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  • अपनी ज़िंदगी को अनमोल बनाइए

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  • अपनी ज़िंदगी को अनमोल बनाइए
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
w98 8/15 पेज 8-9

अपनी ज़िंदगी को अनमोल बनाइए

पिता बिस्तर पर पड़े-पड़े अपने दिन गिन रहा था, क्योंकि उसे कैंसर हो गया था। वह एक बढ़ई था। उसका बेटा दुकान पर था और अपने पिता के औजारों को सरिया रहा था। ऐसा करते समय, वह उन खूबसूरत चीज़ों के बारे में सोचने लगा, जिन्हें उसके पिता ने इन औज़ारों से बनाया था। हालाँकि दुकान घर के बगल में थी, वह जानता था कि अब उसका पिता यहाँ फिर कभी कदम नहीं रखेगा, इन औज़ारों को फिर कभी हाथ नहीं लगाएगा। एक ज़माना था जब वह बड़ी कुशलता से इन औज़ारों को इस्तेमाल करता था। लेकिन अब वह ज़माना नहीं रहा।

बेटे के मन में सभोपदेशक ९:१० की आयत याद आयी: “जो काम तुझे मिले उसे अपनी शक्‍ति भर करना, क्योंकि अधोलोक [कब्र] में जहां तू जानेवाला है, न काम न युक्‍ति न ज्ञान और न बुद्धि है।” वह इस आयत को भली-भाँति जानता था। उसने दूसरों को मौत की निष्क्रिय दशा के बारे में बाइबल की सच्चाई सिखाते वक्‍त इस आयत को कई बार इस्तेमाल किया था। लेकिन अब उसे इस बात का एहसास हुआ कि सुलैमान की बातों में कितना दम है—हमें जब तक हो सके उतना अर्थपूर्ण ज़िंदगी बितानी चाहिए और उसका मज़ा लूटना चाहिए, क्योंकि एक समय ऐसा भी आएगा जब हम ये सब नहीं कर सकेंगे।

ज़िंदगी का मज़ा लूटिए

सभोपदेशक की पूरी पुस्तक में बुद्धिमान राजा सुलैमान ने पढ़नेवालों को ज़िंदगी का मज़ा लूटने के लिए प्रोत्साहित किया है। अध्याय ३ की मिसाल लीजिए जो कहता है: “मैं ने जान लिया है कि मनुष्यों के लिये आनन्द करने और जीवन भर भलाई करने के सिवाय, और कुछ भी अच्छा नहीं; और यह भी परमेश्‍वर का दान है कि मनुष्य खाए-पीए और अपने सब परिश्रम में सुखी रहे।”—सभोपदेशक ३:१२, १३.

सुलैमान इस विचार को फिर से कहने के लिए परमेश्‍वर द्वारा प्रेरित हुआ: “सुन, जो भली बात मैं ने देखी है, वरन जो उचित है, वह यह कि मनुष्य खाए और पीए और अपने परिश्रम से जो वह धरती पर करता है, अपनी सारी आयु भर जो परमेश्‍वर ने उसे दी है, सुखी रहे; क्योंकि उसका भाग यही है।”—सभोपदेशक ५:१८.

इसी तरह, वह युवाओं को प्रोत्साहित करता है: “हे जवान, अपनी जवानी में आनन्द कर, और अपनी जवानी के दिनों में मगन रह; अपनी मनमानी कर और अपनी आंखों की दृष्टि के अनुसार चल।” (सभोपदेशक ११:९क) अपनी जवानी के दमखम और जोश का पूरा-पूरा मज़ा लूटना कितनी अच्छी बात है!—नीतिवचन २०:२९.

“अपने सृजनहार को स्मरण रख”

बेशक, सुलैमान का मतलब यह नहीं है कि उन सभी चीज़ों के पीछे भागना अक्लमंदी होगी जो शायद हमारे दिल या नज़रों को लुभाती हैं। (१ यूहन्‍ना २:१६ से तुलना कीजिए।) यह बात उसके अगले शब्दों से साफ ज़ाहिर होती है: “परन्तु यह जान रख कि इन सब [चीज़ों] के विषय [जो तेरे दिल को खुश करती हैं] परमेश्‍वर तेरा न्याय करेगा।” (सभोपदेशक ११:९ख) चाहे हमारी उम्र जो भी हो, हमें याद रखना चाहिए कि परमेश्‍वर नज़र रखता है कि हम अपनी ज़िंदगी का कैसा इस्तेमाल करते हैं और वह इसी की बिना पर हमारा न्याय करेगा।

ऐसा तर्क करना कितनी बेवकूफी होगी कि हम अभी मौज-मस्ती करके और बाद में ढलती उम्र में परमेश्‍वर की भक्‍ति कर सकते हैं! हमारी ज़िंदगी का कोई भरोसा नहीं है। यदि होता भी, तो भी उम्र की साँझ में परमेश्‍वर की सेवा करना ज़्यादा आसान नहीं होता। इस बात की सच्चाई को समझते हुए सुलैमान लिखता है: “अपनी जवानी के दिनों में अपने सृजनहार को स्मरण रख, इस से पहिले कि विपत्ति के दिन और वे वर्ष आएं, जिन में तू कहे कि मेरा मन इन में नहीं लगता।”—सभोपदेशक १२:१.

उम्र की साँझ अपनी ही मुसीबतें लेकर आती है। इसके बाद सुलैमान लाक्षणिक शब्दों में बुढ़ापे के असर का वर्णन करता है। हाथ-पैर काँपने लगते हैं, टाँगें कमज़ोर पड़ जाती हैं और दाँत गिरने लगते हैं। बाल सफेद होकर झड़ने लगते हैं। नींद इतनी हलकी होती है कि चिड़ियों की चहक से भी व्यक्‍ति उठ जाता है। देखने, सुनने, स्पर्श करने, सूँघने और चखने की शक्‍ति सब कमज़ोर पड़ जाती हैं। शरीर कमज़ोर हो जाने की वज़ह से कहीं भी गिर पड़ने और दूसरे खतरों का ‘डर’ रहता है। आखिरकार वह मौत के आगोश में चला जाता है।—सभोपदेशक १२:२-७.

यदि व्यक्‍ति ने अपनी जवानी के समय ‘अपने सृजनहार को स्मरण नहीं रखा’ था, तो उसके लिए बुढ़ापा खासकर विपत्ति भरा होता है। चूँकि उसने अपनी ज़िंदगी यूँ ही बरबाद कर दी है, अब उम्र के साँझ होने पर उसका ‘मन नहीं लगता।’ भक्‍तिहीन जीवन भी शायद बुढ़ापे की समस्याओं और पीड़ाओं को बढ़ा दे। (नीतिवचन ५:३-११) दुःख की बात है कि ऐसे लोग जब आगे की ओर ताकते हैं, तो उन्हें कुछ और नहीं सिर्फ अपनी कब्र नज़र आती है।

ढलती उम्र में आनंद मनाना

इसका अर्थ यह तो नहीं होता कि उम्रदराज़ लोग ज़िंदगी का मज़ा नहीं लूट सकते। बाइबल में, ‘जीवन के दिन और वर्ष के बढ़ने’ का नाता परमेश्‍वर की आशीष से भी जोड़ा गया है। (नीतिवचन ३:१, २, NHT) यहोवा ने अपने मित्र इब्राहीम से कहा: “तुझे पूरे बुढ़ापे में मिट्टी दी जाएगी।” (उत्पत्ति १५:१५) बुढ़ापे की असुविधाओं के बावजूद, इब्राहीम को अपनी ढलती उम्र में शांति और अमनचैन मिला था। पलटकर देखने पर उसने पाया कि उसने यहोवा को समर्पित जीवन जीया था जिससे उसे संतुष्टि मिली। साथ ही उसने “स्थिर नेववाले नगर,” अर्थात्‌ परमेश्‍वर के राज्य की ओर पूरे विश्‍वास के साथ आस लगायी। (इब्रानियों ११:१०) इस प्रकार, वह ‘पूर्ण वृद्धावस्था में व सन्तुष्ट जीवन बिताकर’ मर गया।—उत्पत्ति २५:८, NHT.

इसी वज़ह से सुलैमान ने प्रोत्साहित किया: “यदि मनुष्य बहुत वर्ष जीवित रहे, तो उन सभों में आनन्दित रहे।” (सभोपदेशक ११:८) चाहे हम जवान हों या बूढ़े, सच्चा आनंद परमेश्‍वर के साथ हमारे रिश्‍ते से जुड़ा हुआ है।

दुकान पर अपने पिता का आखिरी औज़ार रखते हुए इस युवक ने इन सब बातों के बारे में विचार किया। वह अपने जान-पहचान के उन सभी लोगों के बारे में सोचने लगा जिन्होंने अपनी ज़िंदगी का बेहतरीन इस्तेमाल करने की कोशिश तो की लेकिन उन्हें कोई खुशी नहीं मिली क्योंकि उनका अपने सृष्टिकर्ता के साथ कोई रिश्‍ता नहीं था। यह कितना उपयुक्‍त लगता है कि ज़िंदगी में आनंद मनाने का प्रोत्साहन देने के बाद, सुलैमान ने सभी बातों का निचोड़ इन शब्दों में दिया: “सब कुछ सुना गया; अन्त की बात यह है कि परमेश्‍वर का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन कर; क्योंकि मनुष्य का सम्पूर्ण कर्त्तव्य यही है”!—सभोपदेशक १२:१३.

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