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  • क्या आप यहोवा के दोस्त बन सकते हैं?
    खुशी से जीएँ हमेशा के लिए!—ईश्‍वर से जानें
    • 3. यहोवा अपने दोस्तों से क्या उम्मीद करता है?

      यहोवा सभी लोगों से प्यार करता है, पर दोस्ती सिर्फ सीधे-सच्चे लोगों से करता है। (नीतिवचन 3:32) यहोवा अपने दोस्तों से उम्मीद करता है कि वे ऐसे काम करें जो उसके हिसाब से सही हैं और ऐसे काम न करें जो उसके हिसाब से गलत हैं। पर कुछ लोगों को लगता है कि यहोवा के बताए तरीके से जीना बहुत मुश्‍किल है। लेकिन यहोवा दयालु है और हमारी कमज़ोरियाँ समझता है। अगर हम सच्चे दिल से उससे प्यार करें और उसकी बात मानने की पूरी कोशिश करें, तो वह हमें अपना दोस्त मानेगा।—भजन 147:11; प्रेषितों 10:34, 35.

  • सब बातों में ईमानदार रहिए
    खुशी से जीएँ हमेशा के लिए!—ईश्‍वर से जानें
    • सब बातों में ईमानदार रहिए

      हर कोई अपने दोस्तों से चाहता है कि वे सच बोलें और ईमानदार हों। यहोवा भी अपने दोस्तों से यही चाहता है। लेकिन इस दुनिया में ईमानदार रहना आसान नहीं। फिर भी सब बातों में ईमानदार रहने के क्या फायदे हैं? आइए जानें।

      1. ईमानदार रहने की सबसे बड़ी वजह क्या है?

      जब हम दूसरों से सच बोलते हैं और ईमानदार रहते हैं, तो हम दिखाते हैं कि हमें यहोवा से प्यार है और हम उसका आदर करते हैं। ज़रा सोचिए, यहोवा हमारे बारे में सबकुछ जानता है, हम क्या सोचते हैं, क्या करते हैं, उसे सब पता है। (इब्रानियों 4:13) जब वह देखता है कि हम हर हाल में ईमानदार रहते हैं, तो उसे बहुत खुशी होती है। उसके वचन में लिखा है, “यहोवा कपटी लोगों से नफरत करता है, मगर सीधे-सच्चे [या ईमानदार] लोगों से गहरी दोस्ती रखता है।”​—नीतिवचन 3:32.

      2. हर दिन के कामों में हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम ईमानदार हैं?

      यहोवा चाहता है कि हम ‘एक-दूसरे से सच बोलें।’ (जकरयाह 8:16, 17) इसका मतलब, हम अपने परिवारवालों, मसीही भाई-बहनों, साथ काम करनेवालों और सरकारी अधिकारियों से बात करते वक्‍त झूठ नहीं बोलते, न ही अपनी बातों से उन्हें गुमराह करते हैं। हम कभी किसी की चीज़ें नहीं चुराते और न ही धोखा देते हैं। (नीतिवचन 24:28 और इफिसियों 4:28 पढ़िए।) इसके अलावा, सरकार जो भी कर या टैक्स भरने की माँग करती है, हम उसे भरते हैं। (रोमियों 13:5-7) ये कुछ तरीके हैं जिनसे हम दिखा सकते हैं कि हम “सब बातों में ईमानदारी से काम” करते हैं।​—इब्रानियों 13:18.

      3. ईमानदार रहने से क्या फायदे होते हैं?

      जब हम अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं, तो लोग हम पर भरोसा करते हैं। मंडली में भी भाई-बहन हम पर भरोसा कर पाते हैं और इस वजह से हमारे बीच प्यार और अपनापन रहता है। ईमानदार रहने से हमारा ज़मीर साफ रहता है। यही नहीं, हम ‘अपने उद्धारकर्ता परमेश्‍वर की शिक्षा की शोभा भी बढ़ाते हैं’ और हमारी ईमानदारी देखकर लोग यहोवा की तरफ खिंचे चले आते हैं।​—तीतुस 2:10.

      और जानिए

      जब आप ईमानदार रहते हैं, तो यहोवा को कैसा लगता है? इससे आपको क्या फायदे होते हैं? और आप किन अलग-अलग मामलों में ईमानदार रह सकते हैं? आइए जानें।

      4. हमारी ईमानदारी देखकर यहोवा खुश होता है

      भजन 44:21 और मलाकी 3:16 पढ़िए। फिर आगे दिए सवालों पर चर्चा कीजिए:

      • यह सोचना क्यों सही नहीं होगा कि हम यहोवा से सच छिपा सकते हैं?

      • जब सच बोलना मुश्‍किल होता है, फिर भी हम सच बोलते हैं, तो यहोवा को कैसा लगता है?

      एक पिता अपने घुटनों के बल बैठा है और अपनी बच्ची की सुन रहा है। पास में एक टेबल पर गिलास पलटा हुआ है और सारा जूस गिर गया है।

      जब एक बच्चा सच बोलता है, तो उसके माँ-बाप को खुशी होती है। जब हम सच बोलते हैं, तो यहोवा को खुशी होती है

      5. हर हाल में ईमानदार रहिए

      बहुत-से लोगों को लगता है कि हमेशा ईमानदार रहने में समझदारी नहीं है। पर आइए देखें कि हमें हर हाल में ईमानदार क्यों रहना चाहिए। वीडियो देखिए।

      वीडियो: हमें किन बातों से खुशी मिल सकती है?​—साफ ज़मीर  (2:32)

      “हमें किन बातों से खुशी मिल सकती है?​—साफ ज़मीर” नाम के वीडियो का एक दृश्‍य। बेन अपने बॉस को सच-सच बताता है कि उसकी गलती से कंपनी की महँगी मशीन खराब हो गयी। फिर दोनों हाथ मिलाते हैं।

      इब्रानियों 13:18 पढ़िए। फिर आगे दिए सवालों पर चर्चा कीजिए:

      • हम अपने परिवारवालों के साथ किस तरह ईमानदारी से पेश आ सकते हैं?

      • हम काम की जगह या स्कूल में कैसे ईमानदार रह सकते हैं?

      • हम दूसरे हालात में कैसे ईमानदारी से काम कर सकते हैं?

      6. ईमानदार रहने से हमें फायदे होते हैं

      ईमानदार रहने से हमें शायद मुश्‍किलों का सामना करना पड़े, लेकिन आगे चलकर हमें हमेशा फायदा ही होता है। भजन 34:12-16 पढ़िए। फिर आगे दिए सवाल पर चर्चा कीजिए:

      • ईमानदार रहने से आपको क्या फायदे हो सकते हैं?

      1. एक पति-पत्नी साथ में चाय पी रहे हैं और बातें कर रहे हैं। 2. एक मेकैनिक को उसका बॉस शाबाशी दे रहा है। 3. एक आदमी एक पुलिस अफसर को अपना पहचान-पत्र दिखा रहा है।
      1. 1. जब पति-पत्नी एक-दूसरे से सच बोलते हैं, तो उनका रिश्‍ता मज़बूत होता है

      2. 2. जब एक व्यक्‍ति ईमानदारी से काम करता है, तो वह अपने मालिक का भरोसा जीत पाता है

      3. 3. जब एक नागरिक पूरी ईमानदारी से कानून का पालन करता है, तो वह अधिकारियों की नज़र में एक अच्छा नाम कमाता है

      कुछ लोग कहते हैं: “जिस झूठ से किसी का भला हो, उसे झूठ नहीं कहते।”

      • आप क्यों मानते हैं कि यहोवा हर तरह के झूठ से नफरत करता है?

      अब तक हमने सीखा

      यहोवा चाहता है कि उसके दोस्त हमेशा सच बोलें और हर काम ईमानदारी से करें।

      आप क्या कहेंगे?

      • हम किन तरीकों से दिखा सकते हैं कि हम ईमानदार हैं?

      • यह सोचना क्यों सही नहीं होगा कि हम यहोवा से सच छिपा सकते हैं?

      • आप क्यों हर हाल में ईमानदार रहना चाहेंगे?

      लक्ष्य

      ये भी देखें

      माता-पिता अपने बच्चों को सच बोलना कैसे सिखा सकते हैं?

      सच बोलिए  (1:44)

      अपने वादों को निभाने के क्या अच्छे नतीजे होते हैं?

      वादे निभाएँ, आशीषें पाएँ  (9:09)

      हम जो कर या टैक्स भरते हैं, उसका गलत इस्तेमाल हो सकता है, फिर भी हमें टैक्स क्यों देना चाहिए? आइए जानें।

      “क्या टैक्स देना ज़रूरी है?” (प्रहरीदुर्ग  लेख)

      एक आदमी पहले बेईमानी की ज़िंदगी जीता था। किस बात ने उसकी मदद की कि वह खुद को बदले और ईमानदारी की ज़िंदगी जीए? आइए जानें।

      “मैंने जाना कि यहोवा दयालु है और माफ करनेवाला है” (प्रहरीदुर्ग,  जुलाई-सितंबर, 2015)

  • सोच-समझकर दोस्त बनाइए
    खुशी से जीएँ हमेशा के लिए!—ईश्‍वर से जानें
    • 2. आप जिस तरह के लोगों से दोस्ती करते हैं, उससे यहोवा को कैसा लगता है?

      यहोवा हर किसी को अपना दोस्त नहीं मानता। वह सिर्फ उन लोगों से गहरी दोस्ती रखता है जो सीधे-सच्चे हैं। (नीतिवचन 3:32) ज़रा सोचिए, अगर हम उन लोगों से दोस्ती करें जो यहोवा से प्यार ही नहीं करते, तो उसे कैसा लगेगा? उसे बहुत ठेस पहुँचेगी। (याकूब 4:4 पढ़िए।) लेकिन अगर हम बुरी संगति से दूर रहें और उन लोगों से दोस्ती करें जो यहोवा से प्यार करते हैं, तो यहोवा खुश होगा और हमें अपना दोस्त मानेगा।​—भजन 15:1-4.

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