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बाइबल की किताब नंबर 27—दानिय्येल“सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र” सच्चा और फायदेमंद (यिर्मयाह–मलाकी)
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20 दानिय्येल की किताब में दिए दर्शनों के बारे में पढ़कर न सिर्फ हमारे अंदर सिहरन दौड़ जाती है बल्कि इनसे हमारा विश्वास भी मज़बूत होता है। आइए उन चार दर्शनों पर एक नज़र डालें जो दुनिया की विश्वशक्तियों के बारे में बताते हैं: (1) यह एक भयंकर मूर्ति का दर्शन है, जिसका सोने का सिर नबूकदनेस्सर और उसके बाद आनेवाले तमाम बाबुली राजाओं को दर्शाता है। बाबुल के बाद, तीन और राज्य विश्वशक्तियाँ बनते हैं जिन्हें मूरत के अलग-अलग हिस्से से दर्शाया गया है। इन सभी राज्यों को एक “पत्थर” चूर-चूर कर देता है और उनकी जगह यह पत्थर “एक ऐसा राज्य” यानी परमेश्वर का राज्य बन जाता है “जो अनन्तकाल तक न टूटेगा।” (2:31-45) (2) इसके बाद दानिय्येल उन दर्शनों के बारे में बताता है जो उसे मिले थे। इनमें से पहला दर्शन चार जंतुओं के बारे में है, जो “चार राज्य” को दर्शाते हैं। ये राज्य शेर, रीछ, चार सिरवाले चीते और एक ऐसे जंतु की तरह हैं जिसके बड़े-बड़े लोहे के दाँत और दस सींग हैं और जिस पर बाद में एक छोटा-सा सींग निकल आता है। (7:1-8, 17-28) (3) फिर, अगला दर्शन एक मेढ़े (मादी-फारस), बकरे (यूनान) और एक छोटे सींग के बारे में है। (8:1-27) (4) आखिरी दर्शन, उत्तर के राजा और दक्खिन के राजा के बारे में है। दानिय्येल 11:5-19 सा.यु.पू. 323 में सिकंदर की मौत के बाद, उसके यूनानी साम्राज्य से निकले दो राज्यों के बीच की दुश्मनी का अचूक तरीके से वर्णन करता है। इस दुश्मनी में एक तरफ मिस्र पर हुकूमत करनेवाले राजा थे और दूसरी तरफ सेल्युकसवंशी राजा। फिर आयत 20 से भविष्यवाणी बताती है कि उत्तर के राजा और दक्खिन के राजा के देशों के बीच संघर्ष किस तरह आगे बढ़ता है। यीशु ने अपनी उपस्थिति का चिन्ह देते वक्त “उजाड़ने वाली घृणित वस्तु” (11:31, NHT) का ज़िक्र किया था, जिससे पता चलता है कि यह संघर्ष “जगत के अन्त” तक चलता रहेगा। (मत्ती 24:3) हमें भविष्यवाणी में किए इस वादे से कितना दिलासा मिलता है कि जब “ऐसे संकट का समय होगा, जैसा किसी जाति के उत्पन्न होने के समय से लेकर अब तक कभी न हुआ,” तब मीकाएल अधर्मी देशों का सफाया करने और आज्ञा माननेवाले इंसानों को शांति देने के लिए खड़ा होगा।—दानि. 11:20—12:1.
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बाइबल की किताब नंबर 27—दानिय्येल“सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र” सच्चा और फायदेमंद (यिर्मयाह–मलाकी)
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23 दानिय्येल की किताब, शुरू से लेकर आखिर तक राज्य की आशा पर ज़ोर देती है जिससे हमारा विश्वास मज़बूत होता है। इसमें यहोवा को पूरे जहान का महाराजाधिराज और मालिक बताया गया है जो एक ऐसा राज्य खड़ा करता है कि वह अनंतकाल तक न टूटेगा बल्कि दुनिया के सब राज्यों को चूर-चूर कर देगा। (2:19-23, 44; 4:25) नबूकदनेस्सर और दारा जैसे विधर्मी राजाओं को भी मानना पड़ा कि सिर्फ यहोवा ही पूरे विश्व में शक्तिशाली और सबसे बड़ा अधिकारी है! (3:28, 29; 4:2, 3, 37; 6:25-27) यहोवा को अति प्राचीन के तौर पर सम्मान दिया जाता है और उसकी महिमा की जाती है। वह राज्य के मामले पर न्याय करने बैठता है और ‘मनुष्य की सन्तान’ जैसे किसी को ऐसी अविनाशी ‘प्रभुता, महिमा और राज्य देता है कि देश-देश और जाति-जाति के लोग और भिन्न-भिन्न भाषा बोलनेवाले लोग सब उसके अधीन हो जाते हैं।’ उस राज्य में “परमप्रधान के पवित्र लोग,” ‘मनुष्य की सन्तान’ मसीह यीशु के साथ हुकूमत करते हैं। (दानि. 7:13, 14, 18, 22; मत्ती 24:30; प्रका. 14:14) यीशु ही मीकाएल है, यानी वह प्रधान जो अपने राज्य अधिकार का इस्तेमाल करके इस पुरानी दुनिया के सभी राज्यों को चूर-चूर करेगा और उनका अंत कर डालेगा। (दानि. 12:1; 2:44; मत्ती 24:3, 21; प्रका. 12:7-10) इन भविष्यवाणियों और दर्शनों से धार्मिकता के प्रेमियों को परमेश्वर के वचन में ढूँढ़-ढाँढ़ करने का बढ़ावा मिलना चाहिए, ताकि परमेश्वर के राज्य के उद्देश्यों के बारे में जो ‘आश्चर्य कर्म’ दानिय्येल की ईश्वर-प्रेरित और फायदेमंद किताब में प्रकट किए गए हैं, वे उनकी समझ हासिल कर सकें।—दानि. 12:2, 3, 6.
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