मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
© 2023 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
3-9 जुलाई
पाएँ बाइबल का खज़ाना | एज्रा 4-6
“काम में दखल मत दो”
जकरयाह का दर्शन याद रखिए
13 जकरयाह के दिनों में यहोवा ने महायाजक यहोशू (येशू) और राज्यपाल जरुबाबेल को यहूदियों की अगुवाई करने के लिए ठहराया था। हालाँकि मंदिर बनाने के काम पर रोक लगी थी, फिर भी इन दोनों अगुवों ने “परमेश्वर के भवन को एक बार फिर बनाना शुरू किया।” (एज्रा 5:1, 2) मंदिर बनाने का काम छिपकर नहीं किया जा सकता था। इसलिए कुछ यहूदियों को लगा होगा कि वे गलत कर रहे हैं। उन्होंने सोचा होगा, ‘अब तो दुश्मन देख लेंगे और वे हमें और सताएँगे।’ ऐसे माहौल में यहोशू और जरुबाबेल को हौसले की ज़रूरत थी और यहोवा ने उन्हें यकीन दिलाया कि वह उनके साथ है। वह कैसे?
प्र86 2/1 पेज 29, बक्स पै 2-3, अँग्रेज़ी
यहोवा की आँखें “मुखियाओं पर लगी थीं”
यहूदियों के मुखिया विरोधियों को कैसे जवाब देते? अगर वे डर जाते तो मंदिर को दोबारा बनाने का काम वहीं रुक जाता। और अगर वे अधिकारियों को गुस्सा दिलाते तो अधिकारी तुरंत मंदिर बनाने के काम पर रोक लगा देते। मामला बहुत नाज़ुक था! इसलिए यह ज़रूरी था कि मुखिया विरोधियों को सही तरीके से जवाब दें। उन्होंने ज़रूर राज्यपाल जरुबाबेल और महायाजक यहोशू से सलाह ली होगी। इसके बाद उन्होंने बहुत सोच-समझकर, होशियारी से और बड़े आदर के साथ जवाब दिया। उन्होंने अधिकारियों को राजा कुसरू का बरसों पुराना फरमान याद दिलाया, जिसमें उसने कहा था कि यहूदी मंदिर को दोबारा बना सकते हैं। ये अधिकारी अच्छी तरह जानते थे कि फारसी साम्राज्य में एक नियम था कि एक बार जब कोई कानून बनाया जाता है, तो उसे बदला नहीं जा सकता। इसलिए उन्होंने राजा के फरमान का विरोध करने की जुर्रत नहीं की। इस तरह मंदिर बनाने का काम जारी रहा। और बाद में राजा दारा ने भी इस काम को सरकारी मंज़ूरी दे दी।—एज्रा 5:11-17; 6:6-12.
जकरयाह का दर्शन याद रखिए
7 कुछ समय बाद फारस में एक नया राजा राज करने लगा, वह था दारा प्रथम। अपने राज के दूसरे साल यानी ईसा पूर्व 520 में उसने कुछ ऐसा किया, जिसकी किसी ने उम्मीद ही नहीं की होगी। उसे पता चला कि मंदिर बनाने के काम पर लगी रोक गैर-कानूनी है। इसलिए उसने इस काम को पूरा करने की मंज़ूरी दे दी। (एज्रा 6:1-3) इससे यहूदियों को कितनी राहत मिली होगी! मंज़ूरी देने के अलावा राजा दारा ने यह भी आदेश दिया कि आस-पास के लोग यहूदियों के लिए और मुसीबत न खड़ी करें बल्कि उन्हें पैसे और दूसरी ज़रूरी चीज़ें दें। (एज्रा 6:7-12) इस वजह से यहूदियों ने पाँच साल के अंदर यानी ईसा पूर्व 515 में मंदिर बनाने का काम पूरा कर दिया।—एज्रा 6:15.
जकरयाह का दर्शन याद रखिए
16 यहोवा एक और तरीके से हमें हिदायतें देता है और वह है “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के ज़रिए। (मत्ती 24:45) यह दास शायद कई बार हमें ऐसी हिदायतें दे जो हमें बेतुकी या अजीब लगें। जैसे, वह शायद हमें बताए कि हमें किसी विपत्ति से बचने के लिए कौन-सी तैयारियाँ करनी हैं। लेकिन हमें लग सकता है कि यह विपत्ति हमारे इलाके में थोड़ी न आएगी। या किसी महामारी के दौरान विश्वासयोग्य दास से मिलनेवाली हिदायतें सुनकर हमें लग सकता है कि वह कुछ ज़्यादा ही सावधानी बरत रहा है। ऐसे में हमें क्या करना चाहिए? हमें जकरयाह के दिनों के यहूदियों को याद रखना चाहिए, जिन्हें यहोशू और जरुबाबेल की बात मानने से कई आशीषें मिलीं। बाइबल में इस तरह के और भी किस्से हैं जिनके बारे में हम सोच सकते हैं। उन्हें पढ़ने से पता चलता है कि कभी-कभी यहोवा के लोगों को ऐसी हिदायतें मिलीं जो उन्हें बेतुकी लगीं, लेकिन उन्हें मानने से उनकी जान बच गयी।—न्यायि. 7:7; 8:10.
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प्र93 6/15 पेज 32 पै 3-5, अँग्रेज़ी
क्या आप बाइबल पर यकीन कर सकते हैं?
एक सिक्का मिला जो ईसा पूर्व चौथी सदी में फारसी राज्यपाल माज़ायस की हुकूमत के दौरान ढाला गया था। उस सिक्के पर खुदा था कि माज़ायस “महानदी के उस पार” नाम के प्रांत का राज्यपाल है। (“महानदी” का मतलब है फरात नदी।)
लेकिन हम इस प्रांत की चर्चा क्यों कर रहे हैं? क्योंकि इसका नाम बाइबल में भी दिया गया है। एज्रा 5:6–6:13 में तत्तनै का ज़िक्र है जिसने फारस के राजा को एक चिट्ठी लिखी थी। उन आयतों में बताया गया है कि तत्तनै ‘महानदी के उस पार का राज्यपाल था।’ एज्रा परमेश्वर के कानून की नकल तैयार करने में बहुत माहिर था। इसलिए हम यकीन रख सकते हैं कि उसने जो लिखा, सही-सही लिखा।
एज्रा ने यह जानकारी करीब ईसा पूर्व 460 में लिखी, यानी यह सिक्का बनाए जाने के करीब 100 साल पहले। कुछ लोगों को शायद लगे कि बाइबल में पुराने ज़माने के अधिकारियों की पदवी के बारे में जो बताया गया है वह बहुत छोटी-सी जानकारी है। पर सोचिए, अगर बाइबल के लेखकों ने छोटी-सी-छोटी जानकारी सही-सही लिखी, तो उनकी लिखी बाकी बातें कितनी भरोसे के लायक होंगी!
10-16 जुलाई
पाएँ बाइबल का खज़ाना | एज्रा 7-8
“एज्रा ने अपने जीने के तरीके से यहोवा की महिमा की”
अध्ययन—फायदेमंद और मज़ेदार
8 जी हाँ, यहोवा के वचन के लिए हमारा प्यार हमारे दिल से निकलना चाहिए, क्योंकि दिल हमारी भावनाओं का केंद्र है। पढ़ते वक्त हमें खास आयतों पर थोड़ी देर रुककर उसका लुत्फ उठाना चाहिए। हमें गहरी आध्यात्मिक बातों पर विचार करना चाहिए, उनमें पूरी तरह डूब जाना चाहिए और उन पर मनन करना चाहिए। इसके लिए शांति से सोचने और प्रार्थना करने की ज़रूरत है। एज्रा की तरह हमें परमेश्वर के वचन को पढ़ने और उसका अध्ययन करने के लिए अपना मन लगाने या हृदय को तैयार करने की ज़रूरत है। एज्रा के बारे में लिखा है: “एज्रा ने यहोवा की व्यवस्था का अर्थ बूझ लेने, और उसके अनुसार चलने, और इस्राएल में विधि और नियम सिखाने के लिये अपना मन लगाया था।” (एज्रा 7:10) ध्यान दीजिए कि एज्रा ने तीन उद्देश्य से अपने हृदय को तैयार किया था: अध्ययन करने, उसे अमल में लाने, और दूसरों को सिखाने के लिए। हमें भी उसकी मिसाल पर चलना चाहिए।
सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र पेज 75 पै 5, अँग्रेज़ी
बाइबल की किताब नंबर 13—1 इतिहास
5 एज्रा पर यहोवा की पवित्र शक्ति थी, इसलिए वह बुद्धि से काम ले पाया। फारस साम्राज्य का राजा यह देख पाया कि एज्रा को परमेश्वर से बुद्धि मिली है। इसलिए उसने यहूदा ज़िले पर उसे बड़ा अधिकार दिया। (एज्रा 7:12-26) इस तरह एज्रा को परमेश्वर और विश्व शक्ति फारस, दोनों से अधिकार मिला।
विनम्रता क्यों धारण करें?
जब एज्रा यहोवा के लोगों को यरूशलेम में मंदिर को सजाने के वास्ते बहुत सारे सोने और चाँदी सहित बाबेलोन के बाहर ले जानेवाला था, उस ने एक उपवास घोषित किया ताकि वे परमेश्वर के सामने खुद को दीन कर सके। इसका अन्जाम? यहोवा ने उस ख़तरनाक़ सफ़र के दौरान दुश्मनों के हमलों से उनकी हिफ़ाज़त की। (एज्रा 8:1-14, 21-32) दानिय्येल और एज्रा के जैसे, परमेश्वर-प्रदत्त कार्यों को खुद अपनी बुद्धि और ताक़त से पूरा करने की कोशिश करने के बजाय, हम विनम्रता दर्शाकर यहोवा के मार्गदर्शन की खोज करें।
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एज्रा किताब की झलकियाँ
7:28–8:20—बाबुल में रहनेवाले बहुत-से यहूदी, एज्रा के साथ यरूशलेम लौटने के लिए राज़ी क्यों नहीं थे? हालाँकि यहूदियों के पहले समूह को अपने वतन लौटे 60 साल से ज़्यादा हो गए थे, मगर अब भी यरूशलेम सही तरह से बसाया नहीं गया था। ऐसे में जो यहूदी यरूशलेम लौटते उन्हें मुसीबतों और खतरों से भरे माहौल में नए सिरे से ज़िंदगी शुरू करनी पड़ती। कुछ यहूदी शायद बाबुल में ऐशो-आराम की ज़िंदगी बिता रहे थे, जबकि यरूशलेम में इस तरह दौलत कमाने की कोई गुंजाइश नज़र नहीं आ रही थी। शायद इसलिए वे जाने से हिचकिचाए। एक और बात यह है कि यरूशलेम की वापसी यात्रा जोखिम-भरी थी। यरूशलेम लौटनेवालों के लिए ज़रूरी था कि वे यहोवा पर मज़बूत विश्वास रखें, उनमें सच्ची उपासना के लिए जोश हो और यरूशलेम तक का सफर तय करने की हिम्मत हो। एज्रा ने भी यहोवा से सामर्थ पाकर खुद को मज़बूत किया। एज्रा के उकसाने पर 1,500 परिवारों ने, यानी कुल-मिलाकर शायद 6,000 लोगों ने उसके साथ जाने का फैसला किया। उसने कुछ और भी कदम उठाए जिसकी वजह से 38 लेवी और 220 नतीन लोग भी उसके साथ रवाना हो गए।
17-23 जुलाई
पाएँ बाइबल का खज़ाना | एज्रा 9-10
“आज्ञा न मानने के बुरे अंजाम”
एज्रा किताब की झलकियाँ
9:1, 2—दूसरी जातियों से शादी करने का खतरा कितना बड़ा था? बहाल की गयी इस्राएल जाति की ज़िम्मेदारी थी कि वह मसीहा के आने तक यहोवा की उपासना को अशुद्ध होने से बचाए रखे। दूसरी जातियों के लोगों से शादी करने से सच्ची उपासना को बहुत बड़ा खतरा था। कुछ इस्राएलियों ने मूर्तिपूजा करनेवालों से शादी की थी, इसलिए पूरी-की-पूरी इस्राएल जाति का विधर्मी जातियों में मिल जाने का खतरा पैदा हो गया था। अगर ऐसा ही चलता रहता तो धरती पर से सच्ची उपासना का नामो-निशान मिट जाता। ऐसे में मसीहा किसके पास आता? इसलिए ताज्जुब नहीं कि यह हाल देखकर एज्रा को बड़ा झटका लगा!
यहोवा हमसे क्या चाहता है?
अगर हम खुशी-खुशी परमेश्वर की हर आज्ञा मानें, तो हम पर उसकी आशीष होगी। मूसा ने लिखा: ‘जो-जो आज्ञा मैं आज तुझे सुनाता हूं, उनको ग्रहण कर जिससे तेरा भला हो।’ (आयत 13) जी हाँ, यहोवा की हर आज्ञा, हर माँग हमारे भले के लिए है। क्योंकि बाइबल कहती है कि “परमेश्वर प्यार है।” (1 यूहन्ना 4:8) तो ज़ाहिर-सी बात है कि वह हमें सिर्फ ऐसी आज्ञाएँ देगा, जिन पर चलकर हमें हमेशा का फायदा हो। (यशायाह 48:17) यहोवा हमसे जो भी चाहता है, अगर हम उसे पूरा करें तो आज हम कई परेशानियों से बच सकते हैं। यही नहीं, आगे चलकर जब परमेश्वर का राज इस धरती पर हुकूमत करेगा, तब हमें ढेरों आशीषें मिलेंगी।
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एज्रा किताब की झलकियाँ
10:3, 44—स्त्रियों के साथ-साथ उनके बच्चों को भी क्यों भेज दिया गया था? अगर बच्चों को रहने दिया जाता तो शायद उनकी माँओं की उनके पास लौटने की गुंजाइश रहती। दूसरी बात यह है कि छोटे बच्चों को खास तौर से माँ की ममता की ज़रूरत होती है। इसलिए उन्हें अपनी माँ के साथ भेज दिया गया था।
24-30 जुलाई
पाएँ बाइबल का खज़ाना | नहेमायाह 1-2
“‘उसी वक्त मैंने प्रार्थना की’”
यहोवा को हमेशा अपने सामने रखिए
5 कभी-कभी हमें शायद परमेश्वर से मदद माँगने के लिए फौरन एक छोटी-सी प्रार्थना करनी पड़े। इसकी एक मिसाल लीजिए। एक दफा, फारस के राजा अर्तक्षत्र ने देखा कि उसका पिलानेहारा, नहेमायाह बहुत उदास है। इस पर राजा ने उससे पूछा: “तुम क्या चाहते हो?” नहेमायाह ने उसी वक्त ‘मन-ही-मन स्वर्ग के परमेश्वर से प्रार्थना की।’ (नयी हिन्दी बाइबिल) वह राजा को जवाब देने के लिए अपना समय नहीं ले सकता था, इसलिए उसने एक छोटी-सी प्रार्थना की। फिर भी, परमेश्वर ने उसकी प्रार्थना सुनकर उसका जवाब दिया। हम ऐसा इसलिए कह सकते हैं, क्योंकि राजा ने नहेमायाह को यरूशलेम की दीवारें दोबारा खड़ी करने में मदद दी। (नहेमायाह 2:1-8 पढ़िए।) तो देखा आपने, मन-ही-मन की गयी एक छोटी-सी प्रार्थना भी काफी असरदार साबित हो सकती है।
नोट्स बार-बार देखे बिना बात करना
अगर अचानक ऐसे हालात पैदा हों, जब आपसे अपने विश्वासों के बारे में समझाने के लिए कहा जाएगा, तब असरदार तरीके से बात करने में क्या बात आपकी मदद कर सकती है? ऐसे में वही कीजिए जो नहेमायाह ने किया था। जब राजा अर्तक्षत्र ने उससे एक सवाल पूछा, तो उसने जवाब देने से पहले मन-ही-मन प्रार्थना की। (नहे. 2:4) प्रार्थना के बाद, मन में फौरन एक आउटलाइन तैयार कीजिए। आउटलाइन में आप खासकर इन बुनियादी बातों पर ध्यान दे सकते हैं: (1) ऐसे एक या दो मुद्दे चुनिए जो बात समझाने के लिए ज़रूरी हैं। (आप चाहें तो “चर्चा के लिए बाइबल विषय” में दिए मुद्दे चुन सकते हैं।) (2) यह तय कीजिए कि आप उन मुद्दों का सबूत देने के लिए कौन-सी आयतें इस्तेमाल करेंगे। (3) सोचिए कि आप किस तरह कुशलता से अपनी बात कहना शुरू करेंगे ताकि सवाल पूछनेवाला सुनने को तैयार हो। इसके बाद, अपनी बात शुरू कीजिए।
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प्र86 3/1 पेज 28
सच्ची उपासना की जीत
नहीं। नहेमायाह कई दिनों से “दिन-रात” यरूशलेम के बुरे हाल के बारे में यहोवा से प्रार्थना कर रहा था। (नहे 1:4, 6) उसकी यह भी इच्छा थी कि वह यरूशलेम की दीवारें दोबारा बनवाए। इसलिए जब उसे मौका मिला कि वह इस बारे में राजा अर्तक्षत्र से बात करे, तो उसने तुरंत दोबारा यहोवा से प्रार्थना की। और यहोवा ने राजा को उभारा कि वह नहेमायाह को यरूशलेम भेजे ताकि वह उस शहर की दीवारें दोबारा खड़ी कर सके।
हमारे लिए सीख: नहेमायाह ने यहोवा से प्रार्थना की कि वह उसे रास्ता दिखाए। उसी तरह, जब हमें कोई मुश्किल फैसला लेना होता है तो हमें ‘प्रार्थना में लगे रहना चाहिए’ और यहोवा के दिखाए रास्ते पर चलना चाहिए।—रोमियों 12:12.
31 जुलाई–6 अगस्त
पाएँ बाइबल का खज़ाना | नहेमायाह 3-4
“क्या मेहनत-मशक्कत करना आपकी शान के खिलाफ है?”
नहेमायाह किताब की झलकियाँ
3:5, 27. सच्ची उपासना की खातिर अगर हमें मेहनत-मशक्कत करनी पड़े, तो हमें तकोइयों के “रईसों” की तरह कभी नहीं सोचना चाहिए कि इससे हम छोटे हो जाएँगे। इसके बजाय, हमें तकोइयों के आम लोगों की मिसाल पर चलना चाहिए जिन्होंने खुशी-खुशी अपने काम में खुद को पूरी तरह लगा दिया था।
यहोवा आपको जो चाहे बना सकता है!
11 अब ध्यान दीजिए कि यहोवा ने शल्लूम की बेटियों से क्या काम करवाया। उन्होंने यरूशलेम की शहरपनाह दोबारा बनाने में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। (नहे. 2:20; 3:12) हालाँकि उनका पिता एक हाकिम था और यह काम मुश्किल-भरा और खतरनाक था, फिर भी वे पीछे नहीं हटीं। (नहे. 4:15-18) वे तकोआ के बड़े-बड़े आदमियों से कितनी अलग थीं! उन आदमियों को ‘यह मंज़ूर नहीं था कि वे किसी के अधीन रहकर काम करें।’ (नहे. 3:5) ज़रा सोचिए, शल्लूम की बेटियों को यह देखकर कितनी खुशी हुई होगी कि सिर्फ 52 दिन में शहरपनाह बनकर तैयार हो गयी! (नहे. 6:15) आज हमारे दिनों में कई बहनें खुशी-खुशी एक खास किस्म की पवित्र सेवा करती हैं, वह है निर्माण काम। वे ऐसी इमारतों के निर्माण और रख-रखाव में सहयोग देती हैं, जो यहोवा को समर्पित की जाती हैं। ये वफादार, हुनरमंद और जोशीली बहनें सच में तारीफ के काबिल हैं!
महानता के बारे में मसीह जैसा नज़रिया पैदा करना
16 सभी मसीहियों को महानता के बारे में मसीह का नज़रिया पैदा करने की कोशिश करनी चाहिए, फिर चाहे वे उम्र में छोटे हों या बड़े। कलीसिया में कई तरह के काम होते हैं। जब आपसे कुछ ऐसे काम करने के लिए कहा जाता है जिन्हें दुनिया तुच्छ समझती है, तो मन-ही-मन कुढ़िए मत। (1 शमूएल 25:41; 2 राजा 3:11) माता-पिताओ, क्या आप अपने छोटे और जवान बच्चों को सिखाते हैं कि उन्हें किंगडम हॉल में, सम्मेलन या अधिवेशन की जगहों पर जो भी काम सौंपा जाता है, उसे वे खुशी-खुशी करें? क्या वे आपको कम दर्जे के काम करते देखते हैं? यहोवा के साक्षियों के विश्व-मुख्यालय में काम करनेवाला एक भाई अपने माता-पिता की मिसाल याद करते हुए कहता है: “मेरे माता-पिता किंगडम हॉल में और अधिवेशन की जगह पर साफ-सफाई का काम जिस जोश के साथ करते थे, उससे मैंने यही जाना कि वे इस काम को बहुत ज़रूरी समझते थे। कलीसिया या भाई-बहनों की खातिर भले काम करने के लिए वे अकसर खुद आगे बढ़ते थे, फिर चाहे वे काम कितने ही कम दर्जे के क्यों न लगें। उन्हें देखकर मैंने सीखा कि मुझे यहाँ बेथेल में चाहे जो भी काम सौंपा जाए, उसे मैं खुशी-खुशी पूरा करूँ।”
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नहेमायाह किताब की झलकियाँ
4:17, 18—शहरपनाह को दोबारा बनाते वक्त सिर्फ एक हाथ से काम करना कैसे मुमकिन था? बोझ ढोनेवालों के लिए यह कोई मुश्किल काम नहीं था। वे एक हाथ से अपने सिर या कंधों पर रखे भार को आसानी से पकड़ सकते थे, जबकि ‘दूसरे हाथ से हथियार पकड़’ सकते थे। और राजगीर जिन्हें अपने काम में दोनों हाथों का इस्तेमाल करने की ज़रूरत थी, वे “अपनी जांघ पर तलवार लटकाए हुए [शहरपनाह] बनाते थे।” इस तरह वे हमेशा तैयार रहते थे ताकि अगर दुश्मन अचानक धावा बोल दें, तो वे उनका मुकाबला कर सकें।
7-13 अगस्त
पाएँ बाइबल का खज़ाना | नहेमायाह 5-7
“नहेमायाह ने सेवा की, न कि करवायी”
सच्ची उपासना का समर्थन करनेवाले—पहले और आज
नहेमायाह ने सिर्फ अपना वक्त और संगठित करने की काबिलीयत ही नहीं, बल्कि उसने अपनी संपत्ति देकर भी सच्ची उपासना का समर्थन किया। उसने खुद अपने पैसों से गुलामी में पड़े अपने यहूदी भाइयों को छुड़ाया। उसने बिना ब्याज के पैसे उधार दिए। एक गर्वनर की हैसियत से उसे यहूदियों से भत्ता माँगने का पूरा हक था मगर उसने ऐसा कभी नहीं किया। इस तरह उसने लोगों पर “भारी बोझ” (नयी हिन्दी बाइबिल) नहीं डाला। इसके बजाय उसका घर ‘एक सौ पचास लोगों और चारों ओर से आए अन्यजातियों के लिए’ हमेशा खुला था और वे वहाँ भोजन कर सकते थे। हर दिन वह अपने मेहमानों के लिए ‘एक बैल, छः अच्छी-अच्छी भेड़ें व बकरियां और चिड़ियों’ को पकाने का इंतज़ाम करता था। इसके अलावा दस-दस दिन के बाद वह “भांति भांति का बहुत दाखमधु” भी देता था। इन सबका खर्चा वह खुद उठाता था।—नहेमायाह 5:8, 10, 14-18.
‘तेरे हाथ ढीले न पड़ें’
16 यहोवा ने नहेमायाह और दूसरे यहूदियों के हाथों को मज़बूत किया। इस वजह से उन्होंने सिर्फ 52 दिनों में ही यरूशलेम की पूरी शहरपनाह खड़ी कर दी! (नहे. 2:18; 6:15, 16) नहेमायाह ने बस खड़े-खड़े दूसरों को काम करते नहीं देखा। उसने भी शहरपनाह बनाने के काम में हाथ बँटाया। (नहे. 5:16) आज कई प्राचीन नहेमायाह की तरह हैं। वे निर्माण काम में हिस्सा लेते हैं या राज-घर की साफ-सफाई और उसके रख-रखाव में हाथ बँटाते हैं। ये प्यारे प्राचीन उन भाई-बहनों की भी हिम्मत बढ़ाते हैं जो चिंताओं से घिरे होते हैं। कैसे? वे उनके घर जाकर उनसे मिलते हैं और उनके साथ प्रचार में भी जाते हैं।—यशायाह 35:3, 4 पढ़िए।
यहोवा आपको किस तरह याद रखेगा?
इस विचार के मुताबिक, बाइबल बताती है कि परमेश्वर के लिए ‘याद रखने’ का मतलब है उस व्यक्ति के लिए कुछ ऐसा काम करना जिससे उसे कुछ फायदा हो। मिसाल के तौर पर, जलप्रलय के बाद जब पृथ्वी 150 दिन तक जल में डूबी हुई थी, तब “परमेश्वर ने नूह की . . . सुधि ली: और . . . पृथ्वी पर पवन बहाई, और जल घटने लगा।” (उत्पत्ति 8:1) सदियों बाद, जब शिमशोन की आँखों को फिलिस्तियों ने फोड़ दिया था और उसे जंजीरों में जकड़कर रखा था, तब शिमशोन ने यह बिनती की: “यहोवा, मेरी सुधि ले; . . . अब की बार मुझे बल दे।” यहोवा ने उसकी सुधि ली और उसे बहुत ज़्यादा ताकत दी। और इस ताकत से शिमशोन परमेश्वर के दुश्मनों से अपना बदला ले सका। (न्यायियों 16:28-30) और रही बात नहेमायाह की, तो यहोवा ने उसकी कोशिशों पर आशीष दी और यरूशलेम में सच्ची उपासना फिर से शुरू हो गयी।
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“भलाई से बुराई को जीत लो”
15 अब दुश्मनों ने तीसरी साज़िश रची। इस बार, उन्होंने एक गद्दार को अपना मोहरा बनाया, ताकि नहेमायाह उसकी बातों में आकर परमेश्वर का कानून तोड़ दे। वह गद्दार था, इस्राएली शमायाह। उसने नहेमायाह से कहा: “आ, हम परमेश्वर के भवन अर्थात् मन्दिर के भीतर आपस में भेंट करें, और मन्दिर के द्वार बन्द करें; क्योंकि वे लोग तुझे घात करने आएंगे।” शमायाह का कहना था कि दुश्मन, नहेमायाह का कत्ल करनेवाले हैं, लेकिन वह मंदिर में छिपकर अपनी जान बचा सकता है। मगर नहेमायाह एक याजक नहीं था। अगर वह परमेश्वर के भवन में छिपता, तो यह एक पाप होता। क्या वह अपनी जान बचाने की खातिर परमेश्वर के कानून को तोड़ देता? नहेमायाह ने कहा: “क्या मुझ जैसा मनुष्य . . . अपना प्राण बचाने को मंदिर में घुसे? मैं भीतर नहीं जाऊंगा।” (NHT) नहेमायाह दुश्मन के बिछाए जाल में क्यों नहीं फँसा? क्योंकि वह जानता था कि शमायाह इस्राएली ज़रूर है, मगर “वह परमेश्वर का भेजा [हुआ] नहीं है।” अगर वह परमेश्वर का सच्चा नबी होता, तो वह नहेमायाह को परमेश्वर का कानून तोड़ने की सलाह कभी न देता। इस बार भी नहेमायाह ने बुरा चाहनेवाले उसके दुश्मनों के आगे हार नहीं मानी। कुछ वक्त बाद, नहेमायाह यह कह सका: “एलूल महीने के पचीसवें दिन को अर्थात् बावन दिन के भीतर शहरपनाह बन चुकी।”—नहेमायाह 6:10-15; गिनती 1:51; 18:7.
14-20 अगस्त
पाएँ बाइबल का खज़ाना | नहेमायाह 8-9
“जो खुशी यहोवा देता है वह तुम्हारे लिए एक मज़बूत गढ़ है”
अच्छी तरह तैयार की गयी प्रार्थना से कुछ सबक
2 उस खास सभा से एक महीने पहले, यहूदियों ने यरूशलेम की दीवारों को दोबारा बनाने का काम खत्म किया था। (नहे. 6:15) परमेश्वर के लोगों ने यह काम सिर्फ 52 दिनों में खत्म किया। इसके बाद, अगले महीने के, यानी तिशरी के पहले दिन वे एक चौक में इकट्ठा हुए, ताकि वे एज्रा और दूसरे लेवियों की सुन सकें, जो परमेश्वर का कानून पढ़कर सुना रहे थे और उसे समझा रहे थे। (तसवीर 1) परिवार के सभी सदस्यों ने, जिसमें ऐसे बच्चे भी शामिल थे जो “सुनकर समझ सकते थे,” “भोर से दो पहर तक” खड़े रहकर सुना। ये इसराएली आज हम सभी के लिए एक बहुत ही अच्छी मिसाल हैं। हालाँकि हम राज-घर में आराम से बैठकर सभाओं का लुत्फ उठाते हैं, मगर कभी-कभी हमारा चंचल मन यहाँ-वहाँ भटकने लगता है। वहाँ सभाएँ चल रही होती हैं, और हम यहाँ कुछ और ही सोच रहे होते हैं। मगर उन इसराएलियों ने कानून पर न सिर्फ ध्यान दिया, बल्कि उन बातों पर मनन भी किया। इतना ही नहीं, जब उन्हें एहसास हुआ कि वे परमेश्वर की आज्ञाओं को नहीं मान रहे हैं, तब वे रोने लगे।—नहे. 8:1-9.
क्या आप ‘आत्मा के अनुसार चलेंगे’?
9 आनंद, दिली खुशी का एहसास है। यहोवा “आनंदित परमेश्वर” है। (1 तीमुथियुस 1:11, NW; भजन 104:31) उसके बेटे को अपने पिता की मरज़ी पूरी करने से सच्ची खुशी मिलती है। (भजन 40:8; इब्रानियों 10:7-9) और “यहोवा का आनन्द [हमारा] दृढ़ गढ़ है।”—नहेमायाह 8:10.
10 यहोवा का यह आनंद हमें उस वक्त भी गहरा संतोष देता है, जब हम मुश्किलों, दुःखों या ज़ुल्मों के दौरान परमेश्वर की मरज़ी पूरी करते हैं। “परमेश्वर का ज्ञान” लेने से हमें क्या ही खुशी मिलती है! (नीतिवचन 2:1-5) इसी ज्ञान की बदौलत, साथ ही परमेश्वर पर और उसके बेटे के छुड़ौती बलिदान पर विश्वास करने से, हम यहोवा के साथ एक खुशनुमा रिश्ता कायम कर पाए हैं। (1 यूहन्ना 2:1, 2) खुश होने की एक और वजह यह है कि हम पूरी दुनिया में फैले एकमात्र सच्चे भाईचारे का हिस्सा हैं। (सपन्याह 3:9; हाग्गै 2:7) हमें राज्य की जो बेहतरीन आशा दी गयी है और सुसमाचार सुनाने का जो शानदार मौका मिला है, इनकी वजह से भी हमें खुशी मिलती है। (मत्ती 6:9, 10; 24:14) इतना ही नहीं, हमेशा की ज़िंदगी पाने की आशा से भी हम गद्गद हो उठते हैं। (यूहन्ना 17:3) जब हमें इतनी शानदार आशा मिली है, तो बेशक हमें “आनन्द ही करना” चाहिए।—व्यवस्थाविवरण 16:15.
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इंसाइट-1 पेज 145 पै 2
अरामी भाषा
नहेमायाह 8:8 में लिखा है, “लेवी सच्चे परमेश्वर के कानून की किताब पढ़कर सुनाते रहे। वे उसमें लिखी बातें खुलकर समझाने और उनका मतलब बताने लगे। इस तरह, पढ़ी जानेवाली बातों को समझने में उन्होंने लोगों की मदद की।“ यहाँ “खुलकर समझाने” का मतलब शायद यह है कि इब्रानी भाषा में जो बातें लिखी थीं, उन्हें चंद शब्दों में अरामी भाषा में समझाना। ऐसा हो सकता है कि जब यहूदी लोग बैबिलोन में थे, तो वे अरामी भाषा बोलने लगे थे। “खुलकर समझाने” का यह भी मतलब हो सकता है कि लेवियों ने कानून की बातें बारीकी से समझायी हो ताकि जो यहूदी इब्रानी भाषा जानते थे, वे इन बातों का गहरा मतलब जान सकें।
21-27 अगस्त
पाएँ बाइबल का खज़ाना | नहेमायाह 10-11
“उन्होंने यहोवा के लिए कई त्याग किए”
अपने नाम जैसा यरूशलेम
13 नहेमायाह के दिनों में जिस ‘सच्चाई की वाचा’ पर मुहर लगाई गयी थी, उसने प्राचीनकाल में परमेश्वर के लोगों को यरूशलेम की शहरपनाह के उद्घाटन के लिए तैयार किया। लेकिन एक और मामला था जिस पर जल्द-से-जल्द ध्यान देने की ज़रूरत थी। अब यरूशलेम 12 फाटकोंवाली बड़ी शहरपनाह में सुरक्षित था, मगर उसमें रहनेवाले लोग बहुत कम थे। कुछ इस्राएली वहाँ रहते थे, पर फिर भी “नगर तो लम्बा चौड़ा था, परन्तु उस में लोग थोड़े थे।” (नहेमायाह 7:4) इस समस्या को हल करने के लिए, लोगों ने “चिट्ठियां डालीं, कि दस में से एक मनुष्य यरूशलेम में, जो पवित्र नगर है, बस जाएं।” इस इंतज़ाम को लोगों ने खुशी से माना, इसलिए “जिन्हों ने अपनी ही इच्छा से यरूशलेम में बास करना चाहा उन सभों को लोगों ने आशीर्वाद दिया।” (नहेमायाह 11:1, 2) यह आज के उन सच्चे उपासकों के लिए कितनी अच्छी मिसाल है जिनके हालात उन्हें इस बात की इजाज़त देते हैं कि वे उन इलाकों में जाएँ जहाँ प्रौढ़ मसीहियों की ज़्यादा ज़रूरत है!
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सच्ची उपासना की जीत
इसराएली जानते थे कि अपना घर और ज़मीन-जायदाद छोड़कर यरूशलेम जाकर बसना आसान नहीं है। इसमें काफी खर्च होता और कुछ नुकसान भी होते। इसके अलावा, यरूशलेम में रहते वक्त लोगों को शायद कई खतरों का सामना भी करना पड़ता। फिर भी कुछ इसराएलियों ने अपनी मरज़ी से यरूशलेम जाकर रहने का फैसला किया। इसलिए दूसरे इसराएलियों ने उनकी तारीफ की और यहोवा से प्रार्थना की कि वह उनके त्याग के लिए उन्हें आशीष दे।
विश्वास बनाए रहने से परमेश्वर की मंज़ूरी मिलती है
15 जब हमने यहोवा को अपनी ज़िंदगी समर्पित की, तो हमने वादा किया था कि हम हर हाल में उसकी मरज़ी पूरी करेंगे। हम जानते थे कि यह वादा निभाना हमेशा आसान नहीं होगा। तो फिर उस वक्त हम कैसा रवैया दिखाते हैं, जब हमसे कुछ ऐसा करने के लिए कहा जाता है, जो हमें पसंद नहीं? अगर हम त्याग की भावना दिखाएँ और खुशी-खुशी परमेश्वर की आज्ञा मानें, तो हम ज़ाहिर कर रहे होंगे कि हमें परमेश्वर पर विश्वास है। हम जो त्याग करते हैं उससे भले ही हमें तकलीफ हो, लेकिन परमेश्वर की आशीषें उससे कहीं ज़्यादा होती हैं! (मला. 3:10) यिप्तह की बेटी ने अपने पिता का वादा सुनकर कैसा रवैया दिखाया?
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नहेमायाह किताब की झलकियाँ
10:34—लोगों से लकड़ियाँ लाने के लिए क्यों कहा गया था? हालाँकि मूसा की कानून-व्यवस्था में लकड़ियों की भेंट चढ़ाने की आज्ञा नहीं दी गयी थी, बल्कि बाद में हालात की माँग की वजह से यह दी गयी थी। वेदी पर बलि के जानवरों को जलाने के लिए ढेर सारी लकड़ियों की ज़रूरत थी। मगर ज़ाहिर है कि लकड़ी बटोरने के लिए नतीन लोग काफी नहीं थे जो गैर-इस्राएली थे और मंदिर में दास के तौर पर सेवा किया करते थे। इसलिए मंदिर में भेंट चढ़ाने के लिए लकड़ियों की कमी न हो, इस बात का पूरा ध्यान रखने के लिए चिट्ठियाँ डाली गयी थीं।
28 अगस्त–3 सितंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | नहेमायाह 12-13
“सही दोस्त चुनिए, यहोवा के वफादार रहिए”
इंसाइट-1 पेज 95 पै 5
अम्मोनी लोग
तोब्याह का सारा सामान मंदिर के बाहर फेंके जाने के बाद, लोगों को व्यवस्थाविवरण 23:3-6 में लिखा परमेश्वर का कानून पढ़कर सुनाया गया और फौरन लागू करवाया गया। उस कानून में यहोवा ने साफ-साफ कहा कि अम्मोनी और मोआबी लोग इसराएल की मंडली का हिस्सा नहीं बन सकते। (नेह 13:1-3) यहोवा ने यह कानून करीब 1,000 साल पहले इसलिए दिया था, क्योंकि जब इसराएली वादा किए हुए देश में जा रहे थे तब अम्मोनी और मोआबी लोगों ने उनकी मदद करने से इनकार कर दिया था। इस कानून के मुताबिक, अम्मोनी और मोआबी लोग एक जाति के तौर पर इसराएल राष्ट्र का हिस्सा नहीं बन सकते थे। इस वजह से उन्हें वे अधिकार और फायदे नहीं मिलते जो इसराएलियों को मिलते थे। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि अम्मोनियों और मोआबियों में से कोई भी इसराएलियों से मेल-जोल नहीं रख सकता था या उनके बीच नहीं रह सकता था। उन जातियों में से कुछ लोगों को ऐसा करने की इजाज़त दी गयी और इस तरह उन्होंने उन आशीषों से फायदा पाया जो यहोवा इसराएलियों को दे रहा था। इसका एक उदाहरण है, सेलेक जो एक अम्मोनी था और दाविद के वीर योद्धाओं में से एक था और दूसरा उदाहरण है, रूत जो एक मोआबी औरत थी।—रूत 1:4, 16-18.
तुम्हें पवित्र कामों के लिए अलग किया गया है
5 नहेमायाह 13:4-9 पढ़िए। आज हम बुरे लोगों से घिरे हुए हैं, इसलिए हमारे लिए पवित्र बने रहना आसान नहीं है। एल्याशीब और तोबिय्याह के उदाहरण पर गौर कीजिए। एल्याशीब महायाजक था और तोबिय्याह एक अम्मोनी था, जो शायद फारस के राजा के लिए काम करता था। तोबिय्याह और उसके साथियों ने नहेमायाह को यरूशलेम की दीवार बनाने से रोकने की कोशिश की थी। (नहे. 2:10) अम्मोनियों का मंदिर में कदम रखना मना था। (व्यव. 23:3) तो फिर महायाजक एल्याशीब, तोबिय्याह जैसे इंसान को मंदिर की कोठरी में रहने की इजाज़त कैसे दे सकता था?
6 तोबिय्याह एल्याशीब का करीबी दोस्त बन गया था। तोबिय्याह और उसके बेटे यहोहानान ने यहूदी स्त्रियों से शादी कर ली थी, और बहुत-से यहूदी तोबिय्याह की तारीफ किया करते थे। (नहे. 6:17-19) इसके अलावा, एल्याशीब के एक पोते की शादी, सामरिया के राज्यपाल सम्बल्लत की बेटी से हुई थी। और सम्बल्लत तोबिय्याह के सबसे करीबी दोस्तों में से था। (नहे. 13:28) इसलिए हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि क्यों महायाजक एल्याशीब, अविश्वासी और विरोधी तोबिय्याह की बातों में आ गया। लेकिन नहेमायाह ने यहोवा की तरफ वफादारी दिखाते हुए तोबिय्याह का सारा घरेलू सामान कोठरी के बाहर फेंक दिया।
निष्ठा की कसौटी पर खरा उतरना
6 यदि हम यहोवा परमेश्वर के प्रति निष्ठावान हैं, तो हम उन सभी के साथ मित्रता नहीं करेंगे जो उसके शत्रु हैं। इसीलिए शिष्य याकूब ने लिखा: “हे व्यभिचारिणियो, क्या तुम नहीं जानतीं, कि संसार से मित्रता करनी परमेश्वर से बैर करना है? सो जो कोई संसार का मित्र होना चाहता है, वह अपने आप को परमेश्वर का बैरी बनाता है।” (याकूब 4:4) हम वह निष्ठा रखनी चाहते हैं जिसका प्रमाण राजा दाऊद ने दिया जब उसने कहा: “हे यहोवा, क्या मैं तेरे बैरियों से बैर न रखूं, और तेरे विरोधियों से रूठ न जाऊं? हां, मैं उन से पूर्ण बैर रखता हूं; मैं उनको अपना शत्रु समझता हूं।” (भजन 139:21, 22) हम किसी हठीले पापियों के साथ मिलना-जुलना नहीं चाहते, क्योंकि हमारे और उनके बीच कुछ भी समान नहीं है। क्या परमेश्वर के प्रति निष्ठा हमको यहोवा के ऐसे किसी भी शत्रु के साथ संगति करने से नहीं रोकती, वह चाहे व्यक्तिगत रूप से हो या टॆलीविज़न के माध्यम से?
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इंसाइट-2 पेज 452 पै 9
संगीत
मंदिर में गीत गाना एक ज़रूरी काम था। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि बाइबल की कई आयतों में गायकों के बारे में बताया गया है। इसके अलावा, गायकों को ऐसे “कामों से छूट दी जाती थी” जो दूसरे लेवियों को करने पड़ते थे ताकि वे अपना पूरा ध्यान गीत गाने में लगा सकें। (1इत 9:33) जब यहूदी बैबिलोन से वापस लौटे तब भी गायकों को लेवियों से अलग बताया गया। इससे पता चलता है कि गायक, लेवियों से बना एक खास दल था। (एज 2:40, 41) यहाँ तक कि फारस के राजा अर्तक्षत्र ने दूसरे खास दलों के साथ-साथ गायकों को भी ‘कर और महसूल’ देने से छूट दी। (एज 7:24) बाद में राजा ने फरमान जारी किया कि गायकों को “हर दिन के हिसाब से खाने-पीने की चीज़ें दी जाएँ।” पर असल में हो सकता है कि यह फरमान एज्रा ने जारी किया हो, क्योंकि राजा ने उसे ऐसा करने का अधिकार दिया था। (नहे 11:23; एज 7:18-26) इससे हम समझ सकते हैं कि हालाँकि गायक भी लेवी थे, मगर बाइबल में इन्हें एक खास दल के तौर पर बताया गया है। इसलिए आयतों में ‘गायकों और लेवियों’ लिखा है।—नहे 7:1, 13:10.