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ईश्वर हम पर दुख-तकलीफें क्यों आने देता है?प्रहरीदुर्ग: ईश्वर हम पर दुख-तकलीफें क्यों आने देता है?
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समीरा: मैं पढ़ती हूँ। “यहोवा परमेश्वर ने जितने भी जंगली जानवर बनाए थे, उन सबमें साँप सबसे सतर्क रहनेवाला जीव था। साँप ने औरत से कहा, ‘क्या यह सच है कि परमेश्वर ने तुमसे कहा है कि तुम इस बाग के किसी भी पेड़ का फल मत खाना?’ औरत ने साँप से कहा, ‘हम बाग के सब पेड़ों के फल खा सकते हैं। मगर जो पेड़ बाग के बीच में है उसके फल के बारे में परमेश्वर ने हमसे कहा है, “तुम उसका फल मत खाना, उसे छूना तक नहीं, वरना मर जाओगे।”’ तब साँप ने औरत से कहा, ‘तुम हरगिज़ नहीं मरोगे। परमेश्वर जानता है कि जिस दिन तुम उस पेड़ का फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आँखें खुल जाएँगी, तुम परमेश्वर के जैसे हो जाओगे और खुद जान लोगे कि अच्छा क्या है और बुरा क्या।’”
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ईश्वर हम पर दुख-तकलीफें क्यों आने देता है?प्रहरीदुर्ग: ईश्वर हम पर दुख-तकलीफें क्यों आने देता है?
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मोनिका: हाँ और वह ‘परमेश्वर के जैसी हो जाएगी और खुद जान लेगी कि अच्छा क्या है और बुरा क्या।’ तो शैतान का इलज़ाम था कि ईश्वर इंसानों को अच्छी चीज़ें नहीं देना चाहता।
समीरा: अच्छा।
मोनिका: इससे एक बड़ा मसला खड़ा हो गया।
समीरा: मतलब?
मोनिका: शैतान ने जब यह बात कही तो दरअसल वह यह कहना चाह रहा था कि इंसानों को ईश्वर की कोई ज़रूरत नहीं, वे उसके बिना भी खुश रह सकते हैं। इस बार भी ईश्वर ने शैतान को अपनी बात साबित करने के लिए समय दिया। उसने शैतान को कुछ वक्त के लिए दुनिया चलाने का मौका दिया। इसीलिए आज दुनिया में इतनी दुख-तकलीफें हैं क्योंकि शैतान इसे चला रहा है।c पर हमें ज़्यादा परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। बाइबल से हमें परमेश्वर यहोवा के बारे में दो अच्छी बातें पता चलती हैं।
समीरा: कौन-सी दो बातें?
मोनिका: पहली, जब हम पर तकलीफें आती हैं तो हम अकेले नहीं होते, यहोवा हमारे साथ होता है। यही बात राजा दाविद ने भी महसूस की। जब उसकी ज़िंदगी में बहुत सारी मुश्किलें आयीं तो उसने प्रार्थना में यहोवा से क्या कहा, चलिए पढ़कर देखते हैं। क्या आप भजन 31:7 पढ़ सकती हैं?
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