मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
© 2024 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
6-12 मई
पाएँ बाइबल का खज़ाना भजन 36-37
“बुरे लोगों की वजह से मत झुँझलाना”
जब परमेश्वर का राज आएगा, तो क्या-क्या मिट जाएगा?
4 दुष्ट लोगों का आज हम पर क्या असर पड़ता है? प्रेषित पौलुस ने कहा था कि आखिरी दिनों में “संकटों से भरा ऐसा वक्त आएगा जिसका सामना करना मुश्किल होगा।” फिर उसने कहा, “दुष्ट और फरेबी बद-से-बदतर होते चले जाएँगे।” (2 तीमु. 3:1-5, 13) क्या आप इन बातों को पूरा होते देख रहे हैं? हममें से कई लोग ऐसे हैं जिन्हें गुंडे-बदमाशों, जाति-भेद करनेवालों या खतरनाक अपराधियों ने अपना शिकार बनाया है। इनमें से कुछ लोग तो खुलेआम बुराई करते हैं। और दूसरे ऐसे हैं जो लोगों की मदद करने का दिखावा करते हैं लेकिन असल में उनके इरादे बुरे होते हैं। हो सकता है कि हमारे साथ कोई वारदात न हुई हो मगर फिर भी दुष्ट लोगों का हम पर बुरा असर होता है। जैसे, जब हम खबर सुनते हैं कि किसी ने एक बच्चे, बुज़ुर्ग या किसी लाचार इंसान के साथ बदसलूकी या कोई घिनौनी हरकत की है तो क्या हम अंदर-ही-अंदर बहुत दुखी नहीं हो जाते? सच, दुष्ट लोगों के काम जंगली जानवरों जैसे और शैतानी हैं। (याकू. 3:15) लेकिन खुशी की बात है कि यहोवा का वचन बाइबल हमें बढ़िया आशा देती है।
माफ करें और यहोवा से आशीषें पाएँ!
10 नाराज़गी पाले रखने से हमारा ही नुकसान होता है। अगर हम किसी से नाराज़ रहें, तो यह ऐसा होगा जैसे हमारे दिल पर एक भारी बोझ रखा हो। (इफिसियों 4:31, 32 पढ़िए।) इसी वजह से यहोवा हमसे कहता है, “गुस्सा करना छोड़ दे, क्रोध त्याग दे।” (भज. 37:8) यह कितनी बढ़िया सलाह है। अगर हम अंदर-ही-अंदर कुढ़ते रहें, तो यह ऐसा होगा मानो हम ज़हर पीते जा रहे हों। इससे हमारा ही नुकसान होगा। हम परेशान रहने लगेंगे और हमारी सेहत भी खराब हो सकती है। (नीति. 14:30) लेकिन अगर हम दूसरों को माफ कर दें, तो इससे हमारा भला होगा। (नीति. 11:17) हमें मन की शांति मिलेगी और हमारी सेहत भी अच्छी रहेगी। इस तरह हम खुश रह पाएँगे और यहोवा की अच्छी तरह सेवा कर पाएँगे।
“यहोवा को अपने सुख का मूल जान”
20 फिर, “नम्र लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे।” (भजन 37:11क) “नम्र लोग” वे लोग हैं, जो दीनता से यहोवा के वक्त का इंतज़ार करते हैं कि वह उन्हें इंसाफ दिलाए और जो-जो ज़्यादतियाँ उनके साथ हुई हैं, उन्हें ठीक करे। वे “बड़ी शान्ति के कारण आनन्द मनाएंगे।” (भजन 37:11ख) यहाँ तक कि आज सच्ची मसीही कलीसिया के साथ जुड़े आध्यात्मिक फिरदौस में भी हमें बड़ी शांति मिलती है।
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पहाड़
हमेशा टिका रहना या ऊँचाई: देखा जाए तो एक पहाड़ एक ही जगह पर हमेशा टिका रहता है, उसे कभी हिलाया नहीं जा सकता। (यश 54:10; हब 3:6. भज 46:2 से तुलना करें।) इसलिए जब एक भजन के लिखनेवाले ने कहा कि यहोवा की नेकी “परमेश्वर के पहाड़ों” जैसी है, तो शायद उसका मतलब था कि यहोवा के नेक स्तर कभी नहीं बदलते। (भज 36:6) या फिर इसका मतलब यह हो सकता है कि परमेश्वर के नेक स्तर, इंसान के स्तरों से कहीं ज़्यादा ऊँचे हैं। (यश 55:8, 9 से तुलना करें।) प्रकाशितवाक्य 16:20 में बताया गया है कि जब परमेश्वर के क्रोध का सातवाँ कटोरा उँडेला जाएगा, तो दुनिया में जो चीज़ें पहाड़ों जैसी ऊँची या बड़ी हैं, वे भी नहीं बच पाएँगी।—यिर्म 4:23-26 से तुलना करें।
13-19 मई
पाएँ बाइबल का खज़ाना भजन 38-39
हद-से-ज़्यादा दोषी महसूस करने का बोझ उतार फेंकिए
अपनी नज़रें आगे की तरफ टिकाए रखिए
12 पहला यूहन्ना 3:19, 20 पढ़िए। हम सब कभी-कभी अपनी गलतियों के बारे में सोचकर दोषी महसूस करते हैं। कुछ लोगों ने सच्चाई सीखने से पहले जो गलतियाँ की थीं, उनके बारे में सोचकर वे दोषी महसूस करते हैं। कुछ लोगों ने बपतिस्मा लेने के बाद जो गलतियाँ कीं, उनके बारे में सोचकर उनका मन कचोटता रहता है। (रोमि. 3:23) हालाँकि हम वही करना चाहते हैं जो सही है, फिर भी “हम सब कई बार गलती करते हैं।” (याकू. 3:2; रोमि. 7:21-23) जब हमारा मन हमें कोसता रहता है, तो हमें अच्छा नहीं लगता। मगर दोष की भावनाओं से कुछ फायदा भी होता है। हम अपनी गलती सुधारने की कोशिश करते हैं और ठान लेते हैं कि फिर से वह गलती नहीं दोहराएँगे।—इब्रा. 12:12, 13.
13 मगर कभी-कभी ऐसा होता है कि हम अपनी गलतियों को लेकर हद-से-ज़्यादा दोषी महसूस करते हैं। भले ही हमने पश्चाताप किया और यहोवा ने हमें माफ कर दिया, फिर भी दोष की भावना हमारे मन से जाती नहीं। इस तरह हद-से-ज़्यादा दोषी महसूस करना हमें नुकसान पहुँचा सकता है। (भज. 31:10; 38:3, 4) वह कैसे? इसे समझने के लिए एक बहन का उदाहरण लीजिए जिसने सच्चाई सीखने से पहले पाप किए थे और दोष की भावना पर काबू पाना उसे बहुत मुश्किल लगा था। उसने कहा, “मुझे लगता था कि यहोवा की सेवा में मेहनत करने का कोई फायदा नहीं। मैंने ऐसे-ऐसे काम किए हैं कि आनेवाले अंत से शायद मैं बचूँगी नहीं।” हममें से कई लोग शायद इस बहन की तरह सोचें कि हम किसी काम के नहीं हैं। लेकिन ऐसा सोचने से हम यहोवा की सेवा करना छोड़ देंगे और शैतान को बड़ी खुशी होगी जबकि सच तो यह है कि यहोवा ने हमें माफ कर दिया है।—2 कुरिंथियों 2:5-7, 11 से तुलना करें।
एक ऐसी ज़िंदगी कैसे जीएँ जिससे यहोवा खुश हो?
हमारी ज़िंदगी बस चार दिन की लगती है और जो देखते-ही-देखते खत्म हो जाती है। भजनहार दाऊद ने इस बात पर गौर किया कि हमारी ज़िंदगी इतनी छोटी क्यों हैं। इसलिए उसके दिल ने उसे यह प्रार्थना करने के लिए उभारा: “हे यहोवा, मुझको बता कि मेरे साथ क्या कुछ घटित होने वाला है? मुझे बता, मैं कब तक जीवित रहूँगा? मुझको जानने दे सचमुच मेरा जीवन कितना छोटा है। हे यहोवा, तूने मुझको बस एक क्षणिक जीवन दिया।” दाऊद अपनी बोली और अपने कामों से परमेश्वर को खुश करना चाहता था, यही उसकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी चिंता थी। परमेश्वर पर उसे कितना भरोसा है उसके बारे में उसने कहा: “मेरी आशा तो तेरी ओर लगी है!” (भजन 39:4, 5, 7) यहोवा ने दाऊद की प्रार्थना सुनी। उसने सचमुच दाऊद के कामों पर गौर किया और उसके मुताबिक उसे आशीषें दीं।
ज़िंदगी की भाग-दौड़ में, साथ ही ढेर सारा काम निपटाने के चक्कर में हम इतना खो सकते हैं कि हमें साँस लेने की भी फुरसत ना मिले। खासकर जब हमारे पास समय कम हो मगर देखने और करने को बहुत कुछ हो तो शायद हम खाहमखाह चिंता में डूब जाएँ। क्या हम भी दाऊद की तरह यही चाहते हैं कि हम अपनी ज़िंदगी इस तरह जीएँ जिससे परमेश्वर खुश हो? इसमें कोई शक नहीं कि यहोवा हममें से हरेक को देखता है और बड़े ध्यान से हमारी जाँच करता है। परमेश्वर का भय रखनेवाले, अय्यूब ने करीब 3,600 साल पहले इस बात को पहचाना कि यहोवा ने उसके सारे कामों को परखा है। अय्यूब ने अपने आप से सवाल किया: “जब वह मुझ से लेखा लेगा तब मैं क्या उत्तर दूंगा?” (NHT) (अय्यूब 31:4-6, 14) अगर हम आध्यात्मिक बातों को पहला स्थान देंगे, परमेश्वर की आज्ञाओं को मानेंगे और अपने समय का अच्छा इस्तेमाल करेंगे तो हम ऐसी ज़िंदगी जी पाएँगे जो परमेश्वर को पसंद होगी। आइए हम इन बातों को और भी करीब से जाँचें।
यहोवा के साथ अपना रिश्ता दोबारा बनाइए
यहोवा से बार-बार बात कीजिए। आपका पिता, यहोवा जानता है कि दोष की भावना आसानी से नहीं जाती और इस वजह से प्रार्थना करना मुश्किल हो सकता है। (रोमि. 8:26) फिर भी, ‘प्रार्थना में लगे रहिए’ और यहोवा को बताइए कि आप उससे दोबारा दोस्ती करना चाहते हैं। (रोमि. 12:12) जब आँड्रे ने ऐसा किया, तो उसे बहुत फायदा हुआ। उसने कहा, “मैं खुद को बहुत कोसता था और शर्मिंदा महसूस करता था। लेकिन प्रार्थना करने के तुरंत बाद मेरा मन शांत हो जाता था।” अगर आपको समझ में न आए कि आप प्रार्थना में क्या कहें, तो आप राजा दाविद की प्रार्थनाओं पर गौर कर सकते हैं, जो उसने पश्चाताप करने के बाद लिखी थीं। ये प्रार्थनाएँ भजन 51 और 65 में दर्ज़ हैं।
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क्या भाई-बहन आप पर भरोसा कर सकते हैं?
16 खुद पर काबू रखिए। भरोसेमंद बनने कि लिए खुद पर काबू रखना भी ज़रूरी है। अगर हम खुद पर काबू रखें, तो हम ऐसी कोई बात दूसरों को नहीं बताएँगे जो हमें अपने तक ही रखनी चाहिए, तब भी नहीं जब हमें उस बारे में बताने का बहुत मन कर रहा हो। (नीतिवचन 10:19 पढ़िए।) हमें खासकर सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते वक्त इस बात का ध्यान रखना चाहिए। अगर हम ध्यान ना दें, तो शायद हम अनजाने में कोई ऐसी बात बहुत-से लोगों में फैला दें जो हमें दूसरों को नहीं बतानी थी। और एक बार इंटरनेट पर हमने कोई जानकारी डाल दी, तो वह जानकारी कितने लोगों में फैलेगी, वे उसका कैसे इस्तेमाल करेंगे और उससे क्या-क्या मुश्किलें खड़ी होंगी, इस पर हमारा कोई बस नहीं चलता। हमें तब भी खुद पर काबू रखना चाहिए और चुप रहना चाहिए जब हमारे काम का विरोध करनेवाले चालाकी से हमसे भाई-बहनों के बारे में जानकारी निकलवाने की कोशिश करते हैं। जैसे शायद हम किसी ऐसे देश में रहते हों जहाँ हमारे काम पर पाबंदी या रोक लगी हो और हो सकता है कुछ पुलिसवाले हमसे पूछताछ करें। जब ऐसा कुछ होता है, तो हमें मानो ‘अपने मुँह पर मुसका बाँधे रहना’ है और उन्हें ऐसी कोई जानकारी नहीं देनी है जिससे भाई-बहनों को खतरा हो। (भज. 39:1) हम सब चाहते हैं कि हमारे घरवाले, हमारे दोस्त, भाई-बहन और दूसरे लोग हम पर भरोसा करें। पर वे हम पर तभी भरोसा करेंगे जब हम खुद पर काबू रखेंगे।
20-26 मई
पाएँ बाइबल का खज़ाना भजन 40-41
हमें दूसरों की मदद क्यों करनी चाहिए?
उदारता से देनेवाले खुश रहते हैं
16 जो लोग दिल से उदार होते हैं, वे निस्वार्थ भाव से दूसरों की मदद करते हैं। वे बदले में कुछ पाने की उम्मीद नहीं करते। यीशु ने कहा था, “जब तू दावत दे, तो गरीबों, अपाहिजों, लँगड़ों और अंधों को न्यौता देना। तब तुझे खुशी मिलेगी क्योंकि तुझे बदले में देने के लिए उनके पास कुछ नहीं है।” (लूका 14:13, 14) बाइबल में लिखा है, “दरियादिल इंसान पर आशीषें बरसेंगी” और “सुखी है वह इंसान जो दीन-दुखियों का लिहाज़ करता है।” (नीति. 22:9; भज. 41:1) लोगों की मदद करने से हमें सच में खुशी मिलती है।
17 जब पौलुस ने यीशु की यह बात कही कि “लेने से ज़्यादा खुशी देने में है,” तो वह सिर्फ खाने और कपड़े जैसी चीज़ें देने की बात नहीं कर रहा था। हम लोगों को और भी कुछ दे सकते हैं। हम उनका हौसला बढ़ा सकते हैं, बाइबल से बढ़िया सलाह दे सकते हैं और दूसरे तरीकों से उनकी मदद कर सकते हैं। (प्रेषि. 20:31-35) पौलुस ने अपनी बातों और कामों से सिखाया कि हमें किस तरह उदार होना चाहिए। जैसे, हमें लोगों को अपना समय देना चाहिए, उनकी खातिर मेहनत करनी चाहिए, उन पर ध्यान देना चाहिए और उनसे प्यार करना चाहिए।
18 इंसानों के व्यवहार पर अध्ययन करनेवालों ने पाया है कि किसी को कुछ देने से लोगों को खुशी मिलती है। एक लेख में बताया गया है कि लोग खुद कहते हैं कि उन्हें तब ज़्यादा खुशी मिलती है, जब वे दूसरों के लिए कुछ अच्छा करते हैं। अध्ययन करनेवाले कहते हैं कि दूसरों की मदद करने पर हमें लगता है कि हमने ज़िंदगी में कुछ किया है। इस वजह से कुछ विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि अगर आप ज़्यादा खुश और तंदुरुस्त रहना चाहते हैं, तो स्वयंसेवा कीजिए। उनकी इस बात से हमें हैरानी नहीं होती, क्योंकि हमारे सृष्टिकर्ता यहोवा ने हमेशा से यही कहा है कि ज़्यादा खुशी देने में है।—2 तीमु. 3:16, 17.
यहोवा आपको सँभालेगा
7 अगर आप बीमार हैं, तो आप इस बात का ज़रूर यकीन रख सकते हैं कि यहोवा आपको दिलासा देगा और आपको सँभालेगा, जैसे उसने बीते समय में अपने सेवकों को सँभाला। राजा दाविद ने लिखा, “क्या ही धन्य है वह, जो कंगाल की सुधि रखता है! विपत्ति के दिन यहोवा उसको बचाएगा। यहोवा उसकी रक्षा करके उसको जीवित रखेगा।” (भज. 41:1, 2) हम जानते हैं कि दाविद के दिनों में जिस व्यक्ति ने किसी कंगाल या दीन-दुखियारे की मदद की, वह हमेशा जीवित नहीं रहा। इसलिए दाविद का यह मतलब बिलकुल नहीं था कि इस तरह मदद करनेवाले लोग चमत्कार से जीवित रहेंगे और हमेशा की ज़िंदगी पाएँगे। तो फिर उसके कहने का क्या मतलब हो सकता है? यही कि परमेश्वर अच्छे और वफादार लोगों की मदद करेगा। कैसे? दाविद समझाता है, “जब वह [रोग] के मारे [बिस्तर] पर पड़ा हो, तब यहोवा उसे सम्भालेगा; तू रोग में उसके पूरे बिछौने को उलटकर ठीक करेगा।” (भज. 41:3) जी हाँ, जो व्यक्ति किसी दीन-दुखियारे की मदद करता है, उसका यह काम और उसकी वफादारी परमेश्वर कभी नहीं भूलता। इसलिए, अगर वह बीमार हो जाता है, तो परमेश्वर उसे बुद्धि और ताकत दे सकता है। साथ ही, परमेश्वर ने इंसान का शरीर इस तरह बनाया है कि यह खुद को ठीक कर सकता है।
करुणा करने में यहोवा की मिसाल पर चलिए
17 यह सच है कि करुणा करने से हमें फायदे होते हैं। लेकिन करुणा करने की सबसे अहम वजह है कि हम यहोवा की मिसाल पर चलना चाहते हैं और उसकी महिमा करना चाहते हैं। वह प्यार और करुणा का परमेश्वर है। (नीति. 14:31) उसने हमारे लिए सबसे बेहतरीन मिसाल रखी है। तो आइए हम यहोवा की मिसाल पर चलकर दूसरों पर करुणा करने की भरसक कोशिश करें। ऐसा करने से हम अपने भाई-बहनों के करीब आ पाएँगे और दूसरों के साथ अच्छा रिश्ता बना पाएँगे।—गला. 6:10; 1 यूह. 4:16.
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यहोवा
बाइबल का मुख्य संदेश है कि यहोवा के राज करने का तरीका ही सही है और अपना नाम पवित्र करना उसका खास मकसद है। ऐसा तभी होगा जब परमेश्वर के नाम पर लगे सभी कलंक मिट जाएँगे। और इससे भी बढ़कर जब सभी स्वर्गदूत और इंसान यहोवा का आदर करेंगे और उसे पूरे जहान का मालिक मानेंगे। इसके लिए ज़रूरी है कि उनके दिल में यहोवा के लिए प्यार हो। तभी वे अपनी इच्छा से उसकी सेवा कर पाएँगे और उसकी मरज़ी पूरी करने में उन्हें खुशी मिलेगी। यही बात दाविद ने भजन 40:5-10 में दर्ज़ अपनी प्रार्थना में बहुत ही खूबसूरत तरीके से बतायी। उसने यह भी बताया कि हम यहोवा का नाम कैसे पवित्र कर सकते हैं। (ध्यान दीजिए कि इब्रानियों 10:5-10 के मुताबिक, इस भजन में लिखी कुछ बातें कैसे मसीह यीशु पर लागू होती हैं।)
27 मई–2 जून
पाएँ बाइबल का खज़ाना भजन 42-44
यहोवा से मिलनेवाली शिक्षा का पूरा फायदा उठाइए
भजन संहिता किताब के दूसरे भाग की झलकियाँ
42:4, 5, 11; 43:3-5. अगर किसी वजह से, जिस पर हमारा कोई बस नहीं, हम कुछ समय के लिए मसीही कलीसिया से जुदा हो जाते हैं, तो ऐसे में बीते समय के दौरान हमें कलीसिया के साथ संगति करने की जो खुशी मिली थी, उसकी यादें हमें थाम सकती है। हालाँकि शुरू-शुरू में ये यादें हमारी तनहाई का दर्द बढ़ा सकती हैं, मगर ये हमें इस बात का एहसास भी दिला सकती हैं कि यहोवा हमारा शरणस्थान है और राहत पाने के लिए हमें उस पर आस लगाए रखने की ज़रूरत है।
निजी अध्ययन को बनाइए असरदार और मज़ेदार!
1 प्रार्थना कीजिए: पहला कदम है प्रार्थना करना। (भज. 42:8) यह ज़रूरी क्यों है? परमेश्वर के वचन का अध्ययन करना हमारी उपासना का हिस्सा है। इसलिए हमें यहोवा से प्रार्थना में दरखास्त करनी चाहिए कि वह सीखी हुई बातों को समझने और अमल में लाने के लिए हमारा दिलो-दिमाग खोल दे और हमें अपनी पवित्र शक्ति दे। (लूका 11:13) लंबे अरसे से मिशनरी रही बारब्रा कहती है: “बाइबल पढ़ने या अध्ययन करने से पहले मैं हमेशा प्रार्थना करती हूँ। उसके बाद मैं महसूस करती हूँ कि यहोवा मेरे साथ है और जो मैं कर रही हूँ उससे खुश है।” अगर हम अध्ययन करने से पहले प्रार्थना करें तो हमारा मन उस आध्यात्मिक भोजन को लेने के लिए पूरी तरह तैयार हो जाएगा जो यहोवा हमें भरपूर मात्रा में देता है।
‘तेरे हाथ ढीले न पड़ें’
11 यहोवा एक और तरीके से हमारी हिम्मत बँधाता है। वह हमें मसीही सभाओं, सम्मेलनों, अधिवेशनों और मसीही स्कूलों के ज़रिए शिक्षा देता है। इस शिक्षा से हम यहोवा की सेवा सही इरादे से कर पाते हैं, अच्छे लक्ष्य रख पाते हैं और अपनी मसीही ज़िम्मेदारियाँ निभा पाते हैं। (भज. 119:32) क्या आप यहोवा की शिक्षा से हिम्मत पाने के लिए बेताब हैं?
12 आज यहोवा कोई चमत्कार करके हमारी समस्याएँ दूर नहीं करता, मगर इनका सामना करने में वह हमारी मदद ज़रूर करता है। उसने अमालेकियों और कूशियों को हराने में इसराएलियों की मदद की। उसने नहेमायाह और दूसरे यहूदियों को ताकत दी ताकि वे यरूशलेम की शहरपनाह बनाने का काम पूरा कर सकें। उसी तरह परमेश्वर हमें भी ताकत देगा कि हम अपनी चिंताओं, विरोध और लोगों की बेरुखाई के बावजूद प्रचार काम करते रहें। (1 पत. 5:10) लेकिन हमें भी अपनी तरफ से कुछ करने की ज़रूरत है। हमें हर दिन परमेश्वर का वचन पढ़ना चाहिए। हमें हर हफ्ते सभाओं की तैयारी करनी चाहिए और उनमें हाज़िर होना चाहिए। हमें लगातार निजी बाइबल अध्ययन और पारिवारिक उपासना करनी चाहिए। हमें यहोवा से हमेशा प्रार्थना करनी चाहिए। यहोवा ने ये सारे इंतज़ाम हमें हिम्मत देने के लिए किए हैं। इसलिए आइए हम ठान लें कि हम किसी भी बात को इन कामों के आड़े आने नहीं देंगे। अगर आपको लगता है कि इनमें से किसी भी काम में आपके हाथ ढीले पड़ गए हैं तो परमेश्वर से मदद माँगिए। उसकी पवित्र शक्ति आपके ‘अंदर काम करेगी ताकि आपके अंदर इच्छा पैदा हो और आप उस पर अमल भी करें।’ (फिलि. 2:13) आप दूसरों के भी हाथ मज़बूत कर सकते हैं। कैसे?
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गीदड़
बाइबल में कई बार किसी व्यक्ति की तुलना गीदड़ से की गयी है या कुछ समझाने के लिए गीदड़ों का उदाहरण दिया गया है। जैसे, अय्यूब ने कहा कि उसकी हालत इतनी बुरी हो गयी है कि वह “गीदड़ों का भाई” बन गया है। (अय 30:9) एक बार जब युद्ध में परमेश्वर के लोग बुरी तरह हार गए, तो एक भजन के लिखनेवाले ने दुखड़ा रोते हुए कहा, “तूने हमें वहाँ कुचल दिया जहाँ गीदड़ रहते हैं।” (भज 44:19) वह लिखनेवाला शायद जंग के मैदान की बात कर रहा था, जहाँ अकसर गीदड़ लाश खाने आते थे। (भज 68:23 से तुलना करें।) ईसा पूर्व 607 में जब बैबिलोन ने यरूशलेम की घेराबंदी की, तो पूरे शहर में अकाल पड़ गया। भूख के मारे माँएँ इतनी कठोर हो गयीं कि उन्होंने अपने बच्चों तक को नहीं छोड़ा। यह देखकर यिर्मयाह ने कहा कि ‘उसके लोगों’ से अच्छी गीदड़ियाँ हैं, जो अपने बच्चों की देखभाल करती हैं।—विल 4:3, 10.
3-9 जून
पाएँ बाइबल का खज़ाना भजन 45-47
एक राजा की शादी के बारे में एक गीत
मेम्ने की शादी पर खुशियाँ मनाइए!
8 भजन 45:13, 14क पढ़िए। दुल्हन ने “अपने दूल्हे के लिए सिंगार” किया है और वह इस शाही घराने में होनेवाली शादी के लिए “अति शोभायमान” लग रही है। प्रकाशितवाक्य 21:2 में दुल्हन की तुलना नयी यरूशलेम नगरी से की गयी है। यह स्वर्गीय नगरी “परमेश्वर की महिमा” के तेज से चमक रही है। उसकी चमक “सबसे अनमोल रत्न, यानी बिल्लौर की तरह दमकते यशब जैसी” है। (प्रका. 21:10, 11) नयी यरूशलेम की बेमिसाल सुंदरता के बारे में प्रकाशितवाक्य की किताब में बहुत ही खूबसूरती से बताया गया है। (प्रका. 21:18-21) इसमें कोई शक नहीं कि क्यों भजनहार इस दुल्हन की खूबसूरती का इस तरह बखान करता है। आखिर स्वर्ग के राज-घराने में होनेवाली शादी से हम यही तो उम्मीद करेंगे।
9 दुल्हन को अपने दूल्हे, यानी मसीहाई राजा के पास लाया जाता है। मसीहाई राजा ने दुल्हन को “वचन” की मदद से स्वच्छ करके उसे तैयार किया है। वह “पवित्र और बेदाग” है। (इफि. 5:26, 27) दुल्हन के कपड़े भी इस मौके के लिए सही होने चाहिए। और इसमें कोई शक नहीं कि उसके कपड़े बहुत खूबसूरत हैं। “उसके वस्त्र में सुनहले बूटे कढ़े हुए हैं” और “वह बूटेदार वस्त्र पहिने हुए राजा के पास पहुंचाई जाएगी।” मेम्ने की शादी के लिए “उसे [दुल्हन को] यह अधिकार दिया गया है कि वह उजला, साफ और बढ़िया मलमल पहनकर सजे, क्योंकि बढ़िया मलमल पवित्र जनों के नेक कामों की निशानी है।”—प्रका. 19:8.
प्रकाशितवाक्य में हमारे भविष्य के लिए आशा
10 जब यहोवा के लोगों पर हमला होगा तो उसे कैसा लगेगा? वह कहता है, “मेरे क्रोध की ज्वाला भड़क उठेगी।” (यहे. 38:18, 21-23) प्रकाशितवाक्य अध्याय 19 में बताया गया है कि यहोवा क्या करेगा। वह अपने लोगों को बचाने के लिए और दुश्मनों का नाश करने के लिए अपने बेटे को भेजेगा। यीशु के साथ “स्वर्ग की सेनाएँ” भी होंगी, यानी वफादार स्वर्गदूत और 1,44,000 साथी राजा। (प्रका. 17:14; 19:11-15) इस युद्ध का क्या नतीजा निकलेगा? जितने भी लोग और संगठन यहोवा के खिलाफ खड़े होंगे, उन सबका नाश कर दिया जाएगा।—प्रकाशितवाक्य 19:19-21 पढ़िए।
युद्ध के बाद, एक शादी
11 जब परमेश्वर के दुश्मनों का नाश हो जाएगा, तब धरती पर वफादार लोग खुशी से झूम उठेंगे। तब स्वर्ग में कैसा माहौल होगा? महानगरी बैबिलोन के नाश के वक्त स्वर्ग में बहुत खुशियाँ मनायी गयीं, पर अब कुछ ऐसा होगा जिस वजह से स्वर्ग में और ज़्यादा खुशियाँ मनायी जाएँगी। (प्रका. 19:1-3) प्रकाशितवाक्य की किताब के आखिर में बताया गया है कि “मेम्ने की शादी” होगी।—प्रका. 19:6-9.
12 मेम्ने की शादी कब होगी? हर-मगिदोन का युद्ध शुरू होने से ठीक पहले, सभी 1,44,000 जन स्वर्ग में इकट्ठा हो जाएँगे। लेकिन यह शादी तब नहीं होगी। (प्रकाशितवाक्य 21:1, 2 पढ़िए।) हर-मगिदोन के युद्ध में जब सभी दुश्मनों का नाश हो जाएगा, तो उसके बाद मेम्ने की शादी होगी।—भज. 45:3, 4, 13-17.
इंसाइट-2 पेज 1169
युद्ध
इस युद्ध के बाद, धरती पर हज़ार साल के लिए शांति रहेगी। एक भजन के लिखनेवाले ने कहा, “धरती के कोने-कोने से [यहोवा] युद्धों को मिटा देता है। तीर-कमान तोड़ डालता है, भाले चूर-चूर कर देता है, युद्ध-रथों को आग में भस्म कर देता है।” यह भविष्यवाणी एक बार तब पूरी हुई जब परमेश्वर इसराएल देश में शांति लाया। इसके लिए उसने इसराएलियों के दुश्मनों के युद्ध के सभी हथियार नष्ट कर दिए। यह भविष्यवाणी एक बार और पूरी होगी। हर-मगिदोन में मसीह उन लोगों को हरा देगा जो युद्ध भड़काते रहते हैं। उसके बाद पूरी धरती पर हमेशा के लिए शांति होगी। (भज 46:8-10) जिन लोगों ने “अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल और अपने भालों को हँसिया” बनाया है और ‘युद्ध करना सीखना’ छोड़ दिया है, उन्हें हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी। हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि यह भविष्यवाणी पूरी होगी? “क्योंकि यह बात सेनाओं के परमेश्वर यहोवा ने कही है।”—यश 2:4; मी 4:3, 4.
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
जब परमेश्वर का राज आएगा, तो क्या-क्या मिट जाएगा?
9 भ्रष्ट संगठनों की जगह कौन लेगा? हर-मगिदोन के बाद क्या धरती पर कोई संगठन रहेगा? बाइबल बताती है, “हम परमेश्वर के वादे के मुताबिक एक नए आकाश और नयी पृथ्वी का इंतज़ार कर रहे हैं, जहाँ नेकी का बसेरा होगा।” (2 पत. 3:13) पुराना आकाश और पुरानी पृथ्वी यानी भ्रष्ट सरकारें और बुरे लोगों का वजूद मिट चुका होगा। मगर उनकी जगह कौन लेगा? ‘एक नया आकाश और नयी पृथ्वी।’ नए आकाश का मतलब है एक नया राज या नयी सरकार, जो यीशु मसीह और 1,44,000 जनों से मिलकर बनी है। नयी पृथ्वी का मतलब है, परमेश्वर के राज के अधीन रहनेवाले लोग। यहोवा हर काम तरतीब से करता है इसलिए यीशु और उसके साथ राज करनेवालों की हुकूमत में भी बढ़िया कायदा होगा। (1 कुरिं. 14:33) “नयी पृथ्वी” पूरी तरह व्यवस्थित होगी। मामलों को सँभालने के लिए भले आदमी होंगे। (भज. 45:16) ये आदमी मसीह और 1,44,000 जनों के निर्देशों के मुताबिक काम करेंगे। ज़रा सोचिए, सभी भ्रष्ट संगठनों के खत्म होने के बाद सिर्फ एक ही संगठन रहेगा, जिसमें एकता होगी और जो कभी भ्रष्ट नहीं होगा!
10-16 जून
पाएँ बाइबल का खज़ाना भजन 48-50
माता-पिताओ, अपने बच्चों को यहोवा के संगठन पर भरोसा करना सिखाइए
सच्ची उपासना कीजिए, खुश रहिए
11 बाइबल का अध्ययन करके और अपने बच्चों को यहोवा के बारे में सिखाकर। सब्त का दिन यहोवा की उपासना करने के लिए अलग रखा गया था। इस दिन इसराएली कोई काम नहीं करते थे बल्कि यहोवा के साथ अपना रिश्ता मज़बूत करने पर ध्यान देते थे। (निर्ग. 31:16, 17) वे अपने बच्चों को यहोवा और उसके भले कामों के बारे में भी सिखाते थे। हमें भी बाइबल पढ़ने और उसका अध्ययन करने के लिए समय अलग रखना चाहिए। ऐसा करने से हम यहोवा की उपासना कर रहे होंगे और उसके करीब आएँगे। (भज. 73:28) इसके अलावा, हमें अपने परिवार के साथ मिलकर भी अध्ययन करना चाहिए। इस तरह हम एक नयी पीढ़ी की यानी अपने बच्चों की मदद कर रहे होंगे ताकि वे भी यहोवा के दोस्त बन पाएँ।—व्यवस्थाविवरण 6:6, 7 पढ़िए।
आपके पास खुश होने की वजह है
“सिय्योन के चारों ओर चलो, और उसकी परिक्रमा करो, उसके गुम्मटों को गिन लो, उसकी शहरपनाह पर दृष्टि लगाओ, उसके महलों को ध्यान से देखो; जिस से कि तुम आनेवाली पीढ़ी के लोगों से इस बात का वर्णन कर सको।” (भज. 48:12, 13) यहाँ भजनहार इसराएलियों से आग्रह कर रहा है कि वे यरूशलेम को करीब से देखें। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि जो इसराएली परिवार हर साल इस पवित्र शहर में त्योहार मनाने जाते थे और यहोवा के शानदार मंदिर को देखते थे, उनके दिलों में उस शहर की कितनी सुनहरी यादें बसी होंगी? उन्होंने ज़रूर “आनेवाली पीढ़ी” से उन ‘बातों का वर्णन’ किया होगा।
ज़रा शीबा की रानी के बारे में सोचिए। उसने सुलैमान के शानदार राज और उसकी महान बुद्धि का ऐसा बखान सुना कि उसे विश्वास नहीं हुआ। किस बात ने उसे यकीन दिलाया कि उसने जो सुना वह बिलकुल सही था? उसने कहा: “जब तक मैं ने आप ही आकर अपनी आंखों से यह न देखा, तब तक मैं ने उनकी प्रतीति न की।” (2 इति. 9:6) जी हाँ, “आंखों” देखी बात का हम पर ज़्यादा असर होता है।
आप अपने बच्चों के लिए ऐसा क्या कर सकते हैं, ताकि वे यहोवा के संगठन के हैरतअंगेज़ कामों को “अपनी आंखों” से देख सकें? अगर आपके शहर में यहोवा के साक्षियों का शाखा दफ्तर है तो क्यों न आप उसे देखने जाएँ। उदाहरण के लिए मैंडी और बैथनी अपने देश के बेथेल से करीब 1,500 किलोमीटर दूर रहती थीं। फिर भी उनके माता-पिता उन्हें कई बार बेथेल दिखाने ले जाते थे, खासकर जब वे बड़ी हो रही थीं। वे कहती हैं: “बेथेल का दौरा करने से पहले हम सोचते थे कि वहाँ का माहौल बहुत गंभीर होगा और सिर्फ बुज़ुर्ग लोग ही रहते होंगे। लेकिन वहाँ हमने कई जवानों को खुशी-खुशी यहोवा के लिए मेहनत से काम करते देखा। हमने पाया कि यहोवा का संगठन सिर्फ हमारे छोटे-से शहर तक ही सीमित नहीं था। हर बार बेथेल का दौरा करने से हम आध्यात्मिक रूप से तरो-ताज़ा हो जाते।” परमेश्वर के संगठन को इतने करीब से देखने से मैंडी और बैथनी को पायनियर सेवा शुरू करने का बढ़ावा मिला और उन्हें बेथेल में कुछ समय के लिए सेवा करने का बुलावा भी मिला।
राज के नागरिकों जैसा बर्ताव करो!
5 इतिहास जानिए। जो इंसान किसी देश का नागरिक बनना चाहता है, उससे शायद यह माँग की जाए कि वह उस देश की सरकार का इतिहास जाने। उसी तरह, परमेश्वर के राज का नागरिक बनने के लिए ज़रूरी है कि हम उस राज के बारे में जितना हो सके जानें। कोरह के वंशजों की मिसाल पर गौर कीजिए, जो प्राचीन इसराएल में सेवा करते थे। उन्हें यरूशलेम और उपासना की जगह से लगाव था और उन्हें उस शहर के इतिहास के बारे में जानना और बात करना अच्छा लगता था। वह इसलिए नहीं कि शहर और उपासना की जगह की खूबसूरती उन्हें बहुत भा गयी थी, बल्कि इसलिए कि यरूशलेम “राजाधिराज [यहोवा] का नगर” और सच्ची उपासना का केंद्र था। वहीं पर यहोवा की कानून-व्यवस्था सिखायी जाती थी। और वहीं से यरूशलेम का राजा अपने लोगों पर हुकूमत करता और उन पर करुणा दिखाता था। (भजन 48:1, 2, 9, 12, 13 पढ़िए।) कोरह के वंशजों की तरह, क्या आप भी यहोवा के संगठन के इतिहास के बारे में जानना और दूसरों को बताना चाहते हैं? जितना ज़्यादा आप परमेश्वर के संगठन के बारे में सीखेंगे और यह जानेंगे कि कैसे यहोवा अपने लोगों की मदद करता है, उतना ही आपका यकीन बढ़ता जाएगा कि उसका राज सचमुच की सरकार है। इससे राज की खुशखबरी सुनाने का आपका जज़्बा और भी बढ़ जाएगा।—यिर्म. 9:24; लूका 4:43.
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धन-दौलत
जब इसराएल देश में खुशहाली थी, तो लोगों के पास खाने-पीने की बहुत-सी अच्छी-अच्छी चीज़ें थीं। (1रा 4:20; सभ 5:18, 19) धन-दौलत से उनकी इस मायने में भी हिफाज़त हुई कि उन्हें गरीबी की मार नहीं झेलनी पड़ी। (नीत 10:15; सभ 7:12) यहोवा चाहता था कि इसराएली कड़ी मेहनत करके दौलत कमाएँ। (नीत 6:6-11; 20:13; 24:33, 34 से तुलना करें।) पर उसने उन्हें यह भी खबरदार किया कि वे यह ना भूलें कि उनके पास जो कुछ है वह उसकी तरफ से है और यह भी कि उन्हें सिर्फ अपनी धन-दौलत पर भरोसा नहीं करना चाहिए। (व्य 8:7-17; भज 49:6-9; नीत 11:4; 18:10, 11; यिर्म 9:23, 24) उन्हें याद दिलाया गया कि धन-दौलत सिर्फ पल-भर की होती है (नीत 23:4, 5), मौत से छुटकारा पाने के लिए इसे फिरौती के तौर पर परमेश्वर को नहीं दिया जा सकता (भज 49:6, 7) और इससे उन लोगों को कोई फायदा नहीं होता जिनकी मौत हो जाती है। (भज 49:16, 17; सभ 5:15) इसराएलियों को यह भी चेतावनी दी गयी कि अगर वे पैसे के पीछे भागेंगे, तो वे बेईमानी करने लग सकते हैं और यहोवा की मंज़ूरी खो सकते हैं। (नीत 28:20. यिर्म 5:26-28; 17:9-11 से तुलना करें।) इसके अलावा, उन्हें बढ़ावा दिया गया कि वे “अपनी अनमोल चीज़ें देकर यहोवा का सम्मान” करें।—नीत 3:9.
17-23 जून
पाएँ बाइबल का खज़ाना भजन 51-53
गंभीर पाप से दूर रहने के लिए कौन-से कदम उठाएँ?
अपने दिल की हिफाज़त कैसे करें?
4 नीतिवचन 4:23 में इस्तेमाल हुए शब्द “दिल” का मतलब है, एक व्यक्ति की सोच, भावनाएँ, इच्छाएँ और उसके इरादे। दूसरे शब्दों में कहें तो “दिल” हमारे अंदर के इंसान को दर्शाता है, न कि इस बात को कि हम बाहर से कैसे दिखते हैं।
5 इस बात पर ध्यान देना क्यों ज़रूरी है कि हम अंदर से कैसे इंसान हैं? इसे समझने के लिए सेहत की बात लीजिए। अपने शरीर और दिल को तंदुरुस्त रखने के लिए ज़रूरी है कि हम पौष्टिक खाना खाएँ और नियमित तौर पर कसरत करें। ठीक उसी तरह अपने लाक्षणिक दिल को तंदुरुस्त रखने के लिए हमें बाइबल और दूसरे प्रकाशन पढ़ने होंगे और नियमित तौर पर यह दिखाना होगा कि हमें यहोवा पर विश्वास है। हम अपना यह विश्वास सीखी हुई बातों पर चलकर और उनके बारे में दूसरों को बताकर ज़ाहिर कर सकते हैं। (रोमि. 10:8-10; याकू. 2:26) हमारी सेहत के बारे में एक और बात ध्यान देने लायक है। वह यह कि शायद हमें अपने आपको देखकर लगे कि हम सेहतमंद हैं, लेकिन असल में अंदर से हम बीमार हों। उसी तरह शायद खुद को परमेश्वर के कामों में व्यस्त देखकर हमें लगे कि हमारा विश्वास मज़बूत है, लेकिन हो सकता है कि हमारे अंदर गलत इच्छाएँ पनप रही हों। (1 कुरिं. 10:12; याकू. 1:14, 15) हमें याद रखना चाहिए कि शैतान अपनी सोच से हमें भ्रष्ट करना चाहता है। इसके लिए वह ठीक कौन-से तरीके अपनाता है? ऐसे में हम अपनी हिफाज़त कैसे कर सकते हैं?
हम अपना चालचलन पवित्र बनाए रख सकते हैं
5 जब हम लगातार यहोवा से प्रार्थना में मदद माँगते रहते हैं तो हम यहोवा पर अपना भरोसा दिखा रहे होते हैं। बदले में वह हमें अपनी पवित्र शक्ति देता है ताकि हम अनैतिक खयाल ठुकरा सकें और अपना चालचलन पवित्र बनाए रख सकें। यहोवा से प्रार्थना करते वक्त हम उसे बता सकते हैं कि हम उन बातों के बारे में सोचना चाहते हैं जिनसे उसे खुशी मिलती है। (भज. 19:14) हम नम्र होकर उससे यह गुज़ारिश कर सकते हैं कि वह हमारे दिल को जाँचे और देखे कि कहीं हमारे दिल में कोई गलत इच्छा तो नहीं, जो हमसे पाप करवा सकती है। (भज. 139:23, 24) तो फिर अनैतिक खयाल ठुकराने और सही काम करने के लिए लगातार यहोवा से मदद माँगते रहिए, फिर चाहे ऐसा करना मुश्किल क्यों न हो।—मत्ती 6:13.
6 यहोवा के बारे में जानने से पहले, शायद हमें ऐसे काम करना पसंद हो जो यहोवा को मंज़ूर नहीं हैं। हो सकता है वे काम करने की इच्छा आज भी हमारे मन में उठती हो। लेकिन यह चुनौती पार करने और ज़रूरी बदलाव करने में यहोवा हमारी मदद कर सकता है, ताकि हम उसे खुश करनेवाले काम कर सकें। ज़रा राजा दाविद पर गौर कीजिए। उसने बतशेबा के साथ लैंगिक संबंध बनाकर पाप किया। मगर बाद में उसने सच्चे दिल से पश्चाताप किया। उसने यहोवा से गिड़गिड़ाकर प्रार्थना की कि वह उसे “शुद्ध मन” दे और आज्ञा माननेवाला बनने में उसकी मदद करे। (भज. 51:10, 12) हमारे अंदर अगर पहले बुरी इच्छाएँ काफी ज़बरदस्त थीं और उन्हें ठुकराने में आज भी हम संघर्ष कर रहे हैं तो भी यहोवा हमारी मदद कर सकता है। वह हमारे अंदर उसकी आज्ञा मानने और सही काम करने की ऐसी ज़बरदस्त इच्छा पैदा कर सकता है, जिससे बुरी इच्छाएँ दब सकती हैं। साथ ही, गलत खयालों को हम पर हावी होने से रोकने में भी वह हमारी मदद कर सकता है।—भज. 119:133.
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दोएग
दोएग एक एदोमी था। वह राजा शाऊल के चरवाहों का मुखिया था। (1शम 21:7; 22:9) वह शायद यहोवा का एक उपासक बन गया था। हो सकता है कि किसी मन्नत, अशुद्धता या कोढ़ होने की सँभावना की वजह से उसे नोब शहर में “यहोवा के सामने रोक लिया गया था।” उसी दौरान उसने महायाजक अहीमेलेक को दाविद को नज़राने की रोटी और गोलियात की तलवार देते हुए देख लिया था। बाद में जब शाऊल को शक हुआ कि कुछ साज़िश चल रही है, तो दोएग ने जो देखा था उस बारे में शाऊल को सबकुछ बता दिया। शाऊल ने अपने पहरेदारों को आदेश दिया कि वे सभी याजकों को मार डालें। पर पहरेदार ऐसा करने से हिचकिचाए। तब शाऊल ने दोएग को आदेश दिया और उसने फौरन, बिना हिचकिचाए 85 याजकों का कत्ल कर दिया। यह दुष्ट काम करने के बाद, दोएग नोब गया और वहाँ के बच्चे-बूढ़े, सभी लोगों को और जानवरों को मार डाला।—1शम 22:6-20.
इसलिए जैसे भजन 52 के उपरिलेख से पता चलता है, दाविद ने दोएग के बारे में यह लिखा, “तेरी ज़बान उस्तरे जैसी तेज़ है, जो बुरा करने की साज़िशें रचती है, छल की बातें गढ़ती है। तू अच्छाई से नहीं बुराई से प्यार करता है, तुझे सच के बजाय झूठ बोलना रास आता है। हे छली ज़बान, तू नुकसान करनेवाली हर बात पसंद करती है!”—भज 52:2-4.
24-30 जून
पाएँ बाइबल का खज़ाना भजन 54-56
परमेश्वर आपकी तरफ है
परमेश्वर का भय मानकर बुद्धिमान बनिए!
10 शाऊल से भागते वक्त, एक बार दाऊद गत नाम के एक पलिश्ती शहर में राजा अकीश के यहाँ पनाह लेने आया। गोलियत इसी शहर का रहनेवाला था। (1 शमूएल 21:10-15) राजा के नौकरों ने दाऊद को उनके देश का दुश्मन बताकर राजा के कान भर दिए। ऐसे खतरनाक हालात में दाऊद ने क्या किया? उसने गिड़गिड़ाकर यहोवा से बिनती की। (भजन 56:1-4, 11-13) हालाँकि उस हालात से बचने के लिए दाऊद ने पागल होने का नाटक किया, मगर वह जानता था कि असल में यहोवा ने उसके नाटक को सफल किया और उसे बचाया था। दाऊद ने यहोवा पर अपनी जान से भी ज़्यादा भरोसा और विश्वास रखकर दिखाया कि वह सही मायनों में परमेश्वर का भय मानता था।—भजन 34:4-6, 9-11.
11 जब हम पर समस्याएँ आती हैं, तो हम भी दाऊद की तरह परमेश्वर का भय मान सकते हैं। कैसे? परमेश्वर ने मदद करने का जो वादा किया है, उस पर भरोसा रखने के ज़रिए। दाऊद ने कहा: “अपने मार्ग की चिन्ता यहोवा पर छोड़; और उस पर भरोसा रख, वही पूरा करेगा।” (भजन 37:5) इसका यह मतलब नहीं कि हम अपनी तरफ से कोई भी कोशिश किए बिना अपनी सारी समस्याएँ यहोवा पर डाल दें और यह उम्मीद करें कि वह उनका हल निकालेगा। दाऊद परमेश्वर से मदद माँगने के बाद, हाथ-पर-हाथ धरे बैठा नहीं रहा। यहोवा ने उसे जो ताकत और बुद्धि दी थी, उसने उनका इस्तेमाल किया और अपने मुश्किल हालात का सामना किया। मगर साथ ही, वह यह भी जानता था कि इंसान अपने बलबूते पर हरगिज़ कामयाब नहीं हो सकता। हमें भी दाऊद के नक्शेकदम पर चलना चाहिए। हमसे जितना बन पड़ता है, हमें करना चाहिए और उसके बाद मामला यहोवा पर छोड़ देना चाहिए। दरअसल, कई मामलों में तो हम यहोवा पर भरोसा रखने के सिवा और कुछ नहीं कर सकते। खास ऐसे ही वक्त पर हमें परमेश्वर का भय मानना चाहिए। दाऊद के दिल से निकली इस बात से हम दिलासा पा सकते हैं: “यहोवा के साथ करीबी रिश्ता सिर्फ वे ही बना सकते हैं, जो उसका भय मानते हैं।”—भजन 25:14, NW.
यहोवा के करीब पेज 243-244 पै 9
कोई भी चीज़ ‘हमें परमेश्वर के प्रेम से अलग न कर सकेगी’
9 यहोवा हमारे धीरज को भी कीमती समझता है। (मत्ती 24:13) याद रखिए, शैतान चाहता है कि आप यहोवा से मुँह मोड़ लें। हर दिन जब आप धीरज धरते हुए यहोवा के वफादार रहते हैं, तो वह शैतान के तानों का एक दिन और जवाब दे पाता है। (नीतिवचन 27:11) कभी-कभी धीरज धरना आसान नहीं होता। खराब सेहत, पैसे की तंगी, मन की वेदना और दूसरी ऐसी अड़चनों की वजह से एक-एक दिन पहाड़ जैसा लगता है। जब हमारी उम्मीदें पूरी नहीं होतीं तब भी हम निराश हो जाते हैं। (नीतिवचन 13:12) ऐसी मुश्किलों का सामना करते वक्त हम जो धीरज दिखाते हैं, यहोवा की नज़र में वह और भी ज़्यादा अनमोल होता है। इसलिए राजा दाऊद ने यहोवा से बिनती की कि वह उसके आँसुओं को एक “कुप्पी” में रख ले, और उसने अपना यह विश्वास ज़ाहिर किया: “क्या उनकी चर्चा तेरी पुस्तक में नहीं है?” (भजन 56:8) जी हाँ, यहोवा के वफादार बने रहने में हमने जितने भी आँसू बहाए हैं और जितने भी दुःख-दर्द सहे हैं, उन सबको वह याद रखता है। ये भी उसकी नज़र में अनमोल हैं।
यहोवा का प्यार दिलाए डर पर जीत!
16 शैतान जानता है कि हम सबको अपनी जान बहुत प्यारी है। उसका दावा है कि अपनी जान बचाने के लिए हम कुछ भी करने को तैयार हो जाएँगे, यहोवा के साथ अपनी दोस्ती भी तोड़ देंगे। (अय्यू. 2:4, 5) यह सरासर झूठ है! लेकिन शैतान के पास हमें “मार डालने की ताकत है,” इसलिए वह हमें डराने की कोशिश करता है ताकि हम यहोवा को छोड़ दें। (इब्रा. 2:14, 15) कई बार वह कुछ लोगों या सरकारों के ज़रिए हमें डराता-धमकाता है कि अगर हमने यहोवा की सेवा करना नहीं छोड़ा, तो हमें मार डाला जाएगा। या अगर कभी हम बहुत बीमार पड़ जाएँ, तो वह डॉक्टरों या हमारे परिवारवालों के ज़रिए हम पर दबाव डाल सकता है कि हम जान बचाने के लिए खून चढ़वा लें या कोई ऐसा इलाज करवा लें जो बाइबल के हिसाब से गलत है।
17 हममें से कोई भी मरना नहीं चाहता। लेकिन हम जानते हैं कि अगर हमारी मौत भी हो जाए, तब भी यहोवा हमसे प्यार करता रहेगा। (रोमियों 8:37-39 पढ़िए।) जब यहोवा के दोस्तों की मौत हो जाती है, तो वह उन्हें भूलता नहीं है। वे उसकी याद में महफूज़ रहते हैं और वह उन्हें दोबारा जीवन देने के लिए तरस रहा है। (लूका 20:37, 38; अय्यू. 14:15) उसने हमें “हमेशा की ज़िंदगी” देने के लिए अपने इकलौते बेटे तक को कुरबान कर दिया। (यूह. 3:16) इसमें कोई शक नहीं कि यहोवा हमसे बहुत प्यार करता है और उसे हमारी बहुत परवाह है। इसलिए अगर हम कभी बीमार पड़ जाएँ या लोग हमें डराएँ-धमकाएँ तो हम यहोवा से मुँह नहीं मोड़ेंगे, बल्कि उससे कहेंगे कि वह हमें बुद्धि, हिम्मत और दिलासा दे। वैलेरी और उसके पति ने भी ऐसा ही किया।—भज. 41:3.
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इंसाइट-1 पेज 857-858
पहले से किसी बात का पता होना, पहले से किसी बात का तय होना
जब यहूदा इस्करियोती ने धोखा दिया, तब बाइबल की भविष्यवाणी पूरी हुई और इससे यह भी पता चलता है कि यहोवा और उसके बेटे को पहले से ही किसी बात का पता होता है। (भज 41:9; 55:12, 13; 109:8; प्रेष 1:16-20) इसके बावजूद हम परमेश्वर के बारे में यह नहीं कह सकते कि उसने पहले से ही यह यहूदा के लिए तय किया था कि वह ऐसा रास्ता अपनाए। भविष्यवाणियाँ बताती हैं कि यीशु का कोई दोस्त उसे धोखा देगा, लेकिन वे यह नहीं बतातीं कि वह कौन-सा दोस्त होगा। इसके अलावा बाइबल के सिद्धांत भी इस बात से मेल नहीं खाते कि परमेश्वर ने पहले से ही यहूदा को चुन लिया था कि वह ऐसे काम करे। परमेश्वर के स्तर के बारे में प्रेषित ने बताया, “कभी किसी आदमी पर हाथ रखने में जल्दबाज़ी मत कर। न ही दूसरों के पापों का हिस्सेदार बन, अपना चरित्र साफ बनाए रख।” (1ती 5:22. 1ती 3:6 से तुलना करें।) जब यीशु अपने 12 प्रेषितों को चुन रहा था, तब उसे बहुत चिंता थी कि वह इस मामले में बुद्धिमानी से और सही फैसला कर सके। इस वजह से उसने पूरी रात अपने पिता से इस बारे में प्रार्थना की और उसके बाद फैसला लिया। (लूक 6:12-16) अगर परमेश्वर ने यहूदा को पहले से ही धोखा देने के लिए चुन रखा था, तो उसका यीशु को चेले चुनने के लिए मार्गदर्शन देने का कोई तुक नहीं बनता। इसके अलावा ऐसा करके तो ऊपर बताए नियम के मुताबिक यीशु यहूदा के पापों में हिस्सेदार बनता।
इससे यह साफ हो जाता है कि जब यहूदा को प्रेषित के तौर पर चुना जा रहा था, तब उसके दिल में कोई खोट नहीं था या उसका दिल इस किस्म का नहीं था कि वह धोखा दे। उसने अपने दिल में ‘ज़हरीली जड़ पैदा होने’ दी और खुद को दूषित होने दिया। इस वजह से उसने परमेश्वर के निर्देश मानने छोड़ दिए और वह परमेश्वर के मार्गदर्शन के मुताबिक नहीं चला, बल्कि शैतान के राह पर चला यानी चोरी की और धोखा दिया। (इब्र 12:14, 15; यूह 13:2; प्रेष 1:24, 25; याकू 1:14, 15; इंसाइट-2 में यहूदा क्रमांक 4 देखिए।) जब उसे ऐसा करते-करते कुछ वक्त बीत गया, तब यीशु उसके दिल को पढ़ सका और यह पहले से बता पाया कि यहूदा उसे धोखा देगा।—यूह 13:10, 11.