क्या हमेशा तक जीना सचमुच मुमकिन है?
“हे गुरु; मैं कौन सा भला काम करूं, कि अनन्त जीवन पाऊं?” —मत्ती १९:१६.
१. इंसान की ज़िंदगी के बारे में क्या कहा जा सकता है?
फारस का राजा अहैसिरस जिसे बाइबल में क्षयर्ष कहा गया है, सामान्य युग पूर्व ४८० में लड़ाई में जाने से पहले अपनी सेना का मुआयना कर रहा था। (एस्तेर १:१, २) यूनानी इतिहासकार हेरोडोटस कहता है कि अपने जवानों का मुआयना करते वक्त राजा की आँखों में आँसू भर आए। क्यों? क्षयर्ष ने कहा, “यह सोचकर मुझे दुख होता है कि इंसान की ज़िंदगी कितनी छोटी है। आज से सौ साल बाद इनमें से कोई भी जवान ज़िंदा नहीं होगा।” आपको भी शायद कभी इस बात का एहसास हुआ होगा कि इंसान की ज़िंदगी कितनी छोटी होती है और कोई भी बूढ़ा और बीमार होकर मरना नहीं चाहता। काश, हम सब जवान और तंदुरुस्त रहकर, हमेशा तक ज़िंदगी का मज़ा ले पाते!—अय्यूब १४:१, २.
२. कई लोग क्या विश्वास करते हैं और क्यों?
२ यह एक सोचनेवाली बात है कि सितंबर २८, १९९७ की द न्यू यॉर्क टाइम्स मैगज़ीन में एक लेख छापा गया, जिसका शीर्षक था, “वे जीना चाहते हैं।” इसमें एक शोधकर्ता का हवाला दिया गया जिसने कहा था: “मुझे पक्का विश्वास है कि हमारी पीढ़ी हमेशा तक जीनेवाली सबसे पहली पीढ़ी हो सकती है”! शायद आप भी मानते हों कि हमेशा तक जीना मुमकिन है। आप शायद इसलिए मानते होंगे क्योंकि बाइबल वादा करती है कि हम यहाँ पृथ्वी पर हमेशा तक जी सकते हैं। (भजन ३७:२९; प्रकाशितवाक्य २१:३, ४) लेकिन, कई लोग ऐसे हैं जो विश्वास करते हैं कि हमेशा तक जीना मुमकिन है मगर इसलिए नहीं कि बाइबल में ऐसा बताया गया है बल्कि उनके विश्वास की वज़ह कुछ और है। ऐसी ही कुछ वज़हों पर गौर करने से हमें यह समझने में मदद मिलेगी कि हमेशा तक जीना वाकई मुमकिन है।
हमेशा तक जीने के लिए बनाए गए
३, ४. (क) कुछ लोग क्यों मानते हैं कि इंसान को हमेशा तक जीना चाहिए? (ख) दाऊद ने अपने शरीर की रचना के बारे में क्या कहा?
३ कई लोग मानते हैं कि इंसान को हमेशा तक जीना चाहिए क्योंकि हमारी रचना बहुत ही अद्भुत तरीके से की गई है। मिसाल के तौर पर, माँ के गर्भ में जिस तरह हमारा एक-एक अंग बनता है वह वाकई एक चमत्कार है। हम बूढ़े क्यों होते हैं इस पर अध्ययन करनेवाले एक विद्वान ने लिखा: “कुदरत ने इंसान की रचना करते वक्त बड़े-बड़े करिश्मे किए हैं। गर्भ में उसकी ज़िंदगी शुरू होने से लेकर जन्म तक और फिर जवान होने और बड़े होने तक कुदरत ने सभी करिश्मे कर दिखाए, लेकिन इन्हें कायम रखने के लिए एक और ज़रूरी और छोटा-सा करिश्मा नहीं किया।” जी हाँ, हमारे शरीर की अद्भुत रचना पर गौर करने से हमारे सामने फिर वही सवाल आता है, आखिर हम मरते क्यों हैं?
४ हज़ारों साल पहले बाइबल के एक लेखक दाऊद ने भी इन्हीं चमत्कारों पर मनन किया, हालाँकि वह यह नहीं देख सकता था कि गर्भ के अंदर क्या होता है, जैसा आज कि वैज्ञानिक देख सकते हैं। दाऊद ने इस बारे में गंभीरता से सोचा कि अपनी ‘माता के गर्भ में रचे’ जाते वक्त उसका एक-एक अंग कैसे बना होगा। उसने कहा, उस वक्त उसके “भीतरी अंगों को बनाया” (NHT) गया था। अपनी ‘हड्डियों’ की रचना का भी ज़िक्र करते हुए उसने कहा कि “मैं गुप्त में बनाया” गया। इसके बाद दाऊद ने अपनी माता के गर्भ में अपने “बेडौल तत्व” यानी भ्रूण का ज़िक्र करते हुए कहा: “मेरे सब अंग . . . पुस्तक में लिखे हुए थे।”—भजन १३९:१३-१६.
५. गर्भ में हमारी रचना होते वक्त कैसे-कैसे चमत्कार होते हैं?
५ यह सच है कि दाऊद की माँ के गर्भ में सचमुच की ऐसी कोई पुस्तक नहीं थी जिसमें दाऊद के शरीर की बनावट की रूपरेखा दी गई हो। लेकिन जब दाऊद ने अपने “भीतरी अंगों,” अपनी ‘हड्डियों’ और शरीर के बाकी अंगों की रचना के बारे में सोचा, तो उसे लगा कि इन अंगों को एक योजना के मुताबिक बनाया गया था—मानो ये सब किसी ‘पुस्तक में लिखा हुआ हो।’ यह ऐसा था मानो उसकी माँ के गर्भ में पड़े भ्रूण में एक बड़ा कमरा था जिसमें ढेर सारी किताबें थीं और इन किताबों में इस बारे में सूचनाएँ दी गई थीं कि एक बच्चे की रचना कैसे होगी। और हर नई कोशिका को ये जटिल सूचनाएँ दी जा रही थीं। इसलिए साइंस वर्ल्ड पत्रिका इन्हीं शब्दों का इस्तेमाल करते हुए कहती है कि ‘बढ़ रहे भ्रूण की हर कोशिका में ढेर सारी रूपरेखाएँ भरी होती हैं।’
६. जैसा दाऊद ने लिखा, इस बात का क्या सबूत है कि हमें “अद्भुत रीति से” रचा गया है?
६ क्या आपने कभी सोचा है कि हमारा शरीर कितने अद्भुत तरीके से काम करता है? जीव-विज्ञानी, जैरड डाइमंड ने कहा: “हमारी अंतड़ियों की दीवारों की कोशिकाएँ कुछ दिनों बाद बदलती रहती हैं, मूत्राशय की दीवारों की कोशिकाएँ हर दो महीने में एक बार और हमारी लाल कोशिकाएँ हर चार महीने में एक बार बदलती रहती हैं।” उसने आखिर में कहा: “कुदरत हमें हर रोज़ बिखेरती और फिर जोड़ती है।” आखिर इसका मतलब क्या है? इसका यह मतलब है कि हम चाहे जितने भी साल जीएँ—चाहे ८, ८० या फिर ८०० साल—हमारा शरीर जवान बना रहता है। एक वैज्ञानिक ने यह अंदाज़ा लगाया: “एक साल में, हमारे शरीर में अभी जो अणु हैं उनमें से लगभग ९८ प्रतिशत अणुओं की जगह वे अणु होंगे जो हम हवा, भोजन और पानी के ज़रिए लेते हैं।” सच, जैसे दाऊद ने परमेश्वर की स्तुति करते हुए कहा, हम “अद्भुत रीति से” रचे गए हैं।—भजन १३९:१४.
७. हमारे शरीर की बनावट को देखते हुए, कुछ लोग किस नतीजे पर पहुँचे हैं?
७ बुढ़ापे का अध्ययन करनेवाले एक विद्वान ने हमारे शरीर की बनावट को ध्यान में रखते हुए कहा: “यह पता नहीं चल पाता कि बुढ़ापा क्यों आता है।” लेकिन यह साफ पता चलता है कि हमें हमेशा तक जीते रहना चाहिए। और इसी वज़ह से लोग टॆक्नॉलजी के ज़रिए अपनी यह मंज़िल पाने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ समय पहले, डॉ. एल्विन सिल्वरस्टाइन ने अपनी किताब, मौत पर जीत (अंग्रेज़ी) में पूरे भरोसे के साथ लिखा: “हमेशा की ज़िंदगी पाने का राज़ हम पता कर लेंगे। हम यह समझ जाएँगे कि . . . इंसान बूढ़ा क्यों होता है।” इसका नतीजा क्या होगा? उसने आनेवाले कल के बारे में कहा: “कोई ‘बूढ़ा’ नहीं होगा, क्योंकि अगर हम जान लेंगे कि मौत पर जीत कैसे पाई जाए तो हमेशा तक जवान रहना भी मुमकिन हो जाएगा।” हमारे शरीर की रचना के बारे में आज विज्ञान ने जो पता लगाया है, उसे ध्यान में रखते हुए क्या अब भी आपको लगता है कि हमेशा तक जीना नामुमकिन है? लेकिन यह मानने का एक और बड़ा कारण है कि हमेशा तक जीना मुमकिन है।
हमेशा तक जीने की इच्छा
८, ९. पूरे इतिहास में लोगों में कौन-सी पैदाइशी ख्वाहिश रही है?
८ क्या आपने कभी गौर किया है कि हर इंसान में पैदाइशी यह ख्वाहिश होती है कि वह हमेशा तक जीए? एक जर्मन पत्रिका में एक डॉक्टर ने लिखा: “हमेशा तक जीने की ख्वाहिश शायद उतनी ही पुरानी है जितना कि इंसान।” पुराने ज़माने के कुछ यूरोपवासी क्या विश्वास करते थे इस बारे में द न्यू एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका बताती है: “अच्छे लोग हमेशा तक एक ऐसे शानदार महल में जीएँगे जिसकी छत सोने की बनी होगी।” और हमेशा तक जीने की इस बुनियादी ख्वाहिश को पूरा करने की कोशिश में लोगों ने क्या-क्या नहीं किया है!
९ दी एन्साइक्लोपीडिया अमेरिकाना कहती है कि २,००० से ज़्यादा साल पहले, चीन में “दाओ धर्म के पुरोहितों की अगुवाई में, सम्राट और [आम] जनता अपना काम-काज छोड़कर जीवन-अमृत की खोज में निकलते थे”—जिसे पीने से कहा जाता है कि इंसान हमेशा तक जवान रह सकता है। दरअसल, पूरे इतिहास में लोग मानते आए हैं कि तरह-तरह के काढ़े या कोई खास किस्म का पानी पीने से भी इंसान हमेशा तक जवान रह सकता है।
१०. आज के ज़माने में ज़िंदगी को बढ़ाने के लिए कौन-सी कोशिश की गई है?
१० आज के ज़माने में भी इंसान ने हमेशा तक जीने की अपनी पैदाइशी ख्वाहिश को पूरा करने के लिए जो कोशिशें की हैं वे भी कुछ कम नहीं हैं। इसकी एक बढ़िया मिसाल है, बीमारी से मर चुके व्यक्ति के शरीर को बर्फ में रखने का रिवाज़। यह इस उम्मीद से किया जाता है कि भविष्य में जब उस बीमारी का इलाज मिल जाएगा तो उस व्यक्ति को दोबारा ज़िंदा किया जा सकता है। क्रायोनिक्स कहलानेवाले इस रिवाज़ के एक समर्थक ने लिखा: “अगर हमारी यह उम्मीद सही निकली और अगर हमारे शरीर को होनेवाले हर नुकसान का हम इलाज करना सीख लें—जिसमें बुढ़ापे से होनेवाली कमज़ोरियाँ भी शामिल हैं—तो अब जो ‘मर’ जाते हैं उनकी ज़िंदगी सदा तक बढ़ाई जाएगी।”
११. क्यों लोग हमेशा तक जीना चाहते हैं?
११ आप शायद पूछें कि हमेशा तक जीने की यह ख्वाहिश क्यों हर इंसान के दिमाग में इस कदर घर कर गई है? क्या यह इसलिए है क्योंकि “[परमेश्वर ने] मनुष्यों के मन में अनादि-अनन्त काल का ज्ञान उत्पन्न किया है”? (सभोपदेशक ३:११) यह कोई मामूली-सी बात नहीं है! ज़रा सोचिए: हमारे अंदर हमेशा तक जीने की पैदाइशी ख्वाहिश क्यों होती अगर हमारे सृष्टिकर्ता का यह मकसद नहीं होता कि यह ख्वाहिश पूरी की जाए? और अगर वह हमें हमेशा तक जीने की ख्वाहिश देकर बनाए और फिर उस ख्वाहिश को पूरा करना हमेशा के लिए नामुमकिन करके हमें निराश कर दे, तो क्या वह बेरहम न होगा?—भजन १४५:१६.
हमें किस पर भरोसा करना चाहिए?
१२. कुछ लोग किस पर भरोसा रखते हैं, लेकिन क्या आप मानते हैं कि ऐसा भरोसा करना सही है?
१२ हमेशा की ज़िंदगी पाने के लिए हमें किस पर भरोसा करना चाहिए? बीसवीं या इक्कीसवीं सदी की मानवी टॆक्नॉलजी पर? द न्यू यॉर्क टाइम्स मैगज़ीन के लेख “वे जीना चाहते हैं” में “देवता: टॆक्नॉलजी” और “टॆक्नॉलजी की ताकत को लेकर उमंग” के बारे में बात की गई थी। बताया गया है कि एक शोधकर्ता ने यह भी कहा कि उसे “पूरा भरोसा था . . . कि जीन्स में फेर-बदल करनेवाली टॆक्नॉलजी बहुत जल्द उपलब्ध होगी जिससे बुढ़ापे को रोक दिया जाएगा और इतना ही नहीं शायद बूढ़ों को जवान बना दिया जाएगा।” लेकिन, दरअसल बुढ़ापा रोकने या मौत पर जीत पाने की इंसान की हर कोशिश पूरी तरह नाकाम हुई है।
१३. हमारे मस्तिष्क की बनावट से किस तरह पता चलता है कि हमें हमेशा तक जीने के लिए बनाया गया था?
१३ लेकिन, क्या इसका यह मतलब है कि हमेशा तक की ज़िंदगी पाने का कोई रास्ता नहीं है? नहीं, एक रास्ता ज़रूर है! हमारे मस्तिष्क को बहुत ही अद्भुत तरीके से बनाया गया है और उसमें सीखने की बेहिसाब काबीलियत है, जिससे हमें यकीन होना चाहिए कि हमेशा तक जीना मुमकिन है। जेम्स् वाट्सन नामक अणु जीव-विज्ञानी ने हमारे मस्तिष्क को “विश्व में पाई जानेवाली अब तक की सबसे जटिल वस्तु” कहा। और दिमाग की बीमारियों का इलाज करनेवाले डॉक्टर रिचर्ड रेस्तक ने कहा: “पूरे विश्व में ऐसी कोई भी चीज़ नहीं है जो मस्तिष्क से ज़रा भी मिलती-जुलती हो।” अगर हमें हमेशा तक जीने के लिए नहीं बनाया गया था, तो हमें ऐसा मस्तिष्क क्यों दिया जाता जिसमें बेहिसाब जानकारी लेने और उसे याद रखने की काबीलियत है और ऐसा शरीर क्यों दिया जाता जो हमेशा तक काम करने के लिए बनाया गया है?
१४. (क) इंसान की ज़िंदगी के बारे में बाइबल के लेखक किस नतीजे पर पहुँचे हैं? (ख) क्यों हमें किसी आदमी पर नहीं लेकिन परमेश्वर पर भरोसा रखना चाहिए?
१४ तो फिर, किस नतीजे पर पहुँचना हमारे लिए सही और उचित होगा? क्या यह कहना ठीक नहीं होगा कि हमें एक सर्व-शक्तिमान और बुद्धिमान सृष्टिकर्ता ने हमेशा तक जीने के लिए बनाया है? (अय्यूब १०:८; भजन ३६:९; १००:३; मलाकी २:१०; प्रेरितों १७:२४, २५) तो फिर, क्या यह बुद्धिमानी की बात नहीं होगी कि हम बाइबल के भजनहार के ज़रिए दी गई परमेश्वर की इस आज्ञा को मानें: “तुम प्रधानों पर भरोसा न रखना, न किसी आदमी पर, क्योंकि उस में उद्धार करने की भी शक्ति नहीं।” किसी आदमी पर भरोसा क्यों न रखें? क्योंकि जैसे भजनहार ने लिखा: “उसका भी प्राण निकलेगा, वह भी मिट्टी में मिल जाएगा; उसी दिन उसकी सब कल्पनाएं नाश हो जाएंगी।” सच, इंसान हमेशा तक जीने के लिए बनाया तो गया है, लेकिन जब मौत से उसका सामना होता है तो वह कुछ नहीं कर पाता। इसलिए भजनहार इस नतीजे पर पहुँचता है: “क्या ही धन्य वह है . . . जिसका भरोसा अपने परमेश्वर यहोवा पर है।”—भजन १४६:३-५.
क्या यही सचमुच परमेश्वर का मकसद है?
१५. क्या बात दिखाती है कि परमेश्वर चाहता है कि हम हमेशा तक जीएँ?
१५ लेकिन, आप शायद पूछें कि क्या यहोवा सचमुच चाहता है कि हम हमेशा तक जीएँ? जी हाँ, वह यही चाहता है! उसने अपने वचन में बार-बार इसका वादा किया है। बाइबल हमें भरोसा दिलाती है कि “परमेश्वर का बरदान . . . अनन्त जीवन है।” परमेश्वर के सेवक यूहन्ना ने लिखा: “जिस की [परमेश्वर] ने हम से प्रतिज्ञा की वह अनन्त जीवन है।” इसलिए कोई ताज्जुब की बात नहीं कि एक नौजवान ने यीशु से यह सवाल किया था: “हे गुरु; मैं कौन सा भला काम करूं, कि अनन्त जीवन पाऊं?” (रोमियों ६:२३; १ यूहन्ना २:२५; मत्ती १९:१६) दरअसल, प्रेरित पौलुस ने “अनन्त जीवन की आशा” के बारे में लिखा “जिस की प्रतिज्ञा परमेश्वर ने जो झूठ बोल नहीं सकता सनातन से की है।”—तीतुस १:२.
१६. इसका मतलब क्या हो सकता है कि परमेश्वर ने हमेशा की ज़िंदगी देने का वादा “सनातन से” किया है?
१६ इसका मतलब क्या है कि परमेश्वर ने हमेशा की ज़िंदगी देने का वादा “सनातन से” किया है? कुछ लोगों के हिसाब से “सनातन से” शब्दों के द्वारा प्रेरित पौलुस उस वक्त की बात कर रहा था जब पहले जोड़े, आदम और हव्वा की सृष्टि नहीं हुई थी। लेकिन, पौलुस शायद उस वक्त की बात कर रहा था जब इंसान की सृष्टि हो चुकी थी और परमेश्वर ने उनको अपना मकसद बता दिया था। अगर दूसरी बात सच है तब भी यह साफ ज़ाहिर है कि शुरू से परमेश्वर की इच्छा यही थी कि इंसान हमेशा तक जीएँ।
१७. आदम और हव्वा को अदन के बगीचे से क्यों निकाल दिया गया और बगीचे के प्रवेश मार्ग पर करूबों को क्यों नियुक्त किया गया?
१७ बाइबल बताती है कि अदन के बगीचे में, ‘यहोवा परमेश्वर ने भूमि से जीवन का वृक्ष उगाया।’ बताया गया है कि आदम को बगीचे से इसलिए बाहर किया गया था ताकि “ऐसा न हो, कि वह हाथ बढ़ाकर जीवन के वृक्ष का फल भी तोड़ के खा ले और सदा जीवित रहे।” आदम और हव्वा को अदन के बगीचे से बाहर निकालने के बाद, यहोवा ने “जीवन के वृक्ष के मार्ग का पहरा देने के लिये अदन की बाटिका के पूर्व की ओर करूबों को, और चारों ओर घूमनेवाली ज्वालामय तलवार को भी नियुक्त कर दिया।”—उत्पत्ति २:९; ३:२२-२४.
१८. (क) जीवन के वृक्ष का फल खाने पर आदम और हव्वा को क्या मिलता? (ख) उस वृक्ष का फल खाना किस बात की पहचान कराता?
१८ अगर आदम और हव्वा को जीवन के उस वृक्ष का फल खाने दिया जाता तो क्या होता? तो उन्हें उस खूबसूरत बगीचे में हमेशा तक जीने का मौका मिल गया होता! एक बाइबल विद्वान ने अंदाज़ा लगाया: “जीवन के वृक्ष में ज़रूर ऐसी कोई खूबी रही होगी जो इंसान को बूढ़ा होने या मरने से रोक देती।” उसने यह भी दावा किया कि “बगीचे की जड़ी-बूटियों में ऐसी खूबियाँ थीं जिनमें [बुढ़ापे को] रोकने की ताकत थी।” लेकिन बाइबल यह नहीं कहती कि उस जीवन के वृक्ष में जीवन को बढ़ानेवाली खूबियाँ थीं। इसके बजाय, वह वृक्ष सिर्फ इस बात की पहचान कराने के लिए था कि जिस व्यक्ति को उसका फल खाने दिया जाता उसे परमेश्वर हमेशा की ज़िंदगी देने की गारंटी देता।—प्रकाशितवाक्य २:७.
परमेश्वर का मकसद बदला नहीं
१९. आदम क्यों मरा और हम यानी उसकी संतान भी क्यों मर जाते हैं?
१९ जब आदम ने पाप किया तब उसने अपना और अपनी होनेवाली संतान का अनंत जीवन पाने का हक खो दिया। (उत्पत्ति २:१७) आज्ञा न मानने की वज़ह से जब वह पापी बन गया तो उसमें कमियाँ आ गईं और वह असिद्ध हो गया। नतीजा यह हुआ कि उसी वक्त से आदम का मरना तय हो गया, क्योंकि बाइबल कहती है: “पाप की मजदूरी तो मृत्यु है।” (रोमियों ६:२३) इसके अलावा, आदम की असिद्ध संतान के लिए भी अनंतकाल की ज़िंदगी नहीं लेकिन मौत तय हो गई। बाइबल बताती है: “एक मनुष्य [आदम] के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, इसलिये कि सब ने पाप किया।”—रोमियों ५:१२.
२०. किस बात से पता चलता है कि इंसान को पृथ्वी पर ही हमेशा तक जीने के लिए बनाया गया था?
२० लेकिन अगर आदम ने पाप न किया होता तो क्या होता? अगर उसने परमेश्वर की आज्ञा नहीं तोड़ी होती और उसे जीवन के वृक्ष का फल खाने दिया जाता तो क्या होता? तो परमेश्वर की ओर से उसे हमेशा तक जीने का वरदान मिलता। कहाँ जीने का? स्वर्ग में? नहीं! परमेश्वर ने आदम के स्वर्ग जाने के बारे में कुछ भी नहीं कहा था। उसे यहाँ पृथ्वी पर काम दिया गया था। बाइबल बताती है कि “यहोवा परमेश्वर ने भूमि से सब भांति के वृक्ष, जो देखने में मनोहर और जिनके फल खाने में अच्छे हैं उगाए” और “यहोवा परमेश्वर ने आदम को लेकर अदन की बाटिका में रख दिया, कि वह उस में काम करे और उसकी रक्षा करे।” (उत्पत्ति २:९, १५) आदम की साथी, हव्वा को बनाने के बाद उन दोनों को यहाँ पृथ्वी पर और भी काम दिया गया। परमेश्वर ने उनसे कहा: “फूलो-फलो, और पृथ्वी में भर जाओ, और उसको अपने वश में कर लो; और समुद्र की मछलियों, तथा आकाश के पक्षियों, और पृथ्वी पर रेंगनेवाले सब जन्तुओं पर अधिकार रखो।”—उत्पत्ति १:२८.
२१. आदम और हव्वा के लिए कौन-सा शानदार भविष्य रखा हुआ था?
२१ सोचिए, आदम और हव्वा के आगे क्या ही शानदार भविष्य था! बेशक इसके लिए उनको परमेश्वर की इन आज्ञाओं के मुताबिक काम करना था। उन्हें पृथ्वी पर परादीस या एक सुंदर बगीचे में सिद्ध और तंदुरुस्त बच्चों की परवरिश करनी थी। जब उनके प्यारे बच्चे बड़े होते तो वे भी उनकी तरह संतान पैदा करते और उस बगीचे को सुंदर बनाए रखने का बढ़िया काम करते। सारे जानवर उनके अधीन रहते और मानवजाति पूरी तरह संतुष्ट रहती। ज़रा सोचिए, सारी पृथ्वी को एक खूबसूरत बगीचा बनाने के लिए अदन के बगीचे की सरहदों को बढ़ाते जाने में कितनी खुशी मिलती! क्या आप पृथ्वी जैसे सुंदर घर में सिद्ध बच्चों के साथ हमेशा तक जीने का मज़ा लेना चाहेंगे, जहाँ न बूढ़ा होने और ना मरने की चिंता होगी? इसका जवाब अपने दिल से पूछिए।
२२. हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि परमेश्वर ने पृथ्वी के बारे में अपना मकसद नहीं बदला है?
२२ लेकिन जब आदम और हव्वा ने परमेश्वर की आज्ञा तोड़ दी और उन्हें अदन के बगीचे से निकाल दिया गया तो पृथ्वी पर इंसान के हमेशा तक जीने के बारे में क्या परमेश्वर ने अपना मकसद बदल दिया? हरगिज़ नहीं! अगर परमेश्वर अपना इरादा बदल देता, तो इसका यह मतलब होता कि शुरूआत में परमेश्वर का जो मकसद था उसे वह पूरा करने के काबिल नहीं है इसलिए उसने अपनी हार मान ली। हम यकीन रख सकते हैं कि परमेश्वर अपने वादों को ज़रूर पूरा करेगा क्योंकि वह खुद कहता है: “उसी प्रकार से मेरा वचन भी होगा जो मेरे मुख से निकलता है; वह व्यर्थ ठहरकर मेरे पास न लौटेगा, परन्तु, जो मेरी इच्छा है उसे वह पूरा करेगा, और जिस काम के लिये मैं ने उसको भेजा है उसे वह सुफल करेगा।”—यशायाह ५५:११.
२३. (क) कौन-सी बात हमें और भी यकीन दिलाती है कि धर्मी लोग पृथ्वी पर हमेशा तक जीएँगे? (ख) अगले लेख में हम किस बात की चर्चा करेंगे?
२३ यह बात बाइबल में साफ-साफ बताई गई है कि पृथ्वी के बारे में परमेश्वर का मकसद नहीं बदला। परमेश्वर वादा करता है: “धर्मी लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और उस में सदा बसे रहेंगे।” यीशु मसीह ने भी अपने पहाड़ी उपदेश में कहा कि नम्र लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे। (भजन ३७:२९; मत्ती ५:५) लेकिन हम हमेशा की ज़िंदगी कैसे पा सकते हैं और ऐसी ज़िंदगी का आनंद उठाने के लिए हमें क्या करना चाहिए? इन बातों की चर्चा अगले लेख में की जाएगी।
आपका जवाब क्या होगा?
◻ कई लोग क्यों मानते हैं कि हमेशा तक जीना मुमकिन है?
◻ किस बात से हमें यकीन होना चाहिए कि हमें हमेशा तक जीने के लिए बनाया गया था?
◻ मानवजाति और पृथ्वी के बारे में शुरूआत में परमेश्वर का मकसद क्या था?
◻ हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि परमेश्वर अपना शुरूआती मकसद ज़रूर पूरा करेगा?