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“यहोवा को अपने सुख का मूल जान”प्रहरीदुर्ग—2003 | दिसंबर 1
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“डाह न कर!”
3, 4. भजन 37:1 में जैसा दर्ज़ है, दाऊद ने क्या सलाह दी, और आज उस सलाह को मानना क्यों सही है?
3 आज हम “कठिन समय” में जी रहे हैं, क्योंकि दुष्टता दुनिया में चारों तरफ फैल गयी है। हम प्रेरित पौलुस के ये शब्द पूरे होते देख रहे हैं कि “दुष्ट, और बहकानेवाले धोखा देते हुए, और धोखा खाते हुए, बिगड़ते चले जाएंगे।” (2 तीमुथियुस 3:1, 13) और इन दुष्ट लोगों को कामयाब होता और फलता-फूलता देखकर, हमारा मन बेचैन हो उठता है। उनकी वजह से, ज़रूरी बातों से हमारा ध्यान भटक सकता है और हम आध्यात्मिक बातों को पहले की तरह अहमियत नहीं देते। ध्यान दीजिए कि भजन 37 की शुरूआत में कैसे इसके बारे में हमें सावधान किया गया है, जो हमारे लिए एक खतरा बन सकता है: “कुकर्मियों के कारण मत कुढ़, कुटिल काम करनेवालों के विषय डाह न कर!”
4 दुनिया के मीडिया से हमें आए दिन नाइंसाफी की खबरें मिलती हैं जिन्हें सुनकर हम बेचैन हो उठते हैं। बेईमान बिज़नेसमैन, धोखाधड़ी करके भी कानून के हाथों से बचे रहते हैं। अपराधी, अपने फायदे के लिए लाचार और बेसहारा लोगों को अपना शिकार बनाते हैं। खूनी अकसर पकड़े नहीं जाते, और अगर पकड़े भी जाएँ तो भी उन्हें सज़ा नहीं दी जाती। इस तरह की नाइंसाफी देखकर हमें बहुत गुस्सा आता है और हमारे मन का चैन छिन जाता है। यहाँ तक कि बुराई करनेवालों की कामयाबी देखकर हम शायद मन-ही-मन उनसे जलने लगें। लेकिन इस तरह परेशान होने से क्या हालात सुधर जाएँगे? क्या दुष्ट जनों की मौज-मस्ती से जलने-कुढ़ने से, उन्हें कोई फर्क पड़ेगा? हरगिज़ नहीं पड़ेगा! और फिर देखा जाए तो हमें अंदर-ही-अंदर ‘कुढ़ने’ की कोई ज़रूरत नहीं। क्यों नहीं?
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“यहोवा को अपने सुख का मूल जान”प्रहरीदुर्ग—2003 | दिसंबर 1
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6. भजन 37:1, 2 से हम क्या सबक सीख सकते हैं?
6 तो फिर दुष्ट लोगों की चंद दिनों की खुशहाली देखकर क्या हमें परेशान होना चाहिए? नहीं, बल्कि हमें भजन 37 की पहली दो आयतों से यह सबक सीखना चाहिए: यहोवा की सेवा करने के लिए जो रास्ता आपने चुना है, दुष्ट लोगों की कामयाबी देखकर उस रास्ते से भटक मत जाइए। इसके बजाय, अपनी नज़र आध्यात्मिक आशीषों और लक्ष्यों पर लगाए रखिए।—नीतिवचन 23:17.
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