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  • यहोवा का आनन्द हमारा दृढ़ गढ़ है

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  • यहोवा का आनन्द हमारा दृढ़ गढ़ है
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1995
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1995
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यहोवा का आनन्द हमारा दृढ़ गढ़ है

“आज का दिन हमारे प्रभु के लिये पवित्र है; और उदास मत रहो, क्योंकि यहोवा का आनन्द तुम्हारा दृढ़ गढ़ है।”—नहेमायाह ८:१०.

१, २. (क) एक दृढ़ गढ़ क्या है? (ख) दाऊद ने कैसे दिखाया कि उसने यहोवा में शरण ली?

यहोवा एक अतुलनीय दृढ़ गढ़ है। और एक दृढ़ गढ़ क्या है? यह एक सुदृढ़ स्थान, सुरक्षा और बचाव का स्थान है। प्राचीन इस्राएल के दाऊद ने परमेश्‍वर को अपना दृढ़ गढ़ माना। उदाहरण के लिए, इस गीत पर विचार कीजिए जो दाऊद ने परमप्रधान को सम्बोधित किया “जब यहोवा ने उसको उसके सारे शत्रुओं के हाथ से, और शाऊल के हाथ से बचाया था,” जो इस्राएल का राजा था।—भजन १८, उपरिलेख।

२ दाऊद ने उस हृदयस्पर्शी गीत की शुरूआत इन शब्दों से की: “हे परमेश्‍वर, हे मेरे बल, मैं तुझ से प्रेम करता हूं। यहोवा मेरी चट्टान, और मेरा गढ़ और मेरा छुड़ानेवाला है; मेरा ईश्‍वर, मेरी चट्टान है, जिसका मैं शरणागत हूं, वह मेरी ढाल और मेरी मुक्‍ति का सींग, और मेरा ऊंचा गढ़ है।” (भजन १८:१, २) अन्यायी रूप से विधि-बहिष्कृत किए जाने पर और राजा शाऊल द्वारा पीछा किए जाने पर, खरे दाऊद ने यहोवा में शरण ली, वैसे ही जैसे एक व्यक्‍ति किसी विपत्ति से बचने के लिए शायद एक सुदृढ़ स्थान में भागे।

३. एज्रा के दिनों के यहूदियों ने ‘बड़े आनन्द’ का अनुभव क्यों किया?

३ जो आनन्द यहोवा देता है वह उन लोगों के लिए एक अचूक दृढ़ गढ़ है जो उसके मार्ग में खराई रखनेवालों के तौर पर चलते हैं। (नीतिवचन २:६-८; १०:२९) निश्‍चय ही, परमेश्‍वर-प्रदत्त आनन्द को प्राप्त करने के लिए लोगों को ईश्‍वरीय इच्छा पूरी करनी होगी। इस सम्बन्ध में, ध्यान दीजिए कि सा.यु.पू. ४६८ में यरूशलेम में क्या हुआ। शास्त्री एज्रा और दूसरों ने व्यवस्था के अर्थपूर्ण पठन के द्वारा समझ प्रदान की। फिर लोगों से आग्रह किया गया: “जाकर चिकना चिकना भोजन करो और मीठा मीठा रस पियो, और जिनके लिये कुछ तैयार नहीं हुआ उनके पास बैना भेजो; क्योंकि आज का दिन हमारे प्रभु के लिये पवित्र है; और उदास मत रहो, क्योंकि यहोवा का आनन्द तुम्हारा दृढ़ गढ़ है।” जब यहूदियों ने प्राप्त ज्ञान को लागू किया और झोपड़ियों का पर्व मनाया तो उसका परिणाम “बड़ा आनन्द” हुआ। (नहेमायाह ८:१-१२) जिनके लिए ‘यहोवा का आनन्द दृढ़ गढ़’ था उन्होंने उसकी उपासना और सेवा के लिए शक्‍ति जुटायी। क्योंकि यहोवा का आनन्द उनका दृढ़ गढ़ था, हमें यह अपेक्षा करनी चाहिए कि आज भी यहोवा के लोग आनन्दित होंगे। तो फिर, आज उनके पास आनन्द के लिए कौन-से कुछ कारण हैं?

“आनन्द ही करना”

४. यहोवा के लोगों के लिए आनन्द का एक प्रमुख स्रोत क्या है?

४ आनन्द के लिए एक प्रमुख कारण है एकसाथ इकट्ठे होने के लिए यहोवा का प्रबंध। यहोवा के गवाहों के सम्मेलन और अधिवेशन आज उन्हें आनन्दित करते हैं, वैसे ही जैसे इस्राएलियों द्वारा आयोजित वार्षिक पर्व उनके हृदयों को आनन्दित करते थे। इस्राएल के लोगों को कहा गया था: “जो स्थान यहोवा चुन ले उस में तू अपने परमेश्‍वर यहोवा के लिये सात दिन तक [झोपड़ियों का] पर्ब्ब मानते रहना; क्योंकि तेरा परमेश्‍वर यहोवा तेरी सारी बढ़ती में और तेरे सब कामों में तुझ को आशीष देगा; तू आनन्द ही करना।” (व्यवस्थाविवरण १६:१३-१५) जी हाँ, परमेश्‍वर चाहता था कि वे ‘आनन्द ही करें।’ वही बात मसीहियों के लिए भी सच है, क्योंकि प्रेरित पौलुस ने संगी विश्‍वासियों से आग्रह किया: “प्रभु में सदा आनन्दित रहो; मैं फिर कहता हूं, आनन्दित रहो।”—फिलिप्पियों ४:४.

५. (क) आनन्द क्या है, और मसीही इसे कैसे प्राप्त करते हैं? (ख) परीक्षाओं के बावजूद हमारे पास आनन्द कैसे हो सकता है?

५ क्योंकि यहोवा चाहता है कि हम आनन्दित हों, वह हमें अपनी पवित्र आत्मा के एक फल के रूप में आनन्द देता है। (गलतियों ५:२२, २३) और आनन्द क्या है? यह एक ख़ुशीभरी भावना है जो भलाई की प्रत्याशा या प्राप्ति से उत्पन्‍न होती है। आनन्द सच्ची ख़ुशी की, यहाँ तक कि उल्लास की अवस्था है। परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा का यह फल हमें परीक्षाओं में बनाए रखता है। “[यीशु] ने उस आनन्द के लिये जो उसके आगे धरा था, लज्जा की कुछ चिन्ता न करके, क्रूस का दुख सहा; और सिंहासन पर परमेश्‍वर के दहिने जा बैठा।” (इब्रानियों १२:२) शिष्य याकूब ने लिखा: “हे मेरे भाइयो, जब तुम नाना प्रकार की परीक्षाओं में पड़ो, तो इस को पूरे आनन्द की बात समझो, यह जानकर, कि तुम्हारे विश्‍वास के परखे जाने से धीरज उत्पन्‍न होता है।” लेकिन यदि हम नहीं जानते कि अमुक परीक्षा के बारे में क्या करें, तब क्या? तब हम निश्‍चित होकर बुद्धि के लिए प्रार्थना कर सकते हैं ताकि इससे निपट सकें। ईश्‍वरीय बुद्धि के सामंजस्य में कार्य करना, हमें यहोवा का आनन्द गँवाए बिना समस्याओं को सुलझाने में या स्थायी परीक्षाओं का सामना करने में समर्थ करता है।—याकूब १:२-८.

६. आनन्द और सच्ची उपासना के बीच क्या सम्बन्ध है?

६ यहोवा जो आनन्द देता है वह हमें सच्ची उपासना को बढ़ावा देने की शक्‍ति देता है। नहेमायाह और एज्रा के दिनों में यही हुआ था। उस समय के यहूदियों ने, जिनके लिए यहोवा का आनन्द दृढ़ गढ़ था, सच्ची उपासना के हितों को आगे बढ़ाने के लिए शक्‍ति प्राप्त की। और जब उन्होंने यहोवा की उपासना को बढ़ावा दिया, तो उनका आनन्द बढ़ गया। यही बात आज भी सच है। यहोवा के उपासकों के तौर पर, हमारे पास बड़ा आनन्द मनाने का आधार है। आइए हम आनन्द के लिए हमारे अनेक कारणों में से कुछ और पर विचार करें।

मसीह के द्वारा परमेश्‍वर के साथ सम्बन्ध

७. यहोवा के सम्बन्ध में, मसीहियों के पास आनन्द के लिए क्या कारण है?

७ यहोवा के साथ हमारा निकट सम्बन्ध हमें पृथ्वी पर सबसे ख़ुश लोग बनाता है। मसीही बनने से पहले, हम अधर्मी मानव समाज का भाग थे जिसकी ‘बुद्धि अन्धेरी हो गई है और जो परमेश्‍वर के जीवन से अलग किए हुए हैं।’ (इफिसियों ४:१८) हम कितने ख़ुश हैं कि अब हम यहोवा से अलग नहीं हैं! निश्‍चय ही, उसके अनुग्रह में रहने के लिए प्रयास की आवश्‍यकता है। हमें ‘विश्‍वास में दृढ़ होकर स्थिर बने रहना है और सुसमाचार की आशा को नहीं छोड़ना’ है। (कुलुस्सियों १:२१-२३, NHT) हम आनन्द कर सकते हैं कि स्वयं यीशु के शब्दों के सामंजस्य में यहोवा ने हमें अपने पुत्र की ओर खींचा है: “कोई मेरे पास नहीं आ सकता, जब तक पिता, जिस ने मुझे भेजा है, उसे खींच न ले।” (यूहन्‍ना ६:४४) यदि हम मसीह के द्वारा परमेश्‍वर के साथ अपने बहुमूल्य सम्बन्ध का वाक़ई मूल्यांकन करते हैं, तो हम इसे ऐसी किसी भी बात से सुरक्षित रखेंगे जो इसे हानि पहुँचा सकती है।

८. यीशु ने हमारी आनन्दपूर्ण अवस्था में कैसे योगदान दिया है?

८ यीशु के छुड़ौती बलिदान में विश्‍वास के द्वारा पापों की क्षमा, आनन्द का एक बहुत बड़ा कारण है क्योंकि यही परमेश्‍वर के साथ हमारे सम्बन्ध को संभव करता है। जानबूझकर पाप का मार्ग अपनाने के द्वारा हमारा पूर्वज आदम सारी मनुष्यजाति पर मृत्यु लाया। लेकिन प्रेरित पौलुस ने समझाया: “परमेश्‍वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है, कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा।” पौलुस ने यह भी लिखा: “जैसा एक अपराध सब मनुष्यों के लिये दण्ड की आज्ञा का कारण हुआ, वैसा ही एक धर्म का काम भी सब मनुष्यों के लिये जीवन के निमित्त धर्मी ठहराए जाने का कारण हुआ। क्योंकि जैसा एक मनुष्य के आज्ञा न मानने से बहुत लोग पापी ठहरे, वैसे ही एक मनुष्य के आज्ञा मानने से बहुत लोग धर्मी ठहरेंगे।” (रोमियों ५:८, १८, १९) हम कितने आनन्दित हो सकते हैं कि यहोवा आदम की संतान में से उन लोगों को छुड़ाने के लिए प्रसन्‍न है जो ऐसे प्रेमपूर्ण प्रबंध का लाभ उठाते हैं!

धर्म-सम्बन्धी स्वतंत्रता और प्रबोधन

९. हम धर्म-सम्बन्धी दृष्टिकोण से क्यों आनन्दित हैं?

९ झूठे धर्म के विश्‍व साम्राज्य, महा बाबुल से स्वतंत्रता आनन्दित होने का एक और कारण है। यह ईश्‍वरीय सत्य है जिसने हमें स्वतंत्र किया है। (यूहन्‍ना ८:३२) और इस धर्म-सम्बन्धी वेश्‍या से स्वतंत्रता का अर्थ है कि हम उसके पापों में भागी नहीं हैं, उसकी विपत्तियों को अनुभव नहीं करते और उसके साथ विनाश में समाप्त नहीं होते। (प्रकाशितवाक्य १८:१-८) इन सब से बच निकलने में उदास होने की कोई भी बात नहीं है!

१०. यहोवा के लोगों के तौर पर हम कौन-से प्रबोधन का आनन्द उठाते हैं?

१० परमेश्‍वर के वचन को समझना और जीवन में लागू करना बड़े आनन्द का कारण है। झूठे धर्म के प्रभाव से मुक्‍त, हम क्रमिक रूप से ज़्यादा स्पष्ट होनेवाली आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि का आनन्द लेते हैं, जो “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” द्वारा हमारे स्वर्गीय पिता ने हमें प्रदान की है। (मत्ती २४:४५-४७) पृथ्वी पर जी रहे तमाम लोगों में से, अनन्य रूप से यहोवा को समर्पित लोगों के पास ही उसकी पवित्र आत्मा और उसके वचन और इच्छा की धन्य समझ है। यह ऐसा है जैसे पौलुस ने कहा: “परमेश्‍वर ने उन को [जिन बातों को उसने अपने प्रेम रखनेवालों के लिये तैयार किया है] अपने आत्मा के द्वारा हम पर प्रगट किया; क्योंकि आत्मा सब बातें, बरन परमेश्‍वर की गूढ़ बातें भी जांचता है।” (१ कुरिन्थियों २:९, १०) हम आभारी और आनन्दित दोनों हो सकते हैं कि हम नीतिवचन ४:१८ के शब्दों में सूचित क्रमिक समझ का आनन्द उठा रहे हैं: “धर्मियों की चाल उस चमकती हुई ज्योति के समान है, जिसका प्रकाश दोपहर तक अधिक अधिक बढ़ता रहता है।”

राज्य आशा और अनन्त जीवन

११. किस तरह आनन्दपूर्ण राज्य आशा दूसरों के साथ बाँटी गयी है?

११ हमारी राज्य आशा भी हमें आनन्दित करती है। (मत्ती ६:९, १०) यहोवा के गवाहों के तौर पर, हम ने लंबे अरसे से घोषणा की है कि परमेश्‍वर का राज्य समस्त मानवजाति के लिए एकमात्र आशा है। उदाहरण के लिए, वर्ष १९३१ पर विचार कीजिए, जब हमने एक प्रस्ताव के द्वारा यहोवा के गवाह नाम अपनाया था। इस प्रस्ताव का संसार-भर के ५१ अधिवेशनों में आनन्दपूर्वक स्वागत किया गया था। (यशायाह ४३:१०-१२) उस प्रस्ताव और जे. एफ. रदरफर्ड (तब वॉच टावर संस्था के अध्यक्ष) द्वारा एक महत्त्वपूर्ण अधिवेशन भाषण को एक पुस्तिका राज्य, संसार की आशा (अंग्रेज़ी) में प्रकाशित किया गया। इसमें एक और भी प्रस्ताव शामिल था जो उस अधिवेशन में स्वीकार किया गया था, इसने मसीहीजगत पर उसके धर्मत्याग के लिए और यहोवा की सलाह का तिरस्कार करने के लिए दोष लगाया। इसने यह भी घोषणा की: “संसार की आशा परमेश्‍वर का राज्य है, और दूसरी कोई आशा नहीं है।” कुछ ही महीनों में, यहोवा के गवाहों ने संसार के सभी भागों में इस पुस्तिका की ५० लाख से अधिक प्रतियाँ वितरित कीं। तब से हम ने अकसर दृढ़तापूर्वक कहा है कि राज्य मानवजाति की एकमात्र आशा है।

१२. जीवन की कौन-सी आनन्दपूर्ण प्रत्याशाएँ यहोवा की सेवा करनेवालों के सामने रखी गयी हैं?

१२ हम राज्य शासन के अधीन अनन्त जीवन की प्रत्याशा से भी आनन्दित होते हैं। अभिषिक्‍त मसीहियों के ‘छोटे झुण्ड’ को एक आनन्दपूर्ण स्वर्गीय आशा है। “हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्‍वर और पिता का धन्यवाद दो,” प्रेरित पतरस ने लिखा, “जिस ने यीशु मसीह के मरे हुओं में से जी उठने के द्वारा, अपनी बड़ी दया से हमें जीवित आशा के लिये नया जन्म दिया। अर्थात्‌ एक अविनाशी और निर्मल, और अजर मीरास के लिये। जो तुम्हारे लिये स्वर्ग में रखी है।” (लूका १२:३२; १ पतरस १:३-५) आज, अधिकांश यहोवा के गवाह राज्य के अधिकार-क्षेत्र में परादीस में अनन्त जीवन की उत्सुकता से प्रत्याशा करते हैं। (लूका २३:४३; यूहन्‍ना १७:३) पृथ्वी पर किसी और के पास ऐसा कुछ नहीं जिसकी तुलना हमारी आनन्दपूर्ण प्रत्याशाओं के साथ की जा सके। हमें इन आनन्दपूर्ण प्रत्याशाओं को कितना प्रिय समझना चाहिए!

आशीष-प्राप्त भाईचारा

१३. हमें अपने अंतर्राष्ट्रीय भाईचारे को किस दृष्टिकोण से देखना चाहिए?

१३ परमेश्‍वर द्वारा स्वीकृत एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय भाईचारे का भाग होना भी बड़े आनन्द का स्रोत है। ख़ुशी की बात है कि हमारे पास पृथ्वी पर सबसे मनभावने साथी हैं। यहोवा परमेश्‍वर ने स्वयं हमारे दिनों की ओर संकेत किया और कहा: “मैं सारी जातियों को कम्पकपाऊंगा, और सारी जातियों की मनभावनी वस्तुएं आएंगी; और मैं इस भवन को अपनी महिमा के तेज से भर दूंगा।” (हाग्गै २:७) यह सच है कि सभी मसीही अपरिपूर्ण हैं। लेकिन, यहोवा ने ऐसे व्यक्‍तियों को यीशु मसीह के द्वारा अपनी तरफ खींचा है। (यूहन्‍ना १४:६) क्योंकि यहोवा ने ऐसे लोगों को अपनी तरफ खींचा है जिन्हें वह मनभावने समझता है, तो हमारा आनन्द भरपूर होगा यदि हम उन्हें भाईचारे का प्रेम दिखाएँ, उनका सम्मान करें, ईश्‍वरीय कार्यों में उन्हें सहयोग दें, उनकी परीक्षाओं में उन्हें प्रोत्साहित करें और उनके लिए प्रार्थना करें।

१४. पहला पतरस ५:५-११ से हम कैसा प्रोत्साहन प्राप्त कर सकते हैं?

१४ यह सब हमारे आनन्द में सहायक होगा। वाक़ई, यह यहोवा का आनन्द है जो सारी पृथ्वी पर हमारे आध्यात्मिक भाईचारे का दृढ़ गढ़ है। जी हाँ, हम सब सताहट और अन्य कठिनाइयों से पीड़ित होते हैं। लेकिन इससे हमें निकट आना चाहिए और पृथ्वी पर परमेश्‍वर के एक असली संगठन के भाग के तौर पर हमें एकता की भावना महसूस होनी चाहिए। जैसे पतरस ने कहा, हमें परमेश्‍वर के बलवन्त हाथ के नीचे दीनता से रहना चाहिए, और यह जानते हुए अपनी सारी चिन्ता उस पर डाल देनी चाहिए कि उसे हमारा ध्यान है। हमें जागते रहने की ज़रूरत है क्योंकि इब्‌लीस हमें फाड़ खाना चाहता है, लेकिन इसमें हम अकेले नहीं हैं, क्योंकि पतरस आगे कहता है: “विश्‍वास में दृढ़ होकर, और यह जानकर उसका साम्हना करो, कि तुम्हारे भाई जो संसार में हैं, ऐसे ही दुख भुगत रहे हैं।” और यह आनन्दपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय भाईचारा कभी टूटेगा नहीं, क्योंकि हमारे पास आश्‍वासन है कि ‘थोड़ी देर तक दुख उठाने के बाद परमेश्‍वर आप ही हमें सिद्ध और स्थिर और बलवन्त करेगा।’ (१ पतरस ५:५-११) कल्पना कीजिए। हमारा आनन्दपूर्ण भाईचारा सर्वदा के लिए बना रहेगा!

उद्देश्‍य सहित जीवन

१५. यह क्यों कहा जा सकता है कि यहोवा के गवाहों का एक उद्देश्‍यपूर्ण जीवन है?

१५ इस अशान्त संसार में हमारे पास आनन्द है क्योंकि हमारे पास एक उद्देश्‍यपूर्ण जीवन है। हमें ऐसी सेवकाई सौंपी गयी है जो हमें और दूसरों को ख़ुश करती है। (रोमियों १०:१०) परमेश्‍वर के सहकर्मी होना निश्‍चय ही एक आनन्दपूर्ण विशेषाधिकार है। इस सम्बन्ध में, पौलुस ने कहा: “अपुल्लोस क्या है? और पौलुस क्या? केवल सेवक, जिन के द्वारा तुम ने विश्‍वास किया, जैसा हर एक को प्रभु ने दिया। मैं ने लगाया, अपुल्लोस ने सींचा, परन्तु परमेश्‍वर ने बढ़ाया। इसलिये न तो लगानेवाला कुछ है, और न सींचनेवाला, परन्तु परमेश्‍वर जो बढ़ानेवाला है। लगानेवाला और सींचनेवाला दोनों एक हैं; परन्तु हर एक व्यक्‍ति अपने ही परिश्रम के अनुसार अपनी ही मजदूरी पाएगा। क्योंकि हम परमेश्‍वर के सहकर्मी हैं; तुम परमेश्‍वर की खेती और परमेश्‍वर की रचना हो।”—१ कुरिन्थियों ३:५-९.

१६, १७. यह साबित करने के लिए कौन-से उदाहरणों का उल्लेख किया जा सकता है कि यहोवा के लोगों के जीवन उद्देश्‍य सहित आनन्दपूर्ण हैं?

१६ यह दिखाने के लिए अनेक उदाहरणों का उल्लेख किया जा सकता है कि वफ़ादारी से यहोवा की सेवा करने का परिणाम एक उद्देश्‍यपूर्ण जीवन है जो हमें आनन्द से भर देता है। यह कथन इसका प्रतीक है: “मैं ने भरे हुए राज्य गृह में [उसके समर्पण समारोह के दिन] नज़र घुमायी और मैं अपने परिवार के आठ सदस्यों को उपस्थित देख सका, जिसमें मैं और मेरी पत्नी भी शामिल थे और हमारे तीन बच्चे और उनके विवाह-साथी। . . . परमेश्‍वर की सेवा में मेरी पत्नी और मैं ने वास्तव में एक ख़ुश और उद्देश्‍यपूर्ण जीवन बिताया है।”

१७ यह समझना भी प्रोत्साहक है कि किसी भी उम्र में एक व्यक्‍ति यहोवा की सेवा में सच्चे उद्देश्‍य सहित एक आनन्दपूर्ण जीवन आरम्भ कर सकता है। उदाहरण के लिए, एक स्त्री ने बाइबल सत्य को एक उपचार-गृह में सीखा, और १०२ साल की उम्र में यहोवा की गवाह के तौर पर बपतिस्मा लिया। इस तरह उसने सच्चे ‘परमेश्‍वर का भय मानते हुए और उसकी आज्ञाओं का पालन करते हुए,’ आनन्दपूर्ण उद्देश्‍य सहित अपना जीवन समाप्त किया।—सभोपदेशक १२:१३.

एक अचूक दृढ़ गढ़

१८. उदासी पर विजय पाने और अपना आनन्द बढ़ाने के लिए क्या किया जा सकता है?

१८ यहोवा का आनन्द वफ़ादार लोगों के लिए एक निश्‍चित दृढ़ गढ़ है। लेकिन इस आनन्द के होने का अर्थ यह नहीं कि हम कभी ऐसी कठिन घड़ियों से नहीं गुज़रेंगे जिनसे प्रेरित होकर यीशु ने गतसमने में यह कहा: “मेरा मन बहुत उदास है, यहां तक कि मैं मरने पर हूं।” (मरकुस १४:३२-३४) मान लीजिए कि स्वार्थी कार्यों की वजह से उदासी उत्पन्‍न हुई है। तो आइए हम अपनी जीवन-शैली बदलें। यदि हमारा आनन्द कम हो गया है क्योंकि हम निःस्वार्थ रूप से शास्त्रीय ज़िम्मेदारियों का भारी बोझ उठाते हैं तो हम शायद कुछ समायोजन कर सकते हैं जो हमारे तनाव को कम करेगा और हमारी आनन्दपूर्ण मनोवृत्ति को पुनःस्थापित करेगा। इसके अतिरिक्‍त, यहोवा हमें आनन्द की आशीष देगा यदि हम पापमय शरीर, दुष्ट संसार, और इब्‌लीस का प्रबल रूप से विरोध करने के द्वारा उसे प्रसन्‍न करने का प्रयास करें।—गलतियों ५:२४; ६:१४; याकूब ४:७.

१९. परमेश्‍वर के संगठन में प्राप्त किसी भी विशेषाधिकार को हमें किस दृष्टिकोण से देखना चाहिए?

१९ जिन कारणों की हमने चर्चा की है और अन्य अनेक कारणों से हमारे पास बड़ा आनन्द है। चाहे हम कलीसिया प्रकाशक हों या किसी क़िस्म की पूर्ण-समय सेवा में भाग ले रहे हों, हम सभी प्रभु के काम में सर्वदा बढ़ते रह सकते हैं, और यह निश्‍चित ही हमारे आनन्द में सहायक होगा। (१ कुरिन्थियों १५:५८) यहोवा के संगठन में हमारे विशेषाधिकार चाहे जो भी हों, हम इनके लिए कृतज्ञ रहें और आनन्द से अपने प्रेममय और आनन्दित परमेश्‍वर की पवित्र सेवा करना जारी रखें।—१ तीमुथियुस १:११.

२०. हमारा सबसे बड़ा विशेषाधिकार क्या है, और हम किस बात के बारे में निश्‍चित हो सकते हैं?

२० विशेषकर उसके गवाहों के तौर पर यहोवा का महान नाम धारण करने के हमारे विशेषाधिकार में हमें आनन्द मनाने का कारण है। जी हाँ, हम अपरिपूर्ण हैं और अनेक परीक्षाओं का सामना करते हैं, लेकिन यहोवा के गवाहों के तौर पर आइए हम अपनी अद्‌भुत आशीषों को मन में रखें। और याद रखिए, हमारा प्रिय स्वर्गीय पिता हमें कभी निराश नहीं करेगा। हम निश्‍चित हो सकते हैं कि हमें हमेशा आशीष प्राप्त होगी यदि यहोवा का आनन्द हमारा दृढ़ गढ़ है।

आप कैसे जवाब देंगे?

◻ “यहोवा का आनन्द” क्या है?

◻ मसीही सच्चा आनन्द कैसे प्राप्त करते हैं?

◻ यहोवा के गवाह क्यों आनन्दित हैं इसके कुछ कारण क्या हैं?

◻ यहोवा का आनन्द एक अचूक दृढ़ गढ़ क्यों है?

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