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ईश्वरीय शिक्षा के विरुद्ध पिशाचों की शिक्षाएँप्रहरीदुर्ग—1994 | अप्रैल 1
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६. शैतान ने यहोवा की भलाई और सर्वसत्ता को कैसे चुनौती दी?
६ लेकिन शैतान ने और भी कहा। उसने आगे कहा: “वरन परमेश्वर आप जानता है, कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आँखें खुल जाएंगी, और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के तुल्य हो जाओगे।” शैतान के अनुसार, यहोवा परमेश्वर—जिसने हमारे प्रथम माता-पिता के लिए इतनी बहुतायत में प्रदान किया था—उन्हें किसी अद्भुत चीज़ से वंचित रखना चाहता था। वह उन्हें ईश्वरों के समान होने से रोकना चाहता था। अतः, शैतान ने परमेश्वर की भलाई को चुनौती दी। उसने आत्मतुष्टि और जानबूझकर परमेश्वर के नियमों का उल्लंघन करने को भी बढ़ावा दिया, और यह कहा कि इस तरह कार्य करना लाभकारी होगा। वस्तुतः, शैतान ने यह आरोप लगाते हुए कि परमेश्वर के पास मनुष्य के कार्यों पर सीमा लगाने का कोई अधिकार नहीं था, स्वयं परमेश्वर की सृष्टि पर उसकी सर्वसत्ता को चुनौती दी।
७. पिशाचों की शिक्षाएँ पहली बार कब सुनाई दीं, और वे आज भी कैसे समान हैं?
७ शैतान के उन शब्दों के साथ ही, पिशाचों की शिक्षाएँ सुनाई देना शुरू हो गईं। ये बुरी शिक्षाएँ अभी भी वैसे ही अधर्मी सिद्धान्तों को बढ़ावा देती हैं। शैतान, जिसके साथ अभी अन्य विद्रोही आत्माएँ मिल गई हैं, कार्य के स्तर निश्चित करने के परमेश्वर के अधिकार को अभी भी चुनौती देता है, ठीक जैसे उसने अदन की वाटिका में किया था। वह अभी भी यहोवा की सर्वसत्ता का विरोध करता है और अपने स्वर्गीय पिता की अवज्ञा करने के लिए मनुष्यों को प्रभावित करने की कोशिश करता है।—१ यूहन्ना ३:८, १०.
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ईश्वरीय शिक्षा के विरुद्ध पिशाचों की शिक्षाएँप्रहरीदुर्ग—1994 | अप्रैल 1
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१३. अदन के समय से शैतान ने मानवजाति को क्या झूठ बोले हैं?
१३ शैतान ने यहोवा पर झूठ बोलने का आरोप लगाते हुए हव्वा से कहा कि यदि मनुष्य अपने सृष्टिकर्ता की अवज्ञा करते तो वे ईश्वरों के जैसे हो सकते थे। आज मानवजाति की पतित स्थिति साबित करती है कि शैतान, न कि यहोवा झूठा था। मनुष्य आज कोई ईश्वर नहीं हैं! लेकिन, शैतान ने उस झूठ को चलाने के लिए अन्य झूठ बोले। उसने यह विचार प्रस्तुत किया कि मानव आत्मा अमर, अमिट है। इस प्रकार उसने मानवजाति के सामने एक अन्य तरीक़े से ईश्वरों के तुल्य होने की संभावना का लोभ रखा। फिर, उस झूठे सिद्धान्त पर आधारित, उसने नरकाग्नि, शोधन-स्थान, प्रेतात्मवाद, और पूर्वजों की उपासना जैसी शिक्षाओं को बढ़ावा दिया। अभी भी करोड़ों लोग इन झूठी शिक्षाओं के दासत्व में हैं।—व्यवस्थाविवरण १८:९-१३.
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ईश्वरीय शिक्षा के विरुद्ध पिशाचों की शिक्षाएँप्रहरीदुर्ग—1994 | अप्रैल 1
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१६. जब मनुष्य स्वयं अपनी बुद्धि पर चलते हैं, तो दीर्घकालिक परिणाम क्या होते हैं?
१६ अदन की वाटिका में झूठ बोलने के द्वारा, शैतान ने आदम और हव्वा को परमेश्वर से स्वतंत्र होने की आकांक्षा करने और स्वयं अपनी बुद्धि पर भरोसा रखने के लिए प्रोत्साहित किया। आज, हम उसके दीर्घकालिक परिणामों को आज संसार में विद्यमान अपराध, आर्थिक कठिनाइयों, युद्धों, और घोर असमानता में देखते हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि बाइबल कहती है: “इस संसार का ज्ञान परमेश्वर के निकट मूर्खता है”! (१ कुरिन्थियों ३:१९) फिर भी, अधिकांश मनुष्य यहोवा की शिक्षाओं पर ध्यान देने के बजाय मूर्खतापूर्वक कष्ट सहना पसन्द करते हैं। (भजन १४:१-३; १०७:१७) मसीही, जिन्होंने ईश्वरीय शिक्षा स्वीकार की है, उस फंदे में फंसने से बचते हैं।
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