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  • ‘परमेश्‍वर का इस्राएल’ और ‘बड़ी भीड़’
    प्रहरीदुर्ग—1995 | जुलाई 1
    • ८ इस्राएल जब विश्‍वासी था, तो उसने यहोवा की सर्वसत्ता की क़दर की और उसे अपने राजा के तौर पर स्वीकार किया। (यशायाह ३३:२२) अतः वे एक राज्य थे। लेकिन, जैसे बाद में प्रकट किया गया “राज्य” के बारे में प्रतिज्ञा का उससे भी कुछ ज़्यादा अर्थ होता। इसके अतिरिक्‍त, जब उन्होंने यहोवा की व्यवस्था को माना, तो वे शुद्ध थे और अपने चारों ओर की जातियों से अलग थे। वे एक पवित्र जाति थे। (व्यवस्थाविवरण ७:५, ६) क्या वे एक याजकों का राज्य थे? इस्राएल में लेवी का गोत्र मन्दिर की सेवा के लिए अलग रखा गया था, और उस गोत्र में लेवीय याजकवर्ग था। जब मूसा की व्यवस्था का प्रारंभ किया गया, प्रत्येक ग़ैर-लेवी परिवार के पहलौठे के बदले लेवी पुरुषों को लिया गया था।a (निर्गमन २२:२९; गिनती ३:११-१६, ४०-५१) इस प्रकार, इस्राएल में प्रत्येक परिवार का मानो मन्दिर की सेवा में प्रतिनिधित्व किया गया था। इस प्रतिनिधिक तरीक़े से यह जाति याजकवर्ग बनने के सबसे क़रीब थी। तथापि, उन्होंने जातियों के सम्मुख यहोवा का प्रतिनिधित्व किया। कोई भी परदेशी जो सच्चे परमेश्‍वर की उपासना करना चाहता था उसे इस्राएल की संगति में ऐसा करना था।—२ इतिहास ६:३२, ३३; यशायाह ६०:१०.

  • ‘परमेश्‍वर का इस्राएल’ और ‘बड़ी भीड़’
    प्रहरीदुर्ग—1995 | जुलाई 1
    • a जब इस्राएल के याजकवर्ग का प्रारंभ किया गया, तो इस्राएल के ग़ैर-लेवी गोत्रों के पहलौठे पुत्रों और लेवी के गोत्र के पुरुषों की गिनती की गयी। लेवी पुरुषों से २७३ पहलौठे ज़्यादा थे। इसलिए, यहोवा ने आज्ञा दी कि इन २७३ अतिरिक्‍त व्यक्‍तियों के लिए प्रति व्यक्‍ति छुड़ौती के रूप में पाँच शेकेल दिए जाएँ।

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