अय्यूब
2 ठट्ठा करनेवाले मुझे चारों ओर से घेरे रहते हैं,+
मैं देखता* रहता हूँ कि वे मुझसे कैसी दुश्मनी निकालते हैं।
3 हे परमेश्वर, मुझे छुड़ाने का ज़िम्मा ले ले,*
तेरे सिवा कौन है जो हाथ मिलाकर मदद देने का वादा करे?+
5 ऐसा इंसान अपने दोस्तों में बाँटता फिरता है,
जबकि उसके बच्चों की आँखें तरसती रह जाती हैं।
6 परमेश्वर ने लोगों के बीच मेरा मज़ाक* बना दिया है,+
मेरा यह हाल कर दिया है कि वे मेरे मुँह पर थूकते हैं।+
8 मेरा हाल देखकर सीधे-सच्चे लोग दंग रह जाते हैं
और निर्दोष लोग, भक्तिहीन के कारण गुस्से से भर जाते हैं।
10 तुम सब आओ और फिर से दलीलें देना शुरू करो
क्योंकि अब तक तुममें से किसी ने बुद्धि की बातें नहीं कहीं।+
12 मेरे साथी रात को दिन बताते हैं,
कहते हैं ‘सवेरा होनेवाला है!’ पर मुझे तो अँधेरा ही नज़र आता है।
13 अगर यूँ ही इंतज़ार करता रहा, तो कब्र मेरा घर बन जाएगी,+
मुझे अँधेरे में अपना बिस्तर बिछाना पड़ेगा।+
14 मैं गड्ढे*+ से कहूँगा, ‘तू मेरा पिता है।’
कीड़ों से कहूँगा, ‘तू मेरी माँ है और तू मेरी बहन।’
15 ऐसे में मेरे लिए क्या आशा है?+
क्या किसी को मेरे लिए कोई उम्मीद नज़र आती है?