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  • “उसने परमेश्‍वर को खुश किया”
    प्रहरीदुर्ग (जनता के लिए)—2017 | अंक 1
    • “दूसरी जगह पहुँचा दिया गया ताकि वह मौत का मुँह न देखे”

      हनोक की मौत कैसे हुई? जैसे शास्त्र में उसकी ज़िंदगी के बारे में ज़्यादा कुछ नहीं लिखा है, वैसे ही उसकी मौत के बारे में भी ज़्यादा कुछ नहीं बताया गया है। उत्पत्ति की किताब में बस इतना लिखा है, “हनोक सच्चे परमेश्‍वर के साथ-साथ चलता रहा। इसके बाद वह नहीं रहा क्योंकि परमेश्‍वर ने उसे ले लिया।” (उत्पत्ति 5:24) परमेश्‍वर ने उसे किस मायने में ले लिया? इन शब्दों के लिखे जाने के सालों बाद पौलुस नाम के एक व्यक्‍ति ने शास्त्र में लिखा, “विश्‍वास की वजह से ही हनोक दूसरी जगह पहुँचा दिया गया ताकि वह मौत का मुँह न देखे। और वह कहीं नहीं पाया गया क्योंकि परमेश्‍वर ने उसे दूसरी जगह पहुँचा दिया था। मगर उसके जाने से पहले उसे यह गवाही दी गयी कि उसने परमेश्‍वर को खुश किया है।” (इब्रानियों 11:5) इन शब्दों का क्या मतलब है कि “हनोक दूसरी जगह पहुँचा दिया गया ताकि वह मौत का मुँह न देखे”? बाइबल के कुछ अनुवादों में कहा गया है कि परमेश्‍वर हनोक को स्वर्ग ले गया। लेकिन ऐसा नहीं हो सकता, क्योंकि शास्त्र में साफ बताया गया है कि यीशु मसीह ही वह पहला इंसान था, जिसकी मौत होने पर उसे स्वर्ग में जीवन दिया गया।—यूहन्‍ना 3:13.

      फिर किस मायने में “हनोक दूसरी जगह पहुँचा दिया गया ताकि वह मौत का मुँह न देखे”? यहोवा ने हनोक को शायद इस तरह मौत की नींद सुला दिया, ताकि दुश्‍मनों के हाथों उसकी दर्दनाक मौत न हो। लेकिन उससे पहले हनोक को “गवाही दी गयी कि उसने परमेश्‍वर को खुश किया है।” कैसे? हो सकता है कि अपनी मौत से ठीक पहले हनोक को परमेश्‍वर की तरफ से एक दर्शन मिला हो, जिसमें यह धरती एक खूबसूरत बगीचे जैसी दिख रही थी। इस तरह हनोक को भविष्य की एक झलक दिखाकर परमेश्‍वर ने ज़ाहिर किया कि वह हनोक की सेवा से खुश था। इसके बाद हनोक मौत की नींद सो गया। पौलुस ने हनोक और परमेश्‍वर से प्यार करनेवाले कुछ और स्त्री-पुरुषों के बारे में लिखा, “ये सभी लोग विश्‍वास रखते हुए मर गए।” (इब्रानियों 11:13) इस घटना के बाद हनोक के दुश्‍मनों ने उसके शरीर को ढूँढ़ा होगा, लेकिन “वह कहीं नहीं पाया गया।” यहोवा ने उसका शरीर गायब कर दिया ताकि लोग उसका अनादर न कर पाएँ या उसे पूजने न लगें।b

      शास्त्र में लिखी इन बातों को ध्यान में रखते हुए हम कल्पना कर सकते हैं कि हनोक की ज़िंदगी का अंत किस तरह हुआ होगा। हम दावे के साथ तो नहीं कह सकते कि हनोक की मौत ठीक किस तरह हुई, लेकिन शायद कुछ ऐसा हुआ हो। हनोक ने परमेश्‍वर के न्याय का जो संदेश सुनाया, उस वजह से कुछ लोग आग-बबूला हो गए हैं और उसकी जान लेना चाहते हैं। हनोक अपनी जान बचाकर भाग रहा है और बहुत थक गया है। तभी उसे छिपने के लिए जगह दिखायी देती है। मगर वह जानता है कि वह वहाँ ज़्यादा देर छिप नहीं पाएगा, क्योंकि दुश्‍मन किसी भी पल आकर उसकी जान ले सकते हैं। जब वह रुकता है, तो वह परमेश्‍वर से प्रार्थना करता है। फिर उसे बहुत सुकून मिलता है। परमेश्‍वर उसे एक दर्शन दिखाता है। दर्शन इतना असल है कि मानो हनोक खुद वहाँ पर मौजूद हो।

      हनोक एक गुफा में छिपा हुआ है और उसके दुश्‍मन पास से गुज़र रहे हैं

      जब परमेश्‍वर ने हनोक को ले लिया, तब दुश्‍मन उसकी जान के पीछे पड़े थे

      सोचिए कि हनोक के सामने ऐसी दुनिया का दृश्‍य है, जो उसकी दुनिया से बिलकुल अलग है। यह बहुत खूबसूरत है, ठीक जैसे अदन नाम का बाग था, जिसे परमेश्‍वर ने लगाया था। लेकिन जैसे अदन बाग में स्वर्गदूत पहरा देते थे और किसी इंसान को अंदर नहीं जाने देते थे, वैसा यहाँ कुछ नहीं था। हनोक को बहुत-से लोग दिखायी दे रहे हैं। स्त्री-पुरुष, सभी सेहतमंद हैं, सभी जवान हैं। उनके बीच शांति है। कोई किसी से नफरत नहीं करता, न ही धर्म की वजह से किसी पर ज़ुल्म ढाया जा रहा है, जैसे हनोक के समय में हो रहा था। हनोक को यकीन हो जाता है कि यहोवा उससे प्यार करता है और उससे खुश है। उसे यह भी भरोसा है कि उसे ऐसे ही माहौल में जीने के लिए बनाया गया है और एक दिन यहीं उसका घर होगा। यह सब देखकर उसे बहुत सुकून मिलता है और वह अपनी आँखें बंद कर लेता है। फिर वह गहरी नींद में सो जाता है।

      हनोक आज भी मौत की गहरी नींद में सो रहा है। लेकिन वह यहोवा परमेश्‍वर की याद में महफूज़ है। बाद में जैसे यीशु ने वादा किया, वह दिन आनेवाला है जब यहोवा की याद में बसे सभी लोग यीशु की आवाज़ सुनेंगे और जी उठेंगे। जब वे अपनी आँखें खोलेंगे, तो खुद को एक खूबसूरत और शांति-भरी दुनिया में पाएँगे।—यूहन्‍ना 5:28, 29.

  • “उसने परमेश्‍वर को खुश किया”
    प्रहरीदुर्ग (जनता के लिए)—2017 | अंक 1
    • b इसी तरह परमेश्‍वर ने मूसा और यीशु के शरीर को भी गायब कर दिया ताकि उनके साथ भी ऐसा कुछ न किया जाए।—व्यवस्थाविवरण 34:5, 6; लूका 24:3-6; यहूदा 9.

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