श्रेष्ठगीत
3 “जवान लड़कों में मेरा साजन ऐसा है,
जैसे जंगल के पेड़ों में सेब का पेड़।
उसकी छाँव में कितना सुख मिलता है,
उसके फल कितने रसीले हैं।
4 वह मुझे दावतवाले घर में ले आया
और उसने मुझ पर प्यार का झंडा फहराया।
5 मुझे किशमिश की टिकिया दो कि मैं तरो-ताज़ा हो जाऊँ,+
सेब खिलाओ कि मुझे ताकत मिले,
क्योंकि मैं उसके प्यार में दीवानी हो गयी हूँ।
जब तक प्यार खुद मेरे अंदर न जागे, तुम उसे जगाने की कोशिश नहीं करोगी।+
8 मेरा साजन आ रहा है! मुझे उसकी आवाज़ सुनायी दे रही है!
वह देखो, वह रहा!
कैसे पहाड़ों पर चढ़ता हुआ, पहाड़ियों को फाँदता हुआ चला आ रहा है!
9 मेरा साजन चिकारे जैसा, जवान हिरन जैसा है।+
देखो, वह दीवार के पीछे खड़ा है,
खिड़की से झाँक रहा है,
झरोखे से ताक रहा है।
10 मेरा साजन मुझे बुला रहा है,
‘ओ मेरी सजनी, मेरी सुंदरी,
चल, मेरे साथ चल!
बादल बरसकर चले गए।
ओ मेरी सजनी, मेरी सुंदरी,
चल, मेरे साथ चल!
14 ओ मेरी फाख्ता, चट्टानों में छिपी मत रह,+
खड़ी चट्टानों की दरार से बाहर आ,
अपनी मीठी आवाज़ मुझे सुना,+
अपना खूबसूरत चेहरा दिखा।’”+
15 “जा, छोटी-छोटी लोमड़ियाँ पकड़,
कहीं वे हमारे अंगूरों के बाग तहस-नहस न कर दें,
अभी-अभी तो उनमें फूल आए हैं।”
16 “मेरा साजन मेरा है और मैं उसकी हूँ।+
वह मैदान में भेड़ें चरा रहा है+ जहाँ सोसन* के फूल खिले हैं।+