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  • बाइबल की किताब नंबर 32—योना
    “सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र” सच्चा और फायदेमंद (यिर्मयाह–मलाकी)
    • 3 इसमें कोई शक नहीं कि योना का पूरा ब्यौरा सच्चा है। ‘हमारे विश्‍वास को सिद्ध करनेवाले यीशु’ ने योना को एक असल शख्स बताया और उसकी किताब में भविष्यवाणी के तौर पर बतायी दो घटनाओं को ईश्‍वर-प्रेरणा से समझाया भी। यह दिखाता है कि योना की किताब में दर्ज़ भविष्यवाणियाँ एकदम सच्ची हैं। (इब्रा. 12:2; मत्ती 12:39-41; 16:4; लूका 11:29-32) यहूदी हमेशा से योना को ईश्‍वर-प्रेरित किताबों की अपनी सूची में शामिल करते आए हैं और उनका मानना है कि वह सचमुच इतिहास में जीया था। योना ने अपनी गलतियों और कमज़ोरियों को छिपाने की कोशिश नहीं की, बल्कि उनके बारे में खुलकर बताया। इससे भी साबित होता है कि उसकी किताब सच्ची है।

  • बाइबल की किताब नंबर 32—योना
    “सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र” सच्चा और फायदेमंद (यिर्मयाह–मलाकी)
    • 11 मत्ती 12:38-41 में यीशु ने धर्मगुरुओं से कहा था कि उन्हें सिर्फ ‘योना का चिन्ह’ दिया जाएगा। योना ने “अधोलोक के उदर” में तीन दिन और तीन रात बिताने के बाद, नीनवे के लोगों को जाकर प्रचार किया और इस तरह वह उनके लिए एक “चिन्ह” ठहरा। (योना 1:17; 2:2; 3:1-4) उसी तरह, यीशु ने भी मरने पर तीन दिन के कुछ हिस्से कब्र में बिताए थे और फिर उसका पुनरुत्थान किया गया था। जब उसके चेलों ने ऐलान किया कि यीशु जी उठा है, तो वह उस पीढ़ी के लिए एक चिन्ह ठहरा। यहूदियों के ज़माने में जिस तरीके से समय को मापा जाता था और यीशु के मामले में जो-जो घटनाएँ घटी थीं, उनसे ज़ाहिर होता है कि “तीन दिन और तीन रात” पूरे चौबीस-घंटेवाले तीन दिन नहीं थे।b

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