंने खाना खाया न पानी पीया। 10 फिर यहोवा ने मुझे पत्थर की वे दोनों पटियाएँ दीं। उन पटियाओं पर यहोवा ने अपने हाथ से वे सारी आज्ञाएँ लिखीं जो उसने तुम्हारी पूरी मंडली को पहाड़ पर आग में से बात करते वक्‍त दी थीं।+ 11 फिर 40 दिन और 40 रात के आखिर में यहोवा ने मुझे करार की दोनों पटियाएँ दीं। 12 इसके बाद यहोवा ने मुझसे कहा, ‘अब तू उठ और जल्दी से नीचे जा क्योंकि तेरे लोगों ने, जिन्हें तू मिस्र से निकाल लाया है, दुष्ट काम किया है।+ कितनी जल्दी वे उस राह से फिर गए हैं जिस पर चलने की आज्ञा मैंने दी थी। उन्होंने पूजा के लिए धातु की एक मूरत* बनायी है।’+ 13 फिर यहोवा ने मुझसे कहा, ‘मैं देख सकता हूँ कि ये लोग कितने ढीठ हैं!+ 14 इसलिए अब मुझे मत रोक, मैं इनका नाश कर दूँगा और धरती से* इनका नाम मिटा दूँगा। और मैं तुझसे एक ऐसा राष्ट्र बनाऊँगा जो इनसे ज़्यादा ताकतवर और गिनती में बड़ा होगा।’+

15 तब मैं अपने हाथ में करार की दोनों पटियाएँ लिए पहाड़ से नीचे उतर आया।+ पहाड़ आग से जल रहा था।+ 16 जब मैं तुम्हारे पास आया तो मैंने देखा कि तुमने धातु से बछड़े की एक मूरत बना ली है।* अपने परमेश्‍वर यहोवा के खिलाफ तुमने कितना बड़ा पाप किया था! कितनी जल्दी तुम उस रास्ते से फिर गए जिस पर चलने की आज्ञा यहोवा ने तुम्हें दी थी।+ 17 तब मैंने तुम्हारी आँखों के सामने दोनों पटियाएँ नीचे पटक दीं और वे चूर-चूर हो गयीं।+ 18 फिर मैं पहले की तरह यहोवा के सामने मुँह के बल ज़मीन पर गिरा और 40 दिन, 40 रात ऐसा करता रहा। मैंने न खाना खाया, न पानी पीया+ क्योंकि तुमने यहोवा की नज़र में बुरे काम करके पाप किया था और उसे क्रोध दिलाया था। 19 यहोवा का क्रोध देखकर मैं डर गया था क्योंकि वह तुम पर इतना भड़का हुआ था+ कि तुम सबको नाश करनेवाला था। मगर यहोवा ने इस बार भी मेरी फरियाद सुनी।+

20 यहोवा हारून से इतना गुस्सा हुआ कि वह उसे मार डालनेवाला था,+ मगर तब मैंने उसके लिए भी मिन्‍नतें कीं। 21 फिर मैंने तुम्हारे उस पाप को, उस बछड़े+ को आग में जला दिया। मैंने उसे ऐसा चूर-चूर कर दिया कि वह महीन धूल की तरह हो गया और मैंने वह धूल पहाड़ से नीचे बहनेवाली पानी की धारा में फेंक दी।+

22 इसके बाद तुमने तबेरा,+ मस्सा+ और किबरोत-हत्तावा+ में भी यहोवा का क्रोध भड़काया। 23 फिर जब यहोवा ने कादेश-बरने+ में तुम्हें आदेश दिया, ‘जाओ, उस देश को अपने अधिकार में कर लो जो मैं तुम्हें ज़रूर दूँगा!’ तो तुमने अपने परमेश्‍वर यहोवा की बात नहीं मानी और उससे एक बार फिर बगावत की।+ तुमने उस पर विश्‍वास नहीं किया+ और उसकी आज्ञा नहीं मानी। 24 जब से मैं तुम्हें जानता हूँ तब से तुम बार-बार यहोवा से बगावत करते आए हो।

25 जब यहोवा ने कह दिया कि वह तुम सबको नाश कर देगा, तो मैं 40 दिन और 40 रात यहोवा के सामने मुँह के बल ज़मीन पर गिरकर+ 26 यहोवा से फरियाद करता रहा, ‘हे सारे जहान के मालिक यहोवा, तू अपने लोगों को नाश मत कर। वे तेरी अपनी जागीर* हैं+ जिन्हें तूने अपनी ताकत* से और अपने शक्‍तिशाली हाथ से मिस्र से बाहर निकाला है।+ 27 अपने सेवकों को, अब्राहम, इसहाक और याकूब को याद कर।+ और इन लोगों की ढिठाई, इनकी दुष्टता और इनके पाप की तरफ ध्यान मत दे।+ 28 वरना तू हमें जिस देश से निकालकर लाया है वहाँ के लोग कहेंगे, “यहोवा उन्हें उस देश में ले जाने में नाकाम हो गया जिसके बारे में उसने वादा किया था। वह तो उनसे नफरत करता था इसलिए उसने उन्हें वीराने में ले जाकर मार डाला।”+ 29 ये तेरे लोग हैं, तेरी अपनी जागीर* हैं+ जिन्हें तू अपना हाथ बढ़ाकर अपनी महाशक्‍ति से बाहर निकाल लाया है।’+

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