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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1993
w93 12/1 पेज 22-27

परमेश्‍वरीय भय विकसित करना

“यहोवा का भय मानना, और बुराई से अलग रहना।”—नीतिवचन ३:७.

१. नीतिवचन किन लोगों के लिए लिखा गया था?

बाइबल पुस्तक नीतिवचन में आध्यात्मिक सलाह का ख़ज़ाना है। शुरूआत में यहोवा ने यह गाइड-पुस्तक अपने प्ररूपी इस्राएल राष्ट्र को निर्देशन देने के लिए प्रदान की थी। आज, यह उसके पवित्र मसीही राष्ट्र के लिए बुद्धिमत्तापूर्ण सूक्‍तियाँ प्रदान करती है, ‘जो जगत [रीति-व्यवस्था, NW] के अन्तिम समय में रहता है।’—१ कुरिन्थियों १०:११; नीतिवचन १:१-५; १ पतरस २:९.

२. नीतिवचन ३:७ की चेतावनी आज अति समयोचित क्यों है?

२ नीतिवचन ३:७ में हम पढ़ते हैं: “अपनी दृष्टि में बुद्धिमान न होना; यहोवा का भय मानना, और बुराई से अलग रहना।” हमारे प्रथम माता-पिता के समय से, जब सर्प ने हव्वा को यह प्रतिज्ञा करके प्रलोभित किया कि उन्हें “भले बुरे का ज्ञान” हो जाएगा, मात्र मानव बुद्धि मानवजाति की ज़रूरतों के उत्तर देने में असफल रही है। (उत्पत्ति ३:४, ५; १ कुरिन्थियों ३:१९, २०) इतिहास में किसी भी काल में यह इतना प्रत्यक्ष नहीं हुआ है जितना कि इस २०वीं शताब्दी—इन ‘अन्तिम दिनों’—में हुआ है जब मानवजाति, निरीश्‍वरवाद, विकासात्मक विचार के फल काटते हुए प्रजातिवाद, हिंसा, और हर क़िस्म की अनैतिकता से पीड़ित है। (२ तीमुथियुस ३:१-५, १३; २ पतरस ३:३, ४) यह ‘नई विश्‍व अव्यवस्था’ है जिसे न तो यू.एन. और न ही संसार के खंडित धर्म सुलझा सकते हैं।

३. हमारे दिन के लिए किन विकासों की भविष्यवाणी की गई थी?

३ परमेश्‍वर का भविष्यसूचक वचन हमें जानकारी देता है कि पैशाचिक दल ‘सारे संसार के राजाओं के पास निकलकर इसलिये गए हैं, कि उन्हें सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर के उस बड़े दिन की लड़ाई के लिये [उस स्थान पर] इकट्ठा करें। . . . जो इब्रानी में हर-मगिदोन कहलाता है।’ (प्रकाशितवाक्य १६:१४, १६) जल्द ही यहोवा की ओर से आतंक उन राजाओं, या शासकों पर छा जाएगा। यह उस डर के समान होगा जो कनानियों को हो गया था जब यहोशू और इस्राएली लोग उन पर न्यायदंड देने आए। (यहोशू २:९-११) लेकिन आज वह जिसका प्ररूप यहोशू था, अर्थात्‌ मसीह यीशु—“राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु”—“सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर के भयानक प्रकोप की जलजलाहट” की अभिव्यक्‍ति में ‘जाति जाति को मारेगा और वह लोहे का राजदण्ड लिये हुए उन पर राज्य करेगा।’—प्रकाशितवाक्य १९:१५, १६.

४, ५. कौन उद्धार पाएंगे, और क्यों?

४ उस समय कौन उद्धार पाएगा? वे जो बचेंगे ऐसे लोग नहीं होंगे जो डर से अभिभूत हो गए, बल्कि ऐसे लोग होंगे जिन्होंने यहोवा का एक श्रद्धापूर्ण भय विकसित किया है। अपनी ही आँखों में बुद्धिमान होने के बजाय, ये ‘बुराई से अलग रहते हैं।’ नम्रता के साथ, वे अपने मन को भली बातों से भरते हैं, ताकि बुरी बातों के लिए उनके विचारों में कोई जगह ही न रहे। वे सर्वसत्ताधारी प्रभु यहोवा के लिए एक हितकर आदर को प्रिय मानते हैं। यहोवा “सारी पृथ्वी का न्यायी” है जो उन सभी का नाश करनेवाला है जो बुराई को थामे रहते हैं, जैसे उसने अपभ्रष्ट सदोमवासियों का नाश किया था। (उत्पत्ति १८:२५) सचमुच, परमेश्‍वर के अपने लोगों के लिए “यहोवा का भय मानना, जीवन का सोता है, और उसके द्वारा लोग मृत्यु के फन्दों से बच जाते हैं।”—नीतिवचन १४:२७.

५ परमेश्‍वरीय न्याय के इस दिन में, वे सभी लोग जो यहोवा को अप्रसन्‍न करने के भय से अपने आप को पूर्ण रूप से यहोवा को अर्पित करते हैं, नीतिवचन ३:८, (NW) में लाक्षणिक रूप से बताए गए सत्य का स्पष्ट अनुभव करेंगे: “ऐसा हो कि [यहोवा का भय] तेरी नाभि के लिए चंगाई और तेरी हड्डियों के लिए ताज़गी हो।”

यहोवा का आदर करना

६. हमें नीतिवचन ३:९ का अनुपालन करने के लिए किस बात द्वारा प्रेरित होना चाहिए?

६ हमें यहोवा के प्रति अपने गुणग्राही भय, साथ ही उसके लिए तीव्र प्रेम द्वारा नीतिवचन ३:९ का अनुपालन करने के लिए प्रेरित होना चाहिए: “अपनी संपत्ति के द्वारा, और अपनी भूमि की सारी पहिली उपज दे देकर यहोवा की प्रतिष्ठा करना।” हम पर दबाव नहीं डाला जाता है कि हम अपने चढ़ावों से यहोवा का आदर करें। ये स्वेच्छा से दिए जाने चाहिए, जैसा कि निर्गमन ३५:२९ से लेकर व्यवस्थाविवरण २३:२३ तक प्राचीन इस्राएल में बलिदानों के सम्बन्ध में १२ बार सूचित किया गया है। इस बात को स्वीकार करते हुए कि हमने यहोवा के हाथों भलाई और प्रेममय-कृपा का आनन्द लिया है, यहोवा को दी ये पहली उपज हमारे सबसे उत्तम उपहार होने चाहिए। (भजन २३:६) उन्हें ‘पहिले . . . उसके राज्य और धर्म की खोज’ करते रहने का हमारा दृढ़संकल्प प्रतिबिम्बित करना चाहिए। (मत्ती ६:३३) और अपनी सम्पत्ति से यहोवा का आदर करने से क्या परिणित होता है? “इस प्रकार तेरे खत्ते भरे और पूरे रहेंगे, और तेरे रसकुण्डों से नया दाखमधु उमड़ता रहेगा।”—नीतिवचन ३:१०.

७. हमें यहोवा को कौनसी पहली उपज चढ़ानी चाहिए, और परिणाम क्या होगा?

७ हमें आशिष देने का यहोवा का मुख्य तरीक़ा आध्यात्मिक है। (मलाकी ३:१०) अतः, जो पहली उपज हम उसे चढ़ाते हैं वह मुख्यतः आध्यात्मिक होनी चाहिए। हमें उसकी इच्छा पूरी करने में अपना समय, बल और शक्‍ति का प्रयोग करना चाहिए। यह क्रमशः हमारा पोषण उसी तरह करेगा जिस तरह ऐसा क्रियाकलाप यीशु के लिए शक्‍तिदायक “भोजन” बना। (यूहन्‍ना ४:३४) हमारे आध्यात्मिक खत्ते भरे रहेंगे, और हमारा आनन्द, जिसका प्रतीक नया दाखमधु है, उमड़ता रहेगा। साथ ही, जब हम हर दिन के पर्याप्त भौतिक भोजन के लिए भरोसे से प्रार्थना करते हैं, तब हम जो कुछ हमारे पास है उसमें से उदारतापूर्वक विश्‍वव्यापी राज्य कार्य के लिए नियमित रूप से अंशदान दे सकते हैं। (मत्ती ६:११) वह सब कुछ जो हमारे पास है, जिसमें भौतिक सम्पत्ति भी सम्मिलित है, हमारे प्रेममय स्वर्गीय पिता से हमें मिला है। जिस हद तक हम इन सम्पत्तियों को उसकी स्तुति के लिए प्रयोग करते हैं, वह हम पर और आशिषें उंडेलेगा।—नीतिवचन ११:४; १ कुरिन्थियों ४:७.

प्रेम की डांट

८, ९. हमें डांट और ताड़ना को किस प्रकार लेना चाहिए?

८ नीतिवचन अध्याय ३ की ११ और १२ आयतें फिर से पिता-और-पुत्र के ख़ुशहाल सम्बन्ध के बारे में बताती हैं जो ईश्‍वरीय परिवारों में, और साथ ही यहोवा और पृथ्वी पर उसके प्रिय आध्यात्मिक बच्चों के बीच पाया जाता है। हम पढ़ते हैं: “हे मेरे पुत्र, यहोवा की शिक्षा से मुंह न मोड़ना, और जब वह तुझे डांटे, तब तू बुरा न मानना, क्योंकि यहोवा जिस से प्रेम रखता है उसको डांटता है, जैसे कि बाप उस बेटे को जिसे वह अधिक चाहता है।” संसार के लोग डांट से नफ़रत करते हैं। यहोवा के लोगों को उसका स्वागत करना चाहिए। प्रेरित पौलुस ने नीतिवचन से इन शब्दों को उल्लिखित करते हुए कहा: “हे मेरे पुत्र, प्रभु की ताड़ना को हलकी बात न जान, और जब वह तुझे घुड़के तो हियाव न छोड़। क्योंकि प्रभु, जिस से प्रेम करता है, उस की ताड़ना भी करता है; . . . और वर्तमान में हर प्रकार की ताड़ना आनन्द की नहीं, पर शोक ही की बात दिखाई पड़ती है तौभी जो उस को सहते सहते पक्के हो गए हैं, पीछे उन्हें चैन के साथ धर्म का प्रतिफल मिलता है।”—इब्रानियों १२:५, ६, ११.

९ जी हाँ, डांट और ताड़ना हम में से हरेक के प्रशिक्षण का एक ज़रूरी भाग है, चाहे यह हमें माता-पिता से या मसीही कलीसिया से मिले, या तब मिले जब हम व्यक्‍तिगत अध्ययन के दौरान शास्त्रवचनों पर मनन करते हैं। ताड़ना को सुनना हमारे लिए जीवन और मृत्यु का विषय है, जैसा कि नीतिवचन ४:१, १३ भी कहता है: “हे मेरे पुत्रो, पिता की शिक्षा सुनो, और समझ प्राप्त करने में मन लगाओ। शिक्षा को पकड़े रह, उसे छोड़ न दे; उसकी रक्षा कर, क्योंकि वही तेरा जीवन है।”

सर्वश्रेष्ठ ख़ुशी

१०, ११. नीतिवचन ३:१३-१८ के मनभावने शब्दों के कुछ पहलू क्या हैं?

१० अब आगे कितनी सुन्दर अभिव्यक्‍तियाँ हैं, सचमुच ‘सच्चाई के मनभावने और सही शब्द’! (सभोपदेशक १२:१०, NW) सुलैमान के ये उत्प्रेरित शब्द सच्ची ख़ुशी का वर्णन करते हैं। वे ऐसे शब्द हैं जिन्हें हमें अपने हृदय पर लिख लेना चाहिए। हम पढ़ते हैं:

११ “क्या ही धन्य [ख़ुश, NW] है वह मनुष्य जो बुद्धि पाए, और वह मनुष्य जो समझ प्राप्त करे, क्योंकि बुद्धि की प्राप्ति चान्दी की प्राप्ति से बड़ी, और उसका लाभ चोखे सोने के लाभ से भी उत्तम है। वह मूंगे से अधिक अनमोल है, और जितनी वस्तुओं की तू लालसा करता है, उन में से कोई भी उसके तुल्य न ठहरेगी। उसके दहिने हाथ में दीर्घायु, और उसके बाएँ हाथ में धन और महिमा हैं। उसके मार्ग मनभाऊ हैं, और उसके सब मार्ग कुशल के हैं। जो बुद्धि को ग्रहण कर लेते हैं, उनके लिए वह जीवन का वृक्ष बनती है; और जो उसको पकड़े रहते हैं, वह धन्य [ख़ुश, NW] हैं।”—नीतिवचन ३:१३-१८.

१२. बुद्धि और समझ से हमें किस प्रकार लाभ पहुँचना चाहिए?

१२ बुद्धि—नीतिवचन की पुस्तक में कितनी बार इसका ज़िक्र किया गया है, कुल मिलाकर ४६ बार! “यहोवा का भय मानना बुद्धि का आरम्भ है।” यह परमेश्‍वर के वचन के ज्ञान पर आधारित ईश्‍वरीय, व्यावहारिक बुद्धि है जो उसके लोगों को शैतान के संसार में आए ख़तरनाक तूफ़ानों से बचकर एक सुरक्षित मार्ग पर चलने में समर्थ करती है। (नीतिवचन ९:१०) समझ, जिसका ज़िक्र नीतिवचन में १९ बार किया गया है, बुद्धि की दासी है जो हमें शैतान के यंत्रों का सामना करने में मदद करती है। अपने धूर्त कार्य करने में महा विरोधी को हज़ारों साल का अनुभव है। लेकिन हमारे पास शिक्षक के रूप में अनुभव से कहीं ज़्यादा मूल्यवान चीज़ है—ईश्‍वरीय समझ, अर्थात्‌ सही और ग़लत के बीच भेद करने और सही मार्ग चुनने की योग्यता। यहोवा अपने वचन के द्वारा हमें यही सिखाता है।—नीतिवचन २:१०-१३; इफिसियों ६:११.

१३. कठिन आर्थिक समय के दौरान क्या हमारा बचाव कर सकता है, और कैसे?

१३ आज के संसार में आर्थिक अव्यवस्था यहेजकेल ७:१९ की भविष्यवाणी की पूर्ति की पूर्वसूचना है: “वे अपनी चान्दी सड़कों में फेंक देंगे, और उनका सोना अशुद्ध वस्तु ठहरेगा; यहोवा की जलन के दिन उनका सोना चान्दी उनको बचा न सकेगी।” बुद्धि और समझ की उद्धारक शक्‍ति की तुलना में पृथ्वी पर सारा भौतिक धन कुछ भी नहीं है। एक और अवसर पर बुद्धिमान राजा सुलैमान ने कहा: “बुद्धि की आड़ रुपये की आड़ का काम देता है; परन्तु ज्ञान की श्रेष्ठता यह है कि बुद्धि से उसके रखनेवालों के प्राण की रक्षा होती है।” (सभोपदेशक ७:१२) वे सचमुच ख़ुश हैं जो यहोवा के सुखद मार्गों में चलते हैं और बुद्धिमानी से “दीर्घायु,” अर्थात्‌ अनन्तकालीन जीवन का चुनाव करते हैं, जो यीशु के छुड़ौती बलिदान पर विश्‍वास करनेवाले सभी लोगों के लिए परमेश्‍वर की देन है!—नीतिवचन ३:१६; यूहन्‍ना ३:१६; १७:३.

सच्ची बुद्धि विकसित करना

१४. किन तरीक़ों से यहोवा ने अनुकरणीय बुद्धि प्रदर्शित की है?

१४ यह उचित है कि हम मानव, जो परमेश्‍वर के स्वरूप में रचे गए हैं, बुद्धि और समझ विकसित करने की कोशिश करें। ये वे गुण हैं जो यहोवा ने सृष्टि के अपने आश्‍चर्यजनक कार्य करने में स्वयं दिखाए। “यहोवा ने पृथ्वी की नेव बुद्धि ही से डाली; और स्वर्ग को समझ ही के द्वारा स्थिर किया।” (नीतिवचन ३:१९, २०) उसने जीवित प्राणियों को विकासवाद की किसी रहस्यवादी, अबोध्य प्रक्रिया द्वारा बनाना शुरू नहीं किया, बल्कि सीधे सृष्टि द्वारा, सभी को “जाति जाति के अनुसार” और एक बुद्धिमान उद्देश्‍य के लिए बनाया। (उत्पत्ति १:२५) जब अन्त में मनुष्य को अक़्ल और ऐसी क्षमताओं के साथ बनाया गया जो जानवरों से कहीं उच्च हैं, तब परमेश्‍वर के स्वर्गदूतीय पुत्रों की हर्षध्वनि स्वर्ग में बार-बार गूंजी होगी। (अय्यूब ३८:१, ४, ७ से तुलना कीजिए.) यहोवा की विवेकपूर्ण पूर्वदृष्टि, उसकी बुद्धि, और उसका प्रेम पृथ्वी पर उसके सारे उत्पादनों में स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं।—भजन १०४:२४.

१५. (क) सिर्फ़ बुद्धि विकसित करना ही क्यों काफ़ी नहीं है? (ख) नीतिवचन ३:२५, २६ द्वारा हम में क्या विश्‍वास जागना चाहिए?

१५ हमें बुद्धि और समझ के यहोवा के गुणों को सिर्फ़ विकसित ही नहीं करना है बल्कि उनको मज़बूती से थामे भी रहना है, उसके वचन के हमारे अध्ययन में कभी धीमे नहीं पड़ना है। वह हमें सलाह देता है: “हे मेरे पुत्र, ये बातें तेरी दृष्टि की ओट न होने पाएं; खरी बुद्धि और विवेक की रक्षा कर, तब इन से तुझे जीवन मिलेगा, और ये तेरे गले का हार बनेंगे।” (नीतिवचन ३:२१, २२) अतः हम सुरक्षा और मन की शान्ति में चल सकते हैं, उस दौरान भी जब “एकाएक विनाश” का दिन चोर के समान पास पहुँच रहा होगा जो शैतान के संसार पर टूट पड़ेगा। (१ थिस्सलुनीकियों ५:२, ३) स्वयं बड़े क्लेश के दौरान, “अचानक आनेवाले भय से न डरना, और जब दुष्टों पर विपत्ति आ पड़े, तब न घबराना; क्योंकि यहोवा तुझे सहारा दिया करेगा, और तेरे पांव को फन्दे में फंसने न देगा।”—नीतिवचन ३:२३-२६.

भला करने के लिए प्रेम

१६. सेवकाई में उत्साह के साथ-साथ मसीहियों से किस कार्य की माँग की जाती है?

१६ ये दिन राज्य का सुसमाचार सारे जगत में प्रचार करने में उत्साह दिखाने के हैं कि सब जातियों पर गवाही हो। लेकिन इस गवाही कार्य के साथ-साथ दूसरे मसीही कार्य भी किए जाने चाहिए, जैसे कि नीतिवचन ३:२७, २८ में वर्णित हैं: “जिनका भला करना चाहिये, यदि तुझ में शक्‍ति रहे, तो उनका भला करने से न रुकना। यदि तेरे पास देने को कुछ हो, तो अपने पड़ोसी से न कहना कि जा कल फिर आना, कल मैं तुझे दूंगा।” (याकूब २:१४-१७ से तुलना कीजिए.) क्योंकि संसार का अधिकतर भाग ग़रीबी और भुखमरी की जकड़ में है, हमारे साथी मनुष्यों को, ख़ासकर अपने आध्यात्मिक भाइयों को मदद देने के लिए आग्रही पुकारें हुई हैं। यहोवा के गवाहों ने कैसी प्रतिक्रिया दिखाई है?

१७-१९. (क) वर्ष १९९३ के दौरान कौनसी आग्रही ज़रूरत पूरी की गई, और प्रतिक्रिया क्या थी? (ख) क्या बात दिखाती है कि हमारे मुसीबत में पड़े भाई “पूरी तरह जयवन्त हैं”?

१७ एक उदाहरण लीजिए: पिछले साल के दौरान, भूतपूर्व युगोस्लाविया से मदद के लिए एक आग्रही पुकार आयी। पड़ोसी देशों के भाइयों ने आश्‍चर्यजनक रूप से प्रतिक्रिया दिखाई। पिछली सर्दियों के ठंडे महीनों के दौरान कई राहत दलों के लिए युद्ध क्षेत्र में घुसना और ज़रूरतमंद गवाहों के लिए सामयिक प्रकाशन, गर्म कपड़े, भोजन, और दवाएँ पहुँचाना संभव हुआ। एक अवसर पर, भाइयों ने १५ टन राहत सामग्री ले जाने के लिए एक परमिट के लिए अर्जी भरी, लेकिन जब उन्हें परमिट मिला, तो वह ३० टन के लिए था! आस्ट्रिया में यहोवा के गवाहों ने जल्दी से तीन और ट्रक रवाना किए। कुल मिलाकर, २५ टन सामान अपनी भावी मंज़िल तक पहुँच गया। इन आध्यात्मिक और भौतिक सम्भारों को प्राप्त करने के लिए हमारे भाई कितने प्रसन्‍न थे!

१८ उन प्राप्त करनेवालों ने किस प्रकार प्रतिक्रिया दिखाई? इस साल के शुरू में एक प्राचीन ने लिखा: “सारायेवो में भाई-बहन जीवित और स्वस्थ हैं, और सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि हम इस बेतुके युद्ध को सहने के लिए अभी भी आध्यात्मिक रूप से मज़बूत हैं। भोजन के सम्बन्ध में स्थिति बहुत कठिन थी। आपने हमारे लिए जो कोशिशें की हैं उसके लिए यहोवा आपको आशिष और प्रतिफल दे। उनकी अनुकरणीय जीवन-शैली के कारण और अधिकारियों के प्रति उनके आदर के कारण अधिकारी लोग यहोवा के गवाहों को ख़ास आदर देते हैं। जो आध्यात्मिक भोजन आपने हमारे लिए भेजा हम उसके लिए भी आभारी हैं।”—भजन १४५:१८ से तुलना कीजिए.

१९ ख़तरे में पड़े इन भाइयों ने अपनी उत्साही क्षेत्र सेवकाई से भी मूल्यांकन दिखाया है। बहुत से पड़ोसी उनके पास एक गृह बाइबल अध्ययन का निवेदन करने आते हैं। तूज़ला शहर में, जहाँ ५ टन राहत भोजन भेजा गया था, ४० प्रकाशकों में से हरेक ने उस महीने सेवा में औसतन २५ घंटे रिपोर्ट किए, और इस प्रकार कलीसिया में नौ पायनियरों को अच्छा समर्थन दिया। यीशु की मृत्यु के स्मारक पर उनकी उपस्थिति २४३ थी, जो कि उल्लेखनीय है। ये प्रिय भाई सचमुच “उसके द्वारा जिस ने हम से प्रेम किया है, पूरी तरह जयवन्त हैं।”—रोमियों ८:३७, NW.

२०. भूतपूर्व सोवियत संघ में क्या “बराबरी” हुई है?

२० भूतपूर्व सोवियत संघ में बड़ी मात्रा में राहत भोजन और गर्म कपड़े भेजने में जो उदारता दिखाई गई है उसी की बराबरी में वहाँ के भाइयों का भी उत्साह रहा है। उदाहरण के लिए, मॉस्को में पिछले साल ३,५०० की तुलना में इस साल स्मारक उपस्थिति ७,५४९ थी। इसी अवधि के दौरान, उस शहर में कलीसियाएँ १२ से १६ हो गईं। पूरे भूतपूर्व सोवियत संघ में (बाल्टिक राज्यों को छोड़कर) कलीसियाओं में १४ प्रतिशत, राज्य प्रकाशकों में २५ प्रतिशत, और पायनियरों में ७४ प्रतिशत वृद्धि हुई। उत्साह और आत्म-बलिदान की क्या ही भावना! यह एक व्यक्‍ति को पहली शताब्दी की याद दिलाती है जब एक “बराबरी” हुई। जिन मसीहियों के पास आध्यात्मिक और भौतिक सम्पत्ति थी उन्होंने उदारतापूर्वक उनको उपहार दिए जो कम अनुकूल जगहों पर थे, और इन पीड़ित जनों का उत्साह दाताओं के लिए आनन्द और प्रोत्साहन लाया।—२ कुरिन्थियों ८:१४.

बुराई से बैर कीजिए!

२१. नीतिवचन अध्याय ३ के समाप्ति शब्दों में बुद्धिमानों और मूर्खों के बीच विषमता कैसे की गई है?

२१ नीतिवचन का तीसरा अध्याय आगे विषमताओं की एक श्रृंखला प्रस्तुत करता है, और इस सलाह के साथ समाप्त होता है: “उपद्रवी पुरुष के विषय में डाह न करना, न उसकी सी चाल चलना; क्योंकि यहोवा कुटिल से घृणा करता है, परन्तु वह अपना भेद सीधे लोगों पर खोलता है। दुष्ट के घर पर यहोवा का शाप और धर्मियों के वासस्थान पर उसकी आशीष होती है। ठट्ठा करनेवालों से वह निश्‍चय ठट्ठा करता है और दीनों पर अनुग्रह करता है। बुद्धिमान महिमा को पाएंगे और मूर्खों की बढ़ती अपमान ही की होगी।”—नीतिवचन ३:२९-३५.

२२. (क) हम किस तरह अपनी गिनती मूर्खों में कराने से बच सकते हैं? (ख) बुद्धिमान किस बात से बैर करते हैं, और वे क्या विकसित करते हैं, और प्रतिफल क्या होता है?

२२ हम किस तरह अपनी गिनती मूर्खों में कराने से बच सकते हैं? हमें बुराई से बैर करना सीखना चाहिए, जी हाँ, जिस बात से यहोवा घृणा करता है उस बात से हमें घृणा करनी चाहिए—इस हिंसक, रक्‍तदोषी संसार के सारे कुटिल मार्गों से। (नीतिवचन ६:१६-१९ भी देखिए.) विषमता में, जो अच्छा है हमें उसे विकसित करना चाहिए—ईमानदारी, धार्मिकता, और नम्रता—ताकि नम्रता और यहोवा के भय से हम “धन, महिमा और जीवन” प्राप्त कर सकें। (नीतिवचन २२:४) यह प्रतिफल हम सब के लिए होगा जो निष्ठापूर्वक इस सलाह पर अमल करते हैं: “अपने सम्पूर्ण हृदय से यहोवा पर भरोसा रखना।”—NW.

आपकी टिप्पणी क्या है?

▫ इस अध्ययन का मूल-पाठ आज किस प्रकार लागू होता है?

▫ हम यहोवा का आदर कैसे कर सकते हैं?

▫ हमें ताड़ना को क्यों तुच्छ नहीं जानना चाहिए?

▫ सर्वश्रेष्ठ ख़ुशी कहाँ मिलती है?

▫ हम किस प्रकार भलाई से प्रेम और बुराई से बैर कर सकते हैं?

[पेज 24 पर तसवीरें]

जो लोग यहोवा को बलिदान में अपना सर्वोत्तम चढ़ाते हैं उन्हें बहुत आशिष मिलेगी

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