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“पहुनाई करने में लगे रहो”

“पवित्र लोगों को जो कुछ अवश्‍य हो, उस में उन की सहायता करो; पहुनाई करने में लगे रहो।”—रोमियों १२:१३.

१. मनुष्य की एक मूल ज़रूरत क्या है, और यह कैसे प्रकट की जाती है?

एक अजनबी इलाके की सुनसान सड़क पर देर रात को चलना आजकल एक उत्पीड़क अनुभव हो सकता है। लेकिन एक भीड़ में होना और किसी को न जानना या न पहचाना जाना उतना ही तनावपूर्ण हो सकता है। सचमुच, मानव स्वभाव का एक अभिन्‍न अंग है परवाह, चाहत, और प्रेम पाने की ज़रूरत। कोई नहीं चाहता कि उसके साथ एक अजनबी या बाहरवाले की तरह व्यवहार किया जाए।

२. यहोवा ने संगति की हमारी ज़रूरत का प्रबन्ध कैसे किया है?

२ सभी वस्तुओं का बनानेवाला और सृष्टिकर्ता, यहोवा परमेश्‍वर संगति की मानव ज़रूरत को अच्छी तरह जानता है। अपनी मानव सृष्टि का अभिकल्पक होने के कारण, आरंभ से ही परमेश्‍वर जानता था कि “मनुष्य का अकेला रहना अच्छा नहीं,” और उसने इस विषय में कुछ किया। (उत्पत्ति २:१८, २१, २२ फुटनोट) बाइबल अभिलेख यहोवा द्वारा और उसके सेवकों द्वारा मनुष्यों के प्रति व्यक्‍त की गयी कृपा के कार्यों के उदाहरणों से भरा हुआ है। इससे हम यह सीखने में समर्थ होते हैं कि दूसरों के आनन्द और प्रसन्‍नता के लिए और स्वयं अपनी संतुष्टि के लिए कैसे ‘पहुनाई करने में लगे रहें।’—रोमियों १२:१३.

अजनबियों की चाहत

३. पहुनाई का मूल अर्थ समझाइए।

३ जैसे बाइबल में प्रयुक्‍त है शब्द “पहुनाई” यूनानी शब्द फिलोक्सीनिया से अनुवादित है, जो दो मूल शब्दों से बना है जिनका अर्थ है “प्रेम” और “अजनबी”। अतः, मूलतः पहुनाई का अर्थ है “अजनबियों का प्रेम।” लेकिन, यह मात्र औपचारिकता या शिष्टाचार की बात नहीं है। इसमें व्यक्‍ति की भावनाएँ और स्नेह सम्मिलित है। जेम्स स्ट्रॉन्ग की बाइबल की सुविस्तृत शब्दानुक्रमणिका (अंग्रेज़ी) के अनुसार, क्रिया फिलियो का अर्थ है “([किसी व्यक्‍ति या वस्तु] को चाहना) का मित्र होना, अर्थात्‌ स्नेह रखना (व्यक्‍तिगत लगाव को सूचित करता है, संवेदना या भावना की बात है)।” अतः, पहुनाई सिद्धान्त पर आधारित प्रेम से अधिक है, जो संभवतः कर्तव्य या बाध्यता के भाव से किया जाता है। यह सामान्यतः सच्ची चाहत, स्नेह, और मित्रता की अभिव्यक्‍ति होती है।

४. पहुनाई किसके प्रति व्यक्‍त की जानी चाहिए?

४ इस चाहत और स्नेह का प्रापक “अजनबी” (यूनानी, क्सीनॉस) है। यह कौन हो सकता है? फिर, स्ट्रॉन्ग की शब्दानुक्रमणिका शब्द क्सीनॉस को इस प्रकार परिभाषित करती है, ‘परदेशी (शब्दशः पराया, या लाक्षणिक रूप से नवागंतुक); निहितार्थ से एक मेहमान या (उलटे) एक अजनबी।’ सो जैसे बाइबल में उदाहरण से सचित्रित की गयी है, पहुनाई किसी ऐसे व्यक्‍ति के प्रति व्यक्‍त की गयी कृपा को सूचित कर सकती है जिसको हम चाहते हैं, या यह एक बिलकुल अजनबी को भी दिखायी जा सकती है। यीशु ने समझाया: “यदि तुम अपने प्रेम रखनेवालों ही से प्रेम रखो, तो तुम्हारे लिये क्या फल होगा? क्या महसूल लेनेवाले भी ऐसा ही नहीं करते? और यदि तुम केवल अपने भाइयों ही को नमस्कार करो, तो कौन सा बड़ा काम करते हो? क्या अन्यजाति भी ऐसा नहीं करते?” (मत्ती ५:४६, ४७) सच्ची पहुनाई पूर्वधारणा और भय द्वारा डाली गयी फूट और भेदभाव को पार करती है।

यहोवा, परिपूर्ण मेज़बान

५, ६. (क) जब यीशु ने कहा, “तुम्हारा स्वर्गीय पिता सिद्ध है,” तब उसके मन में क्या था? (ख) यहोवा की उदारता कैसे दिखती है?

५ मनुष्यों द्वारा एक दूसरे के प्रति दिखाए गए प्रेम की कमियों को बताने के बाद, जैसा ऊपर उद्धृत है, यीशु ने यह टिप्पणी की: “इसलिये चाहिये कि तुम सिद्ध बनो, जैसा तुम्हारा स्वर्गीय पिता सिद्ध है।” (मत्ती ५:४८) निःसंदेह, यहोवा हर प्रकार से परिपूर्ण है। (व्यवस्थाविवरण ३२:४) लेकिन, यीशु यहोवा की परिपूर्णता के एक ख़ास पहलू को विशिष्ट कर रहा था, जैसा उसने पहले कहा: “[परमेश्‍वर] भलों और बुरों दोनों पर अपना सूर्य उदय करता है, और धर्मियों और अधर्मियों दोनों पर मेंह बरसाता है।” (मत्ती ५:४५) जब कृपा दिखाने की बात आती है, तब यहोवा कोई पक्षपात नहीं करता।

६ सृष्टिकर्ता होने के नाते, यहोवा हर चीज़ का स्वामी है। “वन के सारे जीवजन्तु और हजारों पहाड़ों के जानवर मेरे ही हैं। पहाड़ों के सब पक्षियों को मैं जानता हूं, और मैदान पर चलने फिरनेवाले जानवर मेरे ही हैं,” यहोवा कहता है। (भजन ५०:१०, ११) फिर भी, वह स्वार्थपूर्वक किसी चीज़ को जमा करके नहीं रखता। अपनी उदारता में, वह अपने सभी प्राणियों का भरण-पोषण करता है। भजनहार ने यहोवा के बारे में कहा: “तू अपनी मुट्ठी खोलकर, सब प्राणियों को आहार से तृप्त करता है।”—भजन १४५:१६.

७. जिस प्रकार यहोवा अजनबियों और ज़रूरतमंदों के साथ व्यवहार करता है उससे हम क्या सीख सकते हैं?

७ यहोवा लोगों को वह देता है जिसकी उन्हें ज़रूरत है—उन लोगों को भी जो उसे नहीं जानते, जो उसके लिए अजनबी हैं। पौलुस और बरनबास ने लुस्त्रा नगर के मूर्तिपूजकों को याद दिलाया कि यहोवा “ने अपने आप को बे-गवाह न छोड़ा; किन्तु वह भलाई करता रहा, और आकाश से वर्षा और फलवन्त ऋतु देकर, तुम्हारे मन को भोजन और आनन्द से भरता रहा।” (प्रेरितों १४:१७) यहोवा ख़ासकर उनके प्रति कृपालु और उदार है जो ज़रूरत में हैं। (व्यवस्थाविवरण १०:१७, १८) दूसरों को कृपा और उदारता दिखाने में—उनकी पहुनाई करने में—हम यहोवा से बहुत कुछ सीख सकते हैं।

८. हमारी आध्यात्मिक ज़रूरतों को पूरा करने में यहोवा ने अपनी उदारता कैसे दिखायी है?

८ अपने प्राणियों की भौतिक ज़रूरतों के लिए बहुतायत में प्रबन्ध करने के साथ-साथ, यहोवा एक आध्यात्मिक रीति से उनकी ज़रूरतों को पूरा करता है। यहोवा ने हमारे आध्यात्मिक हित के लिए सबसे उदार रीति से तब कार्य किया जब हम में से कोई यह जानता भी नहीं था कि हम आध्यात्मिक रूप से निराशाजनक स्थिति में हैं। रोमियों ५:८, १० में हम पढ़ते हैं: “परमेश्‍वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है, कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा। . . . बैरी होने की दशा में तो उसके पुत्र की मृत्यु के द्वारा हमारा मेल परमेश्‍वर के साथ हुआ।” वह प्रबन्ध पापी मनुष्यों के लिए हमारे स्वर्गीय पिता के साथ एक सुखी पारिवारिक सम्बन्ध में आना संभव बनाता है। (रोमियों ८:२०, २१) यहोवा ने यह भी देखा कि हमें सही मार्गदर्शन और निर्देशन प्रदान किया जाए ताकि हम अपनी पापमय और अपरिपूर्ण स्थिति के बावजूद जीवन को सफल बना सकें।—भजन ११९:१०५; २ तीमुथियुस ३:१६.

९, १०. (क) हम क्यों कह सकते हैं कि यहोवा परिपूर्ण मेज़बान है? (ख) इस सम्बन्ध में सच्चे उपासकों को यहोवा का अनुकरण कैसे करना चाहिए?

९ यह ध्यान में रखते हुए, हम कह सकते हैं कि यहोवा अनेक तरीक़ों से सचमुच एक परिपूर्ण मेज़बान है। वह ज़रूरतमंदों, तुच्छ, और दीन-हीनों की उपेक्षा नहीं करता। वह अजनबियों, यहाँ तक कि अपने शत्रुओं में सच्ची दिलचस्पी दिखाता है और उनकी चिन्ता करता है, और वह किसी भौतिक प्रतिफल की आस नहीं रखता। इन सब बातों में, क्या वह परिपूर्ण मेज़बान का परम उदाहरण नहीं है?

१० ऐसी प्रेममय-कृपा और उदारता का परमेश्‍वर होने के नाते, यहोवा चाहता है कि उसके उपासक उसका अनुकरण करें। पूरी बाइबल में, हम इस सुखद गुण के उल्लेखनीय उदाहरण देखते हैं। एनसाइक्लोपीडिया जुडाइका (अंग्रेज़ी) कहती है कि “प्राचीन इस्राएल में, पहुनाई मात्र शिष्टता की बात नहीं थी, परन्तु एक नैतिक विधि थी . . . थके हुए यात्री का स्वागत करने और अपने बीच अजनबी को स्वीकार करने के बाइबलीय रिवाज़ वह आधार था जिसमें से पहुनाई और उसके सभी सम्बन्धित पहलू यहूदी परंपरा में एक अति महत्त्वपूर्ण सद्‌गुण के रूप में विकसित हुए।” किसी ख़ास राष्ट्रीयता या नृजातीय समूह की छाप होने से अधिक, पहुनाई यहोवा के सभी सच्चे उपासकों की एक विशेषता होनी चाहिए।

स्वर्गदूतों का मेज़बान

११. कौन-सा उल्लेखनीय उदाहरण दिखाता है कि पहुनाई अनपेक्षित आशिषें लायी? (उत्पत्ति १९:१-३; न्यायियों १३:११-१६ भी देखिए।)

११ पहुनाई करने के बाइबल वृत्तान्तों में से एक सर्व-विख्यात वृत्तान्त इब्राहीम और सारा का है जब वे हेब्रोन के पास, मम्रे के बड़े वृक्षों के बीच डेरा डाले हुए थे। (उत्पत्ति १८:१-१०; २३:१९) इसमें कोई संदेह नहीं कि प्रेरित पौलुस के मन में यह घटना थी जब उसने यह सलाह दी: “पहुनाई करना न भूलना, क्योंकि इस के द्वारा कितनों ने अनजाने [में] स्वर्गदूतों की पहुनाई की है।” (इब्रानियों १३:२) इस वृत्तान्त का अध्ययन हमें यह देखने में मदद देगा कि पहुनाई मात्र रिवाज़ या पालन-पोषण की बात नहीं है। इसके बजाय, यह एक ईश्‍वरीय गुण है जो अद्‌भुत आशिषें लाता है।

१२. इब्राहीम ने अजनबियों का अपना प्रेम कैसे प्रदर्शित किया?

१२ उत्पत्ति १८:१, २ संकेत देता है कि इब्राहीम आगंतुकों को नहीं जानता था और उनकी अपेक्षा नहीं कर रहा था, मानो ऐसा कहना कि बस तीन अजनबी वहाँ से गुज़र रहे थे। कुछ टीकाकारों के अनुसार, पूरबियों के बीच यह रिवाज़ था कि अजनबी देश में एक यात्री के पास पहुनाई की अपेक्षा करने का अधिकार था चाहे वह वहाँ किसी को जानता भी नहीं था। लेकिन इब्राहीम ने इसकी प्रतीक्षा नहीं की कि अजनबी अपना अधिकार प्रयोग करें; उसने पहल की। वह इन अजनबियों से मिलने के लिए “दौड़ा” जो उससे कुछ दूरी पर थे—यह सब “कड़ी धूप के समय,” और ९९ साल की उम्र में इब्राहीम ने किया! क्या यह नहीं दिखाता कि क्यों पौलुस ने एक आदर्श के रूप में हमारे अनुकरण करने के लिए इब्राहीम का हवाला दिया? पहुनाई का सार यही है, अजनबियों की चाहत या प्रेम, उनकी ज़रूरतों की चिन्ता। यह एक सकारात्मक गुण है।

१३. इब्राहीम ने आगंतुकों को “दण्डवत्‌” क्यों की?

१३ यह वृत्तान्त हमें यह भी बताता है कि अजनबियों से मिलने पर इब्राहीम ने “भूमि पर गिरकर दण्डवत्‌ की।” एकदम अजनबियों को दण्डवत्‌ करना? दण्डवत्‌, जैसे इब्राहीम ने की, एक सम्मानित मेहमान या ऊँचे पदवाले किसी व्यक्‍ति का स्वागत करने का एक तरीक़ा था, इसे उपासना के कृत्य से नहीं उलझाया जाना चाहिए, जो मात्र परमेश्‍वर के लिए सुरक्षित है। (प्रेरितों १०:२५, २६; प्रकाशितवाक्य १९:१० से तुलना कीजिए।) दण्डवत्‌ करने, मात्र सिर झुकाकर नहीं बल्कि “भूमि पर गिरकर दण्डवत्‌” करने के द्वारा, इब्राहीम ने इन अजनबियों को महत्त्वपूर्ण होने का सम्मान दिया। वह एक बड़े, समृद्ध पैतृक कुल का सिर था, फिर भी उसने इन अजनबियों को अपने से अधिक सम्मान के योग्य समझा। यह सामान्य रूप से अजनबियों पर संदेह करने, ठहरकर-देखो मनोवृत्ति से कितना भिन्‍न है! इब्राहीम ने इस कथन का अर्थ सचमुच प्रदर्शित किया: “परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो।”—रोमियों १२:१०.

१४. इब्राहीम द्वारा अजनबियों की पहुनाई करने में क्या परिश्रम और त्याग सम्मिलित था?

१४ बाक़ी का वृत्तान्त दिखाता है कि इब्राहीम की भावनाएँ सच्ची थीं। भोजन भी विशेष था। एक बड़े घराने में भी जहाँ काफ़ी पशु होते हैं, “एक कोमल और अच्छा बछड़ा” रोज़ का भोजन नहीं होता। उस क्षेत्र के प्रचलित रिवाज़ों के बारे में, जॉन किटो की दैनिक बाइबल उदाहरण (अंग्रेज़ी) नोट करती है: “कुछ त्योहारों, या किसी अजनबी के आगमन को छोड़, सुख-साधनों का प्रयोग कभी नहीं किया जाता; और केवल ऐसे अवसरों पर ही कभी माँस खाया जाता है, उनके द्वारा भी जिनके पास ढेरों भेड़-बकरी और गाय-बैल होते हैं।” गर्म मौसम के कारण सड़नेवाला भोजन जमा नहीं किया जा सकता था, सो ऐसा भोजन परोसने के लिए, हर काम उसी समय करना था। इसमें कोई आश्‍चर्य नहीं कि इस छोटे-से वृत्तान्त में, शब्द “फुर्ती” तीन बार आता है, और इब्राहीम भोजन तैयार करने के लिए अक्षरशः “दौड़ा”!—उत्पत्ति १८:६-८.

१५. पहुनाई करने में भौतिक चीज़ों के प्रति उचित दृष्टिकोण क्या है, जैसा इब्राहीम के उदाहरण से सचित्रित होता है?

१५ लेकिन, उद्देश्‍य मात्र यह नहीं है कि किसी को प्रभावित करने के लिए एक बड़ा भोज तैयार किया जाए। जबकि इब्राहीम और सारा ने भोजन पकाने और परोसने में इतनी मेहनत की, ध्यान दीजिए कि पहले इब्राहीम ने उसका उल्लेख कैसे किया: “मैं थोड़ा सा जल लाता हूं और आप अपने पांव धोकर इस वृक्ष के तले विश्राम करें। फिर मैं एक टुकड़ा रोटी ले आऊं और उस से आप अपने अपने जीव को तृप्त करें; तब उसके पश्‍चात्‌ आगे बढ़ें: क्योंकि आप अपने दास के पास इसी लिये पधारे हैं।” (उत्पत्ति १८:४, ५) वह “एक टुकड़ा रोटी” मैदे के फुलके, मक्खन, और दूध के साथ चरबीवाले बछड़े की दावत निकली—ऐसा भोज जो राजा के योग्य हो। सबक़ क्या है? जब पहुनाई की जाती है, तब महत्त्वपूर्ण बात, या जिस बात पर ज़ोर दिया जाना है, वह यह नहीं है कि भोजन और पेय कितना स्वादिष्ट होगा, या कितना भव्य मनोरंजन प्रदान किया जाएगा, इत्यादि। पहुनाई इस पर निर्भर नहीं करती कि व्यक्‍ति महँगी चीज़ें प्रदान कर सकता है या नहीं। इसके बजाय, यह दूसरों के हित की सच्ची चिन्ता पर और अपने भरसक दूसरों का भला करने की इच्छा पर आधारित है। “प्रेम वाले घर में सागपात का भोजन, बैर वाले घर में पले हुए बैल का मांस खाने से उत्तम है,” बाइबल का एक नीतिवचन कहता है, और इसमें सच्ची पहुनाई की कुंजी है।—नीतिवचन १५:१७.

१६. इब्राहीम ने आगंतुकों के लिए जो किया उसमें उसने आध्यात्मिक बातों के लिए मूल्यांकन कैसे दिखाया?

१६ लेकिन, हमें यह नोट करना चाहिए कि समस्त घटना में एक आध्यात्मिक अधिछवि भी थी। इब्राहीम ने किसी तरह यह जान लिया कि ये आगंतुक यहोवा की ओर से दूत थे। यह इससे सूचित होता है कि उसने इन शब्दों से उन्हें सम्बोधित किया: “हे प्रभु [“यहोवा,” NW], यदि मुझ पर तेरी अनुग्रह की दृष्टि है तो मैं बिनती करता हूं, कि अपने दास के पास से चले न जाना।”a (उत्पत्ति १८:३. निर्गमन ३३:२० से तुलना कीजिए।) इब्राहीम पहले से नहीं जानता था कि उनके पास उसके लिए कोई संदेश था या कि वे बस वहाँ से गुज़र रहे थे। बात जो भी हो, वह समझ गया कि यहोवा के उद्देश्‍य की पूर्ति हो रही थी। ये व्यक्‍ति यहोवा की ओर से किसी अभियान में लगे हुए थे। यदि उसमें योग देने के लिए वह कुछ कर सकता था, तो उसे ख़ुशी होती। उसने यह समझा कि यहोवा के सेवक अच्छे से अच्छे के योग्य हैं, और वह उस परिस्थिति में अच्छे से अच्छे का प्रबन्ध करेगा। ऐसा करने के द्वारा, आध्यात्मिक आशिष मिलेगी, चाहे उसे या किसी और व्यक्‍ति को। जैसा कि हुआ, इब्राहीम और सारा को उनकी निष्कपट पहुनाई के लिए बड़ी आशिष मिली।—उत्पत्ति १८:९-१५; २१:१, २.

पहुनाई करनेवाले लोग

१७. उनके बीच अजनबियों और ज़रूरतमंदों के सम्बन्ध में यहोवा ने इस्राएलियों से क्या माँग की?

१७ इब्राहीम से आयी जाति को उस उल्लेखनीय उदाहरण को नहीं भूलना था जो उसने रखा। यहोवा ने जो व्यवस्था इस्राएलियों को दी उसमें उनके बीच अजनबियों की पहुनाई करने का प्रबन्ध सम्मिलित था। “जो परदेशी तुम्हारे संग रहे वह तुम्हारे लिये देशी के समान हो, और उस से अपने ही समान प्रेम रखना; क्योंकि तुम भी मिस्र देश में परदेशी थे; मैं तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा हूं।” (लैव्यव्यवस्था १९:३४) लोगों को ऐसों के प्रति ख़ास विचारशीलता दिखानी थी जो भौतिक सहारे की ज़रूरत में थे और उनकी उपेक्षा नहीं करनी थी। जब यहोवा उन्हें भरपूर फ़सल की आशिष देता, जब वे अपने त्योहारों में आनन्द मनाते, जब वे सब्त के सालों में अपने परिश्रम से विश्राम करते, और अन्य अवसरों पर, लोगों को इन बेचारों—विधवाओं, अनाथ बालकों, और परदेशियों—को याद रखना था।—व्यवस्थाविवरण १६:९-१४; २४:१९-२१; २६:१२, १३.

१८. यहोवा का अनुग्रह और आशिष पाने के सम्बन्ध में पहुनाई कितनी महत्त्वपूर्ण है?

१८ दूसरों के प्रति, ख़ासकर उनके प्रति जो ज़रूरत में हैं, कृपा, उदारता, और पहुनाई का महत्त्व इससे देखा जा सकता है कि यहोवा ने इस्राएलियों के साथ कैसे व्यवहार किया जब उन्होंने इन गुणों को दिखाने में लापरवाही की। यहोवा ने स्पष्ट किया कि अजनबियों और ज़रूरतमंदों के प्रति कृपा और उदारता उसकी सतत आशिष पाने के लिए उसके लोगों से की गयी माँगों में से हैं। (भजन ८२:२, ३; यशायाह १:१७; यिर्मयाह ७:५-७; यहेजकेल २२:७; जकर्याह ७:९-११) जब वह जाति इन और अन्य माँगों को पूरा करने में कर्मठ थी, तब वे फले-फूले और उन्होंने भौतिक और आध्यात्मिक बहुतायत का आनन्द लिया। जब वे अपने स्वार्थी व्यक्‍तिगत कार्यों में व्यस्त हो गए और ज़रूरतमंदों के प्रति इन सुखद गुणों को दिखाने में लापरवाही की, तब यहोवा ने उन्हें दोषी ठहराया, और अंततः उन्हें प्रतिकूल न्यायदण्ड मिला।—व्यवस्थाविवरण २७:१९; २८:१५, ४५.

१९. आगे हमें किस बात पर विचार करना चाहिए?

१९ तो, हमारे लिए स्वयं यह जाँच करना और देखना कितना महत्त्वपूर्ण है कि हम इस सम्बन्ध में यहोवा की अपेक्षाओं के अनुसार जी रहे हैं या नहीं! संसार की स्वार्थी और विभाजक आत्मा को देखते हुए यह आज ख़ासकर महत्त्वपूर्ण है। एक विभाजित संसार में हम मसीही पहुनाई कैसे कर सकते हैं? अगले लेख में इसी विषय पर चर्चा की गयी है।

[फुटनोट]

a इस मुद्दे पर विस्तृत चर्चा के लिए, मई १५, १९८८ की प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी) के पृष्ठ २१-३ पर लेख “क्या किसी ने परमेश्‍वर को देखा है?” देखिए।

क्या आपको याद है?

◻ “पहुनाई” अनुवादित बाइबल शब्द का क्या अर्थ है?

◻ किन तरीक़ों से यहोवा पहुनाई करने में परिपूर्ण उदाहरण है?

◻ पहुनाई करने के लिए इब्राहीम किस हद तक गया?

◻ सभी सच्चे उपासकों को क्यों ‘पहुनाई करने में लगे रहना’ चाहिए?

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