भजन
दाविद की रचना। निर्देशक के लिए हिदायत: “नाश न होने दे” के मुताबिक। मिकताम।* यह गीत उस समय का है जब दाविद शाऊल से भागकर गुफा में जा छिपा था।+
57 हे परमेश्वर, मुझ पर कृपा कर, कृपा कर,
क्योंकि मैं तेरी पनाह में आया हूँ,+
जब तक मुसीबतें टल नहीं जातीं, मैं तेरे पंखों की छाँव तले पनाह लूँगा।+
2 मैं परम-प्रधान परमेश्वर को पुकारता हूँ,
सच्चे परमेश्वर को, जो मेरी मुसीबतों का अंत कर देता है।
3 वह स्वर्ग से मेरी मदद करेगा, मुझे बचाएगा।+
वह उसे नाकाम कर देगा जो मुझे काटने को दौड़ता है। (सेला )
परमेश्वर अपने अटल प्यार और वफादारी का सबूत देगा।+
मुझे ऐसे आदमियों के बीच लेटना पड़ता है जो मुझे फाड़ खाना चाहते हैं,
जिनके दाँत भाले और तीर हैं,
जिनकी जीभ तेज़ तलवार है।+
उन्होंने मुझे गिराने के लिए गड्ढा खोदा,
मगर खुद उसमें गिर पड़े।+ (सेला )
मैं गीत गाऊँगा, संगीत बजाऊँगा।
8 हे मेरे मन, जाग!
हे तारोंवाले बाजे और सुरमंडल, तुम भी जागो!
मैं भोर को जगाऊँगा।+