यीशु का जीवन और सेवकाई
यीशु फ़रीसियों को फटकारता है
अगर वह शैतान की शक्ति द्वारा दुष्टात्माओं को निकाल बाहर करता है, यीशु आपत्ति करता है, तो फिर शैतान अपने ही विरुद्ध विभाजित है। वह आगे कहता है, “यदि पेड़ को अच्छा कहो, तो उसके फल को भी अच्छा कहो, या पेड़ को निकम्मा कहो, तो उसके फल को भी निकम्मा कहो; क्योंकि पेड़ फल ही से पहचाना जाता है।”
यह आरोप लगाना मूर्खता है कि दुष्टात्माओं को निकाल बाहर करने का अच्छा फल यीशु का शैतान की सेवा करने की वजह से है। अगर फल अच्छा हो तो पेड़ निकम्मा नहीं हो सकता। दूसरी ओर, यीशु के प्रति फ़रीसियों का बेतुके आरोप और निराधार विरोध का निकम्मा फल सबूत है कि वे खुद निकम्मे हैं। “हे साँप के बच्चो,” यीशु बोल पड़ता है, “तुम बुरे होकर क्योंकर अच्छी बात कह सकते हो? क्योंकि जो दिल में भरा है, वही मुँह पर आता है।”
चूँकि हमारे शब्द हमारे दिल की अवस्था प्रतिबिंबित करते हैं, जो जो बातें हम कहते हैं, वे न्याय के लिए आधार देते हैं। यीशु कहता है, “मैं तुम से कहता हूँ, कि जो जो निकम्मी बातें मनुष्य कहेंगे, न्याय के दिन हर एक बात का लेखा देंगे। क्योंकि तू अपनी बातों के कारण निर्दोष और अपनी बातों ही के कारण दोषी ठहराया जाएगा।”
यीशु के इतने सारे प्रभावशाली कार्यों के बावजूद, शास्त्री और फ़रीसी निवेदन करते हैं: “हे गुरू, हम तुझ से एक चिह्न देखना चाहते हैं।” हालाँकि यरूशलेम से आए लोगों ने ज़ाती तौर पर उसके चमत्कार नहीं देखे होंगे, फिर भी उनसे संबंधित अखण्डनीय प्रत्यक्षदर्शी सबूत है। तो यीशु यहूदी अगुवाओं को बताता है: “इस युग के बुरे और व्यभिचारी लोग चिह्न ढूँढ़ते हैं; परन्तु यूनुस [योना] भविष्यद्वक्ता के चिह्न को छोड़ कोई और चिह्न उन को न दिया जाएगा।”
अपना मतलब समझाते हुए, यीशु आगे कहता है: “यूनुस तीन रात दिन जल-जन्तु के पेट में रहा, वैसे ही मनुष्य का पुत्र तीन रात दिन पृथ्वी के भीतर रहेगा।” मछली से निगले जाने के बाद, यूनुस मानो पुनरुत्थित होकर बाहर आया, इसलिए यीशु पूर्वबतलाता है कि वह मरेगा और तीसरे दिन ज़िंदा जिलाया जाएगा। फिर भी, यहूदी अगुवे, बाद में यीशु का जब पुनरुत्थान होता है तब भी, “यूनुस का चिह्न” अस्वीकार करते हैं।
इसलिए यीशु कहता है कि योना के प्रचार कार्य पर पछतावा करनेवाले नीनवे के लोग न्याय के दिन में यीशु को अस्वीकार करनेवाले यहूदियों को दोषी ठहराने के लिए उठेंगे। उसी तरह, वह शीबा की रानी से तुलना करता है, जो सुलैमान का ज्ञान सुनने के लिए पृथ्वी की छोर से आयी, और जो कुछ उसने देखा और सुना, उस पर उसने आश्चर्य किया। “और, देखो!” यीशु ग़ौर करता है, “यहाँ वह है जो सुलैमान से भी बड़ा है।”
यीशु फिर एक ऐसे आदमी का दृष्टांत सुनाता है, जिस से एक अशुद्ध आत्मा निकल जाती है। परन्तु, वह आदमी उस ख़ाली जगह को अच्छी बातों से नहीं भरता और इस कारण उसे इस से और बुरी सात आत्माएँ आविष्ट करते हैं। “इस युग के बुरे लोगों की दशा भी ऐसी ही होगी,” यीशु कहता है। इस्राएल की जाति शुद्ध की गयी थी और उन्होंने धर्मसुधार अनुभव किए थे—जैसे एक अशुद्ध आत्मा का अस्थायी प्रस्थान। लेकिन उस जाति द्वारा परमेश्वर के भविष्यद्वक्ताओं का अस्वीकार, जो खुद यीशु के प्रति उनके विरोध से पराकाष्ठा पर पहुँचा, उनकी दुष्ट अवस्था को आरंभ से कहीं ज़्यादा बदतर होना प्रकट करता है।
जब यीशु बोल रहा है, उसकी माँ और भाई वहाँ आते हैं और भीड़ के किनारे पर जगह लेते हैं। इसलिए कोई कहता है: “देख! तेरी माता और तेरे भाई बाहर खड़े हैं, और तुझ से बातें करना चाहते हैं।”
यीशु पूछता है, “कौन है मेरी माता? और कौन हैं मेरे भाई?” अपने चेलों की ओर हाथ बढ़ाकर, वह कहता है: “देखो, मेरी माता और मेरे भाई ये हैं! क्योंकि जो कोई मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चले, वही मेरा भाई और बहन और माता हैं।” इस रीति से यीशु दिखाता है कि उसे अपने रिश्तेदारों से बाँधने वाले बंधन चाहे कितने प्रिय क्यों न हों, अपने चेलों से उसका रिश्ता उन बंधनों से कहीं ज़्यादा प्रिय है। मत्ती १२:३३-५०; मरकुस ३:३१-३५; लूका ८:१९-२१.
◆ फ़रीसी पेड़ और फल, दोनों को अच्छा बनाने से किस तरह रह गए?
◆ “यूनुस का चिन्ह” क्या था, और उसे किस तरह अस्वीकार किया गया?
◆ इस्राएल की जाति उस आदमी के जैसे किस तरह थी जिस में से अशुद्ध आत्मा बाहर आयी?
◆ यीशु ने किस तरह अपने चेलों से अपने नज़दीकी रिश्ते पर बल दिया?