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    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2009
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
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आज आशावाद के ठोस कारण

सन्‌ १८६६ में पैदा होनेवाले इतिहासकार और समाजवादी एच. जी. वॆल्स ने २०वीं सदी के सोच-विचार पर गहरा असर डाला। अपनी कलम से उसने अपने इस अटल विश्‍वास का बयान किया कि विज्ञान की तरक्क़ी से ही आगे चलकर हमें बड़ी शांति या इंसानी सिद्धता हासिल होनेवाली है। कोलायर्स्‌ एनसाइक्लोपीडिया इस तरह वॆल्स के “असीम आशावाद” की याद दिलाती है, जब उसने अपने लक्ष्य को बढ़ावा देने के लिए अथक रूप से काम किया। लेकिन यह ऐसा भी बताती है कि उसका आशावाद दूसरे विश्‍वयुद्ध के छिड़ने पर चकनाचूर हो गया था।

जब वॆल्स को यह एहसास हुआ कि “विज्ञान दुष्टता और अच्छाई दोनों के लिए काम कर सकता है, तो उसका विश्‍वास उड़न-छू हो गया और वह निराशावाद में डूब गया,” चेंबर्स बायोग्राफ़ी डिक्शनरी बताती है। ऐसा क्यों हुआ?

वॆल्स का विश्‍वास और आशावाद पूरी तरह इंसानी उपलब्धियों पर आधारित था। जब उसे एहसास हुआ कि मानवजाति उसके यूटोपिया को पाने में असमर्थ थी, तो उसके पास और कोई चारा नहीं रहा। हताशा जल्द ही निराशावाद बन गयी।

आज, अनेक लोग इसी वज़ह से ऐसा ही महसूस करते हैं। जब वे जवान होते हैं तो आशावाद से लबालब होते हैं लेकिन बुढ़ापा आने पर वे उदासी के निराशावाद में डूब जाते हैं। ऐसे युवा भी हैं जो तथाकथित समान्य जीवन-शैली छोड़कर ड्रग्स, स्वच्छंद जीवन और दूसरी तरह की विनाशकारी जीवन-शैलियों में डूब जाते हैं। इसका जवाब क्या है? बाइबल के ज़माने के कुछ उदाहरणों पर ग़ौर कीजिए और देखिए कि आशावाद का आधार क्या है—अतीत, वर्तमान और भविष्य में।

इब्राहीम के आशावाद का इनाम मिला

सामान्य युग पूर्व १९४३ में इब्राहीम हारान देश से निकला, फारात नदी को पार किया और कनान देश में आ गया। इब्राहीम का एक ऐसे व्यक्‍ति के रूप में वर्णन किया गया है जो ‘उन सब का पिता है जो विश्‍वास करते हैं’ और उसने क्या ही बेहतरीन उदाहरण रखा!—रोमियों ४:११.

इब्राहीम के साथ लूत अपने परिवार सहित था जो कि इब्राहीम के भाई का अनाथ बेटा था। बाद में, जब उस देश में अकाल पड़ा तब ये दोनों परिवार मिस्र चले गए और फिर इकट्ठे वापस लौट भी आए। इस समय तक इब्राहीम और लूत, दोनों ने बहुत धन इकट्ठा कर लिया था और उनके बहुत-सी भेड़-बकरियाँ और गाय-बैल हो गये थे। जब उनके झुण्ड के चरवाहों के बीच झगड़ा होने लगा, तब इब्राहीम ने पहल करते हुए कहा: “मेरे और तेरे बीच, और मेरे और तेरे चरवाहों के बीच में झगड़ा न होने पाए; क्योंकि हम लोग भाई बन्धु हैं। क्या सारा देश तेरे साम्हने नहीं? सो मुझ से अलग हो, यदि तू बाईं ओर जाए तो मैं दहिनी ओर जाऊंगा; और यदि तू दहिनी ओर जाए, तो मैं बाईं ओर जाऊंगा।”—उत्पत्ति १३:८, ९.

बड़ा होने के नाते इब्राहीम अपने पक्ष में फ़ैसला कर सकता था, और लूत अपने चाचा को लिहाज़ दिखाते हुए इब्राहीम के फ़ैसले को मान सकता था। इसके बजाय, “लूत ने आंख उठाकर, यरदन नदी के पास वाली सारी तराई को देखा, कि वह सब सिंची हुई है। जब तक यहोवा ने सदोम और अमोरा को नाश न किया था, तब तक सोअर के मार्ग तक वह तराई यहोवा की बाटिका, और मिस्र देश के समान उपजाऊ थी। सो लूत [ने] अपने लिये यरदन की सारी तराई को चुन” लिया। ऐसा चुनाव करने के बाद लूत के पास आशावादी होने का हर कारण था। लेकिन इब्राहीम के बारे में क्या?—उत्पत्ति १३:१०, ११.

क्या इब्राहीम अपने परिवार के कल्याण को दाँव पर लगाने का दुःसाहस कर रहा था? जी नहीं। इब्राहीम को अपने सकारात्मक नज़रिए और उदार आत्मा की वज़ह से बहुमूल्य इनाम मिले। यहोवा ने इब्राहीम से कहा: “आंख उठाकर जिस स्थान पर तू है वहां से उत्तर-दक्खिन, पूर्व-पच्छिम, चारों ओर दृष्टि कर। क्योंकि जितनी भूमि तुझे दिखाई देती है, उस सब को मैं तुझे और तेरे वंश को युग युग के लिये दूंगा।”—उत्पत्ति १३:१४, १५.

इब्राहीम के आशावाद की एक ठोस बुनियाद थी। यह परमेश्‍वर की उस प्रतिज्ञा पर आधारित था कि परमेश्‍वर इब्राहीम से एक ऐसी बड़ी जाति उत्पन्‍न करेगा जिससे “भूमण्डल के सारे कुल [इब्राहीम] द्वारा आशीष पाएंगे।” (उत्पत्ति १२:२-४, ७) हमें भी यह जानकर भरोसा होता है कि “जो लोग परमेश्‍वर से प्रेम रखते हैं, उन के लिये सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्पन्‍न करती हैं।”—रोमियों ८:२८.

दो आशावादी भेदिए

चार सौ साल से भी ज़्यादा समय बाद, इस्राएल जाति उस कनान देश में प्रवेश करने के लिए तैयार थी “जिस में दूध और मधु की धारा बहती है।” (निर्गमन ३:८; व्यवस्थाविवरण ६:३) मूसा ने १२ प्रधानों को भेजा ताकि ‘उस देश का पता लगाकर उन को यह सन्देश दें, कि कौन सा मार्ग होकर चलना होगा और किस किस नगर में प्रवेश करना पड़ेगा।’ (व्यवस्थाविवरण १:२२; गिनती १३:२) सभी १२ भेदिए उस देश की समृद्धि के बारे में अपने बयान में एकमत थे, लेकिन उनमें से १० ने एक ऐसी निराशावादी रिपोर्ट दी जिससे लोगों के दिलों में ख़ौफ़ समा गया।—गिनती १३:३१-३३.

दूसरी ओर, यहोशू और कालेब ने लोगों के सामने एक आशावादी संदेश रखा और उनका डर दूर करने के लिए उनसे जो भी बन पड़ा उन्होंने वह किया। उनके नज़रिए और रिपोर्ट ने यहोवा की योग्यता पर पूरा भरोसा दिखाया कि वह उन्हें प्रतिज्ञात देश में ले जाने की अपनी प्रतिज्ञा को पूरा कर सकता है—लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ। इसके बजाय, “सारी मण्डली चिल्ला उठी, कि इनको पत्थरवाह करो।”—गिनती १३:३०; १४:६-१०.

मूसा ने लोगों से मिन्‍नत की कि यहोवा पर भरोसा रखें लेकिन उन्होंने उसकी एक न सुनी। अपना निराशावादी नज़रिया बनाए रखने की वज़ह से पूरी जाति को ४० साल तक जंगलों में भटकना पड़ा। उन १२ भेदियों में से सिर्फ़ यहोशू और कालेब को उनके आशावादी होने का इनाम मिला। समस्या की जड़ क्या थी? विश्‍वास की कमी, क्योंकि लोगों ने अपनी बुद्धि का सहारा लिया।—गिनती १४:२६-३०; इब्रानियों ३:७-१२.

योना की हिचकिचाहट

योना सा.यु.पू. नौवीं शताब्दी में रहता था। बाइबल बताती है कि वह यारोबाम द्वितीय के शासन के दौरान, इस्राएल राज्य के दस गोत्र में यहोवा का एक वफ़ादार भविष्यवक्‍ता था। फिर भी उसने नीनवे जाकर लोगों को चेतावनी देने की अपनी नियुक्‍ति से इनकार किया। इतिहासकार जोसीफ़स कहता है कि योना ने “सोचा कि वहाँ से भाग जाना ही बेहतर है” और वह नीनवे के बजाय यापो नगर भाग गया। वहाँ वह तर्शीश, संभवतः आज के स्पेन जानेवाले जहाज़ पर चढ़ गया। (योना १:१-३) योना ने अपनी इस कार्य-नियुक्‍ति को निराशावादी नज़रिए से क्यों देखा इसकी वज़ह योना ४:२ में दी गई है।

आख़िरकार योना यह काम करने के लिए तैयार हो गया, लेकिन उसका क्रोध भड़क उठा जब नीनवे के लोगों ने पश्‍चाताप किया। इसलिए यहोवा ने उसे उस रेंड़ के पेड़ को सुखाने और मुर्झाने के द्वारा करुणा का एक उत्तम सबक़ सिखाया जिसकी छाया में योना ने शरण ली थी। (योना ४:१-८) जो दुःख योना को पेड़ के सूखने पर था उसे सही मायने में १,२०,००० नीनवेवासियों के लिए होना चाहिए था जो “अपने दहिने बाएं हाथों का भेद नहीं पहिचानते।”—योना ४:११.

योना के अनुभव से हम क्या सीख सकते हैं? पवित्र सेवा निराशावाद के लिए कोई गुंजाइश नहीं छोड़ती। अगर हम यहोवा का निर्देशन देखते हैं और पूरा भरोसा रखते हुए उस पर चलते हैं तो हमें ज़रूर सफलता मिलेगी।—नीतिवचन ३:५, ६.

परेशानियों के बीच आशावाद

राजा दाऊद ने कहा, “कुकर्मियों के कारण मत कुढ़, कुटिल काम करनेवालों के विषय डाह न कर!” (भजन ३७:१) यह वाक़ई एक बुद्धिमानी की सलाह है क्योंकि आज अन्याय और कुटिलता हमारे चारों ओर पाए जाते हैं।—सभोपदेशक ८:११.

चाहे हम अधर्मियों से ईर्ष्या न भी करते हों, दुष्ट के हाथों किसी मासूम को तड़पता देख या खुद अपने साथ अन्याय होता देख कुंठित होना आसान है। ऐसे अनुभव शायद हमारे अंदर एक उदास या निराशावादी नज़रिया पैदा करें। जब हम ऐसा महसूस करते हैं तब हमें क्या करना चाहिए? पहली बात, हम मन में यह रख सकते हैं कि दुष्ट बेफ़िक्री से यह अंदाज़ा नहीं लगा सकता कि उसे सज़ा कभी नहीं मिलेगी। भजन ३७ हमें आयत २ में यह आश्‍वासन देता है कि “वे [कुकर्मी] घास की नाईं झट कट जाएंगे, और हरी घास की नाईं मुर्झा जाएंगे।”

इसके अलावा, हम भलाई करने में, आशावादी बने रहने और यहोवा की बाट जोहने में लगे रह सकते हैं। “बुराई को छोड़ और भलाई कर; और तू सर्वदा बना रहेगा,” भजनहार आगे कहता है। “क्योंकि यहोवा न्याय से प्रीति रखता; और अपने भक्‍तों को न तजेगा।”—भजन ३७:२७, २८.

सच्चा आशावाद प्रबल होता है!

तो फिर हमारे भविष्य के बारे में क्या कहें? बाइबल की प्रकाशितवाक्य की किताब हमें उन ‘बातों’ के बारे में बताती है “जिन का शीघ्र होना अवश्‍य है।” उनमें एक लाल रंग के घोड़े के घुड़सवार के बारे में बताया गया है जो युद्ध को सूचित करता है और ‘पृथ्वी पर से मेल उठा लेता है।’—प्रकाशितवाक्य १:१; ६:४.

पहले विश्‍वयुद्ध के दौरान ब्रिटॆन में पायी जानेवाली एक प्रसिद्ध—और आशावादी—राय थी कि यह आख़िरी सबसे बड़ा युद्ध होगा। वर्ष १९१६ में, ब्रिटॆन का राजनेता डेविड लोयड जॉर्ज ज़्यादा यथार्थवादी था। उसने कहा: “यह युद्ध, अगले युद्ध की तरह, युद्ध समाप्त करने के लिए एक युद्ध है।” (तिरछे टाइप हमारे।) वह सही था। दूसरे विश्‍वयुद्ध से बड़ी तादाद में लोगों को मारने के लिए अतिक्रूर तरीक़ों के उत्पादन में तेज़ी से बढ़ोतरी ही हुई। तब से ५० साल से भी ज़्यादा समय बीतने के बावजूद युद्ध मिट जाने का कोई आसार नज़र नहीं आता।

प्रकाशितवाक्य की उसी किताब में, हम एक और घुड़सवार के बारे में पढ़ते हैं—जो अकाल, मरी और मृत्यु का प्रतीक है। (प्रकाशितवाक्य ६:५-८) ये समय के चिन्ह के अन्य पहलू हैं।—मत्ती २४:३-८.

क्या ये निराशावाद के कारण हैं? किसी सूरत नहीं, क्योंकि दर्शन यह भी बताता है कि “एक श्‍वेत घोड़ा है, और उसका सवार धनुष लिए हुए है: और उसे एक मुकुट दिया गया, और वह जय करता हुआ निकला कि और भी जय प्राप्त करे।” (प्रकाशितवाक्य ६:२) यहाँ हम यीशु मसीह को स्वर्गीय राजा के रूप में देखते हैं जो सारी दुष्टता को मिटाता है और संसार भर में शांति और सामंजस्य क़ायम करने के लिए सवारी कर रहा है।a

मनोनीत-राजा के रूप में, पृथ्वी पर रहते वक़्त यीशु मसीह ने अपने शिष्यों को इस राज्य के लिए प्रार्थना करना सिखाया। शायद आपको भी “हे हमारे पिता,” या प्रभु की प्रार्थना करना सिखाया गया हो। इसमें हम परमेश्‍वर का राज्य आने की और स्वर्ग की तरह पृथ्वी पर उसकी इच्छा पूरी होने की प्रार्थना करते हैं।—मत्ती ६:९-१३.

इस वर्तमान रीति-व्यवस्था में पैबंद लगाने की कोशिश करने के बजाय यहोवा अपने मसीहाई राजा, मसीह यीशु के माध्यम से कार्यवाही करते हुए इसे पूरी तरह मिटा देगा। यहोवा कहता है कि इसकी जगह “मैं नया आकाश और नई पृथ्वी उत्पन्‍न करता हूं; और पहिली बातें स्मरण न रहेंगी और सोच विचार में भी न आएंगी।” स्वर्गीय राज्य सरकार के अधीन, यह पृथ्वी मानवजाति के लिए शांतिमय, सुखी घर बन जाएगी, जहाँ जीवन और काम नित्य आनंद की बात होंगे। “इसलिये जो मैं उत्पन्‍न करने पर हूं, उसके कारण तुम सदा सर्वदा मगन रहो,” यहोवा कहता है। “मेरे चुने हुए अपने कामों का पूरा लाभ उठाएंगे।” (यशायाह ६५:१७-२२) अगर आप भविष्य के बारे में अपनी आशा इस अटल प्रतिज्ञा पर लगाएँगे, तो आपके पास—अभी और हमेशा—आशावादी बने रहने का हर कारण होगा!

[फुटनोट]

a इस दर्शन की विस्तृत चर्चा के लिए, कृपया वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित पुस्तक प्रकाशितवाक्य—इसकी महान पराकाष्ठा निकट! (अंग्रेज़ी) का अध्याय १६ देखिए।

[पेज 4 पर तसवीर]

एच. जी. वॆल्स

[चित्र का श्रेय]

Corbis-Bettmann

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