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यहोवा की सेवा में आनन्दित युवजन

“बच्चा भी अपने कामों से जाना जाता है, कि उसका काम पवित्र और सीधा है, या नहीं।” —नीतिवचन २०:११, न्यू इंटरनॅशनल वर्शन.

१. बाइबल शमूएल के बारे में जो उल्लेखनीय बातें कहती है, उन में से कुछेक बातें क्या हैं?

नन्हा शमूएल सिर्फ़ तीन से पाँच वर्ष का रहा होगा जब वह शीलो नगर में यहोवा के भवन में “सेवा टहल” करने लगा। उसका एक काम “यहोवा के भवन के किवाड़ों” को खोलना था। बाइबल कहती है कि “शमूएल बढ़ता गया और यहोवा और मनुष्य दोनों उस से प्रसन्‍न रहते थे।” जब वह बड़ा हुआ, तब उसने इस्राएल को सच्ची उपासना की ओर फिराया। उसने “जीवन भर” परमेश्‍वर की सेवा की। और जब वह ‘बूढ़ा हो गया और उसके बाल उजले हो गए थे,’ तब भी वह लोगों को ‘यहोवा का भय मानने, और सच्चाई से उनकी उपासना करने’ के लिए प्रोत्साहित कर रहा था। क्या यह बहुत अच्छा न होगा अगर लोग आपके बारे में भी ऐसी बढ़िया बातें कह सकेंगे, उसी तरह जैसे बाइबल शमूएल के बारे में कहती है?—१ शमूएल १:२४; २:१८, २६; ३:१५; ७:२-४, १५; १२:२, २४.

२. आज यहोवा के लोगों की सभाओं में छोटे बच्चे क्या सीखते हैं?

२ अगर आप यहोवा के एक गवाह हैं या आप उनकी मसीही सभाओं में उपस्थित होते हैं, तो जिस किंग्डम हॉल में इस पाठ का अध्ययन हो रहा है, वहाँ आपकी चारों ओर नज़र दौड़ाइए। आप हर उम्र के लोगों को देखते हैं। संभवतः वहाँ ऐसे लोग हैं जो अभी ‘बूढ़े और जिनके बाल उजले’ हो चुके हैं। वहाँ माता-पिता, युवजन, और छोटे बच्चे, तथा गोद के बच्चे भी हैं। क्या सबसे छोटे बच्चे अभी से सीख रहे हैं? जी हाँ। आप ऐसे लोगों से ज़रा पूछिए, जिन्हें ऐसी सभाओं में उनके बालपन से ही लाया गया। वे आपको सच-सच बताएँगे कि उनके बचपन से, वे परमेश्‍वर का आदर करना, उनकी प्रजा से प्रेम करना, और उन जगहों के लिए क़दर दिखाना, जहाँ परमेश्‍वर की उपासना की जाती है, सीख रहे थे। जैसे-जैसे समय गुज़रता है, छोटे बच्चे आश्‍चर्यजनक सच्चाइयाँ सीखते हैं। कई युवजन, ज्ञान और क़दर में बढ़ने के बाद, उन ‘जवानों, और कुमारियों, पुरनियों और बालकों’ का भाग बन जाते हैं, जिन को भजनहारे ने “यहोवा के नाम की स्तुति” करने के लिए प्रोत्साहित किया, “क्योंकि केवल उसी का नाम महान है।”—भजन १४८:१२, १३.

३. यह कैसा है कि जो युवजन बाइबल के बारे में जानते हैं, ज़िन्दगी के बारे में उनका उन युवाओं से अलग विचार है, जो बाइबल नहीं जानते हैं?

३ अगर आप एक ऐसे युवा व्यक्‍ति हैं, जिनके माता-पिता आपको नियमित रूप से ऐसी सभाओं में ले आते हैं, तो आप ख़ास तौर से धन्य हैं। कई दूसरे युवजन दुनिया की समस्याओं से परेशान हैं। कुछेक शायद डरते होंगे कि मनुष्य पृथ्वी को नष्ट कर देंगे। आप जानते हैं कि परमेश्‍वर वैसा होने नहीं देंगे, और कि वह मनुष्यों को इस सुन्दर ग्रह को तबाह करते रहने नहीं देंगे। उस तरह होने देने के बजाय, बाइबल के अनुसार, परमेश्‍वर ‘पृथ्वी के बिगाड़नेवालों का नाश कर देंगे।’ आप जानते हैं कि बाइबल वादा करती है कि परमेश्‍वर की धर्मी नयी दुनिया में एक उज्ज्वल भविष्य नज़दीक़ है।—प्रकाशितवाक्य ११:१८; भजन ३७:२९; २ पतरस ३:१३.

आपका अपना विश्‍वास

४. परमेश्‍वर के मार्ग जानने से युवजन पर कैसी ज़िम्मेदारी आती है, और किस तरह नन्हा शमूएल इसका एक बढ़िया मिसाल था?

४ पहले-पहले, शायद मसीही सच्चाई के मार्ग पर चलना आपके माता-पिता का लक्ष्य रहा होगा। शायद आप इसलिए मसीही सभाओं में आते थे कि वे आपको ले आते थे, और आपने ईश्‍वरीय सेवा में भाग सिर्फ़ इसीलिए लिया होगा कि उन्होंने ऐसा किया। फिर भी, जैसे-जैसे समय गुज़रता जाता है, यहोवा की सेवा और आज्ञापालन करना आपका अपना हर्ष बन सकता है। नन्हे शमूएल की माता ने उसे सही रास्ते पर शुरू तो कराया, लेकिन उसको व्यक्‍तिगत रूप से उस पर चलना था। हम पढ़ते हैं: “बच्चा भी अपने कामों से जाना जाता है, कि उसका काम पवित्र और सीधा है, या नहीं।”—नीतिवचन २०:११, न्यू.इंट.व.

५. (अ) किस बात में बाइबल सबसे ज़्यादा मूल्यवान्‌ है? (ब) पौलुस ने तीमुथियुस को परमेश्‍वर के लिखित वचन के महत्त्व के बारे में क्या बताया?

५ परमेश्‍वर हम से क्या चाहते हैं, यह धर्मशास्त्रों में हमें बताया गया है। इन में बहुत सारी जानकारी दी जाकर, जिससे हमारा बहुत फ़ायदा हो सकता है, स्पष्ट रूप से बताया गया है कि हम किस तरह उन्हें प्रसन्‍न कर सकते हैं। प्रेरित पौलुस ने अपने युवा सहायक तीमुथियुस से कहा: “सारा पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म में शिक्षा देने के लिए लाभदायक है, ताकि परमेश्‍वर का जन पूरी तरह से सक्षम, और हर एक भले काम के लिए तत्पर हो।”—२ तीमुथियुस ३:१६, १७, न्यू.व.

६. नीतिवचन की किताब ज्ञान और ईश्‍वरीय बुद्धि के महत्त्व के बारे में क्या कहती है?

६ बाइबल हमें ‘शिक्षा की सुनने और बुद्धिमान हो जाने’ के लिए कहती है। यह परमेश्‍वर की आज्ञाओं को ‘अपने हृदय से लगाए रखने,’ ‘अक़्ल के लिए अति यत्न से पुकारने,’ और जिस तरह आप छिपाए गए क़ीमती ख़ज़ाने के लिए खोज करेंगे, उस तरह समझ की ‘खोज में लगे रहने’ के लिए कहती है। अगर आप इस सलाह पर अमल करेंगे, तो आप ‘यहोवा के भय को समझेंगे और परमेश्‍वर का ज्ञान आपको प्राप्त होगा।” हम यह सलाह भी पाते हैं: “अब हे मेरे पुत्रों, मेरी सुनो; क्या ही धन्य हैं वे जो मेरे मार्ग को पकड़े रहते हैं। शिक्षा को सुनो, और बुद्धिमान हो जाओ, उसके विषय में अनसुनी न करो। क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो मेरी सुनता . . . है। क्योंकि जो मुझे पाता है, वह जीवन को पाता है, और यहोवा उस से प्रसन्‍न होता है।” क्या आप बाइबल को इतना क़ीमती मानते हैं कि आप उस में कही गयी बातों को सीखने के लिए उस तरह का यत्न करेंगे?—नीतिवचन २:१-५, न्यू.व.; ८:३२-३५.

ज्ञान हासिल कीजिए

७. हमें ऐसी कौनसी बातें सीखनी चाहिए जो सबसे ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हैं?

७ कुछ युवजन खेल-कूद के सारे आँकड़े जानते हैं, या वे आपको अपने सबसे प्रिय संगीत ग्रुप के बारे में सब कुछ बता सकेंगे। उन्हें इन बातों को सीखना और याद करना आसान लगता है इसलिए कि वे उन में दिलचस्पी रखते हैं। लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण सवाल यह है, कि वे परमेश्‍वर के बारे में क्या जानते हैं? ज़रा सोचिए, उन्होंने क्या-क्या किया है। परमेश्‍वर ने विश्‍व को बनाया। उन्होंने घटनाओं के घटित होने से बहुत पहले पूर्वबतलाया कि मनुष्य क्या करनेवाले थे और क्या होनेवाला था। बाइबल हमें न सिर्फ़ परमेश्‍वर के बारे में बताती है, परन्तु यह हमें सिखाती है कि हम उन्हें किस तरह प्रसन्‍न कर सकते हैं। यह हमें दिखाती है कि किस तरह अभी हमारा जीवन आनन्दित हो सकता है और किस तरह हम उनकी धर्मी नयी दुनिया में अनन्त जीवन पा सकते हैं। किसने खेल जीता जानने या उन संगीतकारों के नाम, जिन्हें लोग जल्दी ही भूला देंगे, सीखने से क्या यह बात कहीं ज़्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं?—यशायाह ४२:५, ९; ४६:९, १०; आमोस ३:७.

८. दोनों योशिय्याह और यीशु ने कौनसा उत्तम मिसाल पेश किया?

८ जब युवा राजा योशिय्याह १५ साल का था, वह “अपने मूलपुरुष दाऊद के परमेश्‍वर की खोज करने लगा।” जब यीशु १२ साल का था, वह “मंदिर में उपदेशकों के बीच में बैठे, उन की सुनते और उन से प्रश्‍न करते हुए पाया” गया।a आपकी उम्र चाहे जो हो, क्या आपने, योशिय्याह और यीशु की तरह, परमेश्‍वर ने क्या-क्या किया है और अभी क्या करेंगे, इन बातों को सीखने में कोई वास्तविक दिलचस्पी विकसित की है?—२ इतिहास ३४:३; लूका २:४६.

९. (अ) अनेक युवजनों को कौनसी समस्या है? (ब) पढ़ना और अध्ययन करना किस से आसान बन सकता है, और क्या आपने इस बात को व्यक्‍तिगत रूप से सच पाया है?

९ परन्तु, आप शायद कहेंगे: ‘अध्ययन करना मेहनत का काम है।’ छोटे और बड़े, अनेक लोगों ने पर्याप्त मात्रा में पढ़ा ही नहीं है कि पढ़ना आसान बन जाए। आप जितना ज़्यादा पढ़ेंगे, पढ़ना उतना ही ज़्यादा आसान बन जाएगा। आप जितना ज़्यादा अभ्यास करेंगे, सीखना उतना ही ज़्यादा आसान बन जाता है। आप जो कुछ भी जानते हैं, उस से आप नए विचार जोड़ते हैं, और इस प्रकार उन बातों को समझना और याद रखना आसान बन जाता है।

१०. (अ) आप मसीही सभाओं से अधिक लाभ किस तरह उठा सकते हैं? (ब) इस संबंध में आपका अपना अनुभव क्या रहा है?

१० किस बात से आपको परमेश्‍वर के बारे में ज़्यादा सीखने के लिए मदद होगी? शायद आप मसीही सभाओं में आने में ज़्यादा नियमित हो सकते हैं। क्या आप पहले से तैयारी कर सकते और वास्तव में हिस्सा ले सकते हैं? उदाहरणार्थ, क्या इस पाठ में उन शास्त्रपदों को, जिनका ज़िक्र तो किया गया है परन्तु उद्धरण नहीं किया गया, खोलकर पढ़ने के द्वारा आपको अधिक गहरा ज्ञान प्राप्त होगा? क्या आपने उपान्त में एक-दो शब्द लिखे हैं, आपको याद दिलाने के लिए कि इन में से प्रत्येक शास्त्रपद परिच्छेद या पाठ के अर्थ को किस तरह बढ़ाता है? क्या आप धर्मशास्त्रीय विचार-विमर्श के लिए अपनी क़दरदानी को दर्शानेवाली टिप्पणी में इन में से किसी एक शास्त्रपद को सम्मिलित करने के आदी हैं? मण्डली का एक प्राचीन जो कई सालों से सभाओं में नियमित रूप से उपस्थित होता रहा है, कहता है: “जिस पाठ को मैं ने अच्छी तरह से तैयार नहीं किया, उस पर अपना ध्यान जमाना मुझे बहुत ही मुश्‍किल लगता है, लेकिन जिस पाठ की मैं ने अध्यवसाय से तैयारी की है, उस में भाग लेने में मुझे बहुत खुशी मिलती है।”

११. आप बाइबल-आधारित भाषणों से अधिक लाभ किस तरह पा सकते हैं, और यह इतना महत्त्वपूर्ण क्यों है?

११ जब आप बाइबल-आधारित भाषण सुनते हैं, तो भाषण किस तरह विकसित किया जा रहा है यह विश्‍लेषण कर सकने और, जो बातें बतायी जा रही हैं, उन पर अपना ध्यान जमाए रखने में आपकी मदद करने के लिए क्या आप संक्षिप्त टिप्पणी लिख लेते हैं? जो बातें आप सुनते हैं, क्या आप उनकी तुलना उन बातों से करते हैं, जो आपको पहले ही मालूम हैं, ताकि आप इन को ज़्यादा आसानी से समझ सकें और बेहतर रीति से इसे याद रख सकें? यीशु ने प्रार्थना की: “अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्‍वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जानें।” (यूहन्‍ना १७:३) क्या जीवन की ओर ले जानेवाला ज्ञान सबसे अच्छा ज्ञान नहीं, जो आपको कभी मिल सके? ग़ौर कीजिए बाइबल इसके बारे में क्या कहती है: “क्योंकि बुद्धि यहोवा ही देता है; ज्ञान और समझ की बातें उसी के मुँह से निकलती हैं। क्योंकि बुद्धि तो तेरे हृदय में प्रवेश करेगी, और ज्ञान तुझे मनभाऊ लगेगा; विवेक तुझे सुरक्षित रखेगा; और समझ तेरी रक्षक होगी।”—नीतिवचन २:६, १०, ११.

क़दरदानी में बढ़िए

१२. परमेश्‍वर ने हमारे लिए जो कुछ किया है, उन में से कुछेक उल्लेखनीय बातें क्या हैं?

१२ क्या हम सचमुच ही उस के लिए क़दर दिखाते हैं जो परमेश्‍वर ने हमारे लिए किया है? उन्होंने एक सुन्दर पृथ्वी सृष्ट की और उसे जीवन के पोषण के लिए तैयार किया। उन्होंने हमारे पहले माता-पिता को सृष्ट किया, जिस से हमारा जन्म भी संभव हुआ। उन्होंने प्रबंध किया कि हमें परिवारों और एक प्रेममय मण्डली की सहायता मिले। (उत्पत्ति १:२७, २८; यूहन्‍ना १३:३५; इब्रानियों १०:२५) उन्होंने खुद अपने पहलौठे को हमें परमेश्‍वर के बारे में ज़्यादा सिखाने के लिए और अनन्त जीवन संभव करनेवाली छुड़ौती देने के लिए पृथ्वी पर भेज दिया। क्या आप सचमुच ही ऐसे बढ़िया उपहारों के लिए आभारी हैं? क्या इनसे आप उनके बारे में सीखने और उनकी सेवा करने के लिए उनका निमंत्रण स्वीकार करने को प्रेरित होते हैं?—मत्ती २०:२८; यूहन्‍ना १:१८; रोमियों ५:२१.

१३. आपको क्यों लगता है कि परमेश्‍वर को व्यक्‍तियों में दिलचस्पी है?

१३ विश्‍व के सृष्टिकर्ता लोगों में दिलचस्पी रखते हैं। उन्होंने इब्राहीम को ‘मेरा दोस्त’ कहा, और उन्होंने मूसा से कहा: “मैं तुझे नाम से जानता हूँ।” (यशायाह ४१:८; निर्गमन ३३:१२, न्यू.व.) प्रकाशितवाक्य की किताब से सूचित होता है कि परमेश्‍वर के पास एक प्रतीकात्मक किताब, या “जीवन की पुस्तक” है, जिस में “जगत की उत्पत्ति के समय से” उनके विश्‍वस्त सेवकों के नाम लिखे गए हैं। क्या आपका नाम वहाँ सम्मिलित किया जाएगा?—प्रकाशितवाक्य ३:५; १७:८; २ तीमुथियुस २:१९.

१४. परमेश्‍वर के सिद्धान्तों पर चलने से आपका जीवन किस तरह सुधर सकता है?

१४ परमेश्‍वर के सिद्धान्त व्यवहार्य हैं। उनके तरीक़े से कार्य करने से अनेक समस्याएँ हटा दी जाती हैं—जैसे अनैतिकता, नशीले पदार्थों की लत, पियक्कडपन, अनचाहे गर्भ, यौन रोग, हिंसा, खून, और अन्य बुराइयों की एक लम्बी सूची। उनके मार्गों पर चलने से आपको असली दोस्त पाने और एक ज़्यादा आनन्दित जीवन बिताने की भी मदद होगी। क्या यह करने के योग्य नहीं? (१ कुरिन्थियों ६:९-११) जो युवा व्यक्‍ति, पहले ही परमेश्‍वर की इच्छानुसार करने के लिए कृतसंकल्प है, वह भी क्या सही है करने के लिए शक्‍ति प्राप्त कर सकता है। बाइबल कहती है: “दयावन्त के साथ [यहोवा] अपने को दयावन्त दिखाता है।” यह हमें आश्‍वासन भी देती है कि वह न तो “अपने वफ़ादारों को छोड़ेगा,” और न “अपनी प्रजा को छोड़ेगा।”—भजन १८:२५; ३७:२८; ९४:१४; यशायाह ४०:२९-३१.

परमेश्‍वर की सेवा करने में आगे बढ़िए

१५. सुलैमान ने युवजनों को कौनसी ईश्‍वरीय सलाह दी?

१५ क्या आपके लक्ष्य एक मरणासन्‍न पुरानी दुनिया में या एक धर्मी नयी दुनिया में केंद्रित हैं? क्या आप परमेश्‍वर की सुनते हैं, या क्या आप दुनियावी लोगों की सुनते हैं, जो उनके विपरीत बोलते हैं? क्या मनोरंजन, उच्च शिक्षण, या एक समय-नाशक सांसारिक व्यवसाय परमेश्‍वर और उनकी सेवा के आगे आते हैं? बुद्धिमान राजा सुलैमान ने सभोपदेशक की पूरी बाइबल किताब यह दिखाने के लिए लिखी कि हमारी ज़िन्दगी में किन बातों को प्रथम आना चाहिए। उसने इस तरह समाप्त किया: “अपनी जवानी के दिनों में अपने सृजनहार को स्मरण रख, इस से पहले कि विपत्ति के दिन और वे वर्ष आएँ, जिन में तू कहे कि मेरा मन इन में नहीं लगता। सब कुछ सुना गया; अन्त की बात यह है कि परमेश्‍वर का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन कर; क्योंकि मनुष्य का सम्पूर्ण कर्त्तव्य यही है।”—सभोपदेशक १२:१, १३.

१६. युवजन अतिरिक्‍त ख़ास अनुग्रह पाने के लिए किस तरह यत्न कर सकते हैं?

१६ आप जिन बड़े मसीही भाइयों को जानते हैं—प्राचीन, पायनियर, और आपके सर्किट और ज़िला ओवरसियर—वे सभी किसी समय में बच्चे थे। वे आज जिन आशीर्वादों का आनन्द लेते हैं, यह किस बात का परिणाम था? वे परमेश्‍वर से प्रेम करते थे और उनकी सेवा करना चाहते थे। युवावस्था में उन में से कई लोगों ने ज्ञान तथा अनुभव प्राप्त करने के लिए अपने अतिरिक्‍त समय का फ़ायदा उठाया। उन्होंने अभ्यास किया और सभाओं में हिस्सा लिया। उन्होंने सीखाने में भी भाग लिया, और अतिरिक्‍त ख़ास अनुग्रह पाने के लिए यत्न किया—जैसे पायनियर सेवा, बेथेल सेवा, या कोई अन्य लाभप्रद गतिविधि। वे ‘महा-युवजन’ नहीं थे; उन्हें सामान्य दिलचस्पियाँ और चिन्ताएँ थीं, जैसे आप को हैं। फिर भी, उन्होंने इस सलाह के अनुरूप परिश्रम किया: “जो कुछ तुम करते हो, तन मन से करो, यह समझकर कि मनुष्यों के लिए नहीं परन्तु यहोवा के लिए करते हो।”—कुलुस्सियों ३:२३, न्यू.व.; लूका १०:२७; २ तीमुथियुस २:१५ की तुलना करें.

१७. युवजनों को परमेश्‍वर की सेवा में प्रगति करने के लिए किस बात से मदद मिल सकती है?

१७ आपके बारे में क्या? क्या आप सचमुच ही ईश्‍वरीय बातों की क़दर करते हैं? क्या आप ऐसे लोगों में से दोस्त चुनते हैं जो आध्यात्मिक मामलों को प्रथम स्थान देते हैं? क्या आप दूसरों को आपके साथ मसीही कार्य में जाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं? क्या आप अधिक बड़े, अधिक अनुभवी लोगों के साथ मसीही सेवा में जाते हैं, ताकि उनसे सीख सके, उनके आनन्द में भागीदार हो सके, और उनके उत्तम कामों से प्रोत्साहित हो सके? एक गवाह उस दिन को याद करती है, जब तक़रीबन २० साल पहले, पहली बार किसी बड़े व्यक्‍ति ने उसे क्षेत्र सेवाकाई में जाने के लिए स्नेहपूर्ण रूप से निमंत्रित किया। वह कहती है कि यह उसके जीवन में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ था: “पहली बार मैं इसलिए जा रही थी कि मैं जाना चाहती थी, इसलिए नहीं कि मेरे माता-पिता मुझे ले जा रहे थे।”

१८. अपने आप को बपतिस्मा के लिए पेश करने से पहले ऐसी कुछ बातें क्या हैं, जिन पर सोचना चाहिए?

१८ अगर आप सब कुछ परमेश्‍वर की इच्छानुसार करने में प्रगति कर रहे हैं, तो आप शायद जल्द ही बपतिस्मा के बारे में सोचने लगेंगे। यह याद रखना महत्त्वपूर्ण है कि बपतिस्मा युवा प्रौढ़ता में किसी क़िस्म की धर्मविधि नहीं है। यह नहीं दर्शाता कि आप बड़े हो रहे हैं, और न ही यह एक ऐसा क़दम है जो आपको इसलिए लेना चाहिए, कि आपके दोस्तों ने यह लिया है। बपतिस्मा के लिए निवेदन करने से पहले, आपको सच्चाई का एक आधारभूत ज्ञान होना चाहिए और आपको पहले ही परमेश्‍वर के वचन के अनुरूप जीवन व्यतीत करते रहना चाहिए। आपको वह ज्ञान दूसरों को देने में काफ़ी अनुभव होना चाहिए और यह समझना चाहिए कि यह सच्ची उपासना का एक अत्यावश्‍यक हिस्सा है। (मत्ती २४:१४; २८:१९, २०) आपको यह भी जानना चाहिए कि इस महत्त्वपूर्ण मसीही क़दम को लेने के बाद, आप से अपेक्षा की जाएगी कि आप बाइबल के धर्मी नैतिक सिद्धान्तों के अनुरूप जीएँ।b आपको पहले ही अपने मन में अपना जीवन अपने प्रेममय स्वर्ग के पिता को समर्पित करना चाहिए था।—भजन ४०:८, ९ से तुलना करें।

१९. किसी व्यक्‍ति को कब बपतिस्मा लेना चाहिए?

१९ बपतिस्मा एक ऐसा क़दम है जो आप तब लेते हैं जब आपने दृढ़तापूर्वक निश्‍चय कर लिया है कि आपके बाक़ी जीवन में चाहे जो हो, आप परमेश्‍वर की सेवा ज़रूर करेंगे। यह लोगों के सामने लिया जानेवाला चिह्न है, जिस से सूचित होता है कि आपने यीशु मसीह के ज़रिए यहोवा के प्रति परमेश्‍वर की इच्छानुसार करने के लिए एक सम्पूर्ण, अबाध, और बिनाशर्त समर्पण किया है। एक मसीही प्राचीन उस दिन को याद करता है, तक़रीबन आधे शतक पहले, जब उसे अनुभूति हुई: “मुझे इसके बारे में कुछ करना पड़ेगा!” न्यूकास्स्ल, इंग्लैंड, में एक युवा गवाह, मिशेल, जिस ने कुछ साल पहले बपतिस्मा लिया, कहती है: “१३ साल की उम्र में, मुझे अनुभूति हुई कि मुझे अपना जीवन समर्पित करना चाहिए और बपतिस्मा लेना चाहिए; परमेश्‍वर की सेवा करने के अलावा कोई और बात नहीं जो मैं करना चाहूँगी।”

२०. (अ) कई हज़ार युवजनों के द्वारा कौनसा उत्तम मिसाल पहले ही प्रस्तुत किया जा चुका है? (ब) इस क़दम का विचार किस तरह किया जाना चाहिए?

२० कई हज़ार युवजनों ने हाल में बपतिस्मा लिया है। उन्होंने परमेश्‍वर के वचन का अभ्यास किया था और उनके मार्ग सीखे थे, और फिर, पानी के बपतिस्मा के द्वारा, उन्होंने सब के सामने खुशी-खुशी अनेक बड़ों के साथ मिलकर परमेश्‍वर के प्रति अपने समर्पण के प्रतीक के रूप में बपतिस्मा लिया। वे जानते हैं कि बपतिस्मा अन्त नहीं परन्तु उस सचमुच ही समर्पित जीवन-दौर की बस एक शुरुआत है, जिस पर परमेश्‍वर की सेवा में वे हमेशा-हमेशा चलने के लिए कृतसंकल्प हैं।

[फुटनोट]

a पृष्ठ ४ पर लेख “बाइबल के समय में युवा सेवक” देखें।

b इसका यह मतलब नहीं कि ‘मेरा अभी बपतिस्मा नहीं हुआ’ कहना अपराध करने के लिए एक बहाना है। जिस समय से हम जान जाते हैं कि परमेश्‍वर हम से क्या चाहते हैं, ज़ाहिर है कि हम पर उनका आज्ञापालन करने की ज़िम्मेदारी आती है।—याकूब ४:१७.

आप कैसे जवाब देंगे?

◻ परमेश्‍वर के वचन का ज्ञान इतना महत्त्वपूर्ण क्यों है?

◻ मसीही सभाओं में से आप अधिक लाभ किस तरह उठा सकते हैं?

◻ परमेश्‍वर की ओर से कौनसी आशिषों से हमें उनका आज्ञापालन करने के लिए प्रेरित होना चाहिए?

◻ आप परमेश्‍वर की सेवा में किस तरह आगे बढ़ सकते हैं?

◻ किसी व्यक्‍ति को बपतिस्मा कब लेना चाहिए?

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