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  • मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले

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  • मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
  • मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले—2020
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  • 7-13 सितंबर
  • 14-20 सितंबर
  • 21-27 सितंबर
  • 28 सितंबर–4 अक्टूबर
मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले—2020
mwbr20 सितंबर पेज 1-7

मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले

7-13 सितंबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना | निर्गमन 23-24

“भीड़ के पीछे-पीछे मत जाइए”

प्र18.08 पेज 4-5 पै 7-8

क्या आपके पास सही-सही जानकारी है?

7 क्या आपको अपने दोस्तों को ई-मेल और मोबाइल पर मैसेज भेजना पसंद है? कोई नयी खबर पढ़ने या नया अनुभव सुनने पर आपको कैसा लगता है? क्या आपको लगता है कि एक न्यूज़ रिपोर्टर की तरह लोगों को यह खबर देनेवाले आप सबसे पहले हों? लेकिन वह मैसेज या ई-मेल भेजने से पहले खुद से पूछिए, ‘क्या मुझे यकीन है कि जो जानकारी मैं लोगों को देनेवाला हूँ, वह सच है? क्या इसके मेरे पास पक्के सबूत हैं?’ अगर आपको उस जानकारी पर पूरा यकीन नहीं है, तो आप अनजाने में भाई-बहनों में गलत जानकारी फैला सकते हैं। थोड़ा-सा भी शक होने पर उसे फौरन डिलीट कर दीजिए।

8 कोई मैसेज या ई-मेल फौरन भेजने से एक और नुकसान हो सकता है। कुछ देशों में हमारे काम पर कुछ पाबंदियाँ लगी हैं या पूरी तरह रोक लगी है। इन देशों में शायद विरोधी जानबूझकर ऐसी खबरें फैलाएँ, जिनसे हमारे अंदर डर समा सकता है या एक-दूसरे पर से हमारा भरोसा उठा सकता है। गौर कीजिए कि भूतपूर्व सोवियत संघ में क्या हुआ था। वहाँ की खुफिया पुलिस ने यह अफवाह फैला दी थी कि कई ज़िम्मेदारी निभानेवाले भाइयों ने संगठन से गद्दारी की है। दुख की बात है कि बहुत-से लोगों ने इस अफवाह को सच मान लिया था और यहोवा के संगठन से नाता तोड़ लिया था। शुक्र है कि बाद में उनमें से बहुत-से लोग वापस आ गए। लेकिन कुछ वापस नहीं आए, क्योंकि उनका विश्‍वास पूरी तरह खत्म हो गया। (1 तीमु. 1:19) हमारा यह हश्र न हो, इसके लिए हम क्या कर सकते हैं? ऐसी खबरें किसी को मत भेजिए, जो बुरी हैं या जिनके पक्के सबूत नहीं हैं। हर बात पर यकीन मत कीजिए, बल्कि पता लगाइए कि वह सही है या नहीं।

प्र11 7/15 पेज 11 पै 3, 6

क्या आप यहोवा के प्यार-भरे मार्गदर्शन के मुताबिक चलेंगे?

3 लंबे सफर पर निकलते वक्‍त अगर आपको रास्ता ठीक से नहीं पता, तो आप क्या करेंगे? आप शायद दूसरे मुसाफिरों के पीछे-पीछे जाने की सोचें खासकर तब, जब आप देखें कि लोगों की भीड़ भी उसी तरफ जा रही है। ऐसा करना खतरनाक हो सकता है। क्योंकि क्या पता मुसाफिर वहाँ न जा रहे हों, जहाँ आप जाना चाहते हैं या फिर हो सकता है कि वे आगे जाकर रास्ता भटक जाएँ। इस बारे में उस सिद्धांत पर गौर कीजिए जिस पर इसराएलियों को दिया एक नियम आधारित था। जो न्यायी के तौर पर काम करते थे या जो न्यायिक मामलों में गवाही देते थे, उन्हें सावधान किया गया था कि वे “बहुतों के पीछे” होकर कोई फैसला न करें। (निर्गमन 23:2 पढ़िए।) इसमें शक नहीं कि असिद्ध इंसान आसानी से साथियों के दबाव में आकर गलत न्याय कर बैठते हैं। लेकिन क्या दूसरों के पीछे न हो लेने का सिद्धांत सिर्फ न्यायिक मामलों तक सीमित है? नहीं, ऐसा नहीं है।

6 क्या आप पर कभी बहुतों के पीछे हो लेने का दबाव आया है? जो यहोवा को नहीं जानते और जो उसके नैतिक स्तरों का मज़ाक उड़ाते हैं, ऐसे लोग आज भारी तादाद में हैं। मौज-मस्ती के लिए ये लोग ऐसे विचार फैलाते हैं जिनका कोई आधार नहीं होता। वे टीवी कार्यक्रमों, फिल्मों और वीडियो गेम्स में अनैतिकता, हिंसा और भूत-प्रेतों की बातों को खूब बढ़-चढ़कर दिखाते हैं मानों इनसे कोई नुकसान नहीं होता। (2 तीमु. 3:1-5) जब आप अपने और अपने परिवार के लिए मनोरंजन का चुनाव करते हैं तो क्या आप दूसरों के कमज़ोर विवेक के आधार पर फैसला करते हैं और अपने विवेक को उनके मुताबिक ढाल लेते हैं? क्या ऐसा करना “बहुतों के पीछे” हो लेना नहीं होगा?

इंसाइट-1 पेज 343 पै 5

अंधापन

मूसा के कानून में न्यायियों को साफ हिदायत दी गयी थी कि वे रिश्‍वत न लें, किसी से तोहफे कबूल न करें और न ही कभी भेदभाव करें। वह इसलिए कि ये बातें उन्हें मानो अंधा कर सकती थीं और वे गलत फैसले कर सकते थे। उदाहरण के लिए कानून में लिखा था, “रिश्‍वत समझ-बूझवाले इंसानों को भी अंधा कर देती है।” (निर्ग 23:8) “रिश्‍वत एक बुद्धिमान इंसान को भी अंधा कर सकती है।” (व्य 16:19) एक न्यायी चाहे कितना भी सीधा और समझ-बूझ से काम लेनेवाला क्यों न हो, अगर कोई उसे तोहफा देता, तो जाने-अनजाने में वह उसकी तरफदारी कर सकता था। परमेश्‍वर के कानून में न्यायियों को तोहफा लेने से तो आगाह किया ही गया था, साथ ही यह भी बताया गया था कि उन्हें भावनाओं में बहकर कोई फैसला नहीं करना चाहिए। न्यायियों से कहा गया था, ‘तुम न किसी गरीब की तरफदारी करना और न ही किसी अमीर का पक्ष लेना।’ (लैव 19:15) उसी तरह, अगर एक न्यायी सिर्फ भीड़ को खुश करने के लिए एक अमीर व्यक्‍ति के खिलाफ फैसला सुनाता, तो यह अन्याय होता।​—निर्ग 23:2, 3.

ढूँढ़ें अनमोल रत्न

प्र16.10 पेज 9 पै 4

“अजनबियों पर कृपा करना मत भूलना”

4 यहोवा चाहता तो इसराएलियों को हुक्म दे सकता था कि वे परदेसियों का आदर करें। मगर उसने ऐसा नहीं किया। इसके बजाय, वह चाहता था कि इसराएली याद रखें कि एक वक्‍त पर वे भी परदेसी थे। (निर्गमन 23:9 पढ़िए।) जब वे मिस्र में गुलाम भी नहीं थे तब से वहाँ के लोग उनसे नफरत करते थे क्योंकि वे उनसे बहुत अलग थे। (उत्प. 43:32; 46:34; निर्ग. 1:11-14) हालाँकि इसराएलियों को परदेसी की ज़िंदगी बितानी पड़ी और कई मुश्‍किलों का सामना करना पड़ा, फिर भी यहोवा चाहता था कि वे परदेसियों पर कृपा करें।​—लैव्य. 19:33, 34.

इंसाइट-2 पेज 393

मीकाएल

1. बाइबल में जिब्राईल के अलावा एक और स्वर्गदूत का नाम बताया गया है, वह है मीकाएल। इस स्वर्गदूत को “प्रधान स्वर्गदूत” भी कहा गया है। (यहू 9) दानियेल के दसवें अध्याय में इसका पहली बार ज़िक्र आता है। वहाँ बताया गया है कि मीकाएल “सबसे बड़े हाकिमों में से” है। जब “फारस राज्य का हाकिम” यहोवा के एक स्वर्गदूत का विरोध कर रहा था, तो मीकाएल ने उस स्वर्गदूत की मदद की। मीकाएल को “वह बड़ा हाकिम” भी कहा गया है “जो [दानियेल के] लोगों की तरफ से खड़ा है।” (दान 10:13, 20, 21; 12:1) इससे साफ हो जाता है कि मीकाएल ही वह स्वर्गदूत था जिसने इसराएलियों को वीराने से बाहर निकलने में मदद की थी। (निर्ग 23:20, 21, 23; 32:34; 33:2) हम यह इसलिए भी कह सकते हैं, क्योंकि “मूसा की लाश के बारे में प्रधान स्वर्गदूत मीकाएल की शैतान के साथ बहस हुई” थी।​—यहू 9.

14-20 सितंबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना | निर्गमन 25-26

“पवित्र डेरे में संदूक की भूमिका”

इंसाइट-1 पेज 165

करार का संदूक

नमूना और बनावट। जब यहोवा मूसा को पवित्र डेरा बनाने के बारे में हिदायतें दे रहा था, तो उसने सबसे पहले उसे बताया कि करार का संदूक कैसे बनाया जाना है। वह इसलिए कि करार के संदूक की पवित्र डेरे और पूरे इसराएल की छावनी में सबसे अहम भूमिका थी। संदूक की लंबाई ढाई हाथ, चौड़ाई डेढ़ हाथ और ऊँचाई डेढ़ हाथ थी (यानी करीब 3.5 फुट लंबा, 2.2 फुट चौड़ा और 2.2 फुट ऊँचा)। वह बबूल की लकड़ी का बना हुआ था और उस पर अंदर और बाहर से शुद्ध सोना मढ़ा हुआ था। “उसके चारों तरफ सोने का एक नक्काशीदार किनारा” बना था। लेकिन संदूक का ढकना लकड़ी का नहीं, बल्कि शुद्ध सोने का बना था। उसकी लंबाई और चौड़ाई संदूक की लंबाई और चौड़ाई जितनी थी। संदूक के ढकने के दोनों किनारों पर सोने के दो करूब बनाए गए थे। दोनों करूब आमने-सामने थे और उनके मुँह ढकने की तरफ नीचे झुके हुए थे। उनके दोनों पंख ऊपर की तरफ फैले हुए थे और संदूक के ढकने को ढके हुए थे। (निर्ग 25:10, 11, 17-22; 37:6-9) इस ढकने को “प्रायश्‍चित की जगह” और “प्रायश्‍चित का ढकना” भी कहा जाता था।​—इब्र 9:5.

प्र06 4/15 पेज 30 पै 4

क्या आपको याद है?

• वाचा के संदूक में क्या-क्या रखा गया था?

इसमें पत्थर की दो पटियाएँ रखी गयी थीं जिन पर दस आज्ञाएँ लिखी हुई थीं, साथ ही मन्‍ना रखा गया था। कोरह की बगावत के बाद, हारून की छड़ी को संदूक में रखा गया ताकि वह उस पीढ़ी के खिलाफ चेतावनी की निशानी ठहरे। (इब्रानियों 9:4) सुलैमान के मंदिर के समर्पण से पहले, छड़ी और मन्‍ना को शायद संदूक से निकाल दिया गया था।

प्र96 7/1 पेज 9 पै 6

“सब जातियों के लिये प्रार्थना का घर”

बाइबल कहती है कि “परम-प्रधान परमेश्‍वर हाथ के बनाए भवनों में नहीं रहता।” (प्रेषितों 7:48) फिर भी, परमेश्‍वर की उपस्थिति, परम-पवित्र स्थान नामक सबसे अन्दर के भाग में एक बादल द्वारा चित्रित होती थी। (लैव्यव्यवस्था 16:2) यह बादल तेज़ चमकता था और परम-पवित्र स्थान को प्रकाश देता था। यह पवित्र संदूक के ऊपर होता था जो “गवाही का संदूक” कहलाता था, जिसमें पत्थर की पटियाएँ थीं जिन पर परमेश्‍वर द्वारा इसराएल को दी गयी कुछ आज्ञाएँ खुदी थीं। संदूक के ढकने पर पंखों को फैलाए हुए सोने के दो करूब थे, जो परमेश्‍वर के स्वर्गीय संगठन में ऊँचे पद के स्वर्गदूतों को चित्रित करते थे। प्रकाश का चमत्कारी बादल ढकने के ऊपर और करूबों के बीच में स्थित था। (निर्गमन 25:22) यह करूबों पर स्थित एक स्वर्गीय रथ पर विराजमान सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर को दर्शाता था। (1 इतिहास 28:18) यही वजह थी कि क्यों राजा हिजकिय्याह ने प्रार्थना की: ‘हे सेनाओं के परमेश्‍वर और इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा, तू करूबों पर विराजमान है।’​—यशायाह 37:16.

ढूँढ़ें अनमोल रत्न

इंसाइट-1 पेज 432 पै 1

करूब

संदूक के ढकने के दोनों किनारों पर सोने के दो करूब बनाए गए थे। दोनों करूब आमने-सामने थे और उनके मुँह ढकने की तरफ नीचे झुके हुए थे, मानो वे यहोवा की उपासना कर रहे हों। उनके दोनों पंख ऊपर की तरफ फैले हुए थे और संदूक के ढकने को ढके हुए थे, मानो वे उसकी रक्षा कर रहे हों। (निर्ग 25:10-21; 37:7-9) इसके अलावा, पवित्र डेरे को ढकने के लिए अंदर की तरफ से जो कपड़ा लगाया गया था और पवित्र और परम-पवित्र भाग के बीच जो पर्दा था, उस पर कढ़ाई किए हुए करूब बने हुए थे।​—निर्ग 26:1, 31; 36:8, 35.

इंसाइट-2 पेज 936

नज़राने की रोटी

पवित्र डेरे और आगे चलकर मंदिर के पवित्र भाग में मेज़ पर बारह रोटियाँ रखी जाती थीं। हर सब्त के दिन इन्हें हटाकर ताज़ी रोटियाँ रखी जाती थीं। (निर्ग 35:13; 39:36; 1रा 7:48; 2इत 13:11; नहे 10:32, 33) जिन इब्रानी शब्दों का अनुवाद “नज़राने की रोटी” किया गया है, उनका शाब्दिक मतलब है, “चेहरे की रोटी।” शब्द “चेहरा” कभी-कभी “मौजूदगी” को दर्शाता है। इस वजह से नज़राने की रोटी हमेशा मानो यहोवा के चेहरे के सामने चढ़ावे के तौर पर रखी रहती थी। (निर्ग 25:30) इन्हें “रोटियों का ढेर” (2इत 2:4) और “चढ़ावे की रोटियाँ” भी कहा जाता था।​—मर 2:26; इब्र 9:2.

21-27 सितंबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना | निर्गमन 27-28

“याजकों की पोशाक से मिलनेवाली सीख”

इंसाइट-2 पेज 1143

ऊरीम और तुम्मीम

बाइबल पर टिप्पणी करनेवाले कई लोगों का मानना है कि ऊरीम और तुम्मीम दरअसल चिट्ठियाँ थीं। जेम्स्‌ मोफेट के अनुवाद में निर्गमन 28:30 में इन्हें “पवित्र चिट्ठियाँ” कहा गया है। कुछ लोगों का मानना है कि ये तीन चिट्ठियाँ हुआ करती थीं। एक पर “हाँ” लिखा होता था, दूसरी पर “नहीं” और तीसरी खाली होती थी। किसी सवाल का जवाब जानने के लिए ये चिट्ठियाँ डाली जाती थीं। जो चिट्ठी निकाली जाती थी, वही उस सवाल का जवाब माना जाता था और अगर खाली चिट्ठी निकलती, तो इसका मतलब था कि कोई जवाब नहीं आया। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि ऊरीम और तुम्मीम दो चपटे पत्थर होते थे। ये पत्थर एक तरफ सफेद होते थे और दूसरी तरफ काले। इन्हें फेंकने पर अगर दोनों पत्थरों के सफेद हिस्से ऊपर आते, तो इसका मतलब “हाँ” होता और अगर काले हिस्से ऊपर आते, तो इसका मतलब “नहीं” होता। अगर एक पत्थर का काला हिस्सा और दूसरे का सफेद हिस्सा ऊपर आता, तो इसका मतलब होता कि कोई जवाब नहीं आया। एक बार शाऊल ने याजक के ज़रिए यहोवा से पूछा कि क्या उसे पलिश्‍तियों पर हमला करना चाहिए या नहीं। लेकिन उसे कोई जवाब नहीं मिला। तब शाऊल को लगा कि उसके किसी आदमी ने पाप किया होगा, इसलिए उसने यहोवा से कहा, “हे इसराएल के परमेश्‍वर, तुम्मीम के ज़रिए हमें जवाब दे!” तब सब लोगों में से शाऊल और योनातान को चुना गया और ये तय करने के लिए कि उन दोनों में से कौन कसूरवार है, चिट्ठियाँ डाली गयीं। “तुम्मीम के ज़रिए हमें जवाब दे,” इन शब्दों से ऐसा मालूम होता है कि ऊरीम और तुम्मीम शायद चिट्ठियाँ नहीं थे, लेकिन इनका चिट्ठियाँ डालने से कुछ नाता ज़रूर था।​—1शम 14:36-42.

इंसाइट-1 पेज 849 पै 3

माथा

इसराएल का महायाजक। इसराएल के महायाजक की पगड़ी पर सामने की तरफ सोने की एक पट्टी बँधी होती थी, “जो समर्पण की पवित्र निशानी थी।” उस पर ये शब्द “खोदकर लिखे” हुए थे: “यहोवा पवित्र है।” (निर्ग 28:36-38; 39:30) महायाजक यहोवा का प्रतिनिधि था और उपासना करने में इसराएलियों की अगुवाई करता था। इस वजह से यह बहुत ज़रूरी था कि वह यहोवा की नज़र में शुद्ध हो। ये शब्द इसराएलियों को भी याद दिलाते थे कि यहोवा के उपासकों को शुद्ध रहना चाहिए। सोने की पट्टी पर खुदे ये शब्द यीशु मसीह पर भी सही बैठते हैं, जिसे यहोवा ने सबसे बड़े महायाजक के तौर पर नियुक्‍त किया है और जो यहोवा की तरह पवित्र है।​—इब्र 7:26.

प्र08 8/15 पेज 15 पै 17, 18

गरिमा दिखाकर यहोवा का आदर कीजिए

17 हमें उपासना में यहोवा को आदर देने पर खास ध्यान देना चाहिए। सभोपदेशक 5:1 कहता है: “जब तू परमेश्‍वर के भवन में जाए, तब सावधानी से चलना।” मूसा और यहोशू को अपनी जूतियाँ उतारने की आज्ञा दी गयी थी, क्योंकि वे पवित्र जगह पर खड़े थे। (निर्ग. 3:5; यहो. 5:15) उनका जूतियाँ उतारना श्रद्धा या आदर की निशानी थी। इस्राएली याजकों से यह माँग की गयी थी कि वे ‘अपने खुले अंगों को ढकने’ के लिए सन के कपड़े से बना जांघिया पहनें। (निर्ग. 28:42, 43, NHT ) यह माँग इसलिए की गयी थी ताकि वेदी पर बलि या धूप चढ़ाते वक्‍त उनकी नग्नता ज़ाहिर न हो, जो यहोवा की नज़र में एक घिनौनी बात थी। लेकिन याजकों के अलावा, उनके परिवार के हर सदस्य को भी परमेश्‍वर के स्तरों के मुताबिक गरिमा ज़ाहिर करनी थी।

ढूँढ़ें अनमोल रत्न

प्र12 8/1 पेज 26 पै 1-3, अँग्रेज़ी

क्या आप जानते थे?

इसराएल के महायाजक के सीनेबंद पर जो रत्न होते थे, वे शायद कहाँ से थे?

जब इसराएली वीराने में थे, तो यहोवा ने उन्हें महायाजक का सीनाबंद बनाने के लिए कहा था। (निर्गमन 28:15-21) सीनेबंद पर माणिक, पुखराज, पन्‍ना, फिरोज़ा, नीलम, यशब, लशम,  हकीक, कटैला, करकेटक, सुलेमानी और मरगज जड़े हुए थे। इसराएलियों को ये रत्न कहाँ से मिले?

पुराने ज़माने में लोग रत्नों को बहुत अनमोल समझते थे और उनकी बिक्री और खरीदारी करते थे। मिस्री लोग दूर-दराज़ देशों से रत्न खरीदते थे, जैसे ईरान, अफगानिस्तान और शायद भारत से भी। मिस्र की खदानों से भी तरह-तरह के अनमोल रत्न निकाले जाते थे। मिस्र के राजाओं का जिन इलाकों पर कब्ज़ा था, वहाँ की खदानों से भी वे रत्न निकालते थे। अय्यूब ने भी कहा कि उसके ज़माने के लोग नीलम, पुखराज और अलग-अलग रत्नों की तलाश में सुरंगें खोदते थे।​—अय्यूब 28:1-11, 19.

बाइबल में बताया गया है कि मिस्र से निकलते वक्‍त इसराएलियों ने मानो “मिस्रियों को लूट लिया” था। (निर्गमन 12:35, 36) इसलिए मुमकिन है कि महायाजक के सीनेबंद पर जो रत्न थे, वे मिस्रियों से लिए गए थे।

इंसाइट-1 पेज 1130 पै 2

पवित्रता

जानवर और पैदावार। पहलौठे बैल, पहलौठे नर मेम्ने और पहलौठे बकरे यहोवा के लिए पवित्र माने जाते थे और इसराएलियों को उन जानवरों को छुड़ाना नहीं था। वे यहोवा को अर्पित किए जाते थे और बलिदान का कुछ हिस्सा याजकों को दिया जाता था। (गि 18:17-19) फसल के पहले फल, दसवाँ हिस्सा, साथ ही पवित्र स्थान में अर्पित किए गए सभी बलिदान और भेंट पवित्र थे। वे यहोवा के लिए अलग ठहराए जाते थे। (निर्ग 28:38) इन सभी पवित्र चीज़ों का यहोवा की सेवा के अलावा किसी और काम में इस्तेमाल नहीं किया जाना था। मान लीजिए एक आदमी अपनी गेहूँ की फसल का दसवाँ हिस्सा यहोवा के लिए अलग रखता है। मगर बाद में वह या उसके घर का कोई व्यक्‍ति अनजाने में उसमें से थोड़ा अपने लिए खाना पकाने के लिए ले जाता है। इस तरह वह पवित्र चीज़ों के लिए परमेश्‍वर के कानून का उल्लंघन करता। ऐसे में उसे कानून के मुताबिक मुआवज़ा भरना होता। उसे मुआवज़े में उन चीज़ों की कीमत और उस कीमत का 20 प्रतिशत हिस्सा जोड़कर अदा करना होता। इसके अलावा, उसे एक ऐसे मेढ़े की बलि चढ़ानी थी, जिसमें कोई दोष न हो। इस तरह जो चीज़ें पवित्र थीं और यहोवा के लिए अलग ठहरायी जाती थीं, उनका बहुत आदर किया जाता था।​—लैव 5:14-16.

28 सितंबर–4 अक्टूबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना | निर्गमन 29-30

“यहोवा के काम के लिए दान”

इंसाइट-2 पेज 764-765

नाम-लिखाई

सीनै वीराने में। इसराएलियों के मिस्र से निकलने के दूसरे साल के दूसरे महीने में यहोवा ने सीनै वीराने में मूसा से कहा कि वह इसराएलियों की नाम-लिखाई करे। इस काम में उसकी मदद करने के लिए हर गोत्र से एक आदमी को चुना गया जो अपने गोत्र की नाम-लिखाई करने का ज़िम्मा लेता। उन सभी आदमियों के नाम लिखे गए जिनकी उम्र 20 साल या उससे ज़्यादा थी और जो इसराएल की सेना में काम करने के योग्य थे। जिन-जिनका नाम लिखा गया, उन्हें पवित्र डेरे में की जानेवाली सेवा के लिए आधा शेकेल (करीब ₹83) दान करना था। (निर्ग 30:11-16; गि 1:1-16, 18, 19) उनकी कुल गिनती 6,03,550 थी। इस गिनती में लेवी शामिल नहीं थे, क्योंकि उनके गोत्र को विरासत में कोई ज़मीन नहीं दी जाती। लेवियों के लिए पवित्र डेरे में की जानेवाली सेवा के लिए दान करना या सेना में भरती होना ज़रूरी नहीं था।​—गि 1:44-47; 2:32, 33; 18:20, 24.

इंसाइट-1 पेज 502

दान

कानून के मुताबिक इसराएलियों को कुछ मौकों पर दान करना ज़रूरी था। जब मूसा ने इसराएलियों की गिनती ली, तो जिन-जिनकी उम्र 20 साल या उससे ज़्यादा थी, उन्हें ‘अपनी फिरौती के लिए आधा शेकेल [करीब ₹83] अदा करना था। यह रकम पवित्र-स्थान के शेकेल के मुताबिक होनी थी।’ यह उनकी फिरौती के लिए और भेंट के तंबू में की जानेवाली सेवा के लिए ‘यहोवा को दान’ होता। (निर्ग 30:11-16) यहूदी इतिहासकार जोसीफस के मुताबिक, आगे चलकर यह “पवित्र कर” हर साल दिया जाने लगा।​—2इत 24:6-10; मत 17:24.

प्र11 11/1 पेज 12 पै 1-2, अँग्रेज़ी

क्या आप जानते थे?

यरूशलेम में यहोवा के मंदिर में की जानेवाली सेवा का खर्च कैसे पूरा होता था?

मंदिर में की जानेवाली सेवाओं का खर्च पूरा करने के लिए इसराएलियों को कर देना होता था। इसराएली अपनी कमाई का दसवाँ हिस्साँ तो देते ही थे, लेकिन इसके अलावा वे और भी कई तरह के कर देते थे। जैसे, जब पवित्र डेरा बनाया जा रहा था, तो यहोवा ने मूसा से कहा कि हर इसराएली जिसका नाम लिखा गया है, आधा शेकेल चाँदी “यहोवा के लिए दान” दे।​—निर्गमन 30:12-16.

आगे चलकर यह यहूदियों का दस्तूर बन गया। वे हर साल, आधा शेकेल चाँदी मंदिर के कर के तौर पर देते थे। जब यीशु ने पतरस से कहा कि वह मछली के मुँह से सिक्का निकालकर दे, तो वह इसी कर की बात कर रहा था।​—मत्ती 17:24-27.

ढूँढ़ें अनमोल रत्न

इंसाइट-1 पेज 1029 पै 4

हाथ

हाथ रखना। एक इंसान या किसी चीज़ पर हाथ रखने  के कई मतलब होते थे। जैसे उसे किसी खास काम के लिए चुनना, आशीर्वाद देना, चंगा करना या पवित्र शक्‍ति का कोई वरदान देना। कभी-कभी जानवरों की बलि चढ़ाने से पहले उन पर भी हाथ रखा जाता था। जब हारून और उसके बेटों को याजकपद सौंपा जा रहा था, तब उन्होंने अपने हाथ एक बैल और दो मेढ़ों के सिर पर रखे। ऐसा करके उन्होंने ज़ाहिर किया कि इन जानवरों की बलि चढ़ायी जानी थी। इसके बाद ही वे यहोवा परमेश्‍वर की सेवा के लिए याजकों के तौर पर सेवा कर पाते। (निर्ग 29:10, 15, 19; लैव 8:14, 18, 22) जब यहोवा ने मूसा से कहा कि वह यहोशू को इसराएलियों का अगुवा चुने, तो उसने यहोशू पर अपना हाथ रखा। इस पर वह ‘परमेश्‍वर की शक्‍ति से मिली बुद्धि से भर’ गया और आगे चलकर यह ज़िम्मेदारी अच्छी तरह निभा पाया। (व्य 34:9, फु.) किसी को आशीर्वाद देते वक्‍त भी उन पर हाथ रखा जाता था। (उत 48:14; मर 10:16) यीशु मसीह ने लोगों को चंगा करने के लिए उन्हें छुआ या उन पर हाथ रखे। (मत 8:3; मर 6:5; लूक 13:13) कुछ मौकों पर प्रेषितों ने पवित्र शक्‍ति का वरदान देने के लिए लोगों पर हाथ रखे।​—प्रेष 8:14-20; 19:6.

इंसाइट-1 पेज 114 पै 1

अभिषिक्‍त, अभिषेक

यहोवा ने मूसा को जो कानून दिया था, उसमें उसने पवित्र तेल बनाने का तरीका बताया था। इसे बढ़िया-बढ़िया खुशबूदार चीज़ों से बनाया जाता था, जैसे गंधरस, खुशबूदार दालचीनी, वच, तज और जैतून का तेल। (निर्ग 30:22-25) पवित्र तेल का इस्तेमाल सिर्फ तभी किया जाता था जब यहोवा एक व्यक्‍ति को किसी खास काम के लिए चुनता था। अगर कोई इस मिश्रण से तेल बनाता और किसी ऐसे इंसान पर लगाता जिस पर लगाने की इजाज़त नहीं थी, तो उसे मौत की सज़ा दी जाती।​—निर्ग 30:31-33.

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