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  • क्या आप केवल बाहरी रूप देखते हैं?

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  • क्या आप केवल बाहरी रूप देखते हैं?
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1991
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1991
w91 2/1 पेज 17-19

क्या आप केवल बाहरी रूप देखते हैं?

हाइन्ज़, एक किशोर ने घृणा से भर कर, अपने सौतेले पिता को मार डालने की योजना बनाई। खुशी की बात है कि, ऐसा करने के लिए उसमें साहस की कमी थी। कुछ वर्षों बाद उसने आत्महत्या करने का निर्णय किया परन्तु वह भी नहीं कर पाया। वह चोरी और नशीली दवाईयाँ बेचने में अन्तर्ग्रस्त हो गया, जिसके लिए उसे गिरफ्तार किया गया। फिर उसका विवाह असफल हो गया।

आज हाइन्ज़ नशे की आदि नहीं है। वह ईमानदारी से जीविका चला रहा है। उसका विवाहित जीवन आनन्दित है और अपने सौतेले पिता के साथ उसका सम्बन्ध अच्छा है। यह फर्क कैसे आ गया? उसने यहोवा के गवाहों के साथ बाइबल अध्ययन करना शुरू किया। धीरे धीरे जीवन के प्रति उसका दृष्टिकोण बदलने लगा।

निःसन्देह, बहुतेरे ने जो पुराने हाइन्ज़ को जानते थे उसे एक आशाहीन स्थिति में कह कर छोड़ दिया था। उसके जैसे अनेक लोगों को धन्यवादित होना चाहिए, की परमेश्‍वर ने उसे मुक्‍ति से बाहर समझ कर छोड़ नहीं दिया। क्यों नहीं? इसका कारण है: “यहोवा का देखना मनुष्य का सा नहीं है; मनुष्य तो बाहर का रूप देखता है, परन्तु यहोवा की दृष्टि मन पर रहती है।”—१ शमूएल १६:७.

मनुष्य और परमेश्‍वर के बीच में यह एक बड़ा अन्तर है। हम बाहरी रूपों को देखकर फैसला करने का सुझाव रखते हैं। हम यह भी कहते हैं कि “पहली धारणाएँ हमेशा की धारनाएँ बन जाती है।” दूसरे शब्दों में, हम प्रारंभिक प्रतिक्रियाओं के आधार पर लोगों का वर्गीकरण करते हैं। परन्तु परमेश्‍वर, क्योंकि वह हृदय को पढ़ सकता है, न्यायी और निष्पक्ष है। और इसीलिए उसने अपने पुत्र, यीशु मसीह को, पृथ्वी पर भेजा ताकि “सब मनुष्यों का उद्धार हो; और वे सत्य को भली भांति पहचान लें।” (१ तीमुथियुस २:४) इस सम्बन्ध में, समर्पित मसीहियों को यह सुअवसर प्राप्त है कि वे सक्रियता से परमेश्‍वर के राज्य का सुसमाचार सारी मानवजाति को प्रचार करने के द्वारा “परमेश्‍वर के सहकर्म बनें”। (१ कुरिन्थियों ३:९) फिर भी, मसीहियों की कुछ सीमाएं हैं—वे लोगों के हृदयों को नहीं पढ़ सकते हैं। इसलिए उन्हें निष्पक्ष होना है और बाहरी रूपों से प्रभावित होकर बिना कारणों के पहले से विचार बना लेने से बचे रहना है।

यीशु का सौतेला भाई याकूब भी प्रारंभिक मसीही मंडली में इस खतरे के बारे में जानता था। उसने कहा: “हे मेरे भाइयों, हमारे महिमायुक्‍त प्रभु यीशु मसीह का विश्‍वास तुम में पश्‍चाताप के साथ न हो। क्योंकि यदि एक पुरुष सोने के छल्ले और सुन्दर वस्त्र पहिने हुए तुम्हारी सभा में आए और एक कंगाल भी मैले कुचैले कपड़े पहिने हुए आए। और तुम उस सुन्दर वस्त्र वाले का मुँह देखकर उस पर विशेष ध्यान देते हो . . . तो क्या तुमने आपस में भेद भाव न किया और कुविचार से न्याय करने वाले न ठहरे?” इस आधार पर, क्या हम कभी कभी उन लोगों के बारे में जो पहली बार किंगडम हॉल में आते हैं गलत फैसला करते हैं?—याकूब २:१-४, द न्यू इंगलिश बाइबल।

यीशु ने नमूना रखा

यीशु ने लोगों को, मुक्‍ति से बाहर पापियों की तरह नहीं देखा, परन्तु संभवतः निष्कपट व्यक्‍ति समझ कर जो बदलने के इच्छुक होंगे यदि उन्हें आवश्‍यक मदद और उचित प्रोत्साहन दिया जाए। इसलिए उसने “अपने आप को सब के छुटकारे के दाम में दे दिया।” (१ तीमुथियुस २:६) अपने प्रचार कार्य में, उसने किसी भी अच्छे हृदय के व्यक्‍ति को अछूत, ध्यान देने के अयोग्य की दृष्टि से नहीं देखा। लोगों के प्रति उसके दृष्टिकोण में स्वःधार्मिकता के लिए घमंड की कोई भावना प्रगट नहीं हुई।—लूका ५:१२, १३.

फरीसियों से कितना भिन्‍न, जिनके बारे में हम पढ़ते हैं: “और शास्त्रियों और फरीसियों ने यह देखकर, कि वह तो पापियों और चुंङ्‌गी लेने वालों के साथ भोजन कर रहा है, उसके चेलों से कहा: वह तो चुंङ्‌गी लेनेवालों और पापियों के साथ खाता पीता है!’ यीशु ने यह सुनकर, उन से कहा, ‘भले चंगों को वैद्य की आवश्‍यकता नहीं, परन्तु बीमारों को है, मैं धर्मियों को नहीं, परन्तु पापियों को बुलाने आया हूँ।’—मरकुस २:१६, १७.

निश्‍चय, इसका मतलब यह नहीं था कि इन पापियों और चुंङ्‌गी लेनेवालों द्वारा किए जानेवाले गलत और बेईमान कार्यों का यीशु ने समर्थन किया। परन्तु वह जानता था कि लोग गलत तरीके के जीवन में फंस सकते हैं, शायद अनजान होकर भी या परिस्थितियों के कारण जिन्हें नियंत्रण करना कठिन हो। अतः उसने समझ दिखाई और “उन पर तरस खाया, क्योंकि वे उन भेंड़ों के समान थे, जिनका कोई रखवाला न हो।” (मरकुस ६:३४) उसने प्रेमपूर्वक उनके गलत कार्यों और संभवतः उनके अच्छे हृदयों के बीच फर्क किया।

अपने अनुयायियों के साथ बरताव में, यीशु ने बाहरी रूपों के आगे भी देखा। वे पापी थे जो अक्सर गलतियाँ करते थे, परन्तु यीशु सिद्धता की माँग करनेवाला तर्कसंगत जन नहीं था, जो हमेशा हर एक छोटी गलती के लिए उनकी खबर लेता। वह जानते थे कि उनके इरादे अच्छे थे, या जैसा आज हम कह सकते हैं, कि उनका हृदय सही जगह पर था। उन्हें सहायता और उत्साह की आवश्‍यकता थी: इसे देने में यीशु कभी कंजूस नहीं था। निःसन्देह, उसने लोगों को उसी नजर से देखा जैसे परमेश्‍वर देखते हैं। क्या हम उनके अद्‌भुत उदाहरण का अनुकरण करने की कोशिश करते हैं?

क्या आप “धार्मिक न्याय से न्याय करते हैं”?

एक बार यीशु का सामना स्वःधर्मी शिकायत करनेवालों के एक झुण्ड ने किया जो इसलिए चिढ़े हुए थे कि उसने सब्त के दिन में चंगा करने का एक काम किया था। उसने उनको निर्देश दिया: “बाहरी रूप से न्याय न करो, लेकिन धार्मिक न्याय से न्याय करो” यीशु में, एक आश्‍चर्यकर्म करनेवाले को देखकर, जिसने “एक मनुष्य को पूर रीति से चंगा किया,” वे आनन्दित होने के बजाय वे “क्रोधित” और सब्त के नियम को तोड़नेवाले के रूप में क्यों देखने लगे? बाहरी रूप देख कर न्याय करने के द्वारा, उन्होंने अपने गलत इरादों को प्रकट कर दिया। उन्होंने अपने न्याय को उसी समय पर स्वःधर्मी और अधर्मी प्रकट किया।—यूहन्‍ना ७:२३, २४, न्यू.व.

हम कैसे शायद यही गलती कर सकते हैं? जब एक मन फिराया हुआ व्यक्‍ति मंडली में वापस आ जाता है या जब एक अत्यन्त सांसारिक व्यक्‍ति सच्चाई को सीख लेता है और आत्मिक चंगाई से लाभ उठाना शुरु कर देता है, उस समय आनन्दित न होने के द्वारा। कभी कभी हम लोगों को उनके अरूढ़ीवादी पहनावे या बाल सँवारने के तरीके से न्याय करते हैं और यह कह सकते हैं कि वे कभी भी गवाह नहीं बनेंगे। फिर भी, बहुत जन जो पहले हिप्पी थे और अन्य जो अरूढ़ीवादी तरीके से जीवन व्यत्तीत करते थे आखिरकर यहोवा के मसीही गवाह बन गए। जिस समय ऐसे जन परिवर्तन लाने की स्थिति से गुजर रहे हैं, हम “मुँह देख कर न्याय” करके उनके अच्छे हुदय के प्रति अंधे नहीं बनना चाहेंगे।

यह कितना अच्छा होगा, और यीशु के अच्छे उदाहरण के समान भी, कि उनके लिए प्रार्थना करें और उन्हें मसीही प्रौढ़ता प्राप्त करने में व्यावहारिक सलाह दें! उनमें आनन्दित होने का कारण देखना कठिन मालूम हो सकता है। परन्तु यदि यहोवा उन्हें मसीह के द्वारा अपनी ओर खींचते हैं, हम क्या हैं जो अपनी संकीर्ण कसौटी के आधार पर उनका त्याग करें? (यूहन्‍ना ६:४४) स्वःधार्मिक हो कर किसी का न्याय करना जबकि न हम हृदय को जानते हैं न परिस्थितियों को, हमें विपरीत न्याय के मार्ग पर खड़ा कर सकता है।—मत्ती ७:१-५ से तुलना करें।

ऐसे नए जनों का कठोरता से न्याय करने के बजाय, हमें उदाहरण के जरिए उनकी सहायता, प्रोत्साहन और चेतावनी देनी चाहिए। तथापि, दया दिखाते समय, हमें नए लोगों को अत्यधिक प्रशंसा नहीं करना चाहिए जो शायद संसार में प्रसिद्ध हैं। यह एक प्रकार का पक्षपात होगा। यह हमारे प्रौढ़ न होने की भी एक निशानी होगी। जहाँ तक उस व्यक्‍ति की बात है, क्या हमारी चापलूसी उसे नम्र बनने में मदद करेगी? या बल्कि, क्या यह उसे परेशानी में नहीं डालेगी?—लैव्यव्यवस्था १९:१५.

परमेश्‍वर जितनी आशा करते है उससे अधिक आशा मत करो

यहोवा की तुलना में दूसरों के प्रति हमारे दृष्टि अत्यन्त सीमित है, जो हृदय को पढ़ते हैं। (१ इतिहास २८:९) इस बात का मूल्यांकन करना हमें आधुनिक, स्वःधर्मी फरीसी बनने से बचाएगा, कि लोगों को हमारे अपने मनुष्यों द्वारा बने धार्मिकता के सांचे में ढालने की कोशिश करें, ताकि वो हमारे विचार से जो सही है उसमें खरे उतरें। यदि हम लोगों को उस नजर से देखने की कोशिश करते हैं जैसे परमेश्‍वर उन्हें देखते हैं, हम उनसे इससे अधिक आशा नहीं रखेंगे जितनी वो रखते हैं। हम “लिखे हुए से आगे न बढ़ना” चाहेंगे। (१ कुरिन्थियों ४:६) मसीही प्राचीनों के लिए यह विशेषकर महत्वपूर्ण है कि इसे दिल में रखें।—१ पतरस ५:२, ३.

हम पहिनावे के मामले में इसका उदाहरण दे सकते हैं। बाइबल की माँग—परमेश्‍वर की माँग— है कि एक मसीही के कपड़े साफ सुथरे, सुव्यवस्थित होने चाहिए और “संकोच और संयम” की कमी नहीं दिखनी चाहिए। (१ तीमुथियुस २:९; ३:२) तब, स्पष्टतः, एक मंडली के प्राचीन कुछ वर्ष पहले “लिखे हुए से आगे” बढ़ गए जब अपनी मंडली के प्रत्येक आम भाषण के वक्‍ता से सफेद कमीज पहनने की माँग की गयी थी, जब कि उस देश में हलके रंग साधारणतः ठीक समझे जाते थे। अतिथि वक्‍ता जो रंगीन कमीज पहनकर पहुंच जाते थे उनसे कहा जाता था कि उन सफेद कमीजों में से एक पहन लें जो किंगडम हॉल में इसी प्रकार की परिस्थितियों के लिए रखी गई थी। हमें कितना सावधान होना चाहिए कि दूसरों पर अपनी व्यक्‍तिगत पसंद को न लादें! और पौलुस की सलाह कितनी उचित है: “तुम्हारी कोमलता सब मनुष्यों पर प्रगट हो”!—फिलिप्पियों ४:५.

बाहरी रूप से आगे भी देखने के अच्छे परिणाम

यह मूल्यांकन करना कि हम लोगों के हृदयों को नहीं पढ़ सकते हैं अपने आस-पास के लोगों के साथ, मसीही मंडली के अन्दर और बाहर भी, एक अधिक अच्छा सम्बन्ध बनाए रखने के लिए हमारी मदद करेगा। यह हमारी मदद करेगा कि दूसरों के बारे सकारात्मक तरीके से सोचें, उनके इरादों पर सन्देह न करें, “क्योंकि हम भी पहिले, निर्बुद्धि, और आज्ञा न माननेवाले, और भ्रम में पड़े हुए, और रंग रंग के अभिलाषाओं और सुखविलास के दासत्व में थे”। (तीतुस ३:३) यह महसूस करते हुए, हम सभी को प्रचार करने के इच्छुक होंगे, उनको भी जो बाहरी रूप से, इस योग्य न भी नजर आएं। अखिरकार, सच्चाई को ग्रहण करने या त्यागने का निर्णय उनका है। इसे सभी को प्रचार करने का उत्तरदायित्व हमारा है।

हाइन्ज़ की तरह, बहुत से यहोवा के गवाह, खुश हैं कि मसीही मंडली में उनका स्वागत उन भाईयों और बहनों के द्वारा किया गया जिन्होंने बाहरी रूप से आगे भी देखा और पहली धारणा से फैसला नहीं किया।

फ्रैंक को लीजिए, जो एक रविवार को दक्षिण जर्मनी में यहोवा के गवाह के एक किंगडम हॉल में पहुँचा। उन उपस्थित लोगों ने क्या देखा? एक अव्यवस्थित जवान पुरूष जिसकी दाढ़ी और कंधे तक बाल थे, गंदे कपड़े पहना हुआ था, जिसकी पहचान स्थानीय शाराब खानों में जानेवाला और अत्यधिक धूम्रपान करनेवाला—एक व्यक्‍ति जिसने अपनी महिल्ला-मित्र और उसके जुड़वाँ बच्चों पर ध्यान नहीं दिया। फिर भी, मीटिंग में उसका स्नेहपूर्वक स्वागत किया गया। वह इतना प्रभावित हुआ कि अगले सप्ताह फिर आया। तब उन्होंने क्या देखा? अच्छी तरह बाल बनाए हुए साफ सुथेर कपड़ों में एक जवान व्यक्‍ति। तीसरे सप्ताह उन्होंने देखा एक युवा व्यक्‍ति जो अब धूम्रपान नहीं करता था, और इस बार वह अपनी महिल्ला मित्र और अपने दो बच्चों के साथ था। चौथे रविवार को, उन्होंने देखा एक युवा पुरूष और युवा स्त्री जिन्होंने अपने सम्बन्ध को कानूनी बनाने के लिए तुरन्त ही विवाह का लाइसेन्स लिया था। पांचवे रविवार को, उन्होंने एक युवा पुरूष को देखा जिसने झूठे धर्म से सारे बन्धन तोड़ डाले थे। आज, चार वर्षों बाद, जैसा एक यहोवा का गवाह बताता है, वे देखते हैं, “एक परिवार जो इतनी अच्छी धारना छोड़ता है कि आप सोचेंगे कि वे बहुत सालों से हमारे भाई रह चुके हैं।”

एक पुस्तक के गुण यह जरूरी नहीं कि उसकी जिल्द से मालूम पड़ जाएं न ही एक घर के गुण उसके सामने के रूप से मालूम पड़ते हैं। इसी प्रकार, एक व्यक्‍ति का सही गुण यह जरूरी नहीं कि बाहरी रूप से प्रकट हो। मसीही जो यह कोशिश करते हैं कि लोगों को ऐसे देखें जैसे परमेश्‍वर देखता है वे प्रारंभिक धारना से फैसला नहीं करेंगे। परमेश्‍वर “छिपे हुआ और गुप्त मनुष्यत्व” पर ध्यान देते हैं, और उसके लिए हम धन्यवादित हो सकते हैं।—१ पतरस ३:३, ४.

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